पिछले साल के आखिरी दिनों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को रूस के दौरे पर जाना था. वहां उन्हें भारत और रूस की प्रमुख कंपनियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लेना था. इस कार्यक्रम का आयोजन इंडो-रशिया सीईओज़ काउंसिल के बैनर तले होना था. भारत की तरफ से इस संगठन की अध्यक्षता रिलायंस इंडस्ट्रीज के कर्ताधर्ता मुकेश अंबानी करते हैं. लेकिन आखिरी वक्त पर मुकेश अंबानी ने प्रधानमंत्री के साथ रूस के दौरे पर जाने से मना कर दिया. हालांकि, प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों ने मुकेश अंबानी को मनमोहन सिंह के साथ रूस चलने के लिए मनाने की काफी कोशिश की, लेकिन बड़े अंबानी समय की कमी की बात कहकर रूस दौरे पर नहीं गए.
इस घटना से संकेत मिल जाता है कि प्रधानमंत्री की संस्था आज किस कदर कमजोर हो चुकी है. दरअसल, मनमोहन सिंह पर प्रधानमंत्री की संस्था के अवमूल्यन के आरोप तब से ही लग रहे हैं जब से उन्होंने यह पद संभाला है. तब से ही लोग मानते रहे हैं कि वे सिर्फ एक कठपुतली प्रधानमंत्री हैं और कई फैसले सोनिया गांधी के दबाव में करते हैं. मनमोहन सिंह पार्टी के आदमी तो कभी रहे नहीं हैं. इसलिए संगठन में उनको महत्व न मिलना अस्वाभाविक नहीं लगता. लेकिन किसी ऐसे व्यक्ति को देश का सबसे बड़ा राजनीतिक पद अगर कोई पार्टी देती है तो साफ है कि वह प्रधानमंत्री नाम की संस्था की मर्यादा को लेकर गंभीर नहीं है.
कांग्रेस ने सरकार के ऊपर सोनिया गांधी की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) बना रखी है. इस वजह से सरकार जो भी अच्छा कर रही है उसका श्रेय एनएसी यानी सोनिया गांधी को मिल रहा है और उसकी हर गलती का ठीकरा मनमोहन सिंह के सर फूट रहा है. संप्रग सरकार की कामयाबी के तौर पर रोजगार गारंटी योजना, सूचना के अधिकार और शिक्षा के अधिकार के तौर पर गिना जाता है.
लेकिन इसका श्रेय मनमोहन सिंह को न देकर एनएसी को दिया जाता है. मनमोहन सिंह की इस स्थिति पर पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा कहते हैं, ‘ताकत सोनिया गांधी के पास है लेकिन उनके पास कोई जिम्मेदारी नहीं है. मनमोहन सिंह के पास जिम्मेदारी है लेकिन ताकत नहीं है. मनमोहन सिंह के पास न नैतिक ताकत है, न राजनीतिक ताकत और न सरकारी ताकत. इस वजह से जिस नेतृत्व की आवश्यकता इस देश को अभी है, वह नहीं मिल पा रहा है.’
हालांकि, प्रधानमंत्री का बचाव करते हुए मनमोहन सिंह के पहले मंत्रिमंडल में उनके सहयोगी रहे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर कहते हैं, अगर मनमोहन सिंह राय-मशविरा नहीं करें तो उन पर यह इल्जाम लगेगा कि वे विचार-विमर्श नहीं करते, ‘अगर वे विभिन्न मामलों को लेकर राय-सलाह करते हैं तो उन पर विपक्ष के लोग यह आरोप लगाते हैं कि ये तो बलहीन प्रधानमंत्री हैं. तो आखिर मनमोहन सिंह करें क्या?’