हम चाहते नहीं थे पर बदकिस्मती से बीए पास हो गई। ये अच्छा हुआ एमए नहीं की, नहीं तो और मुसीबत हो जाती। हालांकि बीए न हो पाए इसके लिए हमने कई प्रयास किये, कलासें बंक की लेक्चर शार्ट किए, एक-एक कक्षा में कई बार फेल हुए, पर जब किस्मत साथ न दे तो कोई क्या कर सकता है। भाग्य के आगे किसका बस? आ गए बेरोजग़ारों की लाइन में। पूरी दुनिया की नजऱ हम पर ऐसे पड़ती थी जैसे बेरोजग़ारी बढ़ाने के जिम्मेदार केवल हम ही हैं। उन दिनों सरकारें भी दूरदर्शी नहीं थी। ‘पकौड़े तलने’, ‘बूट पालिश करने’ या ‘रेहड़ी लगाने’ जैसे महान धंधों पर हमारा ध्यान ही नहीं गया। पर कहते हैं, ‘देर आए दुरूस्त’ आए। आधी उम्र निकलने के बाद ध्यान आया कि, अब क्या बुरा है, बेसन, प्याज, घी, वगैरा ही तो चाहिए। इसके अलावा कढ़ाही, खोंचा, झरना, मिट्टी का तेल, स्टोव, नमक, मिर्च ही तो दरकरार थे।
हमने किसी तरह इन सब चीजों का बंदोबस्त कर लिया। सडक़ के किनारे अपनी दुकान सजा कर अभी स्टोव में हवा भरी ही थी कि देश की कत्र्तव्यप्रायण पुलिस ने हमें उसे घेरा जैसे किसी आतंकवादी पर धावा बोला गया हो। ओए ये क्या कर रहा है सरकारी ज़मीन पर? हवलदार ने यह पहला सवाल दागा। ‘बस साहिब पकौड़े तलने की तैयारी कर रहा हूँ। हमने जवाब दिया। ‘तेरे पास डिग्री है? अब पकौड़े तलने का यह उद्योग केवल बीए पास ही लगा सकते हैं, उसका दूसरा सवाल था। ‘हां हजूर बिल्कुल है, बीए पास हँू। हमारा यह जवाब सुन कर हवालदार थोड़ा गंभीर हुआ, ‘ठीक है इस ‘इंडस्ट्री’ को लगाने का लाइसेंस और प्लाट की अलॉटमैंट का लेटर दिखा, साथ फायर बिग्रेड, प्लयूशन विभाग, बिजली विभाग, जल निगम की एनओसी भी पेश कर’। हमने कहा जनाब मैं तो बिजली का इस्तेमाल ही नहीं करूंगा, पानी की दो बल्टियां भर के मैंने साथ रखी हैं। आग लगने जैसे कोई बात नहीं है, यहां कोई इमारत थोड़ी है।’ ओए तू इतनी बड़ी इंडस्ट्री लगा रहा है, ये सभी लाइसेंस और एनओसी तो लेने ही पड़ेंगे। हवलदार पर हमारी बात का कोई असर नहीं था। इतने में एक सिपाही बीच में कूदा,‘‘जनाब इसका जीएसटी नंबर कहां है? इसके पास पकौड़े तलने की डिग्री या टे्रनिंग नहीं है’। हमने हैरानी से पूछा,‘‘हजूर इसके लिए जीएसटी नंबर की क्या ज़रूरत है? मैंने कोई बिल थोड़ा काटना है। और पकौड़े तलने की भी कोई टे्रनिंग होती है। हमने तो कभी नहीं सुनी। तूने नहीं सुनी तो क्या टे्रनिंग नहीं होती? चल उठा अपना सामान और रफूचक्कर हो जा। नही ंतो देशद्रोह के मामले में अंदर कर दूंगा’’ हवलदार दहाड़ा। इससे पहले हम कुछ बोलते एक और सिपाही बोला,‘‘जनाब मुझे तो ये कोई भू-माफिया का बदमाश लगता है। इसे तो हिरासत में लेकर इनकी पूरी योजना जाननी होगी’’। नहीं माई-बाप मैं किसी माफिया वाफिया को नहीं जानता, मैं तो बेरोजग़ार हूं, अपना पेट पालने के लिए यह धंधा चलाना चाहता हूं।’’ जनाब आज तक जितने आतंकवादी पकड़े गए हैं वे सभी बेरोजग़ार ही थे। इन बेरोजग़ारों को आतंकी आसानी से पटा लेते हैं। उसी सिपाही ने कहा। हमने कहा, ‘‘मालिक हम कोई आतंकी नहीं हैं।’’ ‘‘यह तो अब छानबीन के बाद ही पता चलेगा’’ हवलदार ने कहा। तो जनाब इसे उठा ले चलते हैं। आतंकवाद की कोई धारा लगा देते हैं, जमानत भी नहीं होगी।’’ सिपाही ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा। ‘‘अरे छोड़ आतंकवाद की धारा को, आजकल तो बड़े-बड़े नेताओं को छोटे-छोटे आरोपों में ज़मानत नहीं मिलती तो इसे कौन पूछेगा’’ हवलदार ने मुस्कुराते हुए कहा। चल डाल इसे गाड़ी में। वहीं बनाएगा अब यह पकौडे।
दूसरे दिन गोदी अखबारों में खबर थी- ‘‘पुलिस के हत्थे चढ़ा एक खूंखार आतंकवादी’’। दूसरे ने लिखा-‘‘ सरकारी ज़मीन पर कब्जा करने आया भू-माफिया का एजेंट हिरासत में’’। साथ ही सब हैडिंग था-‘‘जान हथेली पर रख आतंकी को गिरतार करने वाले पुलिस कर्मी गणतंत्र दिवस पर होंगे सम्मानित। हमें पहले हवालात और फिर जेल भेज दिया गया। पर हम बहुत प्रसन्न थे। कम से कम वहां रोटी-रोजी का मसला तो नहीं था। दो वक्त पेट भर जाता था और कई साधु संतों का सानिध्य भी मिल रहा था। शायद बाहर आने तक ज्ञान में कुछ बढ़ोतरी हो जाए।