साहित्यकार और समीक्षक सुरेन्द्र नायक का नवीनतम उपन्यास ‘नेफ्रो वार्डÓ काफी दिलचस्प है। उपन्यास का उत्कृष्ट शिल्प, भाषा सौन्दर्य और कथ्य में नवीनता इसकी खासियत है। कुछ दशकों से कथा संसार में विवरण और जानकारियों का स्थान इंटरनेट से मिली सपाट सूचनाओं ने ले रखा है। ये पाठकों को आक्रांत करती हैं। इस उपन्यास की खासियत है कि इसमें उच्च चिकित्सा संस्थान का परिवेश खासा जीवंत हो उठता है। साथ ही धर्म परिवर्तन, जातीय संघर्ष और क्षेत्रवाद जैसे प्रश्नों को इस उपन्यास में बड़े ही विवके से उठाया गया है। इस उपन्यास में कहानी के साथ दूसरी वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों का बढिय़ा आधिकारिक विवरण है। जटिल विषयों और विवरणों के बावजूद उपन्यास की रोचकता बढ़ती ही जाती है।
उपन्यास स्त्री-पुरूष संबंधों पर है। उच्च चिकित्सा संस्थान इसके कथानक का प्रस्थान बिंदु है और समापन बिंदु भी। उपन्यास की नायिका प्रीति चिकित्सा के लिए यहीं पर भर्ती है। बीच-बीच में यह उपन्यास अवांतर और पूर्व दीप्ति में चलता है। स्मृतियों और कल्पनाओं के सहारे चलता हुआ यह उपन्यास तीनों कालों में तेजी से संक्रमण करता हुआ आगे बढ़ता है। इसकी कहानी एक ऐसी युवती के चारों और घूमती है जिसकी दोनों किडनियां फेल हो चुकी हैं। युवती असिस्टेंट प्रोफेसर है और मधुर के साथ लिव इन रिलेशन में रह रही है। उसके दो बेटियां भी है।
लिव इन पार्टनर मधुर उसके इलाज में पूरी ताकत झोंक देता है। सारा पैसा खर्च हो जाने पर वह अपने दोस्त से आर्थिक सहायता लेता है। अनिचितकालीन अवकाश के कारण उसकी नौकरी भी चली जाती है। उच्च चिकित्सा संस्थान के हाथ खड़े करने पर भी वह हिम्मत नहीं हारता है। वह प्रीति को एक्यूप्रेसर चिकित्सा के जरिए बचा ले जाने में सफल हो जाता है। लेकिन स्वस्थ होने के बाद प्रीति अपनी बेटियों सहित नए प्रेमी प्रोफेसर नितिन के साथ रहने चली जाती है।
विडंबना ये है कि प्रीति का नया प्रेमी प्रोफेसर नितिन, प्रीति की रिसर्च गाइड सारिका मैम का पति है। सारिका मैम प्रीति को शोध छात्रा के दिनों से ही पुत्रीवत स्नेह करती हैं। कालांतर में नितिन और प्रीति में अवैध संबंधों की जानकारी हो जाने के बावजूद प्रीति के साथ वह मां- बेटी जैसा संबंध बनाए रहती है। वह प्रीति को यह एहसास भी नहीं होने देती है कि उसे उसके ही पति से अवैध संबंधों की जानकारी है। वे प्रीति को अपनी किडनी दान करने तक का प्रस्ताव भी रखती है।
इस उपन्यास में मधुर और स्टाफ नर्स लतिका के बीच शून्य की संचेतना और मृदु भावनाओं का संचरण भी दिखता है। लतिका अपनी जि़न्दगी के खालीपन से जूझते हुए किसी तटबंध की तलाश में है। इस अपरिभाषित एवं उदात्त रिश्ते की परिणति उपन्यास के अंत तक अनिर्णीत रहती है।
मधुर, प्रीति, लतिका और सारिका मैम इस उपन्यास के पात्र हंै जो मृदु संवेदनाओं और उदात्त जीवन, मूल्यों के शिखर पर खड़े दिखाई देते हैं। उनकी जि़न्दगी में किन्ही गुप्त दरवाजों से टूटन, निराशा और कुंठा प्रवेश कर जाती है। यह जान पाना मुश्किल है कि इसके लिए वे स्वंय जिम्मेदार हैं या तेजी से बदलती हुई परिस्थितियां। इसे मानव की नियति भी कहा जा सकता है।
इस उपन्यास में एक तरफ जीवन संघर्ष, अदम्य साहस, आत्मघात की सीमा तक त्याग और प्रबल जिजीविषा है तो दूसरी ओर नियति एवं मानवीय संबंधों का घात-प्रतिघात।
यह उपन्यास स्त्री-पुरूष संबंधों को उग्र नारी विमर्श के बरक्स पुरूष विमर्श के दृष्टिकोण से भी विश्लेषित करता हैं यह इस उपन्यास की उपादेयता भी है और वैशिष्टय भी।