नोटबंदी को लेकर विपक्ष, खासकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पहले ही एक बड़े मुद्दे के रूप में उठाते रहे हैं। अब वित्तीय सूचना इकाई (एफआईयू) की रिपोर्ट में यह यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि नोटबंदी के बाद संदिग्ध लेनदेन की संख्या में अब तक की सबसे बड़ी वृद्धि दर्ज की गयी है।
मीडिया रिपोर्ट्स में एक रिपोर्ट के हवाले से बताया गया है कि २०१६ में ५०० और १००० रूपये के नोट बंद करने की पीएम मोदी की घोषणा के बाद संदिग्ध लेनदेन की संख्या अब टेक के सर्वाधिक १४ लाख के आंकड़े तक पहुंच गयी है। बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों की तरफ से बतायी गयी यह संख्या पहले के मुकाबले १४०० फीसदी ज्यादा है अर्थात इसमें करीब १४ गुना की वृद्धि हुई है।
एफआईयू, जो देश में वित्तीय लेनदेन पर नजर रखने वाली इस खुफिया वित्तीय इकाई है, ने २०१७-१८ के दौरान इस तरह के लेनदेन और जमा राशि से संबंधित व्यापक आंकड़ों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है। एफआईयू केन्द्रीय वित्त मंत्रालय के तहत आने वाले एजेंसी है। एक दशक पहले एफआईयू के शुरू होने से लेकर अब तक संदिग्ध लेनदेन रिपोर्ट के यह अब तक के सबसे ऊंचे आंकड़े हैं।
गौरतलब है कि एफआईयू मनी लांड्रिंग (धनशोधन), आतंकवाद वित्तपोषण और गंभीर प्रकृति की कर धोखाधड़ी से जुड़े लेनदेन पर गहन नजर रखती है और साथ ही उनका आकलन भी करती है।
वर्ष २०१७-१८ के दौरान बैंक और वित्तीय संस्थानों सहित विभिन्न रिपोर्टिंग इकाइयों ने नोटबंदी के दौरान हुये लेनदेन की जांच के फलस्वरूप १४ लाख से अधिक संदिग्ध लेनदेन की रिपोर्ट एफआईयू-इंड के पास पहुंचायी। एजेंसी के निदेशक पंकज कुमार मिश्रा ने इस रिपोर्ट में कहा है – ”एक साल पहले के मुकाबले प्राप्त संदिग्ध लेनदेन रिपोर्ट (एसटीआर) के मुकाबले इस रिपोर्ट में तीन गुणा अधिक वृद्धि हुई।
नोटबंदी से पहले प्राप्त एसटीआर के मुकाबले इसमें १४ गुणा तक वृद्धि दर्ज की गयी।” सरकार को सौंपी गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि २०१७-१८ में प्राप्त एसटीआर रिपोर्ट की संख्या एक साल पहले के मुकाबले तीन गुणा से अधिक बढ़कर ४.७३ लाख तक पहुंच गयी।
याद रहे पीएम मोदी ने ८ नवंबर, २०१६ को देशव्यापी ऐलान में कहा था कि आज रात १२ बजे से ५०० और १००० को लीगल टेंडर नहीं रहेंगे। मोदी की घोषणा के बाद बैंकों और अंतर बैंकिंग लेनदेन में काफी मात्रा में नकदी जमा की गयी।
गौरतलब है कि मनी लांड्रिग रोधी कानून (पीएमएलए) के तहत एफआईयू ही एकमात्र एजेंसी है जो इस तरह की रिपोर्ट प्राप्त कर सकती है। बैंकों और वित्तीय संस्थानों को बड़ी राशि के लेनदेन, नकदी मुद्रा को जमा करने और एसटीआर के बारे में रिपोर्ट करना होता है। रिपोर्ट के मुताबिक नोटबंदी से पहले के तीन साल में इस तरह की एसटीआर की संख्या २०१३-१४ में ६१९५३, वर्ष २०१४-१५ में ५८,६४६ और २०१५-१६ में १,०५,९७३ रही थी। पीएम मोदी की घोषणा के बाद संदिग्ध लेनदेन की संख्या अब तक के सर्वाधिक १४ लाख के आंकड़े तक पहुंच गयी है। नोटबंदी के बाद संदिग्ध लेनदेन की संख्या में अब तक की सबसे बड़ी वृद्धि दर्ज होने के बाद इस फैसले को लेकर फिर बड़े सवाल खड़े हो गए हैं।