अब अमरिंदर सिंह पर कांग्रेस नेता कर रहे थे निजी हमले, सोनिया गाँधी ने रोका
पंजाब में अब कांग्रेस और अभी भी पार्टी में शामिल पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह दो विपरीत ध्रुवों पर खड़े हो चुके हैं। अमरिंदर अपने मीडिया सलाहकार के ट्वीट के ज़रिये भविष्य में अपनी ही राजनीतिक पार्टी बनाने और आगे चलकर टीम कृषि क़ानूनों पर सम्मानजनक समझौते की सूरत में विधानसभा चुनाव में भाजपा के कन्धे से कन्धा मिलकर चलने की घोषणा कर चुके हैं। खुले रूप से भाजपा के साथ क़दमताल करने की उनकी घोषणा के बाद अब कांग्रेस के नेता उन पर हमलावर हो चुके हैं और विवादित पाकिस्तानी पत्रकार अरूसा आलम से उनके रिश्तों को लेकर जाँच तक की बात हो रही है।
क़रीब 80 साल के अमरिंदर सिंह की कांग्रेस से नाराज़गी उनके घोर प्रतिद्वंद्वी नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनने से शुरू हुई थी, जो अब तल्ख़ियों में बदल चुकी है। लेकिन कैप्टन के ख़िलाफ़ अब पंजाब कांग्रेस के दूसरे नेता भी आ गये हैं। कैप्टन ने सिद्धू को पाकिस्तान परस्त बताकर एक तरह से देश के लिए ख़तरा बताया था। हालाँकि अब पंजाब सरकार में गृह मंत्री और उप मुख्यमंत्री सुखजिंदर रंधावा ने अरूसा आलम के आईएसआई के साथ कथित सम्बन्धों की जाँच की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।
इसके बाद सिद्धू के नज़दीकी समझे जाने वाले उनके पूर्व मुख्य रणनीतिक सलाहकार मोहम्मद मुस्तफ़ा ने अपने ट्वीटर अकाउंट पर पूर्व डीजीपी दिनकर गुप्ता और पूर्व मुख्य सचिव विनी महाजन के साथ अरूसा आलम की एक तस्वीर साझा कर दी। हालाँकि पूर्व मुख्यमंत्री के राजनीतिक सचिव मेजर अमरदीप सिंह ने रंधावा को इलाक़े (बेल्ट) से नीचे नहीं उतरने की सलाह दी। इस विवाद के बीच कैप्टन अमरिंदर सिंह के मीडिया सलाहकार रवीन ठुकराल ने अरूसा की कुछ तस्वीरें जारी कीं, जिसमें वह पंजाब के पूर्व डीजीपी मोहम्मद मुस्तफ़ा की पत्नी और बहू के साथ नज़र आ रही हैं।
मामला तब और गरम हो गया, जब पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिद्धू की पूर्व मंत्री पत्नी नवजोत कौर ने अमरिंदर सिंह पर सीधा हमला बोल दिया। उन्होंने कहा- ‘कैप्टन के मुख्यमंत्री रहते पंजाब में कोई तैनाती (पोस्टिंग) बिना तोहफ़े और पैसे के नहीं होती थी। यह सब अरूसा आलम को दिया जाता था। उस वक़्त अरूसा पंजाब में मुख्यमंत्री नहीं, बल्कि उत्कृष्ट मुख्यमंत्री की तरह काम कर रही थीं। अमरिंदर सिंह को सलाह है कि अरूसा पंजाब का पैसा लेकर इंग्लैंड और दुबई चली गयी। वह भी वहाँ जाकर ऐश करें। ऐसा न हो कि अरूसा सारा पैसा उड़ा दे।’
नवजोत कौर सिद्धू का अमरिंदर पर यह पहला हमला नहीं है। इससे पहले अमरिंदर ने उनके पति को जब चुनाव न जीतने देने वाला बयान दिया था, तब भी कौर ने अमरिंदर को अमृतसर ईस्ट में सिद्धू के ख़िलाफ़ चुनाव लडऩे की चुनौती दे डाली थी। उन्होंने तब कहा था कि उसके बाद अमरिंदर को पता चल जाएगा कि कौन अधिक लोकप्रिय है। वैसे अमरिंदर ने बी उन पर हमला करने वालों पर हमला किया। हालाँकि सोनिया गाँधी ने अमरिंदर पर हमला करने वालों को रोक दिया कि वे ऐसा न करें।
याद रहे जिन अरूसा आलम के नाम पर पंजाब में राजनीति तेज़ है वह अरूसा पाकिस्तान से हैं और रक्षा पत्रकार (डिफेंस जर्नलिस्ट) हैं। दावा किया जाता रहा है कि कैप्टन से अरूसा की पहली मुलाक़ात सन् 2004 में पाकिस्तान दौरे के दौरान हुई थी और उसके बाद अरूसा कई बार भारत आयीं। उन्हें पिछले एक दशक से भी ज़यादा समय से अमरिंदर सिंह का क़रीबी माना जाता है।
बता दें कुछ मीडिया रिपोट्र्स में दावा किया जाता रहा है कि अरूसा आलम एक बार जब पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फ़ैज़ हामिद के साथ कथित तौर पर आपत्तिजनक स्थिति में थीं, तो उनकी पत्नी ने वहाँ पहुँचकर ख़ासा हंगामा कर दिया था।
कैप्टन और भाजपा
अमरिंदर सिंह तकनीकी रूप से भले अभी कांग्रेस में हैं; लेकिन वह ख़ुद एक ट्वीट में नयी पार्टी बनाने की घोषणा कर चुके हैं। उन्होंने इस ट्वीट में जो दिलचस्प बात यह कही कि कृषि क़ानूनों पर कोई सही फ़ैसला होने पर वह भाजपा का साथ दे सकते हैं। यहाँ सवाल यही है कि अपने एक साल के आन्दोलन में क़रीब 800 साथियों की शहादत देख चुके किसान क्या तीनों क़ानूनों को वापस लेने से कम पर मानेंगे? और क्या सिर्फ़ अमरिंदर सिंह को अपने बेड़े में बैठाने के लिए भाजपा तीन कृषि क़ानूनों की बलि देने की हिम्मत जुटा पाएगी।
किसान नेताओं से बातचीत में यही समझ आता है कि वे आने वाले विधानसभा चुनावों में किसी भी सूरत में भाजपा को सबक़ सिखाएँगे। और यदि अमरिंदर सिंह भाजपा के साथ गये, तो किसानों की नाराज़गी उन्हें भी भारी पड़ सकती है। पंजाब में कम-से-कम आज की तारीक़ में तो लोगों में भाजपा के प्रति बहुत तलख़ी है। पंजाब में विधानसभा चुनाव को अब ज़यादा समय नहीं बचा है।
यहाँ बड़ा सवाल यही है कि अपनी पार्टी बनाते हुए अमरिंदर कांग्रेस के कितने विधायकों को तोडक़र अपने साथ ले जाएँगे? अभी तक यह तो नहीं लगता कि कैप्टन कांग्रेस सरकार गिराने की स्थिति में हैं। एक मोटे अनुमान के मुताबिक, 7 से 9 विधायक या मंत्री ही ज़यादा-से-ज़यादा अमरिंदर सिंह के साथ कांग्रेस से जा सकते हैं। लेकिन जिस तरह कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने वाला कार्ड खेला है, उससे पार्टी को उम्मीद है कि जनता उसे सत्ता में वापस लाएगी। सिद्धू के रहते कांग्रेस और ताक़तवर हो जाती है। अमरिंदर के पास निश्चित ही इस स्तर के नेता नहीं जुट पाएँगे।
इसमें कोई दो-राय नहीं कि अमरिंदर सिंह कांग्रेस को नुक़सान पहुँचाने की क्षमता रखते हैं। लेकिन बहुत कुछ किसानों के रूख़ पर निर्भर करेगा। किसान यदि भाजपा से नाराज़ रहते हैं, तो भाजपा के साथ-साथ अमरिंदर सिंह भी डूबेंगे। वैसे चर्चा है कि कैप्टन दीवाली के आसपास नयी पार्टी की घोषणा कर सकते हैं। कैप्टन के साथ कुछ पूर्व मंत्री और विधायकों के अलावा कुछ पार्टी नेता भी उनके साथ जा सकते हैं। मनीष तिवारी जैसे कांग्रेस में उपेक्षित नेता कैप्टन का हाथ थाम लें, तो हैरानी नहीं होगी। ख़ुद कैप्टन की पत्नी परनीत कौर सांसद हैं। हालाँकि बहुत कुछ एक-दो महीने बाद के राजनीतिक माहौल पर निर्भर करेगा। अकाली दल भी किसान आन्दोलन का सन्ताप झेल रहा है। हालाँकि अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) पंजाब में इस बार बहुत ज़यादा चर्चा में नहीं दिख रही। भाजपा को लेकर कहा जा रहा है कि वह पुराने साथी अकाली दल के साथ अन्दरखाने अभी भी नरम हैं; भले उसने किसान क़ानूनों पर ही उसका साथ छोड़ा था। कृषि क़ानून वापस लेने की स्थिति में अकाली दल का प्रेम फिर भाजपा पर उमड़ सकता है। अकाली दल का रूख़ आने वाले हफ़्तों में साफ़ होगा।
पिछले विधानसभा चुनावों का रुझान देखें, तो पता चलता है कि सवर्ण हिन्दू मतदाता भाजपा-अकाली गठबन्धन को मतदान करते रहे हैं। हालाँकि पिछले चुनाव में आम आदमी पार्टी की जगह हिन्दू वोटर कांग्रेस के साथ गया था। यही कारण है कि कैप्टन पाकिस्तान के ख़िलाफ़ बोलकर अपनी राष्ट्रवादी नेता की छवि गढऩा चाहते हैं। भाजपा को कैप्टन से चमत्कार की उम्मीद है। पंजाब में क़रीब 39 फ़ीसदी हिन्दू मतदाता है। हालाँकि इनमें भी काफ़ी किसान हैं।
भाजपा का गणित यह है कि हिन्दू मतदाता यदि कैप्टन का साथ देता है, तो शहरों में कांग्रेस को नुक़सान पहुँच सकता है। प्रदेश में क़रीब 45 शहरी सीटें ऐसी हैं, जो हिन्दू बहुसंख्यक हैं। सवर्ण सिख मत कांग्रेस, आप और अकाली दल में बँटेगा, लिहाज़ा दलित सिख मतदाता की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाएगी। दलित चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने वाली कांग्रेस इससे बाक़ी जगह के नुक़सान की भरपाई कर सकती है। ख़ुद प्रदेश अध्यक्ष सिद्धू हिन्दुओं में लोकप्रियता रखते हैं।
कांग्रेस की लड़ाई
सब कुछ अच्छा होने के बाद भी पंजाब कांग्रेस में पिछले तीन महीने में कई बार सब कुछ ख़राब होने जैसे स्थिति बनी है। नवजोत सिंह सिद्धू अपने ही मुख्यमंत्री से भिड़े हुए हैं। आलाकमान को वह अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं। सीडब्ल्यूसी में अध्यक्ष सोनिया गाँधी की साफ़ हिदायत कि अपनी बात कहने के लिए उनसे सीधे बात की जानी चाहिए, न कि मीडिया के ज़रिये। सिद्धू ने अगले ही दिन सोनिया गाँधी को लिखे अपने पत्र की कॉपी ट्वीटर पर सार्वजनिक कर दी। सिद्धू भले अच्छे मुद्दे उठा रहे हों, वह यह नहीं समझ रहे कि वह पार्टी आलाकमान के सब्र का भी इम्तिहान ले रहे हैं। उनके इस व्यवहार के कारण भाजपा को कांग्रेस पर लगातार हमले करने का अवसर मिल रहा है। पंजाब में उनके व्यवहार से जनता में यह सन्देश भी जा रहा है कि वह मुख्यमंत्री से ख़ुश नहीं हैं और उन्हें अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं। निश्चित ही यह ग़लत है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि सिद्धू को पार्टी संगठन पर ध्यान देना चाहिए। चुनाव पास होने के बावजूद संगठन के पर उनकी सक्रियता शून्य दिखा रही है। सांसद मनीष तिवारी अपना राग अलाप रहे हैं। पूर्व अध्यक्ष जाखड़ फ़िलहाल ख़ामोश हैं। निश्चित ही प्रदेश कांग्रेस के नये प्रभारी हरीश चौधरी के सामने चीज़ों को पटरी पर लाने की निश्चित ही बड़ी चुनौती सामने है।
“जल्द ही अपनी ख़ुद की राजनीतिक पार्टी के गठन की घोषणा करूँगा। अगर किसान आन्दोलन का समाधान उनके हित में हो जाता है, तो पंजाब में भाजपा के साथ गठजोड़ कर सकते हैं। अकाली दल से अलग हुए नेताओं सहित समान विचारधारा वाली पार्टियों के साथ गठबन्धन का विचार है। पंजाब में अगली सरकार हमारे सहयोग के बिना नहीं बन सकेगी।”
कैप्टन अमरिंदर सिंह
पूर्व मुख्यमंत्री, पंजाब
“अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्री रहते कोई पोस्टिंग बिना अटैची और अरूसा को तोहफ़े दिये बग़ैर नहीं हुई। उस दौरान बड़े पुलिस अफ़सरों की तैनाती (पोस्टिंग) अरूसा करती थी; जबकि जूनियर की कैप्टन के सलाहकार भरतइंदर सिंह चहल करते थे। अब यह ओपन सीक्रेट है। कैप्टन अरूसा के पीछे जाएँ। कहीं ऐसा न हो कि वह पैसा लेकर ग़ायब हो जाएँ।”
नवजोत कौर सिद्धू
पीसीसी प्रमुख की पत्नी