कहते हैं कि कला किताबी तालीम की मोहताज नहीं होती, इसका बड़ा उदाहरण कबीर हैं। आज के दौर की बात करें, तो इसका एक उदारहण पंजाबी लेखक कृपाल कज़क हैं। पंजाब के ‘वेरियर एलविन’ के नाम से मशहूर कृपाल कज़क की रचनाएँ इतनी उत्कृष्ट हैं कि उन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार-2019’ के लिए चुना गया है। साहित्यकार कृपाल कज़क शशि थरूर जैसी उन 23 साहित्यकार हस्तियों की सफ में शामिल हो गये हैं, जो भारत की 23 प्रमुख भाषाओं की नुमाइंदगी कर रही हैं। बड़ी बात यह है कि नौवीं पास कृपाल कज़क ने राज मिस्त्री के पेशे में रहकर भी पंजाबी साहित्य को बुलंदियों पर पहुँचाने का काम किया है। 76 वर्षीय कज़क की पंजाबी में लिखी छ: लघु कथाओं के संकलन ‘अंतहीन’ को साहित्य के सर्वोच्च सम्मान के लिए चुना गया है।
शेखपुरा ज़िाले के गाँव बंदोक (जो अब पाकिस्तान में है) में जन्मे कज़क जब चार साल के थे, तभी उनका परिवार शेखपुरा से पटियाला आ गया था। शुरुआत में परिवार की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी, जिसके चलते कृपाल कज़क को पढ़ाई छोडक़र राज मिस्त्री का पेशा अपनाना पड़ा। लेकिन रोज़ी-रोटी के लिए अपनाये गये इस पेशे में रहकर और दिन-रात मेहनत करके भी उनके अंदर का साहित्यकार मरा नहीं, बल्कि उन्होंने उसे और निखारा। राज मिस्त्री के पेशे के दौरान वे खानाबदोश जनजातियों के निकट कई साल तक रहे और खानाबदोशों के जीवन पर गहन शोध किया। बड़ी बात यह थी कि कम पढ़े-लिखे होने के बावजूद उन्होंने महज़ 19 साल की उम्र में पहली लघु कथा लिखी। यहाँ से लिखने का सिलसिला ऐसा चला कि तंगहाली में भी कज़क ने लेखन जारी रखा।
एक बार जब उनकी मुलाकात पंजाबी और हिन्दी की जानी-मानी उपन्यासकार, निबंधकार और कवयित्री अमृता प्रीतम से हुई, तो वे कज़क की कहानियाँ पढक़र प्रभावित हुईं और उन्होंने कज़क जी को किताबें लिखने के लिए प्रेेरित किया। कज़क ने अमृता के प्रकाशन ‘नागमणि’ के लिए एक कॉलम लिखना शुरू किया। उनकी पहली पुस्तक ‘काला इल्म’ (काला जादू) 1972 में प्रकाशित हुई थी। इस कम पढ़े-लिखे साहित्यकार कृपाल कज़क ने अपने साहित्य से साहित्य प्रेमियों, लेखकों, आलोचकों-समालोचकों और शिक्षकों को इतना प्रभावित किया कि उसके बाद पंजाबी विश्वविद्यालय ने उन्हें सहायक शोधकर्ता (असिस्टेंट रिसर्चर) के रूप में निमंत्रित किया, जहाँ उन्होंने खानाबदोश पंजाबी जनजातियों, जैसे कि सिकलीगर और गडी लोहारों की संस्कृति तथा जीवन पर गहन शोध किया और इसी विश्वविद्यालय में ही प्रोफेसर नियुक्त हुए तथा यहीं से सेवानिवृत्त हुए। इस शोध कार्य के बाद से उनकी तुलना ब्रिटिश मूल के मानव विज्ञानी (एंथ्रोपोलॉजिस्ट) वेरियर एल्विन से की जाती है। पंजाबी विश्वविद्यालय ने कज़क की लिखी गयी 12 से अधिक शोध पुस्तकों को प्रकाशित किया है, इनमें से ज़्यादातर शोध सामग्री पर केन्द्रित हैं। इसके अलावा उन्होंने बच्चों के लिए भी किताबें लिखी हैं, जिनमें- ‘खुल जा सिमसिम’, ‘जो दर्द नहीं’, ‘आयो पिंड देखिए’ व अन्य शामिल हैं।
कज़क ने पंजाबी में 24 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। उनकी अधिकांश पुस्तकों में भारत के जनजातीय समुदायों के जीवन के बारे में विस्तार से बताया गया है। टेलीिफल्म, डॉक्यूमेंट्री और अन्य क्षेत्र में भी उन्होंने योगदान दिया है। कृपाल कज़क के लेखन की हर कहीं सराहना की जाती है। कज़क के पिता साधु सिंह रामगढिय़ा एक कथावाचक थे और अरबी, फारसी और संस्कृत भाषाओं के अच्छे जानकार थे। वहीं उनकी माता वीर कौर एक गृहणी थीं।
कृपाल कज़क के अलावा 2019 का साहित्य सम्मान पाने वालों में लेखक और राजनेता शशि थरूर शामिल हैं। उन्हें सन् 2016 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘एन एरा ऑफ डार्कनेस : द ब्रिटिश एम्पायर इन इंडिया’ के लिए यह सम्मान दिया जाएगा। साहित्य अकादमी सम्मान सभी साहित्यकारों को 25 फरवरी, 2020 को नई दिल्ली में आयोजित एक समारोह में प्रदान किया जाएगा।