उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी हलचल तेज है। विधायकों का एक दूसरे राजनीतिक दलों में आने–जाने का दौर जारी है, एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप भी लगाये जा रहे है। सबसे मजे की बात ये है। जिस अंदाज में भाजपा के विधायक और मंत्री सत्ता को छोड़कर दूसरे राजनीति दलों में जा रहे है। वहां पर अब संभावनायें, ये जतायी जा रही है कि कहीं ये सियासी खेल तो नहीं है।
और तो और भाजपा को छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल होने से अब समाजवादी पार्टी में इस बात का मंथन चल रहा है कि अगर भाजपा और अन्य राजनीति दलों से विधायक या बड़े नेता शामिल होते और समाजवादी पार्टी से टिकट मांगा तो टिकट देना पार्टी के लिये मुसीबत हो सकता है। क्योंकि समाजवादी के जो नेता भाजपा के विरोध में और सत्ता के विरोध में गत पांच सालों से संघर्ष करते आ रहे है। उनका टिकट काटना या उपेक्षा करना मुश्किल साबित होगा। क्योंकि वो पार्टी के साथ बगावत भी कर सकते है।
समाजवादी पार्टी का मानना है। जो दूसरी पार्टी को छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हो रहे है वे महत्तपूर्ण तो है। लेकिन इतने भी महत्त पूर्ण नहीं है। कि वे अपने संघर्षशील नेताओं के साथ–साथ कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर सकें।
मौजूदा दौर में सभी राजनीति दलों में इस बात पर भी चिंतन चल रहा है कि अगर टिकट पाने के बाद भी अगर पार्टी को छोड़कर दूसरे दल में जाने का सिलसिला जारी रहा तो, निश्चित तौर पर चुनाव में बड़ी दिक्कत के साथ चुनावी परिणाम के साथ–साथ सियासी समीकरण भी बदल सकतें है।