सन् 2017 में वीआईपी कल्चर ख़त्म करने के उद्देश्य से लालबत्ती की गाडिय़ों के उपयोग पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रोक लगा दी थी। लालबत्ती और हूटर के ज़रिये खादी और लालफ़ीताशाही के बेहिसाब रुतबे पर अंकुश लागने के लिए प्रधानमंत्री ने यह फ़रमान सुनाया था। प्रधानमंत्री ने कहा था कि यह काफ़ी पहले ख़त्म हो जाना चाहिए था। ख़ुशी है कि आज एक ठोस शुरुआत हुई है। हर भारतीय ख़ास है, हर भारतीय वीआईपी है।
इस समय ट्रांसपोर्ट मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि जगह-जगह पर मंत्री लालबत्ती लेकर निकलते थे। इस बात को लेकर लोगों में ग़ुस्सा था। यह लालबत्ती से जुड़ा हुआ वीआईपी कल्चर था। अब अगर कोई इसका पालन नहीं करेगा, तो उसके ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई होगी। उन्होंने प्रधानमंत्री के लालबत्ती छीनने के इस निर्णय को बहुत अच्छा निर्णय बताया था। इसी तरह अन्य बीजेपी नेताओं ने भी प्रधानमंत्री के वीआईपी कल्चर ख़त्म करने के निर्णय का स्वागत करते हुए जमकर तारीफ़ की थी।
तब सेन्ट्रल मोटर व्हीकल रूल-1989 में बदलाव करते हुए कहा गया कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारें तय करेंगी कि किन गाडिय़ों पर लाल और नीली बत्तियाँ लगेंगी। इसका ज़िक्र इस क़ानून के अधिनियम-108(1)(3) में है। इस क़ानून के अंतर्गत गाड़ी में अतिरिक्त लाइट लगाने पर भी रोक है।
आम नेता भी लेकर घूम रहे हूटर लगी गाडिय़ाँ
उत्तर प्रदेश में कई ऐसे भाजपा नेता हैं, जो वीआईपी कल्चर में दिखने के लिए अपनी गाड़ी पर हूटर, लाल, पीली बत्ती आदि लगाकर चलते हुए मिले हैं। हाल ही में बदाऊँ स्थित सम्भल के भाजपा सह मीडिया प्रभारी और भाजपा नेता विनोद कुमार सैनी अपनी गाड़ी पर पीली बत्ती और हूटर लगाकर खुलेआम घूमते हुए दिखे। जब उनसे एक पत्रकार ने इस बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी। वह इसे उतरवा देंगे। विनोद कुमार सैनी अकेले ऐसे नेता नहीं हैं, जो अपनी पार्टी की सरकार के सत्ता में होने का इस तरह ग़लत फ़ायदा उठा रहे हैं। कई और नेताओं को भी भाजपा का झण्डा लगाकर उस पर कोई न कोई अतिरिक्त बत्ती लगाकर घूम रहे हैं। पुलिस न उनका चालान करती है और न उन्हें रोकती है।
कुछ दिन पहले बरेली के मॉडलटाउन में दो हूटर लगी कारों में सवार होकर चार युवक घूम रहे थे। जब पुलिस ने उन्हें हूटर लगे वाहन लेकर घूमने को लेकर रोका, तो इन युवाओं ने पुलिस को एक बड़े भाजपा नेता से सम्बन्ध होने की धमकी देकर हंगामा किया।
हालाँकि इन युवकों की गाड़ी का पुलिस ने चालान किया, मगर रौब-रुतबे के नशे में चूर युवा पुलिस को भी धमकी देने से नहीं चूके।
जब प्रधानमंत्री ने वीआईपी कल्चर ख़त्म करने की बात कही थी, तब बहुत-से नेता इस कल्चर को छोडऩा नहीं चाह रहे थे, भाजपा की सरकारों वाले कई राज्यों के उनके मातहत नेताओं को इसमें बड़ी तकलीफ़ आयी और आज उत्तर प्रदेश में भी ऐसे कई नेता हैं, जो क़ानून तोड़ रहे हैं।
लालबत्ती और हूटर लगाने को लेकर पिछले इतिहास में पूछे गये सवालों पर भाजपा मंत्रियों और नेताओं ने बड़े अटपटे जवाब दिये हैं। किसी ने कहा है कि उनकी गाड़ी में लगी लाल बत्ती, दरअसल लाल बत्ती नहीं है, बल्कि भीड़भाड़ में लोग हटते नहीं है, तो उन्हें हटाने के लिए है। किसी ने कहा कि हूटर वीआईपी कल्चर में नहीं आता।
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव को लेकर जल्द ही आचार संहिता लागू हो जाएगी, लेकिन लालबत्ती और हूटर लगाकर चलने वाले नेताओं को पुलिस यह नहीं बता रही है कि यह जो आप कर रहे हैं, यह आम दौर में भी ग़ैर-क़ानूनी है। यह ट्रैफिक नियमों के ख़िलाफ़ है। वहीं नेता वीआईपी कल्चर छोडऩा नहीं चाह रहे। बड़ी बात यह है कि नेताओं से ज़्यादा उनके प्यादे रौब-रुतबे में हैं। इन दिनों चुनाव प्रचार के नाम पर भाजपा नेता दिनरात लोगों के बीच वोट माँगते हुए घूम रहे हैं, मगर उनके रौब-रुतबे कम नहीं हो रहे। चाहे वो भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह हों या दूसरे कई नेता। हालाँकि सभी नेता ऐसे नहीं हैं।
नेताओं की दबंगई
दबंगई और गुंडागर्दी की बात की जाए, तो हर पार्टी में दबंगई और गुंडागर्दी करने वाले नेता मिल जाएँगे। उत्तर प्रदेश में यह बात बहुत मशहूर है कि जिस भी पार्टी की सरकार बनती है, उसी पार्टी के नेता दबंगई और गुंडागर्दी पर उतर आते हैं। बहुत कम नेता हैं, जो इससे बचते हैं। भाजपा के अधिकतर नेताओं में तो यह बात कूट-कूटकर भरी हुई है। अगर पिछले पौने पाँच साल के उत्तर प्रदेश के भाजपा सरकार में नेताओं, मंत्रियों और विधायकों का मोटा-मोटा रिपोर्टकार्ड देखें, तो पता चलता है कि कइयों ने दबंगों और गुंडों की तरह ही आतंक मचाया है। हाथरस कांड में भी पीडि़त परिवार के ख़िलाफ़ भाजपा नेताओं की दबंगई पूरी तरह सामने आयी। इसके पहले योगी के क़रीबी दो बड़े नेताओं पर बलात्कार करके पीडि़ताओं के परिवार वालों को भी ठिकाने लगाने के आरोप लगे। उन्नाव में तो कुलदीप सिंह सेंगर पर पीडि़ता को ज़िन्दा जलाने और उसके परिजनों की हत्या कराने तक के आरोप लगे। इसके अलावा स्वामी चिनमयानंद पर भी बलात्कार के आरोप लगे। पिछले साल अप्रैल में ख़बर आयी कि एक बच्चे द्वारा जय श्रीराम का नारा न लगाने पर भाजपा नेता ने उसे इतना पीटा कि उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।
बीच-बीच में भी भाजपा के सत्ताधारी नेता गुण्डागर्दी करते दिखते रहे हैं। यहाँ तक कि प्रदेश में पुलिस अधिकारी तक की हत्या की गयी और बाद में पुलिस अधिकारी को मारने वाले का फूल-मालाओं से स्वागत किया गया। हाल ही में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी के दबंग बेटे ने किसानों पर गाड़ी चढ़ाई, गोली चलायी। उनके दोषी सिद्ध होने के सवाल पर ख़ुद गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी ने पत्रकार को कॉलर पकड़कर धक्का देते हुए बदतमीजी की।
इसके बाद गोंडा के कैसरगंज से सांसद और भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह ने झारखण्ड की राजधानी रांची के खेल गाँव स्थित मेगा स्पोट्र्स स्टेडियम में मंच पर शिकायत लेकर उत्साहपूर्वक पहुँचे एक अंडर-15 के नेशनल कुश्ती चैंपियन को थप्पड़ों से ख़ूब मारा। बताया जा रहा है कि मेगा स्पोट्र्स स्टेडियम में तीन दिवसीय अंडर-15 नेशनल कुश्ती चैंपियनशिप का आयोजन किया गया था, जिसमें मुख्य अतिथि के तौर बृजभूषण शरण सिंह इस आयोजन का उद्घाटन करने के लिए मंच पर मौज़ूद थे। बताया जा रहा है कि जिस पहलवान को उन्होंने थप्पड़ों से ख़ूब पीटा। युवक एक होनहार खिलाड़ी है और ख़ुद को डिस्क्वालिफाई किये जाने की शिकायत करने सांसद के पास पहुँचा था। सांसद ने पहलवान की शिकायत सुने बग़ैर ही उस पर ज़ोरदार थप्पड़ों की बारिश कर दी। बाद में उसी पर अनुशासनहीनता का आरोप लगाते हुए कहा कि मैं अनुशासनहीनता बर्दाशत नहीं करता।
असल बात यह है कि योगी भी बदतमीजी से पीछे नहीं रहे हैं। बीते साल एक पत्रकार से ख़ुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अभद्रता से पेश आ चुके हैं। उन्होंने एक बयान के दौरान पत्रकार को चूतिया कहा था, जिसे उत्तर प्रदेश में गाली माना जाता है। इतना ही नहीं, योगी दावा करते हैं कि वह आम जनता के सच्चे साधु नेता हैं, जो किसी से भी खुलकर मिलते हैं, मगर यह सच है कि उनसे मिलने के प्रयास में विपक्षी नेताओं पर एफआईआर दर्ज होती है, तो शिक्षकों को लाठियों से दौड़ा-दौड़ाकर पीटा जाता है। भाजपा के नेताओं का धमकी देना तो आम बात बन चुकी है। कई बार भाजपा के केंद्रीय मंत्री, सांसद और उत्तर प्रदेश के मंत्री व विधायक लोगों को धमकियाँ देते देखे गये हैं। मगर उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि न तो पद और रुतबा हमेशा रहता है और न जनता ही कुछ भूलती है।
दुर्भाग्य यह है कि सत्ता में आते ही नेता रौब-रुतबे के नशे में चौथे आसमान में उडऩे लगते हैं और भूल जाते हैं कि वे भी इसी ज़मीन पर रहते हैं। यह रौब-रुतबा लगभग हर पार्टी की सरकार बनने पर उसके कुछ नेताओं में आ ही जाता है; चाहे वह भाजपा की वर्तमान सरकार हो या फिर समाजवादी पार्टी की पिछली सरकार। इस पर तत्काल रोक लगनी चाहिए, अन्यथा जनता में नेता अपना ख़ौफ़ भले ही पैदा करने में सफल हो जाएँ, मगर जनता में उनका सम्मान नहीं रहेगा। अगर पिछले पाँच दशकों में राजनीति और नेताओं के रौब-रुतबे में अगर अन्तर देखें, तो पता चलता है कि लोग पहले के नेताओं का सम्मान करते थे और अबके नेताओं को पीछे गालियाँ देते हैं। इसकी वजह यही है कि पहले के नेता जनता की सुनते थे और ख़ुद को उसका सेवक मानते थे। वहीं अबके नेता जनता को केवल मत (वोट) माँगने के समय ही हाथ जोड़-जोड़कर नमस्कार करते हैं। मगर जीतने के बाद उसे पैर की जूती से ज़्यादा कुछ नहीं समझते।