पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित और मुख्यमंत्री भगवंत मान में कई मुद्दों पर ठनी हुई है। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने यहाँ तक कह दिया कि उनकी राज्यपाल के प्रति नहीं, बल्कि प्रदेश के तीन करोड़ से ज़्यादा मतदाताओं के प्रति जवावदेही है; जबकि राज्यपाल पुरोहित सरकार से सभी पत्रों का जवाब चाहते हैं। हालत यह हो गयी है कि राज्यपाल को यह कहना पड़ा कि मुख्यमंत्री भगवत मान उनकी सोशल मीडिया और विधानसभा तक में उड़ा रहे हैं। नियुक्तियों के सम्बन्ध में उनके गंभीर मुद्दों पर लिखे पत्रों को ‘लव लेटर’ कह रहे हैं। 10 पत्र अभी तक राजभवन की ओर से लिखे जा चुके हैं; लेकिन किसी एक का भी जवाब नहीं दिया गया है। मुख्यमंत्री पंजाब राजभवन को भाजपा का दफ़्तर बनाने के आरोप लगा रहे हैं, वहीं उन्हें (पुरोहत) को राजनीति के मैदान में उतरकर चुनाव लडऩे की बात कह रहे हैं। पुरोहित के मुताबिक, वह संवैधानिक ज़िम्मेदारी के तहत काम कर रहे हैं; लेकिन मुख्यमंत्री अपने ही मन की कर रहे हैं। जनता की चुनी सरकार के कामकाज पर निगाह रखने की ज़िम्मेदारी राज्यपाल की है और उसकी पालना ही वह करा रहे हैं।
मुख्यमंत्री भगवंत मान कहते हैं कि राज्यपाल पुरोहित केंद्र सरकार के एजेंडे पर काम कर रहे हैं। राज्यपाल सरकारी हेलीकॉप्टर का प्रयोग करते हैं और अपनी ही सरकार को काम नहीं करने दे रहे। ऐसा करके वह प्रचंड बहुमत की सरकार को अस्थिर करने में लगे हैं। पंजाब में मुख्यमंत्री भगवंत मान राज्यपाल के हस्तक्षेप से आहत हैं। वहीं दिल्ली में अरविंद केजरीवाल दिल्ली के उप राज्यपाल के हस्तक्षेप से शुरू से पीडि़त हैं। जिन राज्यों में केंद्र सरकार की पार्टी की सरकारें नहीं होती, वहाँ-वहाँ राज्यपाल और मुख्यमंत्री में टकराव देखने को मिलता ही है।
केंद्र में कांग्रेस या नीत की सरकार के वक़्त दूसरी पार्टी सरकारों में विवाद भी उठते ही रहे हैं। पश्चिम बंगाल में उस समय के राज्यपाल (अब उप राष्ट्रपति) जगदीप धनखड़ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी में कभी बनी ही नहीं। धनखड़ तब कोलकाता में ख़ुद को असुरक्षित बताने लगे थे। पंजाब में स्थिति पश्चिम बंगाल जैसी नहीं, यहाँ राज्यपाल कह रहे हैं कि वह सरकार को संवैधानिक नियमों की पालना कराना चाहते हैं। मुख्यमंत्री सरकार के कामकाज और नियुक्तियों में मीन-मेख और मंज़ूरी न देने को बेवजह अड़ंगा लगाना बताते हैं, तो पुरोहित इसे प्रोटोकोल की सही तरीक़े से पालना न करने का हवाला देते हैं।
भगवंत मान और पुरोहित में पहला विवाद तत्कालीन चंडीगढ़ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) रहे कुलदीप चहल से शुरू हुआ। पंजाब के राज्यपाल चूँकि चडीगढ़ के प्रशासक भी होते हैं; लिहाज़ा किन्हीं कारणों के चलते राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने चहल को अपने मूल राज्य पंजाब भेजने की सिफ़ारिश की थी। एसएसपी के तौर पर अभी चहल को कुछ महीने इस पद पर चंडीगढ़ ही रहना था। पंजाब सरकार ने इसकी पालना तो की; लेकिन चहल को जालंधर का पुलिस आयुक्त बना दिया। जबकि पुरोहित इसके पक्ष में नहीं थे और यहीं से उनकी नाराज़गी सरकार के प्रति पैदा हो गयी और सम्बन्धों में खटास आ गयी।
उसके बाद से लगातार यह सिलसिला जारी है। पंजाब सरकार ने पंजाब इन्फॉर्मेशन कम्युनिकेशन एंड टेक्नोलॉजी कॉरपोरेशन के अध्यक्ष के तौर पर गुरिंदर सिंह जवंदा की नियुक्ति की; लेकिन राज्यपाल ने इस पर एतराज़ जताया। राज्यपाल ने कहा कि जवंदा पर अपहरण और प्रापर्टी क़ब्ज़ा जैसे आरोप हैं। प्रोटोकाल की पालना न करते हुए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना में उप कुलपति सतबीर सिंह की नियुक्ति पर एतराज़ जताया। फ़रीदकोट के बाबा फ़रीद यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस के उप कुलपति गुरप्रीत सिंह वांडर की नियुक्ति को ग़लत बताया। बाद में वांडर पीछे हट गये और राज्यपाल ने राजीव सूद के तौर पर नियुक्ति की। राज्यपाल कुलाधिपति होता है और इस नाते वह ऐसी नियुक्तियों पर एतराज़ कर सकता है।
मिनिस्टर आफ गवर्नेंस रिफॉम्र्स के ओएसडी रहे नवल अग्रवाल की सरकार की अहम बैठकों में भाग लेने की शिकायत पर राज्यपाल ने सरकार से एतराज़ जताया। हाल में राज्यपाल ने पंजाब तकनीकी विश्वविद्यालय में उप कुलपति के तौर पर सुशील मित्तल को नियुक्त किया है। सिंगापुर में राज्य के प्रधानाचार्यों के प्रशिक्षण दौरे पर राज्यपाल ने सरकार से स्पष्टीकरण माँगा। राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री लालचंद कटारुचक पर कुकर्म की शिकायत पर उन्हें हटाने के लिए कहा; लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया। सरकार की ख़ूब आलोचना भी हुई; लेकिन आरोपों के आधार पर मान ने मंत्री को हटाया नहीं। इस बाबत प्राथमिकी दर्ज हुई, जिसकी जाँच भी हुई; लेकिन इस दौरान शिकायतकर्ता पीछे हट गया।
राजभवन से लिखे पत्रों का निष्कर्ष यही है कि भगवंत मान सरकार नियुक्तियों में प्रोटोकाल की पालना नहीं कर रही है। पद के लिए पैनल बनाना होता है; लेकिन ज़्यादातर ऐसी नियुक्तियों में इसकी पालना नहीं की गयी और इसी बात पर उन्होंने एतराज़ जताया है। मान और पुरोहित में पत्रों के अलावा वाक्युद्ध चल रहा है। मान तो सोशल मीडिया पर राज्यपाल पर जब तब टिप्पणियाँ कर रहे हैं; लेकिन राज्यपाल ने यह मर्यादा बनाये रखी है। संवैधानिक पद पर रहते हुए उन्हें गरिमा का पालना करनी ही होगी।
मुख्यमंत्री भगवंत मान कहते हैं कि राज्यपाल को पंजाब और यहाँ की सरकार के प्रति कोई लगाव नहीं है। यही वजह है कि विधानसभा में अभिभाषण के दौरान वह मेरी सरकार कहने में संकोच करने लगे, जबकि सारे फ़ैसले उनके (राज्यपाल) के हस्ताक्षर के बाद ही अमल में आते हैं। राज्य विधानसभा के बजट सत्र में जब राज्यपाल पुरोहित ने अभिभाषण के दौरान मेरी सरकार के नाम से संबोधन शुरू किया, तो विपक्ष ने मेरी शब्द पर एतराज़ जताया उसके बाद राज्यपाल ने केवल सरकार ही संबोधित किया। लेकिन मुख्यमंत्री ने उन्हें टोका कि वह जो लिखा है, वही पढ़ें और राज्यपाल ने वही किया भी।
राज्यपाल का कहना है कि विपक्ष के टोकने पर उन्होंने एक बार मेरी सरकार की जगह सरकार बोला बाद में उन्होंने मेरी सरकार ही संबोधित किया। राज्यपाल की ओर से लिखे 10 से ज़्यादा पत्रों का सरकार की तरफ़ से कोई जवाब न देने का मामला सुप्रीम कोर्ट में गया, जहाँ फ़ैसला हुआ कि अनुच्छेद-167(बी) के तहत राज्यपाल सरकार से कोई भी ज़रूरी जानकारी लेने का अधिकार रखता है। सरकार को ऐसी जानकारी देनी होगी। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने मुख्यमंत्री की राज्यपाल के प्रति भाषा को ग़लत ठहराया। बावजूद इसके मुख्यमंत्री महामहिम करते हुए कुछ-न-कुछ टिप्पणी कर ही जाते हैं।
ऐसे बहुत कम उदाहरण मिलते हैं, जिसमें मुख्यमंत्री सरकार की ज़िम्मेदारी के लिए राज्यपाल के प्रति नहीं, बल्कि प्रदेश की जनता के प्रति जवाहदेह होने की बात कहता हो। जनता के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है, यह तो राज्यपाल का ही है; और यह अधिकार उन्हें संविधान से हासिल है। पंजाब में आम आदमी की पार्टी की सरकार प्रचंड बहुमत वाली है, इसलिए उसे अस्थिर करने के प्रयास जैसे आरोप सही नहीं है।
सरकार के कामकाज पर नज़र रखना राज्यपाल की ज़िम्मेदारी है और पुरोहित इसी का हवाला देकर काम करने की बात कह रहे हैं। राज्यपाल से पूछा गया कि अगर सरकार उनके पत्रों का जवाब नहीं देती है, तो क्या वह कार्रवाई करेंगे? जवाब में उन्होंने कहा- अभी सब्र का बाँध टूटा नहीं है। केंद्र सरकार पर पंजाब सरकार का ग्रामीण विकास कोष के क़रीब 3,622 करोड़ रुपये बक़ाया है। इस बाबत राज्यपाल ने सम्बन्धित मंत्री को पत्र लिखा है, जबकि सरकार राज्य हित के कामों की बजाय राज्यपाल पर केंद्र के इशारे पर सरकारी कामों में अड़ंगा लगाने के आरोप लगा रही है। मौज़ूदा स्थिति को देखते हुए मुख्यमंत्री और राज्यपाल के टकराव के कम होने के आसार नहीं लगते। बहरहाल पंजाब में जो घटित हो रहा है, लोकतंत्र की स्वस्थ परम्परा के लिए वह ठीक नहीं है।
“मुख्यमंत्री को पत्रों से माँगी जानकारी हर हालत में देनी होगी। हम बराबर सरकार के कामकाज पर निगाह रखेंगे। मुख्यमंत्री के एतराज़ के बाद अब से हम सरकारी हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल नहीं करेंगे, इसमें हमें कोई दिक़्क़त नहीं।“
बनवारी लाल पुरोहित
राज्यपाल, पंजाब और चडीगढ़ प्रशासक
“पंजाब राजभवन भाजपा का दफ़्तर बन गया है। केंद्र के इशारे पर राज्यपाल राजनीति कर रहे हैं। बेहतर होगा कि उन्हें अब राजनीति के मैदान में उतर जाना चाहिए। हमारी जवाबदेही लोगों के प्रति है, केंद्र के नुमाइंदे के प्रति नहीं।“
भगवंत मान
मुख्यमंत्री, पंजाब
संशोधन से मिलेगी ताक़त
दो दिवसीय पंजाब विधानसभा के विशेष सत्र के दौरान बहुत अहम फ़ैसले लिये गये। इसे पंजाब पुलिस लॉ (संशोधन) 2023 को सर्वसम्मति से पास किया गया। अभी राज्यपाल से इसकी मंज़ूरी बाक़ी है। पास होने के बाद पंजाब का पुलिस महानिदेशक बनाने के लिए नाम की मंज़ूरी यूपीएससी से नहीं, बल्कि राज्य की सात सदस्यीय समिति देगी। इसके अलावा अहम पंजाब यूनिवर्सिटी लॉ (संशोधन) 2023 भी सर्वसम्मति से पास किया गया। इसे भी राज्यपाल की मंज़ूरी चाहिए। संशोधन के क़ानून बनने के बाद कुलाधिपति का अधिकार राज्यपाल के पास नहीं, बल्कि मुख्यमंत्री के पास होगा।