आम चुनाव के लिए अभी भी दो महीने बाकी हैं। लेकिन सत्ता और विपक्ष एक दूसरे पर परस्पर आरोप-प्रत्यारोप में लगा हुआ है। पूरे देश में चुनावी सरगर्मी की खासी जबरदस्त शुरूआत हो गई है। आपसी बातचीत, तालमेल गठबंधन, महागठबंधन, महा मिलावट आदि शब्द ही नहीं बल्कि एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप के हथियार भी हैं। लोकतंत्र के इस भारतीय महा समर की तैयारियां लगभग पूरी होने की दिशा में हैं। जनता दोनों पक्षों को जान-समझ रही है। फैसला उसके हाथ है। पक्ष और विपक्ष दोनों में ही गठबंधन का सिलसिला अर्से से है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद धन्यवाद प्रस्ताव दिया। यह एक घंटे पैंतालिस मिनट का था। पूरा भाषण सत्ता में अपनी उपलब्धियां और विपक्ष की बाधाओं का रोजनामचा था। भाजपा के नेतृत्व में केंद्र में बनी एनडीए सरकार ने काफी काम जनहित में किए लेकिन कई काम ऐसे भी हुए जिनसे देश में अशांति, भय और हिंसा का माहौल भी बना। आम नागरिक को जाति, धर्म, खान-पान, भाषा आदि के नाम पर बेचैन किया गया। लगा देश में असहिष्णुता को राजनीतिक धार्मिक एजेंडे के तौर पर अमल में लाया जा रहा है। संविधान की अनदेखी की जा रही है।
यह सही है कि एनडीए सरकार ने देश में अपने पांच साल के कार्यकाल में अपने विभिन्न कार्यक्रमों से जनता में नई जागरूकता पैदा की। अपने परिवेश को साफ रखने, खुद साफ रहने आदि के कई काम किए जिन पर पिछली सरकारों ने सोचा भी नहीं था। लेकिन वे आंकड़ों की बजाए आम जन-जीवन में किस हद तक कामयाब हुए यह जनता जानती-समझती है। रोजगार, शिक्षा, सामाजिक न्याय और भ्रष्टाचार ऐसे मुद्दे रहे जिन पर प्रधानमंत्री ने भाजपा नेतृत्व की सरकार की उपलब्धियां गिनाई साथ ही लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमज़ोर करने के विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए उसके लिए कांग्रेस की सरकारों को ही दोषी करार दिया। उन्होंने विपक्षी दलों के महागठबंधन को महामिलावट करार दिया। उन्होंने उपहास में विपक्ष की रणनीति पर अपनी चिंता जताई। लेकिन विपक्ष काफी समझ-बूझ कर इस बार सत्ता दलों को जनता के सामने घेरने में लगा है। ऐसा लगता है कि यदि ईवीएम मशीनों ने वाकई निष्पक्ष तरीके से काम किया तो आश्चर्यजनक नतीजे आ सकते हैं।
कोलकाता में 19 जनवरी को युनाइटेड इंडिया के लिए 23 दलों के नेता परेड ब्रिगेड ग्राउंड में रैली में शामिल हुए। चार फरवरी को बंगाल की मुख्यमंत्री ने सीबीआई टीम को कलकत्ता के पुलिस कमिश्नर को गिरफ्तार करने की कोशिश पर तीन फरवरी को धरना दिया। तीन फरवरी को परेड ब्रिगेड ग्राउंड में हुई वाम मोर्चा की रैली, दिल्ली में आठ फरवरी को युवाओं का प्रदर्शन और 13 फरवरी को नई दिल्ली में हुई ‘तानाशाही मुर्दाबाद, लोकतंत्र बचाओ’ रैलियां यह ज़रूर बताती हैं कि सत्ता में रही पार्टियों ने भी अच्छा खासा बहुमत पाकर भी देश की जनता को समस्याओं से राहत नहीं दी। जिसके कारण विपक्ष दलों की जनता के बीच पैठ बढ़ी।
अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने विमुद्रीकरण (नोटबंदी) और जीएसटी को अमल में लाने के लाभ गिनवाए। अभी हाल में जीएसटी के चलते छोटे-मझोले कल-कारखानों को जो बंदी के कगार पर थे उन्हें जनवरी महीने में जीएसटी कौंसिल से 40 लाख तक का कारोबार करने पर जीएसटी से राहत मिली। लेकिन पेट्रोलियम, रियल एस्टेट आदि को भी जीएसटी के तहत राहत मिलती तो शायद तस्वीर कुछ और बेहतर हो पाती।
असम और उत्तरपूर्व में एनडीए सरकार का नागरिकता (संशोधन ) विधेयक पर खासा बवाल मचा हुआ है। लोकसभा में यह विधेयक पास हो गया है। लेकिन राज्यसभा में यह फिलहाल है। इस विधेयक के जरिए यह कोशिश की जा रही है कि जो अवैध प्रवासी असम और उत्तरपूर्वी राज्यों में आकर बसे हैं उनकी नागरिकता को वैधता दी जाए। इससे स्थानीय समुदायों और नागरिकों को खासा खतरा हो गया है। इस विधेयक में मुसलमानों को छोड़ कर हिंदुओं, जैनियों , सिखों, बौद्धों और इसाइयों को प्राथमिकता दी गई है।
इस विधेयक का विरोध एनडीए सकार में शामिल असम और उत्तरपूर्वी राज्यों के विभिन्न राजनीतिक दल कर रहे हैं। असम सरकार के साथ सहयोग कर रही असम गण परिषद अब सरकार में नहीं है। साथ ही तीन उत्तर पूर्वी राज्य नगालैंड, मिज़ोरम और मेघालय भी अपना विरोध जता रहे हैं।
इसी तरह राफेल सौदे पर रोज़ नए-नए दस्तावेज विपक्ष ला रहा है जिससे सत्ता पक्ष की बेचैनी कम नहीं हो रही हैं रक्षा सौदे में कांग्रेस की सरकार की भी खासी भद्द पिटी थी और उसी तरह के आरोप में भाजपा और इसके नेता के नाम का उछलना जनता को सतर्क तो करता ही है। इस मामले में आधी अधूरी जानकारी पर अदालती फैसला, सीएजी की रपट आदि से भी विभिन्न सवाल उठते हैं जिसका उचित समाधान सरकार नहीं कर पा रही है।
नोटबंदी के बाद देश में एनडीए सरकार ने पुराने नोट बंद करके नए नोट ज़रूर चलाए लेकिन लेबर ब्यूरों की रपट के अनुसार बेरोजग़ारों की तादाद में बढ़ोतरी 2016-17 में 76.8 फीसद हो गई। इस रिपोर्ट में महिला बेरोजग़ार शक्ति शमिल नहीं है। सरकार इस बढ़ोतरी से भले इंकार करे लेकिन इस बात पर जनता में भी आम सहमति है।
अब अंतरिम बजट के बाद मई में आम चुनाव हैं। भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के विरोध में विपक्षी दलों का महागठबंधन आकार ले रहा है। सामूहिक नेतृत्व पर ज़ोर देने वाले इस महागठबंधन में वैचारिक विभिन्नता है और आपसी उठा-पटक भी है। इसे ध्यान में रखते हुए भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को सत्ता में आने लौटने की पूरी उम्मीद है। इसकी एक वजह यह कही जा रही है कि भाजपा सरकार देश के किसानों के लिए रुपए पांच सौ मात्र महीने यानी रुपए छह हजार मात्र सालाना की वित्तीय सहायता छोटे किसानों को देने की घोषणा की है। यह इस घोषणा के पहले कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने घोषित किया था कि जिन प्रदेशों में किसान कांग्रेस की सरकारें बनेंगी वहां की सरकारें सभी बेरोजगारों को न्यूनतम आमदनी मुहैया कराएंगी। इस घोषणा के बाद लगभग हड़बड़ी में भाजपा नेतृत्व की एनडीए सरकार ने छोटे किसानों के लिए घोषणा की।
अब आम चुनाव में जनता को फैसला लेना है। पिछले पांच साल के भाजपा नेतृत्व के एनडीए सरकार के कामकाज और उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए अपना बहुमूल्य वोट उस पार्टी और गठबंधन को देना है जिससे उसे कुछ बेहतर की उम्मीद हो।