इस बार राज्य के विधानसभा चुनाव में पारम्परिक प्रतिद्वंद्वियों को चुनौती देंगे कई दल
पंजाब के विधानसभा चुनाव में इस बार दिलचस्प जंग की सूरत बन रही है। चुनाव 14 फरवरी को हैं, जो ‘वैलेंटाइन-डे’ भी कहलाता है। इस चुनाव में राजनीतिक दलों की कतार पिछले चुनावों के मुक़ाबले कहीं लम्बी हो गयी है और यह दल दो पारम्परिक प्रतिद्वंद्वियों- कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल के प्रभुत्व को चुनौती दे रहे हैं। इन दोनों ने ही वर्षों पंजाब पर शासन किया है।
कुल 117 सीटों के लिए कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, भाजपा, शिरोमणि अकाली दल, बहुजन समाज पार्टी और संयुक्त समाज मोर्चा मैदान में हैं। शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी गठबन्धन सहयोगी के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि भारतीय जनता पार्टी और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस ने चुनाव में हाथ मिलाया है। इसने चुनाव की गतिशीलता को बदल दिया है, जहाँ लगभग 21.1 मिलियन (दो करोड़ 11 लाख) मतदाता प्रतियोगियों की क़िस्मत का फ़ैसला करेंगे।
कांग्रेस का अंदरूनी विवाद
कुछ महीने पहले कांग्रेस सभी दलों से आगे दिख रही थी। लेकिन अब सत्तारूढ़ कांग्रेस में दरार दिख रही है। यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि क्या मुख्यमंत्री, चरणजीत सिंह चन्नी, प्रदेश अध्यक्ष, नवजोत सिंह सिद्धू और वरिष्ठ नेता सुनील जाखड़ चुनाव से पहले अपने मतभेदों और आंतरिक कलह को दूर करने या अपना लक्ष्य निर्धारित करने के लिए कुछ करेंगे? बिना मुख्यमंत्री चेहरे की घोषणा किये सामूहिक नेतृत्व में चल रही पार्टी को चुनाव में दिक़्क़तें हो सकती हैं। कांग्रेस चन्नी को 32 फ़ीसदी से अधिक अनुसूचित जाति के वोटों के एक बड़े हिस्से को हासिल करने के लिए एक तुरुप के इक्के के रूप में देखती है। लेकिन चन्नी-सिद्धू की लड़ाई पार्टी के लिए आत्मघाती साबित हो सकती है।
पंजाब कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष और चुनाव प्रचार कमेटी के प्रभारी सुनील जाखड़ ने कहा है कि पार्टी आलाकमान ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वह इस बार सामूहिक नेतृत्व के साथ जाने का इरादा रखती हैं। उधर पंजाब मामलों के पार्टी प्रभारी हरीश चौधरी ने भी स्पष्ट कर दिया था कि यह चुनाव एक व्यक्ति विशेष के इर्द-गिर्द नहीं बनने जा रहा है। जाखड़ ने कहा कि कांग्रेस की ताक़त राहुल गाँधी का विश्वास है, जिसमें वह कहते हैं कि पारम्परिक मानदण्डों को तोडऩा है। उनके पास एक दृष्टि है और उन्होंने पंजाब में यही कोशिश की। उन्होंने चरणजीत सिंह चन्नी, जो अनुसूचित समुदाय से हैं; को मुख्यमंत्री के रूप में लाते हुए उसी सोच का अनुसरण किया। यह निर्णय समाज के वंचित वर्ग के सामाजिक सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ा क़दम था। पंजाब में कांग्रेस सरकार के प्रदर्शन के बारे में उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि हमारे बड़े चुनावी वादों में से एक वृद्धावस्था पेंशन की वृद्धि थी, जिसे हमने 700 रुपये से बढ़ाकर 1,500 रुपये कर दिया था। हमने हमारे संसाधनों के भीतर किसानों के लिए ऋण काफ़ी की।
उन्होंने माना कि सार्वजनिक मंचों पर वरिष्ठ नेताओं द्वारा अपनी ही सरकार के ख़िलाफ़ लगातार अपशब्दों ने कांग्रेस को नुक़सान पहुँचाया है। उन्होंने कहा- ‘मैं व्यक्तिगत तौर पर सोचता हूँ कि इसकी जाँच होनी चाहिए। मुझे लगता है कि बहुत अधिक छूट दी गयी है और यह किसी व्यक्ति विशेष के बारे में नहीं है। इस तरह के मुद्दों पर अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है और उन पर नज़र डालने के बजाय उन्हें सख़्ती से निपटा जाना चाहिए था। बँटा हुआ घर कभी किसी की मदद नहीं करता। जो भी मतभेद हैं, उन्हें घर में ही सुलझा लेना चाहिए।‘
उन्होंने कहा कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद उतना ही ऊँचा होता है, जितना किसी राज्य में किसी को पार्टी में मिल सकता है। और आम आदमी पार्टी के लिए यह भी आवश्यक है कि वह पालन की जाने वाली प्रक्रियाओं के बारे में सावधान रहें। आलाकमान को इस मसले को हमेशा के लिए सुलझा लेना चाहिए।
आप, शिअद, भाजपा को उम्मीदें
ऐसे में आम आदमी पार्टी (आप) सन् 2017 में पार्टी की पराजय के बाद दूसरे अवसर की उम्मीद कर रही है। आम आदमी पार्टी ने अपने लोक-लुभावन वादों और शासन के दिल्ली मॉडल के साथ पंजाब की दीवारों को अपने आकर्षक नारे- ‘एक मौक़ा आप नू’ (आप को एक अवसर) सेरंग दिया है।
उधर भाजपा की स्पष्ट योजना है और उसने पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखदेव सिंह ढींडसा की संयुक्त अकाली दल के साथ गठबन्धन किया है। शिरोमणि अकाली दल अपने 24 साल पुराने साथी भाजपा के बिना चुनाव लड़ेगा और उसने मायावती की बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबन्धन कर अनुसूचित जाति के मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की है, जिनकी पंजाब में 32 फ़ीसदी हिस्सेदारी है। शिअद अपनी पंथिक सोच को भी आगे कर रही है, जबकि वह अपने संरक्षक और वरिष्ठ नेता प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व में एक आक्रामक अभियान की तैयारी कर रही है।
प्रधानमंत्री की सुरक्षा में सेंध से लेकर नशीली दवाओं के मामले, बेअदबी और रेत खनन आदि के कई मुद्दे इस चुनाव में हैं। हालाँकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा ने सुरक्षा चूक के मुद्दे को बड़े पैमाने पर उठाया है और अब यह उनके हर बयान में शामिल हो चुका है। इससे राजनीतिक माहौल में अचानक बदलाव आया है और यह पंजाब में कुछ सीटों पर शहरी हिन्दू वोट बैंक को एकजुट कर सकता है।
दरअसल उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखण्ड, गोवा और मणिपुर के नतीजे सत्तारूढ़ भाजपा के लिए 2024 तक महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालने वाले हैं। पंजाब को छोड़कर भाजपा इन सभी राज्यों में शासन कर रही है। प्रधानमंत्री के हाल के पंजाब दौरे के दौरान भाजपा नेजिस पैमाने पर सुरक्षा में चूक का मुद्दा उठाया, उससे साफ़ संकेत मिलता है कि आने वाले विधानसभा चुनावों में भी नरेंद्र मोदी उसके चुनावी प्रचार का चेहरा बने रहेंगे। कैसे भी जीत भगवा पार्टी के लिए प्राथमिकता होगी। पार्टी अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए ‘डबल-इंजन का सरकारी मॉडल’ पेश कर रही है। यह जनता को मनोवैज्ञानिक तरीक़े से सन्देश देने की कोशिश है कि यदि प्रदेशों में भी आप भाजपा की सरकार बनाते हैं, तो आपका ज़्यादा काम होगा। अब तक उपेक्षित क्षेत्र में विकास की राह देख रहे लोगों को यह नारा आकर्षित कर सकता है। हालाँकि पंजाब में एक अलग तरह का चुनावी खेल हो सकता है। क्योंकि कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आन्दोलन के दौरान लगभग 700 किसानों की मौत भाजपा के लिए एक बड़ा नकारात्मक मुद्दा है और लोगों के घाव अभी तक नहीं भरे हैं।
पंजाब में जहाँ भाजपा अपने दम पर एक मज़बूत चुनावी ताक़त नहीं बन पायी है, पार्टी एक तरह से जुआ खेलने जा रही है। क्योंकि यह दो दशक से अधिक समय के बाद पारम्परिक सहयोगी शिरोमणि अकाली दल के बिना चुनाव में उतर रही है। पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस से बाहर जा चुके कैप्टन अमरिंदर सिंह की नवगठित पंजाब लोक कांग्रेस जैसे छोटे और नये दल के साथ हाथ मिलाने के बाद भाजपा कांग्रेस को सीमावर्ती राज्य में सत्ता में लौटने से रोकने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। याद रहे मोदी लहर के बीच भी प्रदेश की जनता कांग्रेस के साथ खड़ी रही थी।
हालाँकि भाजपा नेताओं को उम्मीद है कि क़रीब 40 फ़ीसदी हिन्दू मतदाताओं से फ़र्क़ पड़ सकता है। साथ ही भाजपा राज्य में अस्पष्ट राजनीतिक स्थिति का फ़ायदा उठाने की इच्छा कर रही है। पार्टी की आशा का कारण एक प्रमुख सिख चेहरे पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के उसके साथ आने से है। उसे यह भी लगता है अकाली दल से बाहर जाकर मोदी फैक्टर पंजाब में भगवा पार्टी को लाभ दे सकता है। हालाँकि इस बार चुनाव में खिलाडिय़ों की संख्या को देखते हुए अप्रत्याशित परिणाम सामने आ सकते हैं।