आजकल की राजनीति प्रलोभन और ङ्क्षहसा से शून्य नहीं दिख रही। जहाँ भी चुनाव होते हैं, वहीं ङ्क्षहसा फैलायी जाने लगती है और प्रलोभन दिये जाने लगते हैं। ऐसा ही माहौल इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में देखा गया। इस बार दिल्ली चुनाव में विकास के मुद्दों पर कम चर्चा हुई, मतों के धुव्रीकारण करने वाली बयानबाज़ी ज़्यादा हावी रही। 8 फरवरी को पूरी दिल्ली में एक साथ मतदान होने हैं और 11 तारीख को परिणाम भी आ जाएँगे। इस बार दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों पर आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच मुकाबला माना जा रहा था; लेकिन अब माना जा रहा है कि असली मुकाबला इन दोनों पाॢटयों के बीच ही नहीं है, बल्कि भाजपा , कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच ज़्यादा है। यह तो तय है कि कांग्रेस के वोट बैंक में इज़ाफा होगा, लेकिन इससे इतर सभी पाॢटयों के बागी नेता दूसरी पाॢटयों का गुणगान करते दिखे हैं। ऐसे में इस बार आम आदमी पार्टी के बागी नेता उसके वोट बैंक में भी सेंध लगा सकते हैं। हालाँकि, यह टिकट के स्वार्थ की राजनीति है। जिसको जिस पार्टी से टिकट नहीं मिलता, वह उस पार्टी का धुरविरोधी हो जाता है। यह एक नहीं, बल्कि लगभग सभी नेताओं का हाल है। इस बार के चुनाव में भाजपा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर लड़ रही है, तो आम आदमी पार्टी मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के नाम पर लड़ रही है। तीनों पाॢटयों को अपने-अपने एजेंडे भी हैं। इस बार आम आदमी पार्टी ने काम के नाम पर वोट माँगे हैं, तो कांग्रेस अपनी पुरानी छवि विकास और भाईचारे के नाम पर, वहीं भाजपा ने इन दोनों पाॢटयों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने के साथ-साथ कच्ची कॉलोनियों के पक्का करने के दावे पर वोट माँगे हैं। िफलहाल कांग्रेस पिछले चुनाव की तुलना में अच्छा प्रदर्शन किया है। इस बार भाजपा और कांग्रेस ने मतदाताओं को फ्री का प्रलोभन भी दिया है। इस बार सीएए जैसे मामलों पर राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता और आम लोग भी आपस में भिड़ते नज़र आये। ये झड़पें भी मतदाताओं को विचलित कर रही हैं। तहलका संवाददाता ने विधानसभाओं में मतदाताओं और प्रत्याशियों से बात की, तो उन्होंने कहा कि देश में जो माहौल ङ्क्षहसक और प्रलोभन वाला बना है, इसका कारण वोट बैंक है। कुछ ने यह भी कहा कि केजरीवाल का जनाधार काफी मज़बूत है और इस वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए वो (पार्टी का नाम लिए बगैर…) किसी भी हद तक जा सकते हैं।
जिन प्रत्याशियों को इस बार उनकी पार्टी ने टिकट नहीं दिया है, उनके सुर पूरी तरह बदल गये हैं। जो कभी आम आदमी पार्टी का गुणगान करते नहीं थकते थे, वे टिकट न मिलने पर उस पार्टी का गुणगान करने लगे हैं, जहाँ से उन्हें टिकट मिला है। यही हाल भाजपा और कांग्रेस का भी है। भाजपा के कई लोग अब आम आदमी पार्टी का गुणगान करते नज़र आ रहे हैं। द्वारका विधानसभा क्षेत्र के आदर्श शास्त्री कह रहे हैं कि केजरीवाल जनता को गुमराह करने में माहिर हैं, वहीं कांग्रेस नेता महाबल मिश्रा के बेटे विनय मिश्रा को आम आदमी पार्टी से टिकट मिलने पर वे आम आदमी पार्टी को ईमानदार नेताओं की पार्टी बता रहे हैं। द्वारका के मतदाताओं की मानें तो आम आदमी पार्टी और भाजपा चुनाव में ज़रूर ये दावे कर रही हैं कि मुकाबला भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच में है, लेकिन इस बार कांगे्रेस का मतदाता फिर से कांग्रेस में आ रहा है।
वहीं केजरीवाल की तुलना में भाजपा और कांग्रेस के पास कोई ऐसा प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं है, जो उनका मुकाबला कर सके। कांग्रेस ने उनके मुकाबले रोमेश सब्बरवाल को उतारा है, जो ज़मीनी नेता नहीं माने जाते हैं। भाजपा ने सुनील यादव को चुनाव में युवा नेता के तौर पर उतारा है, उन्हें कोई ठीक से जानता तक नहीं। वे भाजपा युवा कार्र्यकारिणी के नेता हैं। खास बात यह है कि इस बार बड़े नेता बन चुके केजरीवाल को हराने के लिए दो विरोधी एक होकर जीतने की िफराक में हैं। जैसा कि 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की दिग्गज नेता व तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को चुनाव में हराकर दिल्ली की सियासत में एक नयी राजनीति का जन्म हुआ। कोंडली विधानसभा सीट, जो सुरक्षित सीट है; में अजीब माहौल देखने को मिल रहा है। यहाँ पिछली बार भाजपा के टिकट से चुनाव लडऩे वाले नेता अमरीश गौतम कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।
हालाँकि, वे पहले भी तीन बार कांग्रेस से विधायक रह चुके हैं, लेकिन 2017 में उनके बेटे को कांग्रेस से नगर निगम का टिकट न मिलने पर वे भाजपा में चले गये थे और सीएए का जमकर समर्थन किया था। लेकिन फिर कांग्रेस में आ गये हैं। अब अमरीश सीएए का विरोध कर रहे हैं और कह रहे हैं कि भाजपा ने देश को बर्बाद कर दिया है। वहीं आम आदमी पार्टी से विधायक रहे मनोज कुमार टिकट बँटवारे में केजरीवाल पर भेदभाव का आरोप लगा रहे हैं। मटियाला विधानसभा से कांग्रेस के प्रत्याशी सुमेश शौकीन भी आम आदमी पार्टी पर मतदाताओं को प्रलोभन देकर लुभाने का आरोप लगा रहे हैं। भाजपा के बारे में उन्होंने कहा कि भाजपा ने देश में जो माहौल बनाया है, उसके चलते जगह-जगह हिंसा हो रही है। लेकिन कांग्रेस भाईचारा और विकास की राजनीति करती है। इधर, भाजपा नेता राकेश गोस्वामी कहते हैं कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने सीएए पर लोगों को गुमराह किया है। इससे दिल्ली का सरल चुनाव अन्य राज्यों की तरह होता जा रहा है।
मुद्दों से ध्यान भटकाने के प्रयास
दिल्ली विधानसभा चुनाव के पहले जनता को मुद्दों पर बरगलाने की कोशिश के बाद अब मुद्दों से भटकाने की कोशिश की जा रही है। कहने की ज़रूरत नहीं अब कुछ नेता दिल्ली के विधानसभा चुनाव को हिन्दुस्तान और पाकिस्तान का चुनाव कहने से भी नहीं चूक रहे हैं। हम बात कर रहे हैं आम आदमी पार्टी निष्कासित विधायक कपिल मिश्रा की। हालाँकि चुनाव आयोग ने उनसे इस मामले पर स्पष्टीकरण की माँग की थी, लेकिन भाजपा के दूसरे नेता, यहाँ तक कि केंद्रीय नेता भी इस चुनाव को धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण करने में लगे दिखायी दिये। खैर, यह तो रही अनर्गल बातों की। अगर मुद्दों की बात करें, तो आम आदमी को पहले झूठे मुद्दे बनाकर बरगलाया गया और फिर मुद्दों से भटकाने की कोशिश की गयी। दरअसल, इसकी मुख्य वजह अधिकतर मतदाताओं का खुलकर आम आदमी पार्टी के पक्ष में बोलना भी है। यही वजह है कि चुनाव के दौरान आम नागरिकों को अपने-अपने तरीके से परेशान किया जा रहा है। लोग इसके लिए दिल्ली के सियासतदानों को ज़िम्मेदार मान रहे हैं। नाम न बताने की शर्त पर एक नेता ने बताया कि एक बड़ी पार्टी नहीं चाहती कि दिल्ली में कोई काम करने वाली पार्टी जीतकर आये। क्योंकि अगर दिल्ली का विकास हो गया, तो उसकी राजनीति दिल्ली से और भी बुरी तरह खत्म हो जाएगी। तहलका संवाददाता ने इस बारे में दिल्ली के कई इलाकों में लोगों से बात की। लोगों ने बताया कि किसी भी सरकार का मुख्य काम जनता के हित में काम करना होना चाहिए। यहाँ एक आदमी काम कर रहा है, तो दूसरों को यह हज़म नहीं हो रहा है। ये लोग धर्म और जातिवाद की राजनीति करने पर आमादा हैं। लोगों को आपस में लड़ाने की कोशिशें की जा रही हैं। कोंडली विधानसभा के आम नागरिक कुन्दन वशिष्ठ से जब हमने बातचीत की, तो उनका गुस्सा फूट पड़ा। उन्होंने कहा कि जिस व्यक्ति को हम मसीहा बनाकर देश की सत्ता में लाये थे, वह आज हमें परेशान किये जा रहा है। उसे यह दिखायी क्यों नहीं देता कि देश की जनता आज औंधे मुँह गिरी जा रही है। आज न तो रोज़गार की बात की जा रही है, न शिक्षा की बात की जा रही है, न एकता की बात की जा रही है, न विकास की बात की जा रही है, फिर ऐसे लोगों को कौन वोट देगा। कुन्दन ने कहा दिल्ली में जिसने काम किया है, उसे बदनाम करने में लगे हैं लोग, पर जो असल में गलत है, उसकी पीठ थपथपाने में लगे हैं।
इधर, दिल्ली के शाहीन बाग में सीएए के विरोध में लगभग डेढ़ महीने से धरने पर बैठे लोगों को लेकर भी दिल्ली में खूब सियासत हो रही है। शाहीन बाग के लोगों का दर्द सुनने कोई नहीं आया, पर बिरयानी और 500 रुपये के आरोप लगाने से कुछ लोग नहीं चूके। यह सच है कि शाहीन बाग में हो रहे धरना-प्रदर्शन के चलते राहगीरों को खासी परेशानी हो रही है। स्कूली बच्चे स्कूल जाने-आने में दिक्कत हो रही है। एम्बुलेंस जाम में फँस रही हैं। लोग समय से दफ्तर नहीं पहुँच पा रहे हैं। लेकिन इस धरने को प्रदर्शनकारियों से बातचीत करके रोका भी जा सकता था, परे इस पर सियासत हो रही है। पांडव नगर निवासी राजकुमार ने बताया कि दिल्ली में अच्छी-बुरी कर चर्चाएँ तो चुनाव के दौरान ही होती ही हैं, लेकिन जैसे पानी को दूषित बताकर लोगों में भय फैलाया गया, वैसे ही अन्य मुद्दों पर भय फैलाने की कोशिशें हो रही हैं। ये लोग तो राजनीति करने लगते हैं, लेकिन यह नहीं जानते कि आम आदमी को पानी खरीदना कितना महँगा पड़ता है।
राजकुमार का कहना है कि दिल्ली के चुनाव में पाकिस्तान और हिन्दुस्तान का राग अलापा जा रहा है, जिसका विकास और भाईचारे से कोई लेना-देना नहीं है। यह सब वोटबैंक के धुव्रीकरण के लिए किया जा रहा है।
जो आज तक चुनावों में नहीं हुआ, वह अब हो रहा है। लेकिन यह पब्लिक है, सब जानती है। राजकुमार का कहना है कि ऐसे नेताओं की किसे ज़रूरत है? लोग अब केवल काम चाहते हैं, चैन से जीना चाहते हैं। एक और मतदाता सलीम का कहना है कि दिल्ली में गत कुछ माह से ऐसा माहौल बनाया जा रहा है, जिससे लोगों में एक भय का महौल बने। लेकिन यह राजनीतिक चाल चलने वाली नहीं। हम सब दिल्लीवासी सदियों से मिलकर रहते आये हैं और मिलकर ही रहेंगे। किसी की भी फूट डालने की सियासी चालें कामयाब नहीं होने देंगे।