निमोनिया में लापरवाही ले सकती है जान

बार्सेलोना में ग्लोबल फोरम ऑन चाइल्डहुड निमोनिया कार्यक्रम में जोन होपकिन्स यूनिवर्सिटी की एक विश्लेषण रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे किये गये हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठनों ने चेतावनी है कि अगर लापरवाही की गयी, तो केवल एक दशक में 9 मिलियन यानी 90 लाख बच्चों की मौत हो जाती है। इसी रिपोर्ट और डॉक्टरों से बातचीत पर आधारित मंजू मिश्रा की रिपोर्ट

पिछले साल प्रत्येक 39 सेकेंड में एक बच्चे की मौत हुई। यह बात चौंकाने वाली भी है और हमें सचेत करने के लिए एक रेड अलर्ट भी। पिछले सप्ताह बार्सेलोना में ग्लोबल फोरम ऑन चाइल्डहुड निमोनिया कार्यक्रम में विश्व की स्वास्थ्य संगठनों ने बच्चों की मौत का यह आँकड़ा बताकर सभी को चौंका दिया है। बार्सेलोना में पेश आँकड़ों का हवाला देकर हमने बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर धवल कुमार से बातचीत की। उन्होंने कहा कि आपको याद होगा कि पिछले एक-डेढ़ साल के बीच में भारत के उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और गुजरात राज्यों में एक साथ सैकड़ों बच्चों की मौत हुई थी। अगर कुल मिलाकर देखें तो चारो राज्यों में हज़ार से ज़्यादा बच्चों की मौत हुई होगी। यह अलग बात है कि ये सभी मौतें निमोनिया से नहीं हुईं, पर इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि बच्चों की जितनी भी मौतें हुईं बीमारी के कारण ही हुईं। ऐसी ही एक जानलेवा बीमारी निमोनिया भी है, जो बच्चों में बहुत जल्दी पनपती है। अगर समय पर ध्यान नहीं दिया गया, तो यह जानलेवा साबित हो सकती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठनों की रिपोर्ट की अगर बात करें, तो निमोनिया के िखलाफ बेहतर प्रयासों से पूरी दुनिया में एक दशक में मरने वाले तकरीबन 9 मिलियन यानी 90 लाख बच्चों को बचाया जा सकता है। यह तथ्य बार्सेलोना में चाइल्डहुड निमोनिया पर आयोजित कार्यक्रम में विश्व स्वास्थ्य संगठनों के एक नये विश्लेषण में सामने आया है। विश्व स्वास्थ्य संगठनों ने ग्लोबल फोरम से पहले इस विश्लेषण के परिणाम जारी किये।

बचाये जा सकते हैं लाखों बच्चे

जोन होपकिन्स यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के अनुसार निमोनिया की रोकथाम एवं उपचार सेवाओं के द्वारा पाँच साल से कम उम्र के 3.2 मिलियन यानी 32 लाख बच्चों को बचाया जा सकता है। इन प्रयासों से सिर्फ निमोनिया से मरने वाले बच्चों को ही नहीं बचाया जा सकता, बल्कि अन्य बीमारियो से होने वाली 5.7 मिलियन यानी 57 लाख मौतों को भी रोका जा सकता है। रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि निमोनिया बैक्टीरिया, वायरस या फंगस के कारण होती है, जिसकी वजह से रोगी बच्चे के फेफड़ों में मवाद भर जाता है और उसे साँस लेने में विकट तकलीफ होती है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि निमोनिया बच्चों की मौत का सबसे बड़ा कारण है। इस बीमारी से पिछले साल 8 लाख बच्चों की मौत हुई थी। यानी हर 39 सेकेंड में एक बच्चे की मौत हुई। इस कार्यक्रम में विश्व स्वास्थ्य संगठनों ने कहा है कि अगर सावधानी बरती जाए और बीमार होने वाले बच्चों का समय पर सही इलाज किया जाए, तो इस बीमारी से असमय होने वाली बच्चों की मौतों को रोका जा सकता है।

रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि निमोनिया के कारण होने वाली ज़्यादातर मौतें गरीब देशों में होती हैं। रिपोर्ट की मानें, तो वंचित समुदायों के बच्चे इस बीमारी की चपेट में सबसे ज़्यादा आते हैं।

अगले एक दशक में होंगी लाखों मौतें!

विश्व स्वास्थ्य संगठनों ने अपनी रिपोर्ट में चौंकाने वाली भविष्यवाणी की है। स्वास्थ्य संगठनों का कहना है कि अगर निमोनिया पर काबू नहीं पाया गया, तो यह अगले एक दशक में यानी 2020 से 2030 तक और पाँव पसार लेगी। इतना ही नहीं, इस एक दशक में निमोनिया के कारण पाँच साल से कम उम्र के 6.3 मिलियन यानी 63 लाख बच्चों की मौत हो सकती है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पोषण में सुधार करने, एंटीबायोटिक उपलब्ध कराने, वैक्सीन की कवरेज बढ़ाने, स्तनपान की दर बढ़ाने और सर्दी से बचाव करने से बच्चों को निमोनिया से बचाया जा सकता है।

निमोनिया का बड़ा कारण वायु प्रदूषण

इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन के द्वारा किये गये एक अध्ययन के मुताबिक, दुनिया भर में बाहरी हवा का प्रदूषण के चलते निमोनिया होता है, जिससे 17.5 फीसदी यानी पाँच में से लगभग एक बच्चे की मौत हो जाती है। इसके अलावा घर में ईंधन जलाने से उत्पन्न प्रदूषण से एक लाख 95 हज़ार यानी 29.4 फीसदी बच्चों की मौत होती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया की 91 फीसदी आबादी ऐसी

बाहरी हवा  में साँस ले रही है, जो विश्वस्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप नहीं हैं। वायु प्रदूषण के घातक प्रभाव निमोनिया के समाधान के लिए किये जाने वाले हस्तक्षेपों को कमज़ोर बना सकते हैं।

बच्चों की मौत मामले में दूसरे पायदान पर भारत

रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले एक दशक में सबसे ज़्यादा मौतें नाइजीरिया में होंगी, जबकि दूसरे पायदान पर भारत रहेगा। रिपोर्ट के अनुसार, अगले एक दशक में नाइजीरिया में 1.4 मिलियन 14 लाख,  भारत में (8 लाख 80 हज़ार, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में 3 लाख 50 हज़ार और इथियोपिया में 2 लाख 80 हज़ार मौतें होने की सम्भावना है। पिछले साल भी नाइजीरिया में निमोनिया से सबसे अधिक एक लाख 62 हज़ार बच्चों की मौत हुई। वहीं भारत में एक लाख 27 हज़ार मौतें हुईं। वहीं पाकिस्तान में 58 हज़ार, कांगो में 40 हज़ार और इथोपिया में 32 हज़ार बच्चों की मौत निमोनिया से हुई। रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में भारत में पाँच साल से कम उम्र के एक लाख 27 हज़ार यानी 14 फीसदी बच्चों की निमोनिया से मौत होती है। फाइटिंग फॉर ब्रेथ इन इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, 2013 में भारत में एक लाख 78 हज़ार बच्चों की मौत हुई थी। वर्तमान में निमोनिया के कारण प्रति एक हज़ार बच्चों के जन्म लेने के दौरान ही पाँच बच्चों की मौत हो जाती है। हालाँकि, उसके बाद मौत के आँकड़ों में कमी आयी है और लक्ष्य रखा गया है कि 2025 तक इसे कम करके तीन मौतों तक लाने का लक्ष्य तय किया गया है।

भारत में किये जा रहे सुधार के प्रयास

विशलेषण रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत सरकार ने पोषण अभियान और मिशन इन्द्रधनुष के माध्यम से टीकाकरण में सुधार लाने के प्रयास शुरू किये हैं, जो निमोनिया से बच्चों को बचाने में कारगर सकते हैं। 2019 में सरकार ने सोशल एवर्नेस एंड एक्शन टू न्यूट्रेलाइज़ निमोनिया सक्सेसफुल (साँस) कैंपेन अभियान के माध्यम से निमोनिया के िखलाफ संघर्ष की शुरुआत की है। इस अभियान की रणनीति में उपचार के संशोधित निर्देश शामिल हैं, जैसे- उपचार के लिए सबसे पहले अमॉक्सिलिन का उपयोग और स्वास्थ्य एवं वैलनैस केन्द्रों में पल्स ऑक्सीमीटर का उपयोग किया जाए। स्वास्थ्य कर्मियों के लिए कौशल आधारित प्रशिक्षण और बच्चों को निमोनिया से सुरक्षित रखने के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाया जाए।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

बार्सेलोना में आयोजित निमोनिया चाइल्डहुड कार्यक्रम में विश्व भर के बाल रोग विशेषज्ञों, अन्य चिकित्सकों, स्वास्थ्य संगठनों और दवा कम्पनियों ने भाग लिया। इस दौरान अनेक विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे। सेव द चिल्ड्रन के चीफ एक्जीक्यूटिव डॉ. केविन वाटकिन्स ने कहा कि अगर निमोनिया के कारकों पर ध्यान दिया जाए, बच्चों को बचाने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा ऑक्सीजन की उपलब्धता, वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए उचित कदम उठाने से निमोनिया के खतरे को कम किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ये परिणाम दर्शाते हैं कि नैतिक रूप से इस बीमारी से निपटने की कोशिशें नहीं की जा रही हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या उन बच्चों को इस बीमारी के होने पर मरने दिया जाए, जिन्हें किफायती एंटीबायोटिक, वैक्सीन और नियमित ऑक्सीजन उपचार की आवश्यकता है? युनिसेफ के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर हेनेरीटा फोरे ने कहा कि अगर हम सच में अपने बच्चों का जीवन बचाना चाहते हैं, तो हमें निमोनिया से गम्भीर रुख अपनाकर लडऩा होगा। वर्तमान में कोरोनावायरस के प्रकोप को देखते हुए साफ है कि समय पर निदान और रोकथाम बेहद ज़रूरी है।

गावी और द वैक्सीन अलायन्स के सीईओ डॉक्टर सेठ बर्कले कहते हैं कि न्यूमोकोकल निमोनिया की रोकथाम सम्भव है और इसका इलाज भी सम्भव है। इसके लिए हमें तय करना होगा कि किसी भी बच्चे की मौत न हो। पिछले दशक में हमने बढ़ी संख्या में बच्चों को जीवनरक्षक न्यूमोकोकल वैक्सीन दी हैं। हमारी अगली पीढ़ी को इस जानलेवा बीमारी से बचाने के लिए इन प्रयासों को जारी रखना अनिवार्य है। जून में आयोजित गावी का डोनर प्लेजिंग सम्मेलन अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को अवसर देगा कि वे इस दिशा में मदद कर सकें।

बार्सेलोना इन्सटीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ के रिसर्च प्रोफेसर और ग्लोबल फोरम ऑन चाइल्डहुड निमोनिया के चेयरपर्सन क्विके बसट ने कहा कि ऐसी बीमारी की उपेक्षा नहीं की जा सकती, जो दुनिया भर में इतनी बड़ी संख्या में बच्चों की जान ले रही है। हमें अनुसंधान एवं इनोवेशन के आधार पर नीतिगत बदलाव लाने होंगे और निमोनिया के कारण होने वाली मोतों को रोकने के लिए मार्ग प्रशस्त करना होगा।

एवरी ब्रेथ काउन्ट्स कोएलिशन के को-ऑर्डिनेटर लीथ ग्रीनस्लेड ने कहा कि यह विश्लेषण दर्शाता है कि बच्चों को निमोनिया से बचाने के लिए किये जाने वाले सामूहिक प्रयास बाल सुरक्षा के सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में कारगर हो सकते हैं। विश्व की सभी सरकारों एवं अन्तर्राष्ट्रीय एजेन्सियों को सबसे संवेदनशील बच्चों की सुरक्षा के तत्काल कदम उठाने चाहिए, जो कुपोषण, वायुप्रदूषण के कारण इस बीमारी की चपेट में आ सकते हैं।

वहीं बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर धवल ने हमसे बातचीत में कहा कि निमोनिया से दो साल से कम उम्र के बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। उन्होंने कहा कि निमोनिया किसी को भी हो सकता है, परन्तु बच्चों में यह जल्दी पनपने वाली बीमारी है। डॉक्टर धवल कहते हैं कि अगर सावधानी बरती जाए, तो निमोनिया से बच्चों को बचाया जा सकता है। डॉक्टर मनीष कहते हैं कि प्रदूषण निमोनिया का बहुत बड़ा कारण है और आज दुनिया में जिस तेजी से प्रदूषण बढ़ रहा है, वह बच्चों के लिए तो बिल्कुल भी ठीक नहीं है। बच्चों को निमोनिया से बचाने के सवाल पर डॉक्टर मनीष का कहते हैं कि सावधानी ही हर बीमारी से बचने का सबसे बेहतर उपाय है। फिर भी यदि कोई बच्चा बीमार पड़ जाए, तो उसे तत्काल बाल रोग विशेषज्ञ को दिखाना चाहिए।

बच्चों के बचाव के लिए रखे लक्ष्य

बार्सेलोना में विश्व स्वास्थ्य संगठनों ने एक साथ निमोनिया से लडऩे का बीड़ा उठाया है। ग्लोबल फोरम ऑन चाइल्डहुड निमोनिया ने निमोनिया से होने वाली मौत से बच्चों को बचाने के लिए अनेक घोषणाएँ की हैं। इन घोषणाओं में प्रमुख इस प्रकार हैं- किफायती दवाएँ और सीरम उपलब्ध कराने के प्रयास किये जाएँगे। पीसीवी वैकसीन उपलब्ध करायी जाएगी। सरकारों की ओर से राजनीतिक प्रतिबद्धता बनायी जाएगी। उच्च बोझ वाले देशों में निमोनिया के कारण होने वाली मौतों को कम करने के लिए राष्ट्रीय रणनीतियाँ तैयार की जाएँगी।