चूंकि मुझे भरोसा है इसलिए थोड़ी निराशा के बाद भी मैं इन दिनों सोचती हैं कि एक दिन आएगा भारतीय पुनर्जागरण का। लेकिन मैं उम्मीद खो बैठती हूं जब साध्वी प्रज्ञा जैसी हिंदू मेरे सामने कौंधती है। उनकी तरह के लोग और योगी आदित्य नाथ सनातन धर्म जैसी अभूतपूर्व विचारधारा के नितांत विरोधी है। धर्मों में सनातन धर्म ऐसा विचार है जिसमें कभी इस बात का दबाव नहीं होता कि हर समस्या का निदान इसके पास है और अकेला यह इतना सक्षम है जिसका ईश्वर से सीधा संपर्क है। धर्म का यह एक ऐसा नाजुक विचार है जिसका हमेशा गलत अर्थ धार्मिक और संस्कारी हिंदू निकालते हैं। खासकर ऐसे हिंदू जिनकी आस्था ही घृणा से उपजती है।
यदि अच्छे हालात होते तो प्रज्ञा को तो धर्म का प्रचारक होने का भी मौका नहीं मिलता। लोकसभा का सदस्य होना तो दूर की बात है। उसे सार्वजनिक जीवन में लाने के लिए पार्टी का टिकट देना एक अजब जि़द्द है। ऐसा नहीं है कि मैं दिग्विजय सिंह की प्रशंसक हूं। लेकिन मैं उम्मीद करती हूं कि वे जीते। प्रज्ञा वापस जेल में जाए या फिर वे किसी भी जहरीले आश्रम में लौटें जहां से वे कभी आईं। जब दिग्विजय सिंह के बारे में बात करते हैं तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि उनकी ‘धर्मनिरपेक्षता ‘ से ऐसे हिंदुत्व का उदय हुआ है जिसे हम आजकल देखते हैं। कांग्रेस की उटपटांग धर्मनिरपेक्षता के विचार से ही शायद वह किताब आई कि 26/11 तो आरआरएस की साजिश थी।
नरेंद्र मोदी को कतई बख्शा नहीं जा सकता कि उन्होंने लोकसभा में ऐसे लोगों को मौका दिया जिन पर आतंकवाद का आरोप है। प्रज्ञा उस जहरीले घृणा से भरे हुए हिंदुत्व का एक उदाहरण है।
हालांकि अकेली वही नहीं हैं। उसकी तरह के ढेरों लोग आज राजनीति में और संसद में हैं। पिछले पांच साल में इन लोगों ने घृणा और ज़हर ही उगला है मुसलमानों के खिलाफ। लेकिन प्रधानमंत्री के पास इनकी निंदा के लिए शब्द ही नहीं थे। सामूहिक तौर पर जो हत्याएं की गईं उन पर वे सिर्फ दो बार बोले। वह भी तब जब दलित मारे गए। मुसलमानों के मारे जाने पर तो कतई नहीं।
इन दिनों मेरा मोदी को समर्थन न देना सही है। मुझे लगता है कि मुझे इसकी सफाई देनी चाहिए। इसकी मुख्य वजह यह है कि मैं इंपीरियल डायनेस्टी राजधराने के वंशवाद और सामंतवादी लोकतंत्र से अजिज़ आ चुकी हूं जो अपनी मूलभूत विचारधारा प्रचारित करते हैं। खास तरह का ऐसा लोकतंत्र भारत के लिए बहुत बुरा रहा है। इससे भारत की संसद उस डिनर्स क्लब की तरह है जिसके दरवाजे उनके लिए बंद रहते हैं। जिनके पास जन्म से ही इसकी सदस्यता नहीं है। जब मोदी यहां नए आए थे तो लगा था कि लोकतंत्र की ताजी हवा का झोंका उनके साथ आएगा लेकिन वैसा हो नहीं सका। ताजी हवा का वह झोंका भी लुटियनस दिल्ली की घृणा में कहीं बदल गया।
मैं पहले उन्हें समर्थन देती थी, उसकी दो वजहें थीं। मुझे भरोस था कि वे भारत को उस आर्थिक दिशा में ले जा सकेंगे जहां राज्य धीरे-धीरे वाणिज्य में प्रगति करेगा। पिछले चुनाव प्रचार में उन्होंने कहा भी था कि वाणिज्य में सरकार का क्या काम। मैंने इसपर भरोसा किया।
और वह वजह जिसके चलते मैंने उन्हें अपना समर्थन दिया क्योंकि मैं सोचती थी कि भारतीय पुनर्जागरण न केवल संभव है बल्कि ज़रूरी भी है। यानी अपनी प्राचीन परंपरा से अच्छी बातों को लेना और उन्हें आधुनिक विचारों में ढालना एक ऐसी आधुनिकता में ले जाने की कोशिश करना जैसी जापान ने बड़ी ही खूबसूरती से की।
भारत में हम उपनिवेशवादी शिक्षा व्यवस्था भी ठीक से नहीं कर पाए। जिससे जो भारतीय प्रशिक्षित होकर आ रहे हैं उन्हें इस बात की भी कोई जानकारी नहीं होती कि भारतीय होने का मतलब क्या है। इसलिए वे आक्रामक राष्ट्रवाद का इस्तेमाल करने लगते हैं बिना यह जाने समझे कि भारत का मायना सिर्फ राष्ट्रगीत पर सिनेमा हाल में खड़े हो जाना नहीं होता और न सार्वजनिक स्थान पर योग के सत्रों में जाना या फिर वंदेमातरम कहना भर नहीं होता।
पुनर्जागरण की बजाए हमने देखा कि पिछले पांच साल में गंदी धार्मिकता का ज़रूर विकास हुआ। इसकी सीधी वजह यह थी कि प्रज्ञा और योगी आदित्यनाथ जैसे लोगों का उभार हुआ। ऐसे लोग आज हैं जिन्हें धर्म की कोई जानकारी नहीं है लेकिन वे गेरूआ वस्त्र पहले रहते हैं। सबसे खराब तो यह है कि उन्हें उस भारतीय सभ्यता तक की भी जानकारी नहीं है जिसके चलते दुनिया के पहले विश्वविद्यालय इस देश में कभी बने थे। इन्ही में धर्म की आधुनिक रूपरेखा का जन्म और विकास हुआ। इन विश्वविद्यालयों में सिर्फ धर्म ही नहीं पढ़ाया जाता था।
भारतीय सभ्यता की प्राचीन पद्धति को सही तरीेके से जाना-समझा दलाई लामा ने। वे दुनिया को इसे तिब्बती बौद्ध शिक्षा कहते हैं। साथ ही यह भी कहते हैं कि उनकी जानकारी का स्त्रोत भारत की प्राचीन शैक्षणिक संपदा है। हिंदू धर्म की बहुत ही गलत जानकारी उन अनपढ़ साधु-साध्वियों को है जो आज प्राय दिखाते हैं। ये भारतीय पुनर्जागरण कभी कामयाब नहीं होने देंगे।
तवलीन सिंह
साभार: इंडियन एक्सप्रेस