पंजाबी के मशहूर उपन्यासकार नानक सिंह जलियांवाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे। उस समय उनकी उम्र 22 साल की थी। 22 साल के इस युवक ने अपने दोस्त को गोलियों से मरते देखा। बैसाखी का यह दिन मातम में बदल गया। लोग अपने नेताओं सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलु की रिहाई की मांग को लेकर वहां इक_ा हुए थे। वहां से बच आने के बाद नानक सिंह ने 900 पंक्तियों की एक कविता लिखी जिसका उनवान था -”खूनी वसाखी’’। पंजाबी भाषा में लिखी गई यह कविता मई 1920 में प्रकाश्ति हुई। पर प्रकाशित होते ही अंग्रेज़ सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया।
एक सौ साल के बाद ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरीजा में ने इस घटना को अंग्रेज़ी हकूमत के इतिहास का काला धब्बा बताया। नानक सिंह के पौत्र नवदीप सूरी जो कि सयुंक्त अरब अमीरात में भारत के राजदूत रहे ने अपने दादा की इस कविता का अनुवाद अंग्रेज़ी में किया। सूरी मिस्र व आस्ट्रेलिया में भी देश के राजनयिक रहे। उनका जन्म अमृतसर में उस स्थान पर हुआ जो जलियांवाला बाग से सटा हुआ था। वहां सूरी ने अपने बचपन के आठ साल गुज़ारे। सूरी का कहना है कि जब बाग में गोली चली तो मेरे दादा जी वहां मौजूद थे। वे वहां दोस्तों के साथ रॉलेट एक्ट के खिलाफ आयोजित रैली में भाग लेने गए थे। हमें पता चला कि जैसे ही गोलियां चलीं तो उस में मची भगदड़ में मेरे दादा जी ज़मीन पर गिर गए। फिर उनके ऊपर लाशों का ढेर लग गया। उनके दोनों दोस्त गोलीबारी में मारे गए। कुछ घंटे बाद जब उन्हें होश आया तो वे लाशों के ढेर से निकले। पर इस घटना का उन पर इतना असर हुआ कि वे कभी भी उस विषय पर बात नहीं करना चाहते थे।
बाद में नानक सिंह पंजाबी साहित्य में एक बड़ा नाम बन गए। उन्हें 1962 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। ”खूनी वसाखी’’ में उन्होंने उस समय का पूरा इतिहास उकेर दिया। यह भी लिखा कि किस तरह जनरल डायर ने निहत्थे लोगों पर गोलियां चलाई।
सूरी जब इस नरसंहार पर अनुसंधान कर रहे थे और किताब का अनुवाद कर रहे थे तो वे बीबीसी के पत्रकार जस्टिन रॉलेट के संपर्क में आए। रॉलेट के दादा सर सिडनी रॉलेट ने ही ”रॉलेट एक्ट’’ तैयार किया था। इसी कानून के खिलाफ नानक सिंह और दूसरे लोग इक_ा हुए थे। इस कानून का अर्थ था – ‘न दलील, न वकील, न अपील।’ 2015 से 2018 तक दिल्ली में बीबीसी के दक्षिण एशिया संवाददाता रॉलेट ने अपनी किताब में जलियांवाला बाग की घटना का बड़ा भावुक चित्रण किया है। उसने लिखा-”मैं जब जलियांवाला बाग गया तो मैं एक कड़ी प्रतिक्रिया देना चाहता था। मैं रो तो नहीं रहा था पर मेरे पास शर्मिदा होने के कई और भी कारण थे। यहां जो लोग इक_ा हुए थे वे उस दमनकारी कानून का विरोध कर रहे थे जो मेरे दादा ने तैयार किया था। रॉलेट ने इसे एक कठोर कानून की संज्ञा दी। उसने कहा कि जब उसने दिल्ली में बीबीसी के संवाददाता के रूप में काम शुरू किया तो इस कानून के परिणाम उसके दिमाग में थे। उसे लगता था कि उसके दादा ने जो किया उसके लिए भारत के लोग उससे खफ़ा होंगे। पर उसका यह डर निर्मूल साबित हुआ । कभी-कभी कुछ लोग उसे इस बात के लिए छेड़ते ज़रूर थे, पर कोई गुस्सा नहीं था।
नानक सिंह जिनकी कविता पर रोक लगा कर उसे खत्म कर दिया था, ने अपने जीवन में कभी उस कविता का जि़क्र नहीं किया। 1971 में उनके देहांत के बाद 1980 में यह कविता सामने आई। नानक सिंह ने लिखा था-”हमें अपनी यादों में बसाए रखना।’’