बढ़ते भ्रष्टाचार पर कड़ी फटकार लगाते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सांकेतिक भाषा में कहा- ‘प्रशासनिक शुचिता का अर्थ है अधिकारियों की पारदर्शिता और उसकी सार्थकता तभी है जब लोग इस बात को महसूस करें।’ साफ सुथरा प्रशासन देने का वादा कर सत्ता में पहुँचे गहलोत का यह सोच स्वाभाविक थी। पुलिस अधीक्षकों की कांफ्रेस कॉन्फ्रेंस को सम्बोधित करते हुए गहलोत यह कहते हुए िफक्रमंद नज़र आये कि ‘पुलिस अपनों से ही पैसे ले रही है। जब मातहतों से ही पैसे लोगे, तो वे इसकी भरपाई जनता से ही करेंगे? उन्होंने परवशता जताई कि किसी को निलम्बित नहीं करना चाहते, लेकिन करना पड़ता है। गहलोत के उम्मीदों के इस तकाजे के पीछे अधिकारियों की भ्रष्ट्राचार में बढ़ती संलिप्तता थी। क्राइम ब्यूरो की रिपोर्ट सुलगती सचाइयों से रू-ब-रू कराती है कि सरकार चलाने वाली ब्यूरोक्रेसी यानी अफसरशाही में भ्रष्टाचार अब अपराध या शर्म का विषय नहीं रहा। बल्कि यह अफसरों के अधिकार का हथियार बन गया है। भ्रष्ट्राचार की विषबेल को सबसे •यादा फलने-फूलने का अवसर पिछली वसुंधरा सरकार में मिला। भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी अशोक सिंघवी इसकी अजीम मिसाल गिने जाएँगे। इस मिसाल को वसुंधरा सरकार की सबसे शर्मनाक घटना कहा जाएगा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री ने उन्हें बचाने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगा दिया। उनके मुस्तकबिल पर बेचैनी तब तक बनी रही, जब तक कि दागी होने के बावजूद सिंघवी को पदोन्नति नहीं बख्श दी गयी। इसके लिए होली की छुट्टियों के बावजूद सचिवालय खुलवाया गया और उनकी पदोन्नति के आदेश जारी करवा दिये गये।
प्रश्न है कि भष््रटाचार से मुक्ति का दावा कैसे ज़ोर पकड़ेगा जब ऐसे दागी अफसर बहाल किये जाएँगे। लेकिन कहावत है कि जिसे मैला चाटने की आदत पड़ गयी हो, वह तो •िान्दगी कपट कुण्ड में ही तलाशेगा। बेशक वसुंधरा सरकार ने सिंघवी को इंदिरा गाँधी पंचायती राज संस्थान के महानिदेशक के पद पर बिठा दिया; लेकिन क्या वो बाज़ आये? अब सिंघवी मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में फँस गये हैं और अदालत ने उनकी तलबी के वारंट जारी कर दिये हैं। इसकी वजह कानून-कायदों में अधूरेपन का वो काँटा भी है कि आरोपी अधिकारी को अपराध सिद्ध नहीं होने तक बर्खास्त नहीं किया जा सकता। इसी के चलते सिंघवी को बाहर का रास्ता नहीं दिखाया जा सका।
पिछले आठ महीनों में भ्रष्टाचार के आरोप में पकड़े गये अफसरों के नाम और ओहदे पर गौर करें, तो यह बात बुरी तरह चौंका सकती है कि अफसर जितना कद्दावर रहा, उसके भ्रष्ट कारनामे उससे कहीं •यादा कद्दावर निकले। इसे भी संयोग ही कहा जाएगा कि बुधवार 4 सितंबर को जिस दिन मुख्यमंत्री गहलोत भ्रष्टाचार पर फटकार लगा रहे थे? एन उसी वक्त भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की टीम खनन विभाग के संयुक्त सचिव बंसीधर कुमावत को चार लाख की रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार कर रही थी। कुमावत की जाँच में एसीबी को बेशुमार दौलत ही नहीं मिली। नाथद्वारा और जयपुर में सत्रह भूखण्डों के दस्तावेज़ भी मिले। सूत्रों का कहना है कि ज़मीनों से लगाव, तो इनकी भ्रष्ट मानसिकता की पारम्परिक पूँजी ही रहा। कुमावत जहाँ भी रहे, उन्होंने ज़मीन की जमकर खरीद-फरोख्त की। सबसे बड़ी बात तो यह रही कि मौका, माहौल और मददगार इनके मनमािफक ही रहे। भ्रष्टाचार के बारे में कहा जाता है कि एक बार का दुस्साहस हमेशा बड़े दुस्साहस को दावत देता है। करीब 47 महीने पहले खनन महकमे में 45 हज़ार करोड़ का ज़बरदस्त घोटाला हो चुका था। तब भी कुमावत बाल-बाल बचे थे। लेकिन इससे सबक लेने की बजाय उन्होंने अपने हौसले को ही हवा दी।
अचरज नहीं होना चाहिए कि ब्यूरोक्रेसी का जलाल मटियामेट करने के अफसाने महिला अधिकारियों ने भी कम नहीं गढ़े। अगर आदिवासी क्षेत्रीय विकास निगम की वित्तीय सलाहकार भारती राज के कारनामे टटोले जाएँ, तो इस पहेली का खुलासा हो जाएगा कि राज्य सरकार द्वारा आदिवासियों के विकास के लिए अकूत धन खर्च करने के बावजूद भी वे भूखे और बदहाल •िान्दगी क्यों बसर कर रहे हैं? पिछले दिनों एसीबी की कार्रवाई में भारती राज के घर से एक करोड़ की नकदी और विदेशी करेंसी बरामद की गयी। भारती राज के पास बेहिसाब दौलत मिली है। दिलचस्प बात है कि भारती राज पिछले 10 साल में 21 देशों की यात्रा भी कर चुकी है। भ्रष्टाचार से कमाये गये पैसों के बूते पर? उनके पास 500 वर्ग गज के भूखण्ड के अलावा 30 मं•िाला होटल के कागज़ात भी मिले हैं। बहरहाल भारती राज निलंबन पर चल रही है। अगर कानूनी लफ्ज़ों की बुनावट को उधेड़ें, तो भारती मुश्किल परिस्थितियों से परे है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि करप्ट ब्यूरोक्रेसी, जिस तरह नये कुबेरों के समाज की रचना कर रही है, उसके बाद सत्यनिष्ठा को रौंदने में क्या कसर रह जाएगी? सवाल है कि हर रोज़ भ्रष्टाचार के तालाब का कोई-न-कोई घडिय़ाल पकड़ा जाता है। लेकिन इससे कोई नसीहत क्यों नहीं लेता? अलबत्ता इस छापे में जिस तरह के खुलासे हुए उन्होंने पूरे सूबे को अचम्भित कर दिया।
सेवानिवृत्त अतिरिक्त मुख्य सचिव उमराव सालोदिया का भी करोड़ों की ज़मीन की धोखाधड़ी में बेनकाब होना चकित करता है। जयपुर के जंतर-मंतर को वैश्विक धरोहर में शामिल करने का यश लूट चुके सालोदिया अपने सेवाकाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के सर्वाधिक भरोसेमंद अफसरों की पाँत में गिने जाते थे। इन्होंने स्वेच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी। चर्चा यह भी चली थी कि सालोदिया राजनीति के क्षेत्र में तकदीर आजमाएँगे। लेकिन सालोदिया सुॢखयों में आये, तो ज़मीनों की भारी धोखाधड़ी के मामलों को लेकर? भ्रष्टाचार के खेल के पीछे पैसों की उगाही ही नहीं, स्त्री किलोल के धत्कर्म भी छिपे हैं। दूर तक सनसनी फैलाने वाला यह सनसनीखेज मामला सचिवालय में गृह विभाग के अनुभाग अधिकारी राकेश कुमार मीणा के गिरेबान पर हाथ डालने पर उजागर हुआ। राकेश मीणा तबादले की उजरत में महिला कर्मचारियों से अस्मत माँगता था। मीणा के फोन को सर्विलांस पर रखने के बाद एसीबी को कई अश्लील संवाद सुनने को मिले। युवाओं को कुशल तकनीशियन बनाने के लिए सरकार की कौशल विकास योजना तो गड़बडिय़ों से भरी पड़ी है। एक औचक निरीक्षण में योजना कागज़ों में ही चलती पायी गयी? सवाल है कि अफसरों ने किस तरह करोड़ों रुपये अपनी जेबों में ठूँस लिये। जाँच में न तो नियोक्ता मिला और न ही प्रशिक्षु? सवाल है फिर किसको मिली नौकरी?
बड़ी सम्भावना तो भारी-भरकम छात्रवृत्ति घोटाला खुलने की है। िफलहाल तो निगरानी दस्ता इनकी कुंडली खंगालने में जुटा है। सरकार अगर कुटिल ब्यूरोक्रेट्स पर खास निगरानी रखे, तो शायद कन्धों पर बैठे भ्रष्टाचार के बेताल को भगाया जा सकता है। लेकिन पारदर्शिता का बसंत बड़ी मुश्किल से आता है।
ट्रांसपोर्ट महकमा कितना बेखौफ?
कहावत है कि झूठ, झाँसा और झमेला हमेशा आगे चलते हैं। परिवहन महकमे के अफसर और मातहत इन तीनों तिलंगों को हमेशा साथ लेकर चलते हैं। हर मौके पर भ्रष्टाचार की मलाई चाटने वाले इन अफसरों को पकडऩा सबसे असम्भव ही कहा जाता है। अलबत्ता कोई इत्तेफाक ही हो जाए, तो बात अलग है। यह इत्तेफाक गुरुवार 29 अगस्त को कोटा के बल्लोप डाबी ङ्क्षरग रोड, पर तब हुआ जब महकमे का दस्ता लाठियाँ मार कर ट्रक चालकों से वसूली में जुटे हुए थे। जिस समय इंस्पेक्टर चंद्रशेखर शर्मा वसूली की अपनी दुस्साहसी ड्यूटी में जुटा हुआ था। खाद्य मंत्री रमेश मीणा का उधर से गुज़रना हुआ। लेकिन ट्रकों की लम्बी कतार के कारण मंत्री जी को अपना कािफला वहीं रोक देना पड़ा। मंत्री जी जब लम्बी प्रतीक्षा से ऊब गये, तो माजरा जानने के लिए उन्होंने ट्रक वालों से पूछताछ की। ट्रक चालकों का कथन चौंकाने वाला था- ‘साब! हमें रोककर ट्रांसपोर्ट महकमे वाले जबरन वसूली कर रहे हैं? हतप्रभ मंत्रीजी आगे बढक़र नाके पर पहुँचे, तो इंस्पेक्टर एक हाथ में नोटों की गड्डी थामे हुए था, तो दूसरे हाथों में ट्रक चालक का गिरेबान। लेकिन जैसे ही उसे लगा कि वो मंत्रीजी से रू-ब-रू है? फौरन नोटों की गड्डी झाडिय़ों में फेंकता हुआ मंत्रीजी के पाँव पकडऩे को लपका।’ लेकिन मंत्रीजी ने कहाँ उसे बख्शना था? किन्तु यह तो हर रोज़ का िकस्सा है।