ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर

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2014 का आम चुनाव दल और विचारधारा बदलने वाले नेताओं के कारण भी याद किया जाएगा. इस चुनाव में कई बड़े नेता अपनी पार्टी का दामन छोड़कर विरोधी दलों में शामिल हो गए. इनकी फेहरिस्त तो बेहद लंबी है. लेकिन जो नाम चौंकाते हैं, उनमें उत्तराखंड के वरिष्ठ कांग्रेस नेता सतपाल महाराज, पूर्व केंद्रीय मंत्री पुरंदेश्वरी, रामकृपाल यादव, राव इंद्रजीत सिंह जैसे नाम शामिल हैं. लालू प्रसाद यादव के बेहद करीबी रहे रामकृपाल यादव अब लालू का साथ छोड़ भाजपा के हो चुके हैं. वहीं गुजरात दंगों के बाद एनडीए से अलग हुए रामविलास पासवान ने बिहार में फिर भाजपा का दामन थाम लिया है. 36 साल तक गुड़गांव से कांग्रेस के सांसद रहे राव इंद्रजीत सिंह जहां भाजपा में शामिल हो गए हैं. वहीं झारखंड की कांग्रेस सरकार में मंत्री रह चुके चंद्रशेखर दुबे कांग्रेस छोड़कर तृणमूल कांग्रेस में शरीक हो चुके हैं. शिबू सोरेन के सबसे छोटे भाई लालू सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा का साथ छोड़ तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए हैं तो यूपीए सरकार में मंत्री रही पुरंदेश्वरी ने भी कांग्रेस को अलविदा कह भाजपा का दामन थाम लिया है. ऐसे में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के नेता कैसे इस दौड़ में पीछे रह सकते थे. दोनों प्रदेशों के आधा दर्जन नेताओं ने इस चुनाव के पहले अपना दल बदल लिया.

आम धारणा है कि नेता टिकट ना मिलने की नाराजगी में दल बदल लेते हैं. लेकिन कांग्रेस के एक नेता डॉ भागीरथ प्रसाद ने टिकट मिलने के बाद अपनी पार्टी को हाथ झटक कर भाजपा से गठबंधधन कर लिया. मध्य प्रदेश में भिंड से लोकसभा चुनाव का टिकट मिलने की घोषणा होने के बाद भी भागीरथ प्रसाद ने भाजपा में प्रवेश ले लिया. 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने भागीरथ प्रसाद को टिकट दिया था. लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.

मध्य प्रदेश के खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री विजय शाह के बड़े भाई और “मकड़ाई” रियासत के कुंवर अजय शाह कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. शाह ने इस हफ्ते ही प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) अध्यक्ष अरुण यादव की उपस्थिति में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की है. प्रदेश में शाह के कांग्रेस प्रवेश को हाल ही में भाजपा में शामिल हुए भागीरथ प्रसाद की प्रतिक्रिया के तौर पर देखा जा रहा है. ध्यान रहे कि शाह का परिवार वर्षों से जनसंघ और फिर भाजपा से जुड़ा रहा है. उनके भाई विजय शाह तो कैबिनेट मंत्री हैं ही, उनकी भाभी भावना शाह खंडवा से महापौर हैं. वहीं उनके दूसरे भाई संजय शाह टिमरनी (हरदा) से भाजपा विधायक हैं.

मध्य प्रदेश के शिवपुरी से भाजपा नेता गणेश गौतम ने अपनी पुरानी पार्टी कांग्रेस का दामन थाम लिया है. गौतम 2007 में कांग्रेस पार्टी को छोडकर भाजपा में शामिल हो गए थे. गौतम ने वर्ष 2008 के चुनाव के ठीक पहले उमा भारती की भारतीय जनशक्ति पार्टी की सदस्यता ले ली थी. उमा भारती की भाजपा में वापसी के बाद वे भाजपा में शामिल हो गए थे. गौतम कांग्रेस की टिकट पर दो बार विधायक रहे हैं.

इसके पहले एक पॉलीटिकल ड्रामा के पटाक्षेप के रूप में कांग्रेस नेता चौधरी राकेश सिंह ने भाजपा ज्वाइन कर ली थी. यह विधानसभा चुनाव के पहले की बात है. जिस वक्त चौधरी भाजपा में शामिल हुए, वे कांग्रेस की तरफ से विधानसभा में उपनेता की जिम्मेदारी निभा रहे थे.

भाजपा नेता राकेश शुक्ला ने भी मेहगांव सीट से टिकट ना मिलने पर नाराज होकर विधानसभा चुनाव के दौरान ही लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी का साथ पकड़ लिया था. वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया की रिश्तेदार कलावती भूरिया ने कांग्रेस से मुंह फेरकर झाबुआ विधानसभा सीट से निर्दलीय ताल ठोंक दी थी.

मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता अभय दुबे कहते हैं, ‘दल बदलने वाले नेता राष्ट्र निर्माण के भाव से कभी किसी पार्टी से नहीं जुड़ते. उनके लिए आदर्श मायने नहीं रखते बल्कि वे निजी हितों को सर्वोपरि रखने वाले लोग होते हैं. यही कारण है कि किसी पार्टी को बदलने में उन्हें कोई हिचकिचाहट नहीं होती.’

वहीं मध्य प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता हितेश बाजपेयी मानते हैं, ‘यदि विचारधारा से प्रेरित होकर कोई व्यक्ति दल बदलता है तो इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए, लेकिन टिकट या दूसरे प्रलोभन में विचारधारा से समझौता करता है तो ये ठीक नहीं है.’

छत्तीसगढ़ में 32 साल तक भाजपा में रहने वाली करुणा शुक्ला ने लोकसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली है. वे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की भतीजी तो हैं ही, साथ ही भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष और जांजगीर लोकसभा क्षेत्र से सांसद भी रह चुकी हैं. फिलहाल करुणा शुक्ला कांग्रेस की टिकट पर बिलासपुर से लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं.

इस बारे करुणा शुक्ला कहती हैं, ‘भाजपा ने उनके स्वाभिमान की रक्षा नहीं की. उन्हें अत्यधिक उपेक्षित किया गया. इस कारण उन्होंने बीजेपी को अलविदा कहकर कांग्रेस का साथ ले लिया है.’

विधानसभा चुनाव के पहले बहुजन समाज पार्टी (बसपा) छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए पूर्व विधायक सौरभ सिंह अब लोकसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस को भी गुडबाय कह दिया है. सौरभ सिंह कांग्रेस छोड़कर बसपा में शामिल हुए थे. वे बसपा की टिकट पर जीतकर अकलतरा विधानसभा क्षेत्र से विधायक भी रहे.

कांग्रेस के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के अध्यक्ष मोतीलाल साहू भी पार्टी को अलविदा कह चुके हैं. महासमुंद से टिकट ना मिलने पर नाराज होकर उन्होंने अपना इस्तीफा प्रदेश कांग्रेस कमेटी को सौंप दिया है.

नेता के दल बदलने की इस होड़ में छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के प्रदेश अध्यक्ष दीपक साहू भी अपने 120 पदाधिकारियों समेत भाजपा में शामिल हो गए हैं. दीपक साहू स्वाभिमान मंच के संस्थापक व छत्तीसग़़ढ भाजपा के पहले प्रदेशाध्यक्ष दिंवगत ताराचंद साहू के पुत्र हैं. भाजपा सांसद रहे ताराचंद साहू ने पार्टी से नाराज होकर स्वाभिमान मंच की स्थापना की थी. भाजपा में शामिल होने के बाद दीपक साहू का कहना है, ‘ यह मेरी घर वापसी है.’

छत्तीसगढ़ में दल बदलने में जिस नेता की छवि सबसे ज्यादा खराब हुई, वे विद्याचरण शुक्ल थे. शुक्ल ने वर्षों कांग्रेस में रहने के बाद भाजपा की टिकट से वर्ष 2004 में महासमुंद सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा था. 1957 में कांग्रेस की टिकट से जीतकर शुक्ल भारतीय संसद में सबसे युवा सांसद बने. आपातकाल के वक्त सूचना प्रसारण मंत्री रहते हुए इंदिरा गांधी के प्रति पूरी वफादारी भी निभाई. लेकिन समय के साथ कभी जनमोर्चा का हिस्सा रहे तो कभी जनता दल (एस) का. कभी एनसीपी का हाथ थामा तो कभी भाजपा का. बीच-बीच में वापस कांग्रेस में आते-जाते रहे. मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने भी भाजपा छोड़कर भारतीय जनशक्ति पार्टी बना ली थी. लेकिन उनकी भी घर वापसी हो गई. ऐसे कई नेता रहे हैं, जिन्होंने पूरी दुनिया का चक्कर लगाने के बाद घर की राह पकड़ ली. वैसे कहा तो यह भी जाता है कि जहाज का पंछी लौटकर जहाज पर ही आता है. यही हाल इन नेताओं का भी है. मौकापरस्ती के चलते वे भले ही कितने ही दल बदल लें या बना लें लेकिन सबसे ज्यादा संभावना उनके अपनी ही पार्टी में लौटने की होती है.