केंद्र और प्रदेश दोनों में अपनी सरकार होने और सिर्फ साढ़े चार महीने पहले लोक सभा की सभी चार सीटें बहुत बड़े अंतर से जीतने के बावजूद हिमाचल में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के लिए 21 अक्तूबर को होने वाला दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव गले की फांस बन गया है। खासकर, पच्छाद जहाँ भाजपा के बागी ने पार्टी नेतृत्व की नींद हराम कर दी है। धर्मशाला की सीट भी भाजपा के लिए इज्जत का सवाल है, क्योंकि भाजपा वहां भी बंटी सी दिख रही है।
विधानसभा चुनाव में 44 सीटें जीतने के बाद भाजपा सरकार की अब तक की कारगुजारी मिली-जुली रही है। लोगों की अपनी-अपनी राय है। विपक्षी कांग्रेस तो खैर सरकार पर हमले करते ही रही है। हालांकि भाजपा नेता मान कर चल रहे हैं कि 21 तारीख को लोगों की मुहर भाजपा के काम पर लगेगी।
लोकसभा चुनाव में जनता खुले रूप से पीएम मोदी के साथ थी। बजह थी ‘‘पुलवामा और बालाकोट’’ को राजनीति के लिए सफलता से भुनाना। ‘‘हिन्दुतत्व और राष्ट्रवाद’’ का तडक़ा भी खूब लगा था चुनाव में। अब माहौल कुछ और है। वैसे जम्मू कश्मीर में धारा 370 को खत्म करने को भाजपा चुनाव में भुनाना चाहती है, लेकिन सच यह भी है कि विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दे सबसे ऊपर रहने वाले हैं।
भाजपा के लिए उपचुनाव का शगुन ही ठीक नहीं रहा। सोलन जिले की पच्छाद (आरक्षित) सीट पर भाजपा ने जैसे ही रीना कश्यप को उतारा, पार्टी की जमीन से जुड़ी नेता दयाल प्यारी और आशीष सिक्टा नाराज हो गए। बागी होकर दोनों ने नामांकन दाखिल कर दिया। सिक्टा तो पार्टी की मनुहार के आगे हार गए, दयाल प्यारी मैदान में टिकी हैं।
दयाल प्यारी से भाजपा इसलिए घबराई हुई है क्योंकि वे पच्छाद से तीन बार जिला परिषद का चुनाव जीत चुकी हैं। एक बार जिला परिषद की अध्यक्ष रही हैं। और भी दिलचस्प यह कि वह हर बार अलग-अलग वार्ड से विजयी हुईं जिससे उनकी इलाके में लोकप्रियता का पता चलता है।
पहली बार वे बाग-पशोग से चुनाव जीतीं जबकि दूसरी बार नारग से। वर्तमान में बाग-पशोग से जिला परिषद सदस्य हैं। उनकी इलाके में पकड़ का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जब प्रदेश में कांग्रेस सरकार थी, तब भी भाजपा की टिकट पर वह जिला परिषद की अध्यक्ष चुनी गयी थीं। इलाके का दौरा करने पर पता चलता है कि करीब 30 पंचायतों में उनका अच्छा प्रभाव है और लोगों की सहानुभूति भी उनसे जुड़ी लगती है।
नामांकन के दिन उनका एक वीडियो क्लिप भी खूब वायरल हुआ जिसमें कुछ लोग दयाल प्यारी को कथित तौर पर जबरदस्ती एक जीप में डाल रहे हैं। दयाल प्यारी समर्थकों का आरोप है कि उनकी नेता को नामांकन करने से रोकने की साजिश की गई थी। जाहिर है यह आरोप भाजपा पर है, हालांकि भाजपा का कहना है कि पार्टी के लोगों ने ऐसा कुछ नहीं किया।
वैसे पच्छाद में पांच प्रत्याशी मैदान में हैं। दयाल प्यारी (आजाद) और रीना कश्यप (भाजपा) के अलावा तीसरे प्रमुख प्रत्याशी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गंगूराम मुसाफिर हैं। पिछले दो चुनाव हारने वाले मुसाफिर ने उससे पहले के लगातार सात चुनाव जीते थे। वे कांग्रेस सरकारों में मंत्री ही नहीं, विधानसभा के अध्यक्ष भी रहे हैं। अन्य में आजाद सुरेंद्र कुमार छिंदा और पवन कुमार हैं।
आशीष सिक्टा और दयाल प्यारी भाजपा की तरफ से टिकट की दौड़ में थे। उनका नाम आलाकामन को भेजे गए पैनल में शामिल था। लेकिन मुहर लगी रीना कश्यप के नाम पर। इससे सिक्टा और दयाल प्यारी बागी हो गए और दयाल अभी भी मैदान में टिकी हैं। सच यह है कि उन्होंने मुकाबले को तिकोना बना दिया है।
‘‘तहलका’’ ने दयाल प्यारी से बात की। उन्होंने कहा – ‘‘पार्टी तानाशाही पर उतर आई है। कुछ नेता मुझे भाजपा से बाहर करने का षड्यंत्र रच रहे। मुझ पर लगातार टिकट वापस लेने का दबाव बनाया गया लेकिन मेरे समर्थकों और इलाके की जनता मुझे मैदान में चाहती है। जनता मेरे साथ है और भाजपा प्रत्याशी इस चुनाव में हारने जा रही हैं।’’
पिछले लगातार दो चुनाव इस सीट पर भाजपा के सुरेश कश्यप जीते। भाजपा के सुरेश कश्यप की पकड़ को देखते हुए भाजपा ने उन्हें लोकसभा चुनाव में उतार दिया और वे बड़े अंतर से जीत गए। उनकी खाली हुई सीट पर अब भाजपा तिकोने मुकाबले में फंसी है।
याद रहे 2012 के विधानसभा चुनाव में सुरेश कश्यप और मुसाफिर का मुकाबला हुआ था जिसमें सुरेश अपेक्षाकृत काम अंतर – 2805 वोट – से ही जीते थे। इसी तरह 2017 में सुरेश कश्यप को 30243 वोट मिले थे, जबकि गंगूराम मुसाफिर को 23816 वोट। और सुरेश अंतर बढक़र 6427 हो गया था। हालांकि इसे भी बहुत बड़ा अंतर नहीं कहा जा सकता।
यदि दयाल प्यारी के मैदान में आने से भाजपा के वोटों का बँटबारा हो जाता है और मुसाफिर अपने वोट बचाये रखते हैं तो भाजपा के लिए सच में दिक्कत आ सकती है। कांग्रेस को उम्मीद है कि उपचुनाव में उसके प्रत्याशी की जीत होगी।
मुसाफिर 1982 से लेकर 2007 तक लगातार सात बार इस सीट पर जीत चुके हैं। पहला चुनाव स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में जीतकर वे कांग्रेस में चले गए। यह देखना दिलचस्प होगा कि मुसाफिर क्या पुराना जोर फिर दिखा पाते हैं।
हार मुसाफिर की राजनीतिक करियर पर फुल स्टॉप लगा सकती है। भले वे इलाके के बड़े कांग्रेस नेता हैं, लगातार तीसरी बार हार के बाद इलाके में कांग्रेस के नए लोग दावेदारी जताएंगे। जीत गए तो अगले चुनाव में भी पार्टी में उनके सामने कोई चुनौती नहीं होगी। लिहाजा उनकी प्रतिष्ठा इस उपचुनाव में दांव पर है।
भाजपा प्रत्याशी रीना कश्यप के पास अभी खोने के लिए कुछ नहीं है। हार से उनके व्यक्तिगत करियर का जो हो सो हो लेकिन सरकार के लिए यह शर्म की स्थिति पैदा करने वाला हो जाएगा। रीना भी एक बार जिला परिषद सदस्य रह चुकी हैं। उन्हें जिताने के लिए पूरी सरकार और संगठन ताकत झोंक रहे हैं। खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर मैदान में प्रचार कर रहे हैं। पहली बार किसी चुनाव में उन्हें भाजपा के लिए चुनौती देखनी पड़ रही है।
निर्दलीय दयाल प्यारी के लिए भी उपचुनाव बहुत अहम है। अभी तक राजनीति के वे ऊंचे ग्राफ पर हैं। जीत गईं तो बहुत मजबूत हो जाएंगी विरोधियों को इससे बड़ा झटका लगेगा। हार गईं तो उसी कतार में खड़ी हो जाएंगी जहाँ भाजपा के अन्य बागी खड़े हैं। अभी से चर्चा है कि वे जीत गईं तो दोबारा भाजपा के साथ चली जाएंगी। वैसे जीतने पर उनके कांग्रेस के साथ जाने की सम्भावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता। ऐसी स्थिति में वे अगली बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस टिकट की प्रवल दावेदार हो जाएंगी।
धर्मशाला सीट
यह बहुत दिलचस्प है कि धर्मशाला में भाजपा और कांग्रेस ही नहीं निर्दलीय प्रत्याशी भी जितना जनता से वोट की गुहार लगा रहे हैं, उतना ही एक संस्था नवजीवन फॉऊंडेशन (रूबरू) को भी अपने पक्ष में करनी की कवायद में जुटे हैं। लेकिन इससे भी दिलचस्प यह है कि इस संस्था के कर्ताधर्ता कांग्रेस के पूर्व विधायक सुधीर शर्मा हैं।
इस सीट पर आठ प्रत्याशी मैदान में हैं। संभावना थी कि कांग्रेस सुधीर शर्मा को टिकट देगी या उनके किसी नजदीकी को। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। अब सुधीर एक तरह से कोपभवन में बैठे हैं। कांग्रेस ने युवा विजयइंद्र कर्ण को मैदान में उतारा है जो एक गद्दी नेता हैं। वे कांग्रेस के पूर्व मंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी के भांजे हैं।
भाजपा के विशाल नैहरिया को टिकट दिया है। यह सीट भाजपा के किशन कपूर के इस्तीफे के बाद खाली हुई हुई है जो मई के चुनाव में लोकसभा के लिए चुने गए थे। उस समय कपूर जयराम सरकार में मंत्री थे। वैसे किशन कपूर का इस सीट पर तीन दशक से दबदबा रहा है। वे पांच विधानसभा चुनाव यहां से जीत चुके हैं। हालाँकि 2012 में से सुधीर शर्मा से हार गए थे, जिनके दिवंगत पिता संत राम प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और कई बार मंत्री रहे थे।
फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े चौकस भारद्वाज भी धर्मशाला के चुनावी दंगल में आजाद प्रत्याशी के तौर पर उतरे हैं। कांग्रेस के पूर्व विधायक दिवंगत मूलराज पाधा के बेटे पुनीश पाधा, स्वाभिमान पार्टी के मनोहर लाल धीमान, राकेश कुमार और पुनीश भी आजाद प्रत्याशी हैं।
हलके में जितनी चर्चा चुनाव, प्रत्याशियों और संभावित नतीजे को लेकर उतनी ही इस बात पर कि उपचुनाव में नवजीवन फॉऊंडेशन रूबरू का क्या रोल रहेगा। रूबरू की बात करें तो कोई ढाई-तीन साल पहले पार्टी में अपने विरोधियों से निपटने के लिए कांग्रेस के पूर्व विधायक सुधीर शर्मा ने इस गैरसरकारी संगठन को खड़ा किया था। इस संगठन के जरिये सुधीर ने दरअसल बहुत चतुराई से हलके के महिला वोट बैंक को अपने हक में इक्क_ा किया।
रूबरू बनाने का मकसद था महिला वोट बैंक बनाना। सुधीर इस संस्था के चेयरमैन हैं जबकि शकुन मनकोटिया प्रबंध निदेशक (एमडी)। रूबरू के धर्मशाला हलके में 115 के करीब सिलाई केंद्र हैं। धार्मिक यात्राएं करवाने के अलावा रूबरू किसी के घर बेटी पैदा होने पर उसके नाम से 1000 रुपये अपनी तरफ से देकर उसका खाता खुलवाती है। इस कार्यक्रम का नाम स्थानीय भाषा में ‘‘अहां दी मुन्नी’’ अर्थात ‘‘हमारी बिटिया’’ रखा गया है। पूरे हलके में इसकी खासी लोकप्रियता है। यह माना जाता है कि कोई आठ से नो हज़ार के करीब महिलायें रूबरू से जुड़ी हैं यानि इतने वोटों पर संस्था की पकड़ है। उपचुनाव में वोट के लिए कांग्रेस, भाजपा और निर्दलीयों की भी रूबरू पर नज़र है।
पेंच यह है कि सुधीर शर्मा खुलकर कांग्रेस प्रत्याशी के प्रचार में नहीं आये हैं। कांग्रेस को चिंता है कि ‘‘रूबरू’’ के रूप में उसका वोट कहीं दाएं-बाएं न हो जाए। संस्था का महत्व इससे प्रमाणित हो जाता है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप राठौड़ तक व्यक्तिगत रूप से रूबरू की एमडी शकुन मनकोटिया से मिले। शकुन प्रदेश महिला कांग्रेस की उपाध्यक्ष भी हैं। माना जाता है कि महिला कांग्रेस की प्रदेशाध्यक्ष जैनब चंदेल ने इस मुलाकात के लिए लॉबिंग की। भाजपा बागी आजाद उमीदवार राकेश चौधरी भी शकुन से मिले।
‘‘तहलका’’ ने रूबरू की एमडी शकुन मनकोटिया से बातचीत की तो उनका कहना था कि वह कांग्रेस की समर्पित कार्यकर्ता हैं। ‘‘प्रदेशाध्यक्ष कुलदीप राठौर ने मुझे बुलाया था और उनसे पूरी बातचीत हुई है।’’ शकुन का कहना है कि पार्टी के उम्मीदवार के लिए वे कांग्रेस की सच्ची सिपाही के नाते दिल से काम कर रही हैं। ‘‘फिर भी साफ करना चाहूंगी कि हमारी संस्था गैर राजनीतिक है।’’
धर्मशाला हलके में बागियों की चुनौती भाजपा और कांग्रेस दोनों के सामने है। पुनीश पाधा कांग्रेस जबकि राकेश चौधरी भाजपा के बागी हैं। भाजपा में राजीव भारद्वाज ने भी टिकट की बहुत कोशिश की थी लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। भारद्वाज पूर्व सीएम शांता कुमार के नजदीकी माने जाते हैं। फिलहाल वे कांगड़ा केंद्रीय सहकारी बैंक के चेयरमैन हैं।
भारद्वाज हालांकि कहते हैं कि संघ (आरएसएस) से उन्होंने उन्हें सिर्फ सेवा और त्याग का भाव सीखा है। ‘‘मैंने कभी पद की लालसा नहीं की।‘‘ उनका पक्का भरोसा है कि धर्मशाला ही नहीं पच्छाद में भी भाजपा बड़े अंतर से जीतेगी। ‘‘हमारी लड़ाई जीत ही नहीं अंतर बढ़ाने की भी है।’’ भाजपा के विशाल नैहरिया ‘‘अब की बार, बीस हज़ार पार’’ के नारे के साथ मैदान में हैं।
धर्मशाला में चूंकि दोनों पार्टियों के बागी हैं वहां वोटों का निश्चित ही बटबारा होगा। जिसका बागी ज्यादा वोट ले गया उसके लिए खतरा पैदा होगा। यही कारण है कि दोनों दल जी-जान से लोगों को बता रहे हैं कि बागी को वोट देना इसकी बर्बादी करने जैसा होगा।
दोनों हलकों में लोग अभी चुप से हैं लेकिन यह बात ज़रूर कह रहे हैं कि वोट स्थानीय मुद्दों पर देंगे। पच्छाद के बलमु खेरी गाँव में एक महिला सरजू देवी ने कहा – ‘‘हमारे सडक़ों की समस्या है। पानी की है। तो यह देखकर ही वोट देंगे।’’
धर्मशाला के खनियारा में सुनील कपूर ने कहा – ‘‘दोनों केंडिडेट हमारी कम्युनिटी से (गद्दी) हैं। हमें लगता है कि इससे वोट बंट जायेंगे। जो दूसरे समुदायों से ज्य़ादा वोट लेगा, फायदे में रहेगा।’’ भाजपा के सांसद किशन कपूर, जो इस बार जीते गद्दी समुदाय से हैं।
पच्छाद में साफ तौर तिकोना मुकाबला है जो नतीजे को किसी भी तरफ मोड़ सकता है। भाजपा को सरकार होने के नाते अपनी जीत का भरोसा है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतपाल सत्ती ने कहा – ‘‘दोनों हलकों में भितरघात जैसी कोई बात नहीं। अगर हल्का यूनिट से ऐसी कोई शिकायत आई तो ऐसा करने वालों पर सख्त कार्रवाई होगी। पार्टी पिछले लंबे समय से दोनों हलकों में मैदान पर जुट गयी थी और दोनों में भाजपा की जीत होने जा रही है।’’