गेहूँ के बाद चीनी निर्यात की सीमा तय करने से महँगाई और चीनी उद्योग पर क्या असर होगा?
रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण वैश्विक आपूर्ति अस्थिरता से सतर्क केंद्र सरकार ने घरेलू माँग और मूल्य स्थिरता के लिए पर्याप्त चीनी स्टॉक सुनिश्चित करने के लिए 01 जून से चीनी निर्यात के नियमन का फ़ैसला किया है। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) ने कहा है कि सरकार ने यह फ़ैसला काफ़ी सावधानी से उठाया गया क़दम है। गेहूँ निर्यात की सीमा तय करने के बाद चीनी निर्यात की सीमा तय करके अब चावल की निर्यात सीमा भी तय की जाएगी। इन खाद्यान्नों के निर्यात की सीमा तय करने के क्या मायने हैं? यह जानना ज़रूरी है।
दरअसल गेहूँ के निर्यात पर प्रतिबंध के बाद चीनी निर्यात पर अंकुश कई उपायों के पीछे आता है, जिसमें बढ़ रही मुद्रास्फीति को रोकने और घरेलू खपत के लिए स्टॉक की सुरक्षा के लिए ईंधन पर शुल्क में कटौती शामिल है। यह रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण वैश्विक आपूर्ति अस्थिरता के बीच व्यावहारिक संरक्षणवाद अल्पावधि में एक सुरक्षित शर्त प्रतीत होती है। खाद्य मंत्रालय के अनुसार, चीनी की एक्स-मिल क़ीमतें 32-33 रुपये प्रति किलोग्राम पर चल रही हैं, जबकि खुदरा क़ीमतें क्षेत्र के आधार पर 33 रुपये से 44 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच हैं। भारत में चीनी का थोक मूल्य 3150 रुपये से 3500 रुपये प्रति कुंतल के बीच है, जबकि खुदरा क़ीमतें भी देश के विभिन्न हिस्सों में 36-44 रुपये के दायरे में हैं।
पिछले साल ब्राजील के बाद भारत दुनिया का सबसे बड़ा चीनी निर्यातक था, और बांग्लादेश, इंडोनेशिया, मलेशिया और दुबई को शीर्ष ग्राहकों में गिना जाता है। भारत ने पिछले साल चीनी निर्यात में 7.2 मिलियन का रिकॉर्ड बनाया था। यह रिकॉर्ड शायद ही पहले कभी बना हो। भारतीय चीनी मिलें निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सरकारी सब्सिडी पर निर्भर रही हैं। हालाँकि पिछले एक साल में वैश्विक क़ीमतों में क़रीब 20 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जिससे भारत बिना सब्सिडी के शिपमेंट बढ़ा सकता है। इस सीजन में निर्यात 9 मिलियन से 11 मिलियन टन के बीच रहने की उम्मीद थी।
अप्रैल में खाद्य मुद्रास्फीति के साथ इस साल मार्च के 7.68 फ़ीसदी से बढक़र 8.38 फ़ीसदी हो गयी, चीनी के निर्यात पर अंकुश की उम्मीद थी। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के उपाध्यक्ष पलानी जी पेरियासामी ने कहा है कि सरकार ने यह निर्णय काफ़ी सावधानी के रूप में किया है। यह सावधानी बरतने या बढ़ती मुद्रास्फीति को रोकने के लिए हो सकता है; लेकिन तथ्य यह है कि सरकार ने चीनी सीजन 2021-22 (सितंबर-अक्टूबर) के दौरान घरेलू उपलब्धता और मूल्य स्थिरता बनाये रखने के उद्देश्य से 100 एलएमटी तक चीनी के निर्यात की अनुमति देने का निर्णय किया है। चालू चीनी सीजन 2021-22 में इसका निर्यात ऐतिहासिक रूप से सबसे अधिक था। भारत चालू वर्ष में दुनिया में चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक रहा है। ब्राजील में कम चीनी उत्पादन और उच्च तेल की क़ीमतें, जो वहाँ मिलों को अधिक गन्ना आधारित इथेनॉल का उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं; ने वैश्विक चीनी क़ीमतों में वृद्धि की है।
अब चीनी निदेशालय, खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग के जारी आदेश के अनुसार, पहली जून, 2022 से 31 अक्टूबर, 2022 तक या अगले आदेश तक (जो भी पहले हो) चीनी के विशेष निर्यात की अनुमति दी जाएगी। यह निर्णय चीनी के रिकॉर्ड निर्यात के आलोक में आया है। चीनी मौसम 2017-18, 2018-19 और 2019-20 में, केवल 6.2 एलएमटी, 38 एलएमटी और 59.60 एलएमटी चीनी का निर्यात किया गया था। चीनी सीजन 2020-21 में 60 एलएमटी के लक्ष्य के मुक़ाबले क़रीब 70 एलएमटी का निर्यात किया जाएगा। चालू चीनी सीजन 2021-22 में क़रीब 90 एलएमटी के निर्यात के अनुबंध पर हस्ताक्षर किये गये हैं, चीनी मिलों से क़रीब 82 एलएमटी चीनी निर्यात के लिए भेजी गयी है और क़रीब 78 लाख मीट्रिक टन का निर्यात किया गया है। चालू चीनी सीजन 2021-22 में चीनी का निर्यात ऐतिहासिक रूप से सबसे अधिक है।
यह निर्णय सुनिश्चित करेगा कि चीनी सीजन (30 सितंबर, 2022) के अन्त में चीनी का क्लोजिंग स्टॉक 60-65 एलएमटी बना रहे, जो घरेलू उपयोग के लिए आवश्यक 2-3 महीने का स्टॉक (उन महीनों में मासिक आवश्यकता क़रीब 24 एलएमटी है) होता है। नये सीजन में पेराई कर्नाटक में अक्टूबर के आख़िरी हफ़्ते में और महाराष्ट्र में अक्टूबर से नवंबर के आख़िरी हफ़्ते जबकि उत्तर प्रदेश में नवंबर में शुरू हो जाती है। इसलिए आमतौर पर नवंबर तक चीनी की आपूर्ति पिछले साल के स्टॉक से होती है।
चीनी के निर्यात में अभूतपूर्व वृद्धि और देश में चीनी का पर्याप्त भण्डार बनाये रखने की आवश्यकता के साथ-साथ चीनी की क़ीमतों को नियंत्रण में रखते हुए देश के आम नागरिकों के हितों की रक्षा करने की ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने चीनी को पहली जून, 2022 से विनियमित करने का निर्णय किया है।
चीनी मिलों और निर्यातकों को चीनी निदेशालय, खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग से निर्यात रिलीज ऑर्डर (ईआरओ) के रूप में अनुमोदन लेने की आवश्यकता है। चीनी निर्यात की सीमा को अधिसूचित करते हुए सरकार ने कहा कि पहली जून से 31 अक्टूबर के बीच विशेष अनुमति के साथ शिपमेंट की अनुमति दी जाएगी। चीनी मिलों और निर्यातकों को चीनी निदेशालय, खाद्य मंत्रालय से निर्यात रिलीज ऑर्डर के रूप में अनुमोदन लेने की आवश्यकता है।
वार्षिक रूप से नवंबर तक चीनी की आपूर्ति पिछले वर्ष के स्टॉक से होती है। चीनी सीजन 2017-18, 2018-19 और 2019-20 में लगभग 6.2 लाख मीट्रिक टन, 38 लाख मीट्रिक टन और 59.60 लाख मीट्रिक टन चीनी का निर्यात किया गया था। चीनी सीजन 2020-21 में लगभग 70 एलएमटी निर्यात किया गया था, जो 60 एलएमटी के लक्ष्य से अधिक था।
चीनी के निर्यात पर प्रतिबंध खाद्य आपूर्ति की सुरक्षा के लिए एक एहतियाती उपाय है और यह एक सप्ताह पहले ही गेहूँ की बिक्री पर प्रतिबंध के बाद आया है। इसका उद्देश्य चीनी की घरेलू उपलब्धता को बनाये रखना और क़ीमतों को नियंत्रण में रखकर उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना है।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के अनुसार, भारत में इस सीजन में 35 मिलियन टन उत्पादन और 27 मिलियन टन की खपत होने की उम्मीद है। पिछले सीजन के लगभग 8.2 मिलियन टन के भण्डार सहित, इसके पास निर्यात के लिए 10 मिलियन सहित, 16 मिलियन का अधिशेष है। कहा जा रहा है कि अब चावल निर्यात की सीमा भी तय होगी। यहाँ ये सवाल उठते हैं कि इन खाद्य पदार्थों की निर्यात की सीमा तय करने से महँगाई पर अंकुश कैसे लगेगा? और उद्योग पर इसका क्या होगा असर?
“चीनी की घरेलू क़ीमतें अन्य वस्तुओं की तुलना में अधिक स्थिर हैं, चीनी निर्यात पर अंकुश लगाने का निर्णय कमोडिटी की वैश्विक कमी के बीच खुदरा क़ीमतों में किसी भी तरह की अनुचित वृद्धि को रोकने के लिए किया गया था।’’
सुधांशु पांडे
खाद्य सचिव