डॉन को पकडऩा मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है…। अमिताभ बच्चन अभिनीत हिट हिन्दी फिल्म डॉन का यह डायलॉग पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक रहे सुमेध सिंह सैनी पर फिट बैठता है। वह फिल्मी डॉन तो नहीं, लेकिन असल ज़िन्दगी में उससे कम भी नहीं। क्योंकि एक पखवाड़े से ज़्यादा दिनों तक कई राज्यों की पुलिस उन्हें तलाश नहीं सकी। पंजाब, चंडीगढ़, हिमाचल और दिल्ली समेत कई ठिकानों पर देर रात और भौर में छापेमारी की लेकिन सब टीमें बैरंग ही लौटी पर सैनी का कोई सुराग तक नहीं लग सका। गिरफ्तारी के डर से वे बुलेट प्रूफ गाड़ी और दो दर्ज़न सुरक्षाकर्मियों को अपने चंडीगढ़ आवास पर छोड़कर न जाने गायब हो गये। जो व्यक्ति आतंकवादियों के निशाने पर हो वह गिरफ्तारी के डर से बैखौफ होकर अकेला कहाँ चला गया। मौज़ूदा पंजाब पुलिस महानिदेशक दिनकर गुप्ता निश्चित ही हैरान रहे होंगे। उनकी गिरफ्तारी के लिए विशेषतौर पर छ: टीमें गठित की गयी थीं।
आखिर सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी गिरफ्तारी पर करीब एक माह की रोक लगा उन्हें कुछ राहत दे दी है; लेकिन जिस तरह का शिकंजा उन पर कसा गया है, उससे बचना मुश्किल होगा। पहले मोहाली ज़िला अदालत और फिर पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने बलवंत सिंह मुल्तानी मामले में उन्हें अग्रिम जमानत देने से इन्कार कर दिया तो पंजाब पुलिस की जेड पुलिस सुरक्षा छोड़ वह न जाने कहाँ गायब हो गये। ज़िला अदालत ने तो उनके खिलाफ गैर-जमानती गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिये थे। पंजाब में आतंकवाद के दौर में जेएफ रिबैरो, केपीएस गिल के बाद अगर किसी पुलिस अधिकारी का नाम आता है, तो वह सुमेध सिंह सैनी ही हैं। सैनी की कार्यकुशलता पर कोई संदेह नहीं; लेकिन उनके दामन इतने दाग हैं कि वह विवादास्पद हो गये। हिरासत में थर्ड डिग्री और मौत से लेकर फर्ज़ी मुठभेड़ों के लिए भी उन्हें जाना जाता है। जहाँ-जहाँ यह आईपीएस अधिकारी रहा, लोगों के गायब होने के मामले बहुत ज़्यादा हुए। पंजाब में आतंकवाद पर काबू पाने में जिस सुपर कॉप केपीएस गिल का नाम प्रमुख है; सैनी उनके भरोसे के अधिकारी रहे हैं।
सन् 1991 के दौरान चंडीगढ़ में उनकी सरकारी कार को बम से उड़ाने की कोशिश हुई, जिसमें वह तो बच गये; लेकिन तीन पुलिसकर्मियों की मौत हो गयी। इनमें कार चालक अमीन चंद, एएसआई लाल राम और बीआर रेड्डी की मौके पर ही मौत हो गयी, जबकि सैनी और अन्य पुलिसकर्मी रमेश लाल घायल हो गये। यह आतंकवादी हमला था और सैनी उनके निशाने पर थे।
वह उस दौरान चंडीगढ़ के एसएसपी थे। अपने पर जानलेवा हमले को वह कैसे सहन करते लिहाज़ा अपने तौर पर जाँच शुरू की और जल्द पता लग लिया कि इसके पीछे देविंदर पाल भुल्लर का हाथ हो सकता है। बाद में जाँच के दौरान काफी कुछ स्पष्ट हो गया तो पुलिस ने प्रताप सिंह मान, गुरशरण कौर मान, देविंदर पाल भुल्लर, मनमोहन जीत सिंह, मनजीत सिंह, नवनीत सिंह, गुरजंट सिंह बुधसिंहवाला और बलवंत सिंह मुल्तानी के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया। इसी कड़ी में चंडीगढ़ प्रशासन के सिटको में तैनात जूनियर इंजीनियर बलवंत सिंह मुल्तानी को भी उनके मोहाली आवास से पुलिस ले गयी। उसके बाद वह कभी घर नहीं लौटे। पुलिस फाइल में अब भी वह पुलिस हिरासत से भागा आरोपी है, जिसका कोई अता पता नहीं है। 29 साल पुराना यह मामला फिर से खुल गया है और इस बार स्थिति पूरी तरह से बदली हुई है। अब वक्त बदला हुआ है। सैनी पुलिस महानिदेशक पद से सन् 2018 में सेवानिवृत्त हो चुके हैं और पीडि़त परिवार को अब इंसाफ की उम्मीद है।
बलवंत सिंह मुल्तानी के भाई पलविंदर सिंह मुल्तानी की शिकायत पर इसी वर्ष मई में मौहाली ज़िले के मटौर थाने में अपहरण, सुबूत मिटाने, साज़िश रचने की 364, 201, 344, 330, 120बी की धाराएँ जोड़कर प्राथमिकी दर्ज की गयी है। हिरासत में मौत की बात पुष्ट होने के बाद हत्या की धारा-302 जोड़ दी गयी। आरोपियों में सैनी के अलावा छ: अन्य पुलिसकर्मी है। इनमें तब के एएसआई जगीर सिंह और कुलदीप सिंह वादा माफ गवाह बन गये हैं। उन्होंने हिरासत के दौरान बलवंत सिंह मुल्तानी की मौत होने का बयान दर्ज कराया है। दोनों के बयानों के बाद सैनी को लगा अब गिरफ्तारी से बचना मुश्किल है, तो उन्होंने अग्रिम जमानत के लिए अर्जी लगायी। उन्हें एक बार कुछ समय के लिए राहत भी मिली; लेकिन बाद में उनकी अर्जी नामंज़ूर हो गयी, तो वह इस उम्मीद से गायब हो गये कि शायद उच्च न्यायालय से राहत मिल जाए। वहाँ भी जब उनकी अर्ज़ी नामंज़ूर हो गयी और उधर ज़िला अदालत ने उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी कर दिया। अब पुलिस पीछे-पीछे और सैनी आगे-आगे; लेकिन वह कहाँ छिप गये पता नहीं चल सका। जानकारों की राय में पंजाब पुलिस में 36 साल की नौकरी के दौरान सैनी के भरोसेमंद लोगों की कमी नहीं है। ऐसे ही लोग शायद पुलिस टीमों की मूवमेंट की उन्हें जानकारी दे रहे हों, वरना कोई कारण नहीं था कि वह इतने दिन तक बच जाते।
राष्ट्रपति पुलिस पदक से सम्मानित सैनी की छवि जाँबाज़ अफसर की रही है। विशेषकर आतंकवाद के खिलाफ वे बेखौफ काम कर रहे थे। जब तक केपीएस गिल पुलिस महानिदेशक रहे सैनी को आतंकवाद के खिलाफ खुलकर कार्रवाई और काम करने की जैसे छूट थी। यही वजह है कि वे आतंकवादियों की हिट लिस्ट में थे। जब तक सैनी नौकरी में रहे उन्हें ज़बरदस्त सुरक्षा मिली हुई थी। बम धमाके में बचने के बाद तो वह सुरक्षा घेरे में ही चलते थे। सन् 2018 में सेवानिवृत्ति के बाद भी उनकी जान को ध्यान में रखते हुए सरकार की ओर से जेड प्लस सुरक्षा मिली हुई थी।
वादा माफ गवाह बने और कभी सैनी के भरोसेमंद रहे जगीर सिंह ने अदालत को बताया कि किस तरह से बलवंतसिंह मुल्तानी पर हिरासत के दौरान अत्याचार किये गये। अमानवीय अत्याचार की वजह से मुल्तानी की मौत हो गयी और गुप्त तरीके से लाश को खुर्द-बुर्द करने का आदेश अन्य पुलिस अधिकारी को सौंपा गया। बाद में सैनी के निर्देश पर बलवंत मुल्तानी के पास से हथियार की बरामदगी का मामला गुरुदासपुर ज़िले के कादियाँ थाने में बाकायदा प्राथमिकी दर्ज की गयी और अगले ही दिन उसे हिरासत से भागना बता दिया गया। बलवंत के पिता आईएएस दर्शन सिंह को बेटे की जान का खतरा था, लिहाज़ा उन्होंने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में अर्जी दायर की; जबकि पुलिस का पक्ष रहा कि बलवंत हिरासत से भाग निकला है और उसका कोई सुराग नहीं है। मामला बहुत गम्भीर हो गया था; लिहाज़ा सन् 2008 में उच्च न्यायालय के निर्देश पर जाँच का ज़िम्मा सीबीआई को सौंपा गया था। सीबीआई ने पूरे तथ्य जुटाये, लेकिन सन् 2011 सुप्रीम कोर्ट ने कुछ तकनीकी कारणों का हवाला देते हुए इसे रद्द कर दिया। फैसले में कहा गया कि पीडि़त पक्ष फिर से जाँच कराने के लिए स्वतंत्र है। मुल्तानी के परिजनों ने उसके बाद कई बार इंसाफ के लिए कोशिश की; लेकिन सैनी की वजह से सफल नहीं हो सके। पहले वह मौज़ूदा मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के भरोसेमंद भी रहे बाद में उनकी निष्ठा तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल से भी रही। यह इतनी रही कि चार वरिष्ठ अधिकारियों को दरकिनार कर उन्हें पुलिस महानिदेशक बनाया गया। तब वह राज्य के सबसे कम आयु के पुलिस महानिदेशक बने थे।
उनका अच्छा दौर सन् 2018 में ही खराब होने लगा था। उसी साल बेअदबी मामले में प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस ने गोलीबारी की, जिसमें दो की मौत हो गयी और जाँच के बाद ज़िम्मेदार सैनी को माना गया और सरकार ने उनसे प्रमुख की ज़िम्मेदारी वापस ले ली। उसके बाद उनका जलवा फिर कभी बहाल नहीं हो सका। जो अफसर कभी आतंकवादियों के लिए मौत का साया था, अब वही शख्स अब गिरफ्तारी से बचने के लिए छिपता फिर रहा है; लेकिन कब तक आखिर उन्हें अपने किये की सज़ा तो भुगतनी ही पड़ेगी।
वादा माफ गवाह बने जगीर सिंह और कुलदीप सिंह के बयानों में सच्चाई है। नौकरी के दौरान वे सैनी के खिलाफ जाने से डरते थे। अब उन्हें हत्या की धारा जुडऩे से अपनी जान को खतरा हुआ, तो उन्होंने जो कुछ हुआ, बयाँ कर दिया है। बयानों के मुताबिक, चंडीगढ़ के सेक्टर-17 थाने में जब बलवंत मुल्तानी से पूछताछ हुई, तब सैनी खुद वहाँ मौज़ूद थे। उनके साथ तब के इंस्पेक्टर केआईपी सिंह, डीएसपी बलदेव सिंह, इंस्पेक्टर प्रेम मलिक और सतबीर सिंह मौज़ूद थे। मुल्तानी पर अमानवीय अत्याचार किये गये। उनकी गुदा में डंडा घुसेड़ दिया गया, जिसकी वजह से उनकी आँखें निकल आयीं। भयंकर प्रताडऩा के बाद मुल्तानी की मौत हो गयी। बाद में उस पर कादियाँ थाने में हथियार बरामदगी का मामला दर्ज करके उन्हें अदालत से भगौड़ा घोषित कराया। जगीर और कुलदीप के अलावा उस दौरान लॉकअप में बन्द राजेश राजा ने भी मुल्तानी पर पूछताछ के नाम पर अमानवीय अत्याचार के बयान दिये हैं। सैनी पर हमले का मुख्य आरोपी देविंदर पाल सिंह भुल्लर सन् 1993 मे बम धमाकों के दोष में सज़ायाफ्ता है। आतंकवादी गुरजंट सिंह बुधसिंहवाला सन् 1992 में पुलिस मुकाबले में मारा गया, जबकि सन् 1995 में नवनीत सिंह को राजस्थान पुलिस ने ढेर कर दिया था। सैनी पर हमले की आरोपी रही गुरशरण कौर के मुताबिक, सुमेध सैनी अत्याचार से इतना आतंक पैदा कर देता था कि कोई मामले को आगे बढ़ाने के बारे में सोच भी नहीं सकता था। उनका सैनी पर हमले में कोई लेना-देना तक नहीं था। उनके पति प्रताप सिंह मान और बलवंत सिंह मुल्तानी ने एक साथ इंजीनियरिंग की थी। मुलाकात हुई, तो आपस में एक-दूसरे के घर आने जाने लगे। इसी बात की सज़ा उन्हें व उनके पति को भोगनी पड़ी। किसी मामले में आरोपियों के साथ उनके परिजनों को भी सैनी के निर्देश पर अत्याचार झेलने पड़ते थे।
मुख्य आरोपी देविंदर भुल्लर के पिता और अन्य रिश्तेदार पर खूब अत्याचार किये गये; जबकि उनका अपराध की किसी भी घटना से कोई सरोकार तक नहीं था। सैनी जाँबाज़ पुलिस अधिकारी के तौर पर जाने जाते थे। अपराधियों के लिए वह किसी कहर से कम नहीं थे; लेकिन इसकी आड़ में उन पर मानवाधिकारों का खुलेआम उल्लंघन करने के आरोप लगे। सन् 2013 में यूनाइटेड नेशंस ह्यूमन राइट्स काउंसिल की ओर से उन पर प्रतिकूल टिप्पणी की गयी। यह न केवल सैनी के लिए, बल्कि सरकार के लिए भी शर्मनाक घटना है। सैनी से जुड़े मामलों में न्यायपालिका पर भी दवाब रहता था। उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश ऐसी टिप्पणी कर चुके हैं। इससे पहले किसी अन्य पुलिस अधिकारी पर ऐसे आरोप कभी नहीं लगे। यह बहुत गम्भीर घटना है और सरकार को समय रहते कार्रवाई करनी चाहिए थी; लेकिन सैनी सरकारों के चहेते अफसर बने रहे। जिस तरह से मुल्तानी मामले में उनके खिलाफ साक्ष्य जुटाये गये हैं, उससे उनका पहले की तरह साफ बच निकलना मुश्किल है।
मुल्तानी के अलावा सुमेध सैनी पर लुधियाना के तीन लोगों- विनोद कुमार, अशोक कुमार और ड्राइवर मुख्तयार सिंह के गायब होने का मामला चल रहा है। सन् 1994 में वहाँ एसएसपी तैनात रहे सैनी ने निजी तौर पर मामले में रुचि ली। आज 26 साल बाद भी तीनों का कोई पता नहीं चल सका है। सन् 2000 में सीबीआई ने इस मामले में चालान पेश किया था। सन् 2004 से मामले की सुनवाई दिल्ली में हो रही है। पंजाब में सैनी मामले को प्रभावित न कर सके, इसलिए इसकी सुनवाई बाहर राज्य में हो रही है। सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए सैनी पेशी में जाने से बच रहे हैं। गायब विनोदकुमार के भाई आशीष 26 साल से इंसाफ का इंतज़ार कर रहे हैं। उनकी माँ अमर कौर इंसाफ का इंतज़ार करते-करते चल बसीं। मुल्तानी मामले में पीडि़त पक्ष के अधिवक्ता प्रदीप सिंह विर्क के मुताबिक, सैनी को अपने किये की सज़ा भुगतनी पड़ेगी। जब तक वह नौकरी में रहे, उनका दवाब रहा; लेकिन अब वह सब खत्म हो गया है। अब लोग सामने आ रहे हैं। इससे और भी कई मामले खुल सकते हैं।
मुल्तानी के परिजन 29 साल से इंसाफ के लिए संघर्ष कर रहे हैं। रास्ता प्रशस्त हो रहा है। सैनी पर शिकंजा कसा जा रहा है। मुल्तानी मामले में अब धारा-302 भी जुड़ गयी है। विश्वासपात्र पुलिस वाले भी टूट रहे हैं। गवाह खुलकर बोल रहे हैं। अपनी गिरफ्तारी के डर से आज इधर-से-उधर भागने पर मजबूर होना पड़ा है; लेकिन कब तक? आखिर कभी-न-कभी तो अपने किये का हिसाब अदालत में देना ही पड़ेगा।
कार्यकुशलता
सन् 2002 के दौरान पंजाब लोकसेवा आयोग में पैसों के बदले नौकरी मामले का पर्दाफाश हुआ। तब आयोग के अध्यक्ष पूर्व पत्रकार रवि सिद्धू थे। राज्य में पैसों के बदले नौकरियाँ धड़ल्ले से मिलने के आरोप लग रहे थे। शिकायतों के बाद सैनी ने मोर्चा सँभाला और पूरा भंडाफोड़ किया। रवि सिद्धू के पास से अकूत संपत्ति मिली। यह सब नौकरी की एवज़ में जमा किया हुआ धन था। इसका श्रेय सैनी को मिला और उनकी कार्यकुशलता को शीर्ष स्तर से शाबाशी मिली। उन्हें तब भ्रष्टाचार और आतंकवाद खिलाफ लडऩे वाला जाँबाज़ अधिकारी माना जाता था।
कैप्टन पर कार्रवाई
सन् 2007 में सैनी पंजाब विजिलैंस प्रमुख थे। उस दौरान उन्होंने लुधियाना सिटी सेंटर घोटाले के आरोप लगे। सैनी ने कार्रवाई की; जिसकी वजह से कैप्टन अमरिंदर सिंह और उनके बेटे रणइंदर सिंह पर मामला दर्ज हुआ। इससे कैप्टन की मुश्किलें काफी बढ़ीं। बाप-बेटे इस मामले में दोषमुक्त हो चुुके हैं। इस मामले को राजनीति से प्रेरित बताया गया; लेकिन सैनी कार्रवाई से चूके नहीं। इसके बाद से उनका अमरिंदर से 36 का आँकड़ा हो गया था। बलवंत मुल्तानी मामले को राजनीति से जोडऩे को इस संदर्भ में भी देखा जाता है।
नया गाँव मामला
सन् 2005 के दौरान नया गाँव में बलात्कार के एक मामले में सैनी ने राष्ट्रीय दैनिक के एक पत्रकार को हिरासत में लिया था। सैनी की मीडिया में बहुत आलोचना हुई। तब तत्कालीन पुलिस महानिदेशक एसएस विर्क ने सैनी को बिना ठोस सुबूतों के पत्रकार पर कार्रवाई को अनुचित बताया। उससे पहले दोनों में खासा दोस्ताना था। मामले में विर्क के रुख से सैनी खफा हो गये। सन् 2007 में सैनी को मौका मिला, तो उन्होंने एसएस विर्क पर कार्रवाई करने में गुरेज़ नहीं की।