सम्भवत: भारत के बेहतरीन बल्ले में से एक विराट कोहली को ईएसपीएन ने दुनिया के सबसे प्रसिद्ध एथलीटों में से एक और टाइम पत्रिका ने दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों में से एक के रूप में स्थान दिया है। दो सबसे बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उनके 27 करोड़ से ज़्यादा फॉलोअर्स हैं। उनके क्रिकेट प्रशंसक हिन्दी सिनेमा के प्रशंसकों में से भी हैं, क्योंकि उन्होंने अभिनेत्री अनुष्का शर्मा से विवाह किया है।
फिर भी अन्य की ही तरह कोहली ऑस्ट्रेलिया के पर्थ के एक विशेष होटल में गोपनीयता के हक़दार थे। हालाँकि कोहली की निजता का उल्लंघन तब हुआ, जब कोई (सम्भवत: एक होटल कर्मचारी या होटल प्रबंधन की सहमति वाला कोई व्यक्ति) उनकी अनुपस्थिति में उनके कमरे में प्रवेश कर गया और कमरे में उसने न सिर्फ़ कोहली के सामान की वीडियो रिकॉर्डिंग की, बल्कि इसे सोशल मीडिया पर पोस्ट भी कर दिया। स्वाभाविक रूप से कोहली इस घटना से हैरान थे और उन्होंने अपनी निजता को लेकर चिन्ता जतायी, जबकि उनकी एक्ट्रेस पत्नी अनुष्का शर्मा ने भी इस घटना को एक मुद्दे के रूप में लिया।
क्या मशहूर हस्तियों या आम लोगों को भी निजता का कोई अधिकार है? चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी के वीडियो लीक में भी गर्ल हॉस्टल की छात्राओं ने डिजिटल युग में गोपनीयता पर हमले के मुद्दे को ध्यान में लाया था। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय (2017) ने माना कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद-14, 19 और 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है।
याद करें कि एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश और पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश- न्यायमूर्ति एन.के. सोढ़ी ने कुछ समय पहले मुख्य न्यायाधीश के आवास पर निगरानी कैमरे लगाने के ख़िलाफ़ उच्च न्यायालय का रुख़ किया था। न्यायमूर्ति सोढ़ी ने दावा किया कि लम्बे खम्भे पर लगाये गये उच्च-रेजोल्यूशन और इन्फ्रा-रेड कैमरे उनके निजता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।
न्यायमूर्ति सोढ़ी ने तर्क दिया था कि आम जनता की जानकारी के लिए एक नोटिस प्रदर्शित करने की आवश्यकता है कि क्षेत्र सीसीटीवी निगरानी में है। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। एक सीसीटीवी कैमरा ऐसी जगह पर नहीं लगाया जा सकता है, जहाँ वह ऐसी जानकारी एकत्र करता है, जो किसी व्यक्ति की निजता पर हमला करता है। उन्होंने कहा था कि मुख्य न्यायाधीश अपने आवास पर अच्छी तरह से सुरक्षित हैं, जबकि उनके वाहन में और उच्च न्यायालय में सीसीटीवी कैमरे किसी अप्रिय घटना को नहीं रोक सकते हैं।
निजता पर हमले से सम्बन्धित मामले सर्वोच्च न्यायालय की नौ-न्यायाधीशों की पीठ के फ़ैसले के बावजूद जारी हैं, कि नागरिकों को निजता का मौलिक अधिकार है, और यह कि यह जीवन और स्वतंत्रता के लिए ज़रूरी है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत आता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने 547 पन्नों के फ़ैसले में सन् 1958 में मध्य प्रदेश में एम.पी. शर्मा केस और सन् 1961 में खड़क सिंह मामले के फ़ैसलों को ख़ारिज कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि निजता का अधिकार भारतीय संविधान के तहत सुरक्षित नहीं किया गया है। फ़ैसले में दो पन्नों का अन्तिम आदेश भी शामिल है, जिसमें कहा गया है कि एम.पी. शर्मा और खड़क सिंह मामले के आदेश को ख़ारिज किया जाता है और निजता का अधिकार मौलिक है।
न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ के मुख्य फ़ैसले और मुख्य न्यायाधीश खेहर, न्यायमूर्ति नज़ीर और न्यायमूर्ति अग्रवाल के सह-हस्ताक्षरित 265 पन्नों के मुख्य फ़ैसले में कहा गया है कि एम.पी. शर्मा का फ़ैसला अनिवार्य रूप से यह मानता है कि अमेरिकी संविधान के चौथे संशोधन के समान प्रावधान के अभाव में निजता के अधिकार को भारतीय संविधान के अनुच्छेद-20(3) के तहत प्रावधानों में नहीं पढ़ा जा सकता है।
जजमेंट विशेष रूप से इस पर फ़ैसला नहीं करती है कि क्या निजता का अधिकार अनुच्छेद-21 और अनुच्छेद-19 सहित भाग-ढ्ढढ्ढढ्ढ द्वारा गारंटीकृत अधिकारों के किसी अन्य प्रावधान से उत्पन्न होगा। यह अवलोकन कि गोपनीयता भारतीय संविधान द्वारा गारंटीकृत अधिकार नहीं है, सही स्थिति को प्रतिबिंबित नहीं करता है। एम.पी. शर्मा फ़ैसले को इस हद तक ख़ारिज कर दिया गया है कि यह इसके विपरीत इशारा करता है।
जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता अहरणीय अधिकार हैं। ये ऐसे अधिकार हैं, जो एक प्रतिष्ठित मानव अस्तित्व से अविभाज्य हैं। व्यक्ति की गरिमा मनुष्यों के बीच समानता और स्वतंत्रता की खोज भारतीय संविधान के आधारभूत स्तम्भ हैं। जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता संविधान की रचना नहीं है। इन अधिकारों को संविधान ने प्रत्येक व्यक्ति में निहित मानवीय तत्व के आंतरिक और अविभाज्य अंग के रूप में मान्यता दी है, जो भीतर रहता है। गोपनीयता एक संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकार है, जो मुख्य रूप से संविधान के अनुच्छेद-21 में जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी से उभरता है। गोपनीयता के तत्व भी स्वतंत्रता और गरिमा के अन्य पहलुओं से अलग-अलग सन्दर्भों में उत्पन्न होते हैं, जिन्हें भाग-ढ्ढढ्ढढ्ढ में निहित मौलिक अधिकारों द्वारा मान्यता प्राप्त और गारंटी दी जाती है।
गोपनीयता मानव गरिमा का संवैधानिक मूल है। गोपनीयता का एक मानक और वर्णनात्मक कार्य है। मानक स्तर पर गोपनीयता उन शाश्वत् मूल्यों की उप-सेवा करती है, जिन पर जीवन, स्वतंत्रता और स्वतंत्रता की गारंटी की स्थापना की जाती है। एक वर्णनात्मक स्तर पर गोपनीयता अधिकारों और हितों के ढेर को निर्धारित करती है, जो आदेशित स्वतंत्रता की नींव पर निहित हैं; गोपनीयता में इसके मूल में व्यक्तिगत अंतरंगता का संरक्षण, पारिवारिक जीवन की पवित्रता, विवाह, प्रजनन, घर और यौन अभिविन्यास शामिल हैं। गोपनीयता भी अकेले छोड़े जाने के अधिकार को दर्शाती है। गोपनीयता व्यक्तिगत स्वायत्तता की रक्षा करती है और व्यक्ति की अपने जीवन के महत्त्वपूर्ण पहलुओं को नियंत्रित करने की क्षमता को पहचानती है। जीवन के तरीके को नियंत्रित करने वाले व्यक्तिगत विकल्प गोपनीयता के लिए आंतरिक हैं।
गोपनीयता विविधता की रक्षा करती है और हमारी संस्कृति की बहुलता और विविधता को पहचानती है। यह रेखांकित करना महत्त्वपूर्ण है कि गोपनीयता केवल इसलिए नहीं खोती या आत्मसमर्पण करती है; क्योंकि व्यक्ति सार्वजनिक स्थान पर है। गोपनीयता व्यक्तियों से जुड़ती है, क्योंकि यह मनुष्य की गरिमा का एक अनिवार्य पहलू है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि क़ानून के शासन द्वारा शासित लोकतांत्रिक व्यवस्था में उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए संविधान को समय की आवश्यकता के अनुसार विकसित होना चाहिए। संविधान के अर्थ को उस समय मौज़ूद दृष्टिकोणों पर स्थिर नहीं किया जा सकता है, जब इसे अपनाया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि तकनीकी परिवर्तन ने उन चिन्ताओं को जन्म दिया है, जो सात दशक पहले मौज़ूद नहीं थीं और प्रौद्योगिकी के तेज़ी से विकास ने वर्तमान की कई धारणाओं को अप्रचलित कर दिया है। इसलिए संविधान की व्याख्या लचीली होनी चाहिए, ताकि आने वाली पीढिय़ों को इसकी मूल या आवश्यक विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए इसकी सामग्री को अनुकूलित करने की अनुमति मिल सके।’
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि निजता का अतिक्रमण करने वाले क़ानून को मौलिक अधिकारों पर अनुमेय प्रतिबंधों की कसौटी का सामना करना होगा। अनुच्छेद-21 के सन्दर्भ में निजता के अतिक्रमण को एक ऐसे क़ानून के आधार पर उचित ठहराया जाना चाहिए, जो न्यायसंगत और उचित प्रक्रिया को निर्धारित करता है। क़ानून को अनुच्छेद-21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अतिक्रमण के सन्दर्भ में भी वैध होना चाहिए। जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अतिक्रमण को (द्ब) वैधता की तीन गुना आवश्यकता को पूरा करना चाहिए, जो क़ानून के अस्तित्त्व को दर्शाता है; (द्ब द्ब) एक वैध राज्य उद्देश्य की आवश्यकता, परिभाषित शर्तें; और (द्ब द्ब) आनुपातिकता जो वस्तुओं और उन्हें प्राप्त करने के लिए अपनाये गये साधनों के बीच तर्कसंगत सम्बन्ध सुनिश्चित करती है।
सूचना के युग में गोपनीयता के ख़तरे न केवल राज्य से, बल्कि $गैर-राज्य तत्त्वों से भी उत्पन्न हो सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने संघ की सराहना की थी और कहा था कि सरकार को व्यक्तिगत हितों और राज्य की वैध चिन्ताओं के बीच संवेदनशील सन्तुलन सुनिश्चित करके एक मज़बूत शासन की जाँच करने और उसे स्थापित करने की आवश्यकता है।