आजकल कोरोना वायरस के संक्रमण बचने के लिए अधिकतर लोगों को एक ही राय रास आ रही है कि वे हर रोज़ काढ़ा बनाकर पीएँ, ताकि उन्हें संक्रमण न हो। जबसे विशेषज्ञों ने काढ़ा पीने पर सहमति जतायी है, लाखों लोग रोज़ काढ़ा पीने लगे हैं। इसे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का एक अच्छा माध्यम माना जा रहा है। कुछ तो काढ़ा बनाने के मामले खुद को ही डॉक्टर समझने लगे हैं और लोगों को बिन माँगे राय दे रहे हैं। आपको ऐसे लोग आस-पड़ोस और सोशल मीडिया पर खूब मिल जाएँगे। कुछ लोग खुद को मज़बूत करने के लिए यानी रोगों से लडऩे के लिए शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए जमकर काढ़ा पी रहे हैं। लेकिन हाल ही में कुछ खबरें सामने आयी हैं, जिनमें पाया गया कि अधिक काढ़ा पीने से कुछ लोग बीमार भी पड़े हैं। हाल ही में एक अखबार में प्रकाशित एक खबर में कहा गया है कि एक रिपोर्ट के अनुसार, अधिक मात्रा में काढ़ा पीने से लीवर कमज़ोर होने के साथ-साथ पेट की बीमारियाँ बढ़ रही हैं। लोग डॉक्टरों के पास पेट में दर्द, ऐंठन, कब्ज़ आदि की शिकायतें लेकर आ रहे हैं, इनमें बहुत से काढ़े के उपयोग के बाद ऐसी शिकायतें बता रहे हैं। आयुर्वेद में बताया गया है कि काढ़ा औषधीय गुणों वाली चीज़ों, खासकर मसालेदार चीज़ों से बनाया जाता है, जिसके अधिक उपयोग से छाती में जलन और पेट में विकार हो सकते हैं।
सोशल मीडिया पर डॉक्टरी
आजकल सोशल मीडिया हर मर्ज़ की दवा बना हुआ है। यूँ कहें कि अच्छी और सही जानकारियों के साथ-साथ यहाँ आधे-अधूरे और उल्टे-सीधे ज्ञान का भण्डार है। इसलिए सोशल मीडिया को अधकचरा ज्ञान का विश्वविद्यालय भी कहा जाने लगा है। सोशल मीडिया पर हर दूसरा आदमी ज्ञानी हो गया है या यूँ कहें कि ज्ञान दे रहा है। कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए बनाये जाने वाले काढ़े को लेकर भी व्हाट्स एप और फेसबुक पर ऐसी ही बहुत-सी आधे-अधूरे ज्ञान को बाँटने वाले लोगों का हुज़ूम है, बिना सोचे-समझे लोगों को काढ़ा बनाने की विधियों और उसके जमकर उपयोग की हिदायत दे रहा है। सोशल मीडिया पर काढ़ा बनाने में कुछ आम गिनीचुनी चीज़ों को पानी में डालकर गर्म करके पीने की सलाह दी जा रही है। जैसे- काली मिर्च, लौंग, गिलोय, नींम पत्ती, तुलसी पत्ती, दालचीनी, लहसुन और एलोवेरा आदि-आदि। लेकिन लोगों को शायद नहीं मालूम कि काढ़े भी रोगों के हिसाब से कई तरह के होते हैं, जैसे- खाँसी का काढ़ा, जुकाम का काढ़ा, बुखार का काढ़ा आदि। कोरोना वायरस के संक्रमण से लडऩे के लिए जिस काढ़े की विधि तैयार की गयी है, उसमें खाँसी, छाती की जकडऩ और बुखार में इस्तेमाल काढ़ों में उपयोग की जाने वाली चीज़ों का इस्तेमाल बताया गया है। लेकिन यह भी पूरी तरह विश्वसनीय नहीं है। माना जा रहा है कि इसके उपयोग से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ सकती है। इसमें तुलसी पत्ते (चार से पाँच), दालचीनी (आधा इंच लम्बा और एक सेंटीमीटर चौड़ा टुकड़ा), हल्दी (दो-तीन चुटकी), लौंग (एक), अदरक (5 ग्राम), नींम पत्ते (चार-पाँच, यदि चाहें तो), गिलोय (एक इंच टुकड़ा), नमक (एक चुटकी) एक गिलास (100 से 150 ग्राम) पानी में डालकर पानी को तब तक उबालें, जब तक वह आधा न हो जाए। आधा हो जाने पर इस काढ़े को गर्म (पीने सकने के लायक) छोटे-छोटे घूँटों में सुबह पीएँ। यह एक व्यक्ति के लायक मात्रा है। इस तरह किसी को भी केवल एक बार काढ़ा पीना है। अगर कोई कोरोना संक्रमितों के बीच काम करता है, तो वह दो बार पी सकता है। याद रखें काढ़ा तभी पीएँ, जब छाती, पेट के गम्भीर रोग न हों, अथवा डॉक्टर की सलाह लें।
ऐसे ही नहीं बढ़ जाती रोग प्रतिरोधक क्षमता
लोगों को लगता है कि काढ़ा पीने से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाएगी। लेकिन यह उनकी भूल है। रोग प्रतिरोधक क्षमता एक स्वस्थ व्यक्ति की ही बेहतर होती है। इसलिए अगर कोई कमज़ोर व्यक्ति यह सोचता है कि काढ़ा पीने से उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाएगी, तो यह उसकी भूल है। हो सकता है कि काढ़ा पीने से वह कोरोना या दूसरे वायरसों से कुछ देर के लिए बच सके, पर शरीर में इससे ताक़त नहीं बढ़ती। इसलिए हर रोज़ सही मात्रा में उपयोगी आहार लेते रहें। काढ़ा भी इसमें उपयोगी हो सकता है; लेकिन ताक़त के लिए अलग प्रकार के काढ़े तैयार किये जाते हैं, जो शरीर की बनावट, शरीर में लगे रोगों और शरीर की पाचन क्षमता के आधार पर तैयार किये जाते हैं। इसलिए मात्र इस काढ़े को रोग प्रतिरोधक क्षमता का सर्वोत्तम साधन न मानें, सिर्फ एक सामान्य दवा मानें।