अनुमाया ह्यूमन रिसोर्सेज फाउंडेशन के तहत संचालित आश्रा आश्रय गिरि की असलियत का खुलासा इत्तफाक ही है। वहां रह रही दो महिलाओं की मौत और उनके अंतिम संस्कार के वक्त हुए विवाद से ही इस गैर सरकारी संगठन की करतूतें सामने आ गईं और मुख्य संचालिका मनीषा दयाल और सचिव चिरंतन कुमार को गिरफ्तार किया गया। दोनों अभी न्यायायिक हिरासत में हैं। पुलिस की ओर से काफी पूछ-ताछ और जांच-पड़ताल कर ली गई है। आश्रा आश्रय गिरि को अब सरकार संभाल रही है।
तमाम जानकारियों के मुताबिक मनीषा दयाल ने तकरीबन ढाई साल पहले अपना गैरसरकारी संगठन अनुमाया ह्यूमन रिसोर्सेज फाउंडेशन खड़ा किया और उसके तहत आश्रा आश्रय गिरि का कामकाज चल रहा है। इसके पहले मनीषा कई गैरसरकारी संगठनों से जुड़ी थीं और उनके कामकाज में हिस्सा ले रही थीं। उन्हें गैर सरकारी संगठनों के कामकाज का अच्छा-खासा अनुभव हो गया है और उसी के बल पर ही बड़े मजे में अपना संगठन चला रही थीं। मनीषा दूसरे गैर सरकारी संगठनों से हट गई तो स्वतंत्र रूप से खेलों और सांस्कृति के विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करने लगी। उसी दौरान उनका विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के नेताओं के संपर्क हुआ। तमाम पार्टियों, खासकर राजद, जद (एकी), कांग्रेस के नेताओं से संपर्क हुआ। इस संपर्क से उन्हें विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करने में मदद मिली। उन्हें सरकार के बड़े अधिकारियों से भी संपर्क हुआ। उनकी भी मदद मिली। उनका दायरा बढ़ा और प्रसिद्ध हुई।
राजधानी पटना के बीच इलाके राजीव नगर के नेपाल नगर में मनीषा के सुधार गृह आश्रा आश्रय गिरि हैं। सुधार गृह के पड़ोस में रहने वाले एक व्यक्ति ने 9 अगस्त को राजीव नगर थाने को सूचना थी कि सुधार गृह से महिलाएं भाग रही हैं और हंगामा हो रहा है। पुलिस तुरंत हरकत में आई। कहना न होगा कि मुजफ्फरपुर बालिका सुधार गृह कांड ठंडा नहीं पड़ा है। सुधार गृहों को लेकर सरकार और प्रशासन काफी सतर्कता बरत रही है। ऐसे समय में नेपाल नगर के महिला सुधार गृह के बारे मेंं सूचना मिलते ही पुलिस के तुरत हरकत में आ जाना अस्वाभाविक नहीं था। महिलाओं भाग नहीं पाई। जो चली भी गई, वे वापस आ गई। इसी बीच सुधार गृह के संचालकों ने पुलिस से शिकातय करने वाले पड़ोसी के खिलाफ यह शिकायत कर दी कि उसकी ओर से महिलाओं को भगाने की कोशिश की जा रही है। उस पड़ोसी को परेशान होना पड़ा। एक ही दिन बाद रात में सुधार गृह में दो महिलाओं की तबीयत खराब हो गई और उनकी मौत भी हो गई। सुधार गृह के लोगों ने उन्हें पटना मेडिकल कालेज अस्पताल ले गए। इसी बीच उनकी मौत हुई। फिर एक दिन बाद आश्रा आश्रय गिरि के लोगों ने दो महिलाओं मेें एक का हिंदू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार कर दिया। दूसरे का अंतिम सरकार नहीं हो पाया। वह किस धर्म की थी, इसका पता नहीं था। अफरातफरी थी ही कि पुलिस को इसकी सूचना मिल गई। वह मौके पर पहुंच गई। दोनों महिलाओं की मौत संदिग्ध बन गया। सुधार गृह के लोगोंं का कहना है कि दोनों महिलाओं की मौत पीएमसीएच में अस्पताल में हुई। पीएमसीएच के अधिकारी डाक्टरों का कहना है कि दोनों महिलाओं को मृत अवस्था में ही लाया गया था। फिर यह भी सवाल उठा कि इसकी सूचना पुलिस को क्यों नहीं मिल पाई। दोनों मृत महिलाओं का पोस्टमार्टम कैसे और किसके आदेश से हुआ। पुलिस ने आश्रा आश्रय गिरि में छापा मारा। जांच-पड़ताल शुरू हुई। मनीषा दयाल और चिरंजन कुमार फरार हो गए। बाद में उनकी गिरफ्तारी हुई।
जांच-पड़ताल के दौरान पता चला कि इस सुधार गृह में काफी अनियमितताएं बरती गई हैं। इसमें 50 महिलाओं को रखने की अनुमति है। लेकिन 75 से ज्यादा महिलाएं रखी जाती थीं। महिलाओं को सहूलियत कम, यातनाएं ज्यादा थी। खाने-सोने-शौच की समस्याएं ही समस्याएं थीं। सरकार की ओर से करीब 42 लाख रुपए आश्रय गिरि को मुहैया कराया गया है, लेकिन उसके खर्च के हिसाब-किताब ठीक-ठीक नहीं मिल रहा है। अपराध में यह भी गिना जाता है। महिलाओं का उत्पीडऩ, देह व्यापार के आरोप या उसके सबूत नहीं मिल पाए हैं। लेकिन दो महिलाओं की मौत कैसे हुई, यह रहस्य बना हुई है। मनीषा और चिरंतन को यही कानून की गिरफ्त में लेने के लिए काफी है।
आश्रा आश्रय गिरि का वाकया सामने आ जाने के बाद मनीषा और चिरंजन की खोज खबर हुई। मनीषा गया में एपी कोलोनी की रहने वाली हैं और उनकी पढ़ाई लिखाई वहीं हुई। बताते हैं कि पटना मेें पढऩे-लिखने के लिए आई और बीच में पढ़ाई छोड़ दी। वे साधारण परिवार की रही है। विवाह पटना सिटी के कपड़ा के कारोबार करने वाले राजीव वर्मा से हुई। लेकिन मनीषा जब विभिन्न गैर सरकारी संगठनों से जुडऩे लगी और बाद में खेल और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करने लगी तो पति से झंझट होने लगा और बाद में वे दोनों अलग-अलग रहने लगे। इनका 12 साल एक पुत्र है। वह अपने पिता के साथ ही रहता है। मनीषा बिल्कुल अलग रहने लगी। बताते हैं कि पटना में उनका अपना एक शानदार फ्लैट है। गया-बोधगया के रास्ते मेंं भी एक भव्य मकान बन रहा है। कीमती बड़ी गाड़ी से चलती है। बताते हैं कि उन्होंने इसे कांग्रेस के एक नेता से खरीदा है। वे विधायक भी हैं।
खरीद फरोख्त के कागजात पर संदेह जताया जा रहा है।
मनीषा के एक भाई भी गैर सरकारी संगठन चलाते हैं। उन पर भी सरकारी धन का दुरुपयोग और भ्रष्टाचार करने का आरोप है। उनका संगठन मुंगेर में सक्रिय था। मनीषा को गैर सरकारी संगठनों के संपर्क में लाने में भाई मददगार रहे हैं। बाद में मनीषा का खुद अपना नेटवर्क तैयार हो गया। बताया तो यह भी जा रहा है कि मुजफ्फरपुर के बाला सुधार गृह कांड के मुख्य अभियुक्त ब्रजेश ठाकुर से इनको मदद मिलती रही है। ब्रजेश ठाकुर का भी अपना कई गैर सरकारी संगठन हैं। ब्रजेश ठाकुर के दैनिक अखवार प्रात:कमल में मनीषा के कार्यक्रमों को आध-आध पन्ना जगह मिलती थी। इसलिए भी दोनों के बीच अच्छा-खासा संपर्क होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
जानकार बताते हैं कि चिरंतन कुमार पटना के जाना माना एक निजी अंग्रेजी स्कूल के संचालक के पुत्र हैं। गैर सराकारी संगठनों के कामकाज में सक्रिय रहते हुए ही मनीषा और निरंतन एक दूसरे के करीब हुए। निरंतन ने मनीषा को अपना गैर सरकारी संगठन खोलने में काफी मदद की। वे खुद में उसके सचिव हैं। मनीषा के एक पत्रकार भी मददगार रहे हैं। लेकिन पत्रकार के खिलाफ ऐसा कोई आरोप नहीं है जिससे वे कानून के कठघरे में खड़े हों। लेकिन पुलिस की अभी जांच पड़ताल चल ही रही है। वे भी संदेह के घेरे में हैं।
मनीषा के मामले की जब खोजबीन चल रही थी तब कई नेताओं, सरकार के बड़े अधिकारियों के साथ उनकी तस्वीर सोशल मीडिया पर जारी हुई। जद (एकी) के पूर्व मंत्री और मौजूदा समय में विधायक श्याम रजक और मनीषा की तस्वीर पर काफी टिकाटिप्पणी हुई। श्याम रजक बड़े दलित नेता हैं। वे प्रभावशाली नेता कहे जाते हैं। राजद की सरकार में मंत्री रह चुके हैं। बाद में नीतीश कुमार की सरकार में मंत्री हुए। इस बार मंत्री नहीं हो पाए। उनका साफ कहना है कि उनके पास बड़ी संख्या में लोग आते हैं। विभिन्न मौके पर, कार्यक्रमों में तस्वीरें खींची जाती हैं। उनका तर्क के औचित्य पर सवाल नहीं उठा। दूसरे नेताओं और अधिकारियों से ऐसी ही बात कही जा रही है। मनीषा को राजद नेता अब्दुल बारी सिद्दकी की पत्नी नूतन की मौसेरी बहन बताया जा रहा है। अब्दुल बारी सिद्दकी ने इसे इनकार नहीं किया बल्कि उनका कहना है कि मनीषा से कोई संपर्क नहीं है। वे उसे जानते नहीं। कभी एक बार पारिवारिक किसी कार्यक्रम में देखा भर था। वैसे भी मनीषा अपने परिवार से दूर हो गई हैं। परिवार के दूर के संबंधियों से दूर-दूर का ही संबंध है।
यह आसानी से इनकार नहीं किया जा सकता कि मनीषा ने विभिन्न पार्टियों के विभिन्न नेताओं से सपंर्क साधा था और इसको भी खारिज नहीं किया जा सकता है कि उन्होंने उनसे अपना स्वार्थ सिद्ध नहीं किया हो। अपने संपर्क की वजह से वे खुद प्रभावशाली हो गई थीं। अपना एक गैर सरकारी संगठन होने की वजह से उन्हें किसी से संपर्क करने में सहूलियत हो जाती थी। साथ में मददगार चिरंतन कुमार और एक पत्रकार थे। नाम किए हुए एक निजी अंग्रेजी स्कूल के संचालक के पुत्र होने की वजह से चिरंतन कुमार का अपना दबदबा था। उनके लिए किसी नेता और अधिकारी के पास पहुचना कोई मुश्किल नहीं था। फिर मनीषा के गैर सरकारी संगठन में सचिव होने का कारण उनका और दायरा बढ़ गया। मनीषा के लिए बहुत उपयोग हो रहे थे। मनीषा के मददगार पत्रकार वास्तव में पत्रकार नहीं थे। वे जिस संस्थान में थे, वहां गैरपत्रकारिता के विभाग में थे। लेकिन उन्होंने सांस्कृति कार्यक्रमों की रिपोर्टिंग करने का मौका मिल जाता था। जब वे सांस्कृति कार्यक्रम के चलते मनीषा के संपर्क में आए, तो मनीषा ने उनसे करीबी बनाई और तथाकथिक पत्रकार भी मददगार हो गए।
जानकार बताते हैं कि आश्रा आश्रय गिरि के लोगों ने दूसरी मृत महिला को अंतिम संस्कार करने में कामयाब हो गए होते तो उनके सामने कोई समस्या ही नहीं खड़ी होती। आश्रा आश्रय गिरि में दो महिलाओं की मौत हुई। उन्होंने दोनों महिलाओं का पोस्टमार्टम करा लिया था। एक महिका का अंतिम संस्कार कर भी दिया। वह हिंदू थी। लेकिन दूसरी महिला का नाम वैसा नहीं था कि वह हिंदू मानी जा सकती थी। वह अल्पसंख्यक समुदाय की बताई जा रही है। उसके लिए सर्टिफिकेट लेने की कोशिश भी हुई लेकिन कामयाबी नहीं मिली। तब तक इस बात का पता चल गया। पुलिस भी पहुंच गई। सवाल तो यह भी है कि पटना मेडिकल कालेज अस्पताल के अधिकारियों की ओर से क्यों नहीं पुलिस को सूचना दी गई जब कि उनके और आश्रा आश्रय गिरि के लोगों के बीच झंझट भी हुआ था। साफ है कि अतिम संस्कार तक पैसे का खेल हुआ होगा। आखिर में पैसे का ही कोई पेंच फंसा होगा जिससे बात कुछ और हो गई। अंतिम संस्कार के वक्त दोनों मृत महिलाओं के घर से उनका कोई अपना नहीं था।