हाल ही में उत्तर प्रदेश में मसालों में गधे की लीद, भूसा और केमिकल मिलाने का मामला उजागर होने से मिलावटखोरों की पोल एक बार फिर खुल गयी है। हालाँकि इस मामले में हिन्दू युवा वाहिनी के एक नेता, जिसकी मिलावटी मसालों की फैक्ट्री थी; को गिरफ्तार कर लिया गया है और फैक्ट्री सील कर दी गयी है। सवाल यह है कि क्या इस तरह एकाध मिलावटखोर के पकड़े जाने से देश में मिलावट का खेल खत्म हो सकेगा? इससे पहले खबरें आयी थीं कि पतंजलि के शहद में 80 फीसदी चीनी मिली हुई है। ता•ज़ुब की बात यह है कि बड़े मिलावटखोरों पर कोई कार्रवाई नहीं होती। आज विभिन्न कम्पनियों में तैयार होने वाला शायद ही ऐसा कोई खाद्य पदार्थ हमारे देश में हो, जिसमें मिलावट न हो। कम-से-कम आम लोगों को परोसे जाने वाले कम्पनी के खाद्य उत्पादों के बारे में तो यह विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि उनकी गुणवत्ता और स्वास्थ्य की दृष्टि से कोई गारंटी नहीं।
इस मिलावट की वजह से आज तकरीबन हर आदमी किसी-न-किसी बीमारी से पीडि़त है। आज अगर देश में बिना मिलावट के उत्पाद बनते भी हैं, तो वो सिर्फ एक खास वर्ग के लिए ही बनते हैं। ये उत्पाद महँगे होने और बड़े स्टोर्स पर मिलने के कारण आम आदमी की पहुँच से काफी दूर होते हैं।
मुनाफाखोरी और सस्ते ब्रांड को बाज़ार में उतारने की होड़ में मिलावट का यह खेल पूरे देश में बेधड़क चल रहा है। आज सब्ज़ियों से लेकर, आटा, चावल, दाल, दूध, मावा, घी, तेल, मसाले, फल, पानी, बच्चों के खाने की चीज़ें, दवा और मादक पदार्थों से लेकर अन्य तकरीबन सभी चीज़ों में मिलावट की जा रही है। मिलावटी कम्पनियों के उत्पाद गुणवत्ता के पैमाने पर खरे नहीं उतर रहे हैं। सन् 2015 में जब मैगी जैसी मिलावटी कम्पनी का पर्दाफाश हुआ था, तब देशवासियों को एक उम्मीद जगी थी कि नयी सरकार मिलावटखोरों की अच्छी तरह खबर लेगी और देश के लोगों को शुद्ध खाद्यान्न मिलेंगे। लेकिन कुछ दिन बाद न जाने ऐसा क्या हुआ कि वही मैगी अब धड़ल्ले से बिक रही है और दूसरे उत्पादों की जाँच तक की नंबर नहीं आया। अक्सर देखा गया है कि जब-जब कोई खाद्य पदार्थ गुणवत्ता के अनुरूप नहीं पाया गया है, तो भी उस पर हमेशा के लिए बैन लगाने की वजाय थोड़े हंगामे के बाद उसे बाज़ार में बिकने दिया जाता है। लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वालों को किस वजह से अधिकारी छोड़ देते हैं? यह बात समझना कोई मुश्किल नहीं। हद तो यह है कि मिलावटखोर खाद्य पदार्थों में ऐसे-ऐसे केमिकल तक मिला देते हैं, जो जानलेवा होते हैं। ऐसे मिलावटी खाद्य पदार्थों का सेवन करने के चलते लोग बीमार तो पड़ते ही पड़ते हैं, कई बार जान से हाथ धो बैठते हैं।
मिलावट रोकने के लिए कानून और सज़ा का प्रावधान
खाद्य पदार्थों में मिलावट रोकने और उच्च स्तरीय गुणवत्ता बनाये रखने के लिए हमारे देश में कानून है, जिसे खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम-2006 के नाम से जाना जाता है। इस कानून के तहत मिलावटखोरों को सज़ा और ज़ुर्माना, दोनों का ही प्रावधान है। लेकिन इसके बावजूद मिलावटखोरी का धन्धा दिन-रात फल-फूल रहा है। त्योहारों के समय में तो मिलावट का धन्धा और भी ज़ोरों पर चलता है। इस मामले में एक हलवाई ने डरते-डरते बताया कि आप हमारे बारे में किसी को न बताएँ तो सच्ची बात बता दें। आश्वासन देने पर उसने कहा कि अगर देश में मिलावट नहीं होगी, तो चीज़ों की पूर्ति नहीं पड़ेगी। शुद्ध मावा बनाने पर उसे कम-से-कम 600 रुपये किलो बेचना पड़ेगा, जबकि उसे मावे से बनी बर्फी 200 से 250 रुपये किलो बेचनी पड़ती है। अगर वह मिलावट नहीं करेगा, तो घर चलाना तो दूर, उसका घर भी बिक जाएगा। केमिकल मिलाने की बात पर उसने कहा कि नहीं, हम केमिकल मिलाकर किसी की ज़िन्दगी से खिलवाड़ नहीं करते। मैदा आदि मिलाते हैं।
2018-19 में सार्वजनिक प्रयोगशाला में 94,288 विश्लेषित नमूनों की जाँच करने पर पाया गया कि उनमें से 26,077 नमूने गुणवत्ता में खरे नहीं हैं, उनमें मिलावट है। आश्चर्य इस बात का है कि इनमें से कई तो नकली पाये गये।
आपको हैरत होगी कि 2018-19 में खाद्य पदार्थों में मिलावट करने वालों से 32 करोड़ 75 लाख 73 हज़ार 587 रुपये का ज़ुर्माना वसूला गया था। एफएसएसएआई की जानकारी कहती है कि सार्वजनिक प्रयोगशाला परीक्षण रिपोर्ट (2018-19) के अनुसार, सबसे ज़्यादा मिलावट के नमूने 22,583 में से 11,817 उत्तर प्रदेश में पाये गये। इसके अलावा पंजाब में 11,920 में से 3,403, तमिलनाडु में 5,730 में से 2,601, मध्य प्रदेश 7,063 में से 1,352, महाराष्ट्र में 4,742 में से 1,089, गुजरात में 9,884 मे से 822, केरल में 4,378 में से 781, जम्मू-कश्मीर में 3,600 में से 701, आंध्र प्रदेश में 4,269 में से 608 और हरियाणा में 2,929 में से 569 नमूने मिलावटी पाये गये। इसी तरह नेशनल मिल्क सेफ्टी एंड क्वालिटी सर्वे 2018 के अनुसार, दूध के 9.9 फीसदी नमूने असुरक्षित पाये गये। एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में मिलावटी चीज़ों के सेवन की वजह से हर साल तकरीबन सवा चार लाख लोगों की मौत हो जाती है, जबकि पूरी दुनिया में तकरीबन 60 करोड़ लोग हर साल मिलावटी खाद्य पदार्थों के सेवन से बीमार पड़ते हैं। हमारे देश में खाद्य पदार्थों की शुद्धता और गुणवत्ता का ध्यान रखने और उनमें मिलावट को रोकने की ज़िम्मेदारी भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) यानी फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया की है। लेकिन जिस धड़ल्ले से बाज़ारों में मिलावटी खाद्य पदार्थों की भरमार है, उससे लगता है कि एफएसएसएआई के अधिकारी, कर्मचारी अपनी भूमिका निभाने में कहीं-न-कहीं कमज़ोर हैं। ताज़ुब की बात यह है कि एफएसएसएआई के अलावा देश में खाद्य सामग्रियों की जाँच के लिए अच्छी या बहुत ईमानदार प्रयोगशालाएँ नहीं हैं, जिसके चलते देश भर में मिलावट का खेल खूब धड़ल्ले से चलता है।
मिलावटी खाद्य पदार्थों की बाज़ारों में भरमार
आज ऐसे खाद्य पदार्थों से बाज़ार पटे पड़े हैं, जो मिलावटी हैं। इन बाज़ारों में अगर ईमानदारी से छापेमारी की जाए, तो अनेक मिलावटखोरों की पोल खुल जाए। लेकिन ऐसा होना सम्भव नहीं लगता, क्योंकि ये मिलावटखोर बिना शासन-प्रशासन की मिलीभगत के कर ही नहीं सकते। कितनी ही बीमारियाँ मिलावटी खाद्यान्न के चलते फैल रही हैं। डॉ. मनीष कहते हैं कि अगर इंसान को शुद्ध खाना मिले, तो न केवल उसकी उम्र में इज़ाफा होगा, बल्कि वह जल्दी बीमार नहीं पड़ेगा। डॉ. मनीष बीमारी के तीन ही कारण मानते हैं, मिलावटी खानपान, प्रदूषण और लोगों की गलत आदतें। गलत आदतों के बारे में पूछने पर डॉ. मनीष कहते हैं कि नशाखोरी, आलस, असमय सोना, देर से उठना, सुबह की जगह दोपहर को खाना, देर रात को खाना खाना, मोबाइल का अधिक इस्तेमाल, व्यायाम न करना, नकारात्मक सोचना, गुस्सा करना, पानी कम पीना आदि इंसान की बुरी आदतें ही तो हैं; जो आजकल करीब 90 फीसदी लोगों में पायी जाती हैं।
सब्जियाँ भी नहीं शुद्ध
आजकल सब्ज़ियाँ भी शुद्ध नहीं मिलतीं। पहले के समय में हर सब्ज़ी इतनी शुद्ध होती थी कि उसके बनने पर खुशबू आती थी; लेकिन अब सब्ज़ियों से खुशबू और स्वाद दोनों गायब हो चले हैं। आजकल कीटनाशक दवाओं के इस्तेमाल से सब्ज़ियों को बेधड़क बीमारी की जड़ बनाया जा रहा है। फलों में भी अब दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। कई तरह के फलों को प्राकृतिक रंग देने के लिए तो केमिकल वाले रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। सब्ज़ियों को बेमौसम उगाने के लिए भी लोग केमिकल वाली दवाओं का उपयोग करते हैं, जिनके इस्तेमाल से बीमारियाँ बढ़ रही हैं।
अधिकतर लोगों को नहीं मिलता अच्छा खाना
यह विडंबना ही है कि देश के अधिकतर लोग आज भी पौष्टिक आहार से वंचित हैं। भारत में कितने ही ऐसे लोग हैं, जिन्हें अच्छा खाना नहीं मिलता और एक बड़ी संख्या उन लोगों की है, जिन्हें कभी भी भरपेट खाना नहीं मिलता। कह सकते हैं कि देश में पोषण की स्थिति बहुत गम्भीर है। उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल और झारखण्ड जैसे राज्यों में 40 फीसदी से भी ज़्यादा बच्चे कुपोषित हैं। इन दिनों सरकारी स्कूलों के बन्द होने से उनमें बँटने वाला मिड-डे मील भी अब बच्चों को नहीं मिल पा रहा है, जिससे गरीब परिवारों के बच्चों में कुपोषण के आँकड़े बढऩे की आशंका है। इसके अलावा झारखण्ड में तो करीब 65 फीसदी से अधिक महिलाएँ एनेमिक हैं।
ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2020 में कहा गया है कि भारत में कुपोषण तेज़ी से बढ़ रहा है और इसके हिसाब से 2025 तक भारत अपने न्यूट्रिशन के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पायेगा।
रोकी जा सकती है मिलावट
अगर केंद्र और राज्य सरकारें चाहें, तो खाद्यान्नों में होने वाली मिलावटखोरी को रोक सकती हैं। इसके लिए सरकारों के साथ-साथ पुलिस, प्रशासनिक अधिकारियों और एफएसएसएआई के अधिकारियों और कर्मचारियों को ईमानदारी और सतर्कता से मिलावटखोरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के लिए कमर कसनी होगी। कोई देश तभी मज़बूत और विकसित हो सकता है, जब उसके सभी नागरिकों का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य अच्छा होगा और लोगों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य की पहली प्राथमिकता उसका खानपान है। इसलिए खाने-पीने की चीज़ों की शुद्धता पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है।
मिलावटी खानपान से होने वाली बीमारियाँ
मिलावटी खानपान से शरीर पर अनेक तरह के दुष्प्रभाव पडऩे के साथ-साथ आयु भी कम होती है। डॉ. मनीष कहते हैं कि मिलावटी भोजन लोगों में गम्भीर बीमारियाँ पैदा करता है। क्योंकि मिलावटी भोजन से लिवर, किडनी खराब होते हैं, जिससे हृदयाघात, पक्षाघात, पेट की बीमारियाँ, दिल की बीमारियाँ तो होती ही हैं, इसके साथ-साथ खून में भी अनेक संक्रमण फैलते हैं, जिससे कई रोग होते हैं। खून में संक्रमण से त्वचा से लेकर कैंसर तक के रोग होने का खतरा बढ़ जाता है। डॉ. मनीष के अनुसार, आज लगभग हर आदमी पेट का मरीज़ है, जिसका कारण दूषित, तेलीय और मिलावटी खानपान है।