अखबारों के पन्नों पर परोसी जा रही ड्रग्स पेडलिंग की खबरें बेशक किसी को एकाएक नहीं चौंकातीं, लेकिन इस गोरखधन्धे की जड़ें खँगालने वाली सरकारी एजेंसियों का कहना है कि राजस्थान के जयपुर, जोधपुर और कोटा जैसे शहरों में ड्रग्स की सप्लाई हो रही है। तीनों शहर अवैध तरीके से ड्रग्स सप्लाई का नया ठिकाना बनकर उभरे हैं। एक्सटेंसी पर मस्त ये शहर हुक्काबारों में चरस के नशे में मचलते, झूमते हैं। इन शहरों में नशेडिय़ों की एक नयी जमात भी है, जिसमें शिक्षित और उच्च-मध्यम वर्ग के युवा शामिल हैं। ड्रग्स पुशर, पैडलर और यूजर के बीच के रिश्तों की हर कहानी एजुकेशन हब्स की बहुमंज़िला इमारतों, अपार्टमेंट्स और भीड़-भाड़ वाली सड़कों से गुज़रती हुई नौजवान ज़िन्दगियों का पीछा कर रही है।
नशे के अवैध कारोबार को बेपरदा करने वाली नारकोटिक्स विभाग की पुलिस पड़ताल में कहा गया है कि अपराध का यह बहुस्तरीय त्रिकोण राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी सबसे बड़ा खतरा है। अखबारी खबरों के एक विश्लेषण में कहा गया है कि राजस्थान बड़ी तेज़ी से नशे के अंतर्राष्ट्रीय कारोबार का ट्रांजिट प्वाइंट बन रहा है। इसका उद्गम अफगानिस्तान है और ड्रग्स पाकिस्तान के ज़रिये राजस्थान के सीमावर्ती इलाकों में पहुँच रही है। गत 16 फरवरी को एक विशेष ऑपरेशन के तहत डेढ़ किलो चरस के साथ अंकुश और उपेश ठागरिया पकड़े गये।
एसओजी के एडीजी अनिल पालीवाल ने बताया कि ये लोग राजस्थान के कई इलाकों में नशीले पदार्थ पहुँचा रहे थे। इसी 11 मार्च को कोटा पुलिस ने 11 किलो गाँजा पकड़ा है। इस धन्धे में रामसेवक मीणा और उसकी पत्नी ममता मीणा को गिरफ्तार किया गया है। एसपी गौरव यादव ने पुलिस टीम के साथ इन दोनों अपराधियों को पकड़ा था। उन्होंने बताया कि ये लोग विद्याॢथयों को निशाना बनाते हैं। उन्होंने बताया कि राजस्थान पुलिस प्रशासन पूरी सजगता से नशीले पदार्थों की तस्करी करने वालों की तलाश में लगा हुआ है। जयपुर पुलिस द्वारा पकड़ी गयी पाँच किलो गाँजे के साथ भी कमोबेश यही कहानी जुड़ी हुई है। अलबत्ता नशीले पदार्थों के साथ पकड़ा गया हर िकरदार एक नया खुलासा करता है। सिंथेटिक मादक पदार्थों और इंजेक्शन के सेवन से एचआईवी/एड्स जैसी बीमारियाँ हो रही हैं, जिससे समस्या नया रूप ले रही है।
अपराध की रक्तरंजित पटरियों पर दौड़ती कैंसर बन चुकी नशे की ट्रेन खौफ पैदा करती है, लेकिन इस पर ब्रेक लगाने वाला कोई नज़र नहीं आता। अपराध, सियासत और नशे के कारोबार की जुगलबंदी ने सहीराम सरीखे काले सोने के कुबेर ही पैदा नहीं किये, बल्कि अपराध के स्याह घरोंदे भी बना दिये हैं। नशे के धन्धे पर बेखौफ काबिज़ लेडी डॉन समता विश्नोई के हर रोज़ अपराध के नये-नये िकस्से सुनने में आते हैं। सूत्रों की मानें, तो उदयपुर सरीखा शान्त शहर भी ड्रग्स के कारोबार का बड़ा ठिकाना हो सकता है। लेकिन जब ड्रग्स का सबसे बड़ा जखीरा पकड़ा गया है, नारकोटिक्स विभाग हिलकर रह गया है। हैरत है कि राजस्थान पुलिस, खुफिया एजेसियाँ और ड्रग कंट्रोलर तक को नाकाम साबित करने वाले इस खुलासे की गूँज दिल्ली तक पहुँची। राजस्थान में ड्रग्स फैक्ट्री का होना, बाहरी अधिकारियों का आकर उसका पर्दाफाश करना और प्रदेश पुलिस के अंजान बने रहने से बड़ी शर्मिन्दगी राज्य सरकार के लिए क्या हो सकती थी?
नशे पर विलायती रंग
बदलते समय के साथ नशे पर भी अब ‘विलायती’ रंग चढऩे लगा है। नशे के आदी लोग, खासकर युवा अफीम, गाँजा, हेरोइन, कोकीन व चरस जैसे नशीले पदार्थों की बजाय कैटामाइन, मैंड्रेक्स, मार्फीन, एफिड्राइन, मेफेड्रोन और मैथाक्यूलिन जैसी नारकोटिस एवं साइकोट्रॉपिक दवाइयों के इस्तेमाल का चलन बढ़ रहा है। एक अनुमान के मुताबिक, इन दवाओं का 60 से 65 फीसदी इस्तेमाल नशे के रूप में किया जा रहा है। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, औषधि नियंत्रक संगठन समेत अन्य एजेंसियों द्वारा ज़ब्त ड्रग्स के आँकड़े नशे के बदलते ट्रेंड की गवाही दे रहे हैं। नारकोटिक्स ड्रग एंड साइकोट्रिपिक संस्टेंस (एनडीपीएस) एक्ट के तहत बिना लाइसेंस नशीली दवाओं का कारोबार करना भी गैर-जमानती अपराध है। जबकि डब्ल्यूएचओ की आवश्यक दवा सूची में शामिल इन दवाओं का इस्तेमाल नशीले पदार्थ के रूप में हो रहा है।
ब्रिटेन और यूरोप के अन्य देशों में नशे के लिए धड़ल्ले से इस्तेमाल की जा रही मेफेड्रोन दवा ने भारत में होने वाली रेव पार्टियों में भी जगह बना ली है। गत दिनों केंद्र सरकार ने इसे प्रतिबन्धित नशीली दवाओं की सूची में शामिल किया था। कुछ अर्सा पहले में माउंट आबू व अहमदाबाद की रेव पार्टियों में इस दवा की बड़ी खेप पकड़ी गयी थी।
बता दें कि साइकोट्रॉपिक ड्रग के रासायनिक तत्त्व सीधे स्नायु तंत्र को प्रभावित करते हैं। इसके सेवन से मस्तिष्क के कार्य करने की क्षमता पर असर पड़ता है। ये दवाएँ मानसिक रोगों, दर्द निवारक, बेहोशी आदि के लिए डॉक्टर की देखरेख में ही इस्तेमाल की जा सकती हैं। लेकिन आधुनिक जीवन शैली के दबाव और करियर के तनाव के चलते छात्र एवं युवा इन दवाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं। औषधि नियंत्रक डी.के. श्रृंगी का कहना है कि नारकोटिक्स व साइकोट्रिॉपिक ड्रग, नशीली दवाइयाँ नशे का पर्याय बन चुकी हैं। इसमें कुछ दवाइयाँ तो मेडिकल स्टोर पर आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं, बाकी अन्य माध्यमों से मुहैया हो जाती है।
चिट्टा बना काला नाग
सूत्रों का कहना है कि ड्रग्स माफिया राजस्थान के चप्पे-चप्पे पर फैले हुए हैं। इनके ज़्यादातर शिकार युवा हैं, जिन्हें चरस का चस्का लगाया जा रहा है। शहरों के बाग-बगीचे इस माफिया के अड्डे हैं। उधर, राजस्थान से जुड़े मालवा के अफीम उत्पादक इलाकों से अफीम और इससे बनने वाली हेरोइन या ब्राउन शुगर की ही तस्करी नहीं होती, चोरी-छिपे डोडा, चूरा (चिट्टा) का भी बड़ा धन्धा होता है। मध्य प्रदेश पुलिस के खुफिया महकमे की एक रिपोर्ट के अनुसार- पंजाब, हरियाणा, हिमाचल और राजस्थान जैसे राज्यों में डोडा, चूरा की खपत लगातार बढ़ रही है। ‘उड़ता पंजाब’ इस डोडा, चूरा तस्करी की ही देन है।
बहरहाल, ड्रग माफिया पर लगाम कसने की दिशा में पुलिस की मुस्तैदी को समझें, तो ऑपरेशन क्लीन स्वीप उम्मीद जगाता है। पुलिस आयुक्त आनंद श्रीवास्तव का कहना है कि ड्रग पैडलर्स और पुशर्स पर पुख्ता कार्रवाई के लिए अतिरिक्त पुलिस आयुक्त अशोक गुप्ता और पुलिस आयुक्त (अपराध) योगेश यादव की अगुवाई में गठित दस्ते ने तीन महिला तस्करों समेत छ: लोगों को गिरफ्तार करने में कामयाबी हासिल की। श्रीवास्तव कहते हैं कि,’अब तक ऑपरेशन क्लीन स्वीप के तहत 332 आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है। श्रीवास्तव का कहना है कि अब किसी भी रेस्तरां में हुक्काबार चलाना संज्ञेय अपराध माना जाएगा। ऑपरेशन क्लीन स्वीप इस नज़रिये से कामयाब कहा जा सकता है क्योंकि पुलिस ने कुछ बड़े घडिय़ालों को पकड़ा है। लेकिन सवाल यह है कि यह खेल अभी थमा क्यों नहीं है? सूत्रों की मानें, तो कॉल सेंटरों से भी नशे की गन्ध उड़ती उड़ती है। तो क्या पुलिस को इधर ध्यान नहीं देना चाहिए?
पंजाब की सीमा से सटे हुए राजस्थान के ज़िलों हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर, बीकानेर और चुरू में नशे का अवैध धन्धा खूूब फलफूल रहा है। पुलिस सूत्रों का कहना है कि इन ज़िलों के लोगों की पंजाब, हरियाणा में रिश्तेदारियाँ होने के कारण भी नशे का मकडज़ाल तेज़ी से फैला है। राजस्थान में डोडा, चूरा के इस्तेमाल से कैंसर के मरीज़ तेज़ी से बढ़ रहे हैं। इसका एक उदाहरण है- पंजाब से बीकानेर पहुँचने वाली अबोहर-जोधपुर ट्रेन, जिसमें बड़ी संख्या में कैंसर के मरीज़ यात्रा करते हैं; जो आचार्य तुलसी रीजनल कैंसर ट्रीटमेंट एंड रिसर्च सेंटर (आरसीसी) में इलाज कराने जाते हैं। इस ट्रेन से रोज़ाना बीकानेर आने वाले यात्रियों में कम-से-कम 100 यात्री तो चिट्टा के ही शिकार होते हैं।
लेडी डॉन का खौफ
डोडा, पोस्त की तस्करी को कुटीर उद्योग की मानिंद अपनी मुट्ठी में रखने और पुलिस को बरसों तक छकाने कामयाब रही लेडी डॉन सुमता विश्नोई का नशा तस्करी की दुनिया में बड़ा खौफ रहा है। सुमता ने अपने कारोबारी प्रतिद्वंद्वियों को कभी सिर उठाकर चलने का मौका नहीं दिया। आधुनिक तरीकों से ड्रग्स तस्करी का जंजाल खड़ा करके मारवाड़ में चर्चित किंवदंतियों की नायिका बनने वाली सुमता विश्नोई अब ज़िन्दगी भर पुलिस की निगरानी में रहेगी। क्योंकि पुलिस अब उसकी हिस्ट्री खोल रही है। सुमता विश्नोई ने प्रेमी राजूराम ईराम के साथ मिलकर चोरी की लग्जरी कारों में जीपीएस लगाकर मध्य प्रदेश, चित्तौडग़ढ़ व भीलवाड़ा से डोडा, पोस्त की तस्करी का नेटवर्क खड़ा किया था। जीपीएस लगी चोरी की फॉरच्यूनर पकड़ में आने पर पुलिस ने सुमता विश्नोई को गिरफ्तार कर यह नेटवर्क तोड़ा था। तब से अब तक उसके खिलाफ मादक पदार्थ तस्करी के चार और फर्ज़ी दस्तावेज़ों से मोबाइल सिम खरीदने के आठ मामले दर्ज हो चुके हैं।
पुलिस की वेबवाइट की मानें, तो जोधपुर कमिश्नरेट के पूर्वी ज़िले में 154 हिस्ट्रीशीटर हैं। जबकि पश्चिमी ज़िले में 157 और जोधपुर ज़िले में 105 हिस्ट्रीशीटर हैं। सीआईडी की बर्खास्त कांस्टेबल मंजू व्यास वर्तमान में एकमात्र महिला हिस्ट्रीशीटर है। एक अन्य महिला सिपाही की भी हिस्ट्री खोली गयी थी; लेकिन उसकी मृत्यु हो चुकी है। राजस्थान में करोड़ों के डोडा, पोस्त की सप्लायर कोई महिला हो सकती है? इस बात पर सहज ही विश्वास भले ही न हो, पर यह सोलह आने सच है। पुलिस के हत्थे चढ़ी सुमता विश्नोई ऐसी ही महिला रही है। जोधपुर वेस्ट के डीसीपी रह चुके समीर कुमार सिंह की मानें तो, प्रदेश में किसी महिला तस्कर से जुड़ा यह पहला इतना बड़ा मामला है। इस मामले में कई बड़े खुलासे होने बाकी हैंं। अलबत्ता यह सच है कि यह पिछले 10 साल से पुलिस की आँखों में सुमता धूल झोंक रही थी। पुलिस काफी समय से इसके पीछे थी, लेकिन बहुत मशक्कत के बाद ही उसे कामयाबी मिल पायी। दिलचस्प बात है कि शहर की सबसे महँगी टाऊनशिप पाश्र्वनाथ सिटी में विलासी जीवन बिताने वाली सुमता विश्नोई जिस सुरक्षा चक्र में रह रही थी, वह अभेद्य था।
उसे अपने फुल प्रूफ सिस्टम पर इतना अधिक भरोसा था कि पुलिस द्वारा चार दिन पहले डोडा, पोस्त से भरी गाड़ी पकडऩे के बाद भी वह फरार नहीं हुई। क्योंकि उसे यकीन था कि पुलिस चाहे कितनी जाँच पड़ताल कर ले, उस तक नहीं पहुँच पाएगी। पुलिस अधिकारी अर्जुन सिंह बताते हैं कि पुलिस जब पूरी तैयारी के साथ उसे गिरफ्तार करने उसके घर पहुँची, तो वह बिना किसी तनाव के अपने घर पर नवरात्रे पूरे होने पर मेहमानों की खातिरदारी में लगी हुई थी। पुलिस ने जब उसे पकड़ा, तो उसने पुलिस से एक ही बात पूछी- ‘आप मुझ तक पहुँचे कैसे?’
दूदानी का खेल
समाजसेवी का मुखौटा पहनकर विराट ड्रग कारोबार खड़ा करने वाले उदयपुर के सुभाष दूदानी बड़े स्तर का नशा तस्कर था। लेकिन डीआरआई के अफसरों की टोली ने उसे एक ही झटके में बेनकाब कर दिया। अफसरों द्वारा दूदानी की गिरफ्तारी ने अंडरवल्र्ड को भी चौंका दिया था। क्योंकि दूदानी डॉन दाऊद इब्राहीम की सरपरस्ती हासिल कर चुका था। डीआईआर के अफसरों की इस कार्रवाई से इस बात का भी खुलासा हुआ कि बीते ज़माने की हीरोईन ममता कुलकर्णी दूदानी की मदद से बॉलीवुड की पार्टियों में ड्रग सप्लाई कर रही थी। अफसरों का तो यहाँ तक दावा था कि ममता कुलकर्णी भी इंटरनेशनल ड्रग्स सिंडिकेट में शामिल थीं।
सुभाष दूदानी की ड्रग तस्करी की कहानी भी बड़ी खौफनाक और दिलचस्प है। उसने अपने कारोबार की शुरुआत फिल्म ‘विकल्प’ के निर्माण से की, लेकिन फिल्म फ्लॉप हो गयी। अलबत्ता इस फिल्म के ज़रिये उसका परिचय नामचीन फिल्मी हस्तियों से हो गया; ममता कुलकर्णी से भी। ममता ने ही उसका परिचय विकी गोस्वामी से कराया। उस दौरान विकी गोस्वामी जांबिया शिफ्ट हो चुका था और कुछ रसूखदार लोगों की मदद से मैंड्रेक्स बनाने की फैक्ट्री लगाने की फिराक में था; लेकिन बात नहीं बनी। इस बीच पुलिस की निगाहों में आने के बाद फैक्ट्री स्थापित करने का इरादा छोड़कर उसने दुबई में पनाह ले ली। अलबत्ता विकी सिर्फ इतना ही कर सका कि मैंड्रेक्स बनाने की पूरी योजना सुभाष दूदानी के हवाले कर गया। सूत्रों का कहना था कि दूदानी को मैंड्रेक्स की सप्लाई चेन उपलब्ध कराना भी विकी गोस्वामी की ही देन है थी। भले ही ममता कुलकर्णी और विकी गोस्वामी का ठिकाना केन्या में बताया जाता था, लेकिन सूत्रों का कहना है कि अगर दूदानी के कारोबार में निरंतर बरकत हुई थी, तो उसकी वजह विकी और ममता कुलकर्णी के साथ उसका कारोबारी गठजोड़ था। जिस समय दूदानी डीआरआई की गिरफ्त में आया, उस दौरान वह सप्लाई को जाँच एजेंसियों की निगाहों से बचाने के लिए एक नया प्रयोग कर रहा था। ड्रग तस्करी के कारोबार को लेकर दूदानी के तीन ठिकाने बने रहे- मुम्बई, दुबई और उदयपुर। तस्करी और स्थायी निवास होने के कारण मैंड्रेक्स निर्माण के लिहाज़ से उसके लिए उदयपुर सर्वाधिक सुरक्षित था। मैंड्रेक्स बनाने का मशविरा सुभाष दूदानी को दुबई के तस्कर लियोन नाम के शख्स ने दिया था। इस काम में तकनीकी मदद के लिए लियोन ने उसे सीरिया निवासी एक डॉक्टर से भी मिलवाया था। डॉक्टर सुभाष दूदानी के मकसद में काफी मददगार साबित हुआ, जिसने उसे मैंड्रेक्स बनाने का रासायनिक फार्मूला तो दिया ही, साथ ही 10 करोड़ की मशीने लगाने के लिए फाइनेंसर से भी मिलवाया।
रेव पार्टियाँ थीं निशाना
सुभाष दूदानी की गिरफ्तारी के बाद इस बात का खुलासा हुआ कि राजस्थान, खासकर पुष्कर में अक्सर होने वाली रेव पार्टियों में मैंड्रेक्स की सप्लाई भी दूदानी ही करता था। इस रहस्योद्घाटन के बाद पुलिस ने रेव पार्टियों में छापामारी की, लेकिन पुलिस सिर्फ औपचारिक कार्रवाई करके ही रह गयी। उसने पर्यटकों को नशे की सप्लाई के स्रोत खँगालने तक की कोशिश नहीं की।
दूदानी ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नशीली दवाओं की तस्करी की हैरान करने वाली लम्बी-चौड़ी चेन का खुलासा किया। उसका नेटवर्क यूके, यूएस और दक्षिणी अफ्रीका समेत कई देशों में फैला हुआ था। हैरानी होती है कि उदयपुर जैसे शान्त शहर से नशे की इतनी बड़ी खेप भारत के विभिन्न इलाकों के अलावा नाइजीरिया और मंगोलिया आदि देशों तक सप्लाई हो रही थी, लेकिन स्थानीय पुलिस को इसकी खबर तक न थी। नशे के धन्धे की बखिया उधेडऩे की मशक्कत में जुटी डीआरआई टीम ने सुभाष दूदानी से सम्पर्क रखने वाले मुम्बई के परमेश्वर व्यास और अतुल म्हात्रे को भी दबोच लिया। सूत्रों के मुताबिक, परमेश्वर व्यास पिछले 20 साल से सुभाष दूदानी का मित्र और वित्तीय व रासायनिक सलाहकार था। म्हात्रे ने पूछताछ में स्वीकार किया कि वह केमिकल इंजीनियर होने के नाते ड्रग्स के निर्माण को लेकर दूदानी को तकनीकी सलाह भी देता था। डीआरआई की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उसने ड्रग्स तस्करी का ट्रांजिट प्वाइंट बनते उदयपुर को समय रहते इन तस्करों से बचा लिया। लेकिन सवाल यह है कि क्या राजस्थान नशे की मदहोश उड़ान से बच गया? क्या उदयपुर में नशा तस्करी रुक गयी? क्या तस्करों के दाँत खट्टे हुए?
काली कमाई का कुबेर
काली कमाई का धन्धा हो और अफसरों से साठगाँठ न हो! ऐसा तो सम्भव नहीं। लेकिन जब इस साठगाँठ का खुलासा होता है, तो चौंकाने वाले खुलासे होते हैं। नारकोटिक्स महकमे के उपायुक्त सहीराम मीणा के चेहरे से नकाब ऐसे ही नोचा गया। दिलचस्प बात है कि जिस सुबह सहीराम अपने स्टॉफ को ईमानदारी का पाठ पढ़ाकर घर लौटा था, उसी दोपहर को भ्रष्टाचार निरोधक महकमे की टोली ने उसे रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ लिया।
सहीराम अच्छा रहन-सहन, अच्छा खान-पान और अच्छी कहानियाँ पसन्द करता था। लेकिन उसका दुर्भाग्य ही रहा कि एक दिन उसने अपने ही बारे में बुरी और डरावनी कहानी पढ़ी। यह उसके रसूख का अन्त था। सहीराम मुखिया बनाने के खेल में ट्रेप हुआ। दरअसल, यह एक विभागीय व्यवस्था है। इसमें अफीम उत्पादक, काश्तकारों और महकमे के बीच संवाद बनाये रखने के लिए मुखिया की तैनाती की जाती है। राजस्थान में तैनात किये जाने वाले 1800 मुखिया की तकदीर लिखने का काम सहीराम की मुट्ठी में था।
मुखिया बनाने के खेल में लाखों को लेन-देन होता है। अफीम की खेती का सबसे बड़ा रहस्य है- ‘अफीम की खेती के लिए सरकार जितनी भूमि का निर्धारण करती है, असल में उत्पादन उससे ज़्यादा बड़े रकबे में होता है। निर्धारित भूमि में पैदा हुई फसल तो समर्थन मूल्य पर बेच दी जाती है। लेकिन गैर-निर्धारित रकबे में उत्पादित फसल की कालाबाज़ारी होती है। इससे मनमानी काली कमाई होती है। यह सब मुखिया की नज़र-ए-इनायत पर होता है। यहीं से ड्रग्स का धन्धा फलता-फूलता है। भारत में कर सुधारों पर पीएचडी कर चुका डॉ. सहीराम मीणा आदिम जाती विकास संघ, राष्ट्रीय बहुजन सामाजिक परिसंघ सरीखी कोई एक दर्जन सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़ा हुआ रहा है। नारकोटिक्स महकमे में आने से पहले सहीराम करीब 15 साल मुम्बई में कस्टम में भी रहा। सूत्रों का कहना है कि अपनी हैसियत से उसने कई नामचीन अभिनेत्रियों से नज़दीकी रिश्ते बना लिये थे।
इतनी भारी-भरकम रकम का जुगाड़ भी उसने राजनीति में पैठ बनाने के लिए किया था। सहीराम ने घूसखोरी में जितनी अथाह दौलत कमायी है, उसने अब तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये हैं। सहीराम रोज़ाना 10 लाख की रकम बनाता था और उसे जयपुर स्थित घर में रखने के लिए सप्ताह में दो बार वहाँ जाता था। अफीम के खेतों में रिश्वत की फसल उगाने वाले नोरकोटिक्स महकमे के उपायुक्त सहीराम मीणा के ट्रेप की कार्रवाई एसीबी के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई है। ट्रेप से एक दिन पहले सहीराम जयपुर में भाजपा के एक बड़े नेता से मिला था। उसकी भाजपा नेता से मुलाकात लोकसभा चुनाव से टिकट लेने के लिए थी। उसने डांग क्षेत्र से चुनाव लडऩे की इच्छा जतायी थी।
सहीराम की बेटी सोनिका भारतीय प्रशासनिक सेवा में अधिकारी है और फिलहाल उत्तराखंड के टिहरी ज़िले की कलक्टर है। उसने अपने पिता से कोई भी रिश्ता रखने से इन्कार कर दिया है। विधानसभा चुनावों के दौरान सख्ती और वाहनों की जाँच के चलते उसने कुछ दिनों के लिए रुपयों का जयपुर ले जाना बन्द कर दिया था। अफीम की खेती में रिश्वत की फसल उगाने वाला सहीराम अफीम काश्तकारों से एक बार की पैदावार में पाँच दफा अलग अलग काम की रिश्वत लेता था। एक किसान फसल की पैदावार के दौरान 6 बार 15 हज़ार से लेकर डेढ़ लाख रुपये तक की रिश्वत देता था। किसानों को अफीम की खेती का लाइसेंस लेने के लिए 15 हज़ार रुपये से एक लाख तक की रिश्वत देनी पड़ती है। हालाँकि एसीबी अफसर उससे तीन अरब से ज़्यादा की सम्पत्ति बरामद कर चुके हैं, लेकिन बावजूद इसके वह लगातार कहता रहा कि-‘मुझे ज़बरदस्ती फँसाया गया है।’ नंदलाल को मुखिया बनने के मामले में अड़चन डालने वाले चित्तौडग़ढ़ के ज़िला अफीम अधिकारी सुब्रह्मण्यम द्वारा अचानक एच्छिक सेवानिवृत्ति माँग लेना भी गहरे रहस्य की तरफ इशारा कर रहा है। एसीबी के अफसरों को कहना था कि ज़रूर दाल में कुछ काला है। एसीबी को तलाशी के दौरान सहीराम मीणा की जन्मपत्री भी मिली है, जो कई तरह से चौंकाती है। पूछताछ में सहीराम ने बताया- ‘एक पंडितजी ने यह जन्मपत्री बनायी थी। उन्होंने लिखा था कि आप नेता बनोगे और छा जाओगे। इसी आधार पर मैंने पैसे जुटाने शुरू कर दिये थे।’ एसीबी अफसरों ने इस पर कहा- ‘पंडित जी ने गलत नहीं कहा था। वाकई तुम छा गये हो। लेकिन राजनेता बनकर नहीं घूसखोर बनकर।’