कौन
पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थी
कब
19 फरवरी से 22 फरवरी 2014 तक
कहां
जंतर मंतर (नई दिल्ली)
क्यों
धरना देखने-समझने के बाद हम चलने को होते हैं कि रवींद्र सिंह हमारे पास आते हैं. शायद उन्हें हमसे तसल्ली देने वाले किसी जवाब की उम्मीद है. वे कहते हैं, ‘क्या साहब? हमारा कुछ होगा? पांच साल तो हो गए यहां-वहां भटकते.’
रवींद्र सिंह पाकिस्तान के सिंध से भारत आए हैं. वे एक लाख से भी ज्यादा उन पाकिस्तानी हिंदुओं में से हैं जिनका बड़ा हिस्सा राजस्थान के जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर और जोधपुर के अलावा मध्यप्रदेश व गुजरात के सीमांत इलाकों में रहता है. पाकिस्तान से आए हुए ये हिंदू शरणार्थी अपने लिए भारत की नागरिकता चाहते हैं. आज से नहीं, कई साल से. राजस्थान के जोधपुर में रहने वाले इन 500 शरणार्थी हिंदुओं के इस दल की भी मांग यही है. सामाजिक संस्था सीमांत लोक संगठन के अध्यक्ष हिंदू सिंह सोढ़ा इस जत्थे का नेतृत्व कर रहे हैं. सोढ़ा कहते हैं, ‘देखिए, ये लोग खुशी से अपने देश को छोड़ के नहीं आ रहे. वहां उन्हें जीने और रहने में परेशानी आ रही है तभी ये लोग यहां आ रहे हैं. अगर हम भी इन्हें यहां नहीं रखेंगे, इन्हें यहां की नागरिकता नहीं देंगे तो ये लोग जाएंगे कहां?’ वे आगे कहते हैं, ‘जो भी पाकिस्तानी हिंदू भारत में आ रहे हैं उनमे से अधिकतर तीर्थयात्रा के नाम पर आते हैं क्योंकि इसके लिए वीजा आसानी से मिल जाता है. जब वे यहां आ जाते हैं तो यहां से वापस नहीं जाना चाहते और ऐसी हालत में वे यहां नरक जैसी जिंदगी जीने को मजबूर हो जाते हैं.’ पाकिस्तान से आए इन हिंदुओं की दशा बहुत खराब है. किसी पहचान के बगैर इन्हें कोई काम नहीं मिलता. कोई परेशान करे तो ये कहीं गुहार भी नहीं लगा सकते.
भारत ने 1951 की अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी संधि और 1967 में उसके प्रोटोकॉल पर दस्तखत नहीं किए हैं, न ही यहां राष्ट्रीय स्तर का कोई कानून शरणार्थियों के संबंध में मौजूद है. नागरिकता पाने के लिए न्यूनतम सात साल भारत प्रवास का नियम है लेकिन इतने लंबे समय तक टिकने के लिए इन शरणार्थियों के पास कोई संसाधन नहीं.
लोढ़ा कहते हैं, ‘हम कुछ भी ज्यादा नहीं चाह रहे. ये लोग जो पाकिस्तान में प्रताड़ित होते रहे हैं उन्हें यहां थोड़ी राहत दी जाए. कम से कम इन्हें यहां बसने का तो अधिकार दिया जाए. इन्हें हिंदू-मुस्लिम से अलग करके देखें तो ये भी इंसान हैं और इन्हें भी बाकियों की तरह अपनी जिंदगी जीने का अधिकार है.’
पिछले साल दिसंबर में राज्यसभा में नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक 2013 पारित किया गया था. इसे संसद के इस सत्र में लोकसभा में पारित किया जाना था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सत्र के आखिरी के दिन तेलंगाना विवाद की भेंट चढ़ गए और धरने पर बैठे लोग निराशा के साथ वापिस लौट गए.
हम लोढ़ा से पूछते हैं कि अब क्या करेंगे? क्या लड़ाई आगे भी जारी रहेगी? वे कहते हैं, ‘इनके पास इसके सिवाय कोई रास्ता ही नहीं है. ये लोग पाकिस्तान वापिस जाना नहीं चाहते. यहीं रहना चाहते हैं. अगर इन्हें यहां रहना है तो नागरिकता जरूरी है. बगैर नागरिकता के ये लोग यहां कुछ भी नहीं कर सकते.’