ए क सुगढ़, सुंदर, शालीन बेटी और कुलवधु के तौर पर प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुख्यालय में अपने कक्ष से (छह फरवरी की शाम) बाहर आते हुए उन्होंने पांच शब्दों से भारतीय संस्कृति, परंपरा और चुनौतियों से मुकाबले की अपनी तैयारी का इशारा कर दिया।
भारतीय इतिहास और संस्कृति के जानने समझने वाले भले इन पांच शब्दों (पति, परिवार, पार्टी मेरी जिम्मेदारी)को ठहाकों में उड़ा दी लेकिन देश की जनता प्रियंका के पांच सूत्रों से इशारा समझ गई है। अमेरिका से भारत आने के चौबीस घंटे के अंदर प्रियंका के पति राबर्ट वाड्रा को ईडी (एन्फोर्स मेंट डायरेक्टोरेट) के अफसरों के सामने जाना पड़ता है। प्रियंका उनके साथ निदेशालय के गेट तक जाती हैं। लौट कर अपनी मां सोनिया से मिलती हैं फिर वे पहुंचती हैं कांगे्रस मुख्यालय। वहां अपने कमरे में बैठती हैं। सहयोगियों से मिलती हैं। बाहर खड़े प्रशंसकों की भारी भीड़ और मीडिया से थोड़ी बहुत बात करने के बाद प्रियंका अपने घर लौट जाती हैं। ईडी विभाग राबर्ट वाड्रा से पूरे छह घंटे पूछताछ करता है। दूसरे दिन फिर उन्हें साढ़े दस बजे हाजिर होने को कहता है। जिससे चलती रहे कवायद पूछताछ की। पहले भी हो सकता था यह सब लेकिन अब तब, जबकि आम चुनाव शीघ्र होने हैं।
देश के वेदों, शास्त्रों, पुराणों में एक वहु चर्चित कहानी है सत्यवान और सावित्री की। देश में अभी भी गांवों में वटपूजन और सत्यवान सावित्री की कथा कहने सुनने की परंपरा है। पति से असीम प्रेम, परिवार के प्रति निष्ठा और देश के प्रति कर्तव्य की प्रतीक वह सावित्री थी जो अपने तप, पूजन और संघर्ष से अपने पति को यमराज के यहां से भी इस धरती पर वापस ला सकी थी। यह विजय थी प्रेम, निष्ठा, तप, त्याग और संघर्ष की। इस कथा की ओर ही किया था इशारा प्रियंका ने। उसने सिर्फ पांच शब्दों को कहा। क्रूर और कुटिल उपहास में इन शब्दों को उड़ा देने वाले संस्कृति विशेषज्ञ आने वाले दिनों में वैसा अट्टहास भी करने का दुरु साहस कर सकते हैं जैसा महाभारत काल में दुर्योधन और उसके तब दरबार ने किया था जब द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था। अपने विजय के वर्ष में फिर विजय श्री पाने की लालसा को पालने वाले ये क्षत्रप भले उन शब्दों का इशारा न समझें लेकिन वे देख रहे हैं दूर धरा पर उमड़ते-घुमड़ते बादलों को। उसे देख कर उनमें दहशत है। क्योंकि उनके झूठ, देश के इतिहास से उनकी छेड़छाड़ और लोकतंत्र के विभिन्न स्तंभों को मनमाने तौर पर तोडऩे-गिराने के उनके अनैतिक प्रयासों को देश की जनता अच्छी तरह जान बूझ रही है।
इसी जनता का अब भरोसा हैं आज प्रियंका जिसे पता है कैसे गौरीगंज, मुसाफिरखाना में उसकी दादी को कैसे आज भी याद किया जाता है। आज भी फैजाबाद में बीवी रसूलन अपने घर का कामकाज छोड़ कर कैसे उसकी एक झलक पाने के लिए बेचैन हो जाती थी। यह अनुराग वह नहीं समझ सकते जो ढांचों को गिरा कर अपनी पीठ थपथपाते हुए खुश होते हैं और इलाके का नाम बदल कर अट्टहास करते हुए नई भव्य मूर्ति बनाने की घोषणा करते हैं। कहते हैं यह जो नया निर्माण होगा उसे देखने श्रद्धालु आएंगे। अरे, प्राचीन काल से लोग उस प्राचीन रामजन्मभूमि को देखने-जानने-समझने यहां आते रहे हैं। वे उस जमाने में रही कटुता, नरसंहार, और अत्याचार को आज नए सिरे से जीवित करने नहीं आते थे। बल्कि तबकी ध्वंसगाथा से अपने जीवन संघर्ष में खुद में हिम्मत बढ़ाने का हौसला उपजाने आते रहे हैं। तब का युग और था और आज का युग और है। जहां नित्यप्रति चुनौतियां हैं। बहुत कुछ ऐसा है जिन्हें बिना आपस में आंदोलिन हुए मिल कर परस्पर सहयोग से किया जा सकता है। अपने देश को मजबूत उन्नत प्रदेश बना सकते हैं।
पूर्वी उत्तरप्रदेश जनता प्रियंका की भाषा समझती रही है। उसने देखा है कि अमेठी, रायबरेली के इलाकों में जो सपने इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी ने दिखाए ये उन पर उन्होंने अपने तरीके से अमल भी किया था। पिछले पांच साल से केंद्र सरकार के मंत्रियों ने उन योजनाओं को असली जामा नहीं पहनाया बल्कि जो चल रही थी उन्हें भी रोक दिया। मीडिया तक को पद, रु पया, कजऱ्, ज़मीन, घर का लालच देकर सही खबरें दबवाई गईं। प्रियंका की वापिसी को लेकर आज जनसामान्य में भीतर-भीतर ही वह खुशी है जो किसी अपने को बरसों बाद देख कर मिलती हैं।
पूर्वी उत्तरप्रदेश या कहें पूर्वांचल की राजनीति में प्रियंका गांधी वाड्रा के सक्रिय होने से एक नई ताजगी आई है। वाराणसी प्रधानमंत्री का अपना निर्वाचन क्षेत्र है जिसे उन्होंने अपनाया। गुजरात में जहां से वे जीतते आ रहे थे उसे छोड़ कर यहां फिर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। उन्होंने विकास के ढेरों सपने दिखाए। वाराणसी को जापान के क्योटो शहर की तरह बनाने की तस्वीर दिखाई। वाराणसी क्योटो बना या नहीं यह समय बताएगा लेकिन विकास में काशी की ऐतिहासिक संकरी, गंदी तंग गलियां ज़रूर उजड़ गईं।
ये गलियां काशी में बाबा विश्वनाथ के गले में पड़ी रूद्राक्ष की मालाओं की तरह थीं। आज गलियां हैं गायब। बड़े-बड़े मैदान रह गए। न कहीं वे चर्चित छोटे-छोटे मंदिर, न कटरे और न उन ऊपर बने मकान। सरकार ने भारी मुआवजा दिया। कम-ज्य़ादा के तो सवाल-जवाब हमेशा रहेंगे। लेकिन क्या वाराणसी क्योटो सा बना। जो विकास हो रहा है उससे कुलीन भद्रलोक और वीवीआईपी लोग बड़ी-बड़ी गाडिय़ों से बाबा विश्वनाथ की ड्यौढ़ी तक आसानी से जा सकेंगे। आगे गंगा मैय्या के दर्शन करेंगे और आराम से लौटों। यही है विज्ञापनी विकास।
क्या विकास सिर्फ भद्र-कुलीन और वीवीआईपी के लिए ही होता है। क्या आप तरह-तरह के टैक्स लगा कर उस आम श्रद्धालु को भी नहीं दुहते जो बाबा के दरबार में अपना शीश नवाने जाता है। इस श्रद्धालु के लिए तो आपने विश्वनाथ कारिडोर नहीं बनाया। अपने काशी की ऐतिहासिक, व्यवसायिक, धार्मिक, सांस्कृतिक पहचान खत्म कर दी। ऐसा तो इस देश के उन शासकों ने भी नहीं किया जिन्हें आप कोसते है। आपने पैसों के बल पर काशी के लोगों का मुंह बंद कर दिया। यह कौन सी संस्कृति है?
पूर्वाचल के लोगों में प्रियंका को लेकर आज बहुत उत्साह है। वे दो बच्चों की मां हैं। उनका पति है। उनका परिवार है और साथ उनकी कमज़ोर पार्टी, कांगे्रस हैं। लेकिन वाराणसी की जनता या कहें पूर्वांचल में कांग्रेस पार्टी और प्रियंका को लेकर बहुत उत्साह हैं। उनके पांच शब्दों से काशी का गौरव वापस तो नहीं आएगा लेकिन उम्मीद है कि विकास के नाम पर बंदरबांट और तोड़-फोड़ अब नहीं होगी। देश की जनता खुद अब अपना भविष्य लिखेगी। वह पूरे सम्मान, सहयोग और सहअस्तित्व से प्रियंका को अपने सिर माथे लेगी क्योंकि आज उसे बदलाव की ज़रूरत जान पड़ती है।
स्वामी अमितनंदन दानंद सरस्वती