न्यायालय के खिलाफ साजिश के आरोप के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसले में जांच समिति गठित करने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति एके पटनायक की अगुआई में इस मामले की जांच होगी। कोर्ट ने यह भी कहा है कि प्रधान न्यायाधीश गोगोई पर लगाए गए आरोप इस जांच की परिधि से बाहर होंगे। इस बीच सीजेआई यौन उत्पीड़न मामले में जस्टिस रमना ने खुद को जांच पैनल से अलग कर लिया है। पीड़ित के ऐतराज के बाद उन्होंने यह फैसला किया है।
जस्टिस पटनायक हलफनामे और सबूतों के आधार पर मामले की जांच करेंगे। सीबीआई, आईबी और दिल्ली पुलिस को जस्टिस पटनायक को जांच में सहयोग करने को कहा है। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश गोगोई पर लगाए आरोप इस जांच की परिधि से बाहर होंगे और सिर्फ साज़िश मामले की जांच होगी।
जस्टिस पटनायक सीलबंद लिफाफे में जांच रिपोर्ट कोर्ट को सौंपेंगे।
गुरुवार सुबह वकील उत्सव बैंस ने अतिरिक्त हलफनामा और सीलबंद सबूत कोर्ट को दिए हैं। इस दौरान उत्सव ने कहा कि वो एक और हलफनामा देकर कोर्ट को बताना चाहते हैं कि इस पूरे मामले में कोई जज या उनका रिश्तेदार असर डालने वालों में नहीं है। स्पेशल बेंच ने दोनों पक्षों की दलील सुनी।
इस मामले में बड़ी साजिश का इशारा करते हुए अदालत ने कहा कि बड़े और पावरफुल लोग इस साजिश के पीछे हो सकते हैं लेकिन वे जान लें कि वे आग से खेल रहे हैं। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि हमारे पास दस्तावेजों का निरीक्षण करने का अधिकार है। विशेषाधिकार वाले दस्तावेजों पर अटॉर्नी जनरल अपना कानूनी तर्क दें। इस पर अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कोर्ट स्टाफ की नियुक्ति और व्यवहार के नियम बताए।
अटार्नी जनरल ने कहा कि कोर्ट की नौकरी से निलंबित कर्मचारियों ने वकील से सम्पर्क किया था और वो प्रेस क्लब में प्रेस कॉन्फ्रेंस करना चाहते थे। साक्ष्य अधिनियम कहता है कि कोई वकील बिना उसके मुव्वकिल की इजाजत कम्युनिकेशन को नहीं बता सकता, लेकिन यहां तो कोई मुव्वकिल नहीं है। इस मामले में साक्ष्य अधिनियम की धारा १२६ लागू नहीं हो सकती। सीआरपीसी के सेक्शन ९० के मुताबिक कोर्ट को अगर जरूरत लगता है तो वो दस्तावेजों को समन कर सकता है।