पूँजी बाज़ार नियामक सेबी ने शेयरों में हेराफेरी के आरोप में 18 लोगों को तीन साल तक पूँजी बाज़ार में कारोबार करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। साथ ही, इन लोगों के म्यूचुअल फंड, इक्विटी बाज़ार और अन्य होल्डिंग पर रोक लगा दी है। ये सभी आरोपी ग्रीनक्रेस्ट कम्पनी से जुड़े थे, जो गैर वित्तीय बैंङ्क्षकग संस्थान (एनबीएफसी) के रूप में पंजीकृत थी। सबसे मज़ेदार बात यह है कि इस कम्पनी के शेयरों के केवल 16 खरीददार और 15 बेचने वाले थे। इसका यह अर्थ यह हुआ कि ये सभी आपस में शेयरों की खरीद-बिक्री कर रहे थे और ग्रीनक्रेस्ट इन्हें शेयरों की खरीद बिक्री के लिए पैसा मुहैया करा रही थी। शेयरों की हेराफेरी करने से इस कम्पनी का सालाना राजस्व 80 लाख रुपये से बढ़कर 10 करोड़ रुपये हो गया। सेबी के अनुसार, वित्त वर्ष 2013-14 में सालाना राजस्व 8.38 करोड़ रुपये था; लेकिन शुद्ध लाभ महज़ 70 लाख रुपये था। इसी तरह वित्त वर्ष 2014-15 में इसका सालाना राजस्व 10.30 करोड़ रुपये था; लेकिन शुद्ध लाभ लेवल 1.16 करोड़ रुपये था। यह आँकड़े कम्पनी की ईमानदारी पर सवाल खड़े करते हैं। इस कम्पनी का मार्केट कैपिटलाइजेशन 2,552 करोड़ रुपये था; जबकि इसके एक शेयर की कीमत 12 रुपये थी। कम्पनी के शेयर की कीमत और मार्केट कैपिटलाइजेशन के बीच कहीं से भी कोई तालमेल नहीं दिखता है। मार्केट कैपिटलाइजेशन किसी कम्पनी के आउटस्टैंडिंग शेयरों के मूल्य को दिखाता है। आउटस्टैंडिंग शेयर का मतलब उन सभी शेयरों से है, जो कम्पनी ने जारी किये हैं। इसे कम्पनी के कुल आउटस्टैंडिंग शेयरों (बाज़ार में जारी शेयर) के साथ शेयर के मौज़ूदा बाज़ार भाव को गुणा करके निकाला जाता है।
इसी तरह दूसरे मामले में सेबी ने ग्लोबल डिपॉजिटरी रिसिप्ट (जीडीआर) में नियमों का उल्लंघन करने के आरोप में लायका लैब पर पूँजी बाज़ार में तीन साल तक कारोबार करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। कम्पनी ने निवेशकों के साथ गुमराह करने वाली वित्तीय जानकारी भी साझा की थी, जिससे बड़ी संख्या में निवेशक गुमराह हुए। इधर भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के चेयरमैन रजनीश कुमार के अनुसार, स्टेट बैंक के शेयरों के साथ बाज़ार सही बर्ताव नहीं कर रहा है। स्टेट बैंक के शेयरों की मौजूदा कीमत ज़्यादा होनी चाहिए। स्टेट बैंक के शेयर को शुरू से ही निवेशक पसन्द करते आये हैं।
कोरोना वायरस की वजह से शेयर बाज़ार में मचे कोहराम को समझने के लिए शेयर और शेयर बाज़ार के परिचालन को समझना ज़रूरी है। शेयर का अर्थ होता है- हिस्सा। शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध कम्पनियों के शेयरों को शेयर ब्रोकर की मदद से खरीदा और बेचा जाता है यानी कम्पनियों के हिस्सों की खरीद-बिक्री की जाती है। भारत में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) नाम के दो प्रमुख शेयर बाज़ार हैं। शेयर बाज़ार में बांड, म्युचुअल फंड और डेरिवेटिव भी खरीदे एवं बेचे जाते हैं।
कोई भी सूचीबद्ध कम्पनी पूँजी उगाहने के लिए शेयर जारी करती है। कम्पनी के प्रस्ताव के अनुसार, निवेशकों को शेयर खरीदना होता है। जितना निवेशक शेयर खरीदते हैं, उतना उसका कम्पनी पर मालिकाना हक हो जाता है। निवेशक अपने हिस्से के शेयर को ब्रोकर की मदद से शेयर बाज़ार में कभी भी बेच सकते हैं। ब्रोकर इस काम के एवज़ में निवेशकों से कुछ शुल्क लेते हैं। जब शेयर जारी की जाती है, तो शेयर किसी व्यक्ति या समूह को कितना देना है; का निर्णय कम्पनी का होता है।
शेयर बाज़ार में खुद को सूचीबद्ध कराने के लिए कम्पनी को शेयर बाज़ार से लिखित करारनामा करना होता है। इसके बाद कम्पनी सेबी के पास वांछित दस्तावेज़ को जमा करती है; जिसकी जाँच सेबी करता है। जाँच में सूचना सही पायी जाने पर आवेदन के आधार पर कम्पनी को बीएसई या एनएसई में सूचीबद्ध कर लिया जाता है। फिर कम्पनी को समय-समय पर अपनी आॢथक गतिविधियों के बारे में सेबी को जानकारी देनी होती है, ताकि निवेशकों का हित प्रभावित नहीं हो।
किसी कम्पनी के कामकाज का मूल्यांकन ऑर्डर मिलने या नहीं मिलने, नतीजे बेहतर रहने, मुनाफा बढऩे या घटने, आयत या निर्यात होने या नहीं होने, कारखाने या फैक्ट्री में कामकाज ठप पडऩे, उत्पादन घटने या बढऩे, तैयार माल का विपणन नहीं होने आदि जानकारियों के आधार पर किया जाता है। इसलिए कम्पनी पर पडऩे वाले सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव के आधार पर शेयरों की कीमतों में रोज़ उतार-चढ़ाव आती है।
शेयर बाज़ार का नियामक सेबी है, जो सूचीबद्ध कम्पनियों की गतिविधियों पर नज़र रखने का काम करता है। अगर कोई सूचीबद्ध कम्पनी करारनामा से इतर काम करती है, तो सेबी उसे बीएसई या एनएसई से अलग कर देती है। इसका काम कृत्रिम तरीके से शेयरों की कीमतों को बढ़ाने या नीचे गिराने वाले दलालों पर भी लगाम लगाना होता है। बीते साल से एक शेयर ब्रोकर हर्षद मेहता ने शेयरों की कीमतों को कृत्रिम तरीके से घटा-बढ़ाकर एक बड़े घोटाले को अंजाम दिया था।
आमतौर पर ज़्यादा प्रतिफल मिलने की आस में घरेलू एवं विदेशी निवेशक शेयर के रूप में कम्पनियों में निवेश करते हैं। लेकिन अर्थतंत्र की समझ नहीं होने या कम्पनियों द्वारा गलत जानकारी देने, शेयरों के साथ हेराफेरी करने के कारण निवेशकों को नुकसान उठाना पड़ता है। इसलिए अगर कोई निवेशक शेयर में निवेश करना चाहता है, तो उसे सतर्क रहने की ज़रूरत है। साथ ही सेबी को भी सूचीबद्ध कम्पनियों की गतिविधियों पर पैनी नज़र रखनी होगी।
वैसे शेयर की कीमतों में उतार-चढ़ाव से सिर्फ निवेशकों को नुकसान नहीं होता है। इससे देश की अर्थ-व्यवस्था पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। विदेशी निवेशकों द्वारा बिकवाली करने से एफडीआई में कमी आती है; जबकि भारत के आॢथक विकास के लिए एफडीआई काफी अहम है। इसके अभाव में भारत की विकास दर प्रभावित हो सकती है। एफडीआई कम आयेगा, तो रोज़गार में भी कमी आयेगी, साथ-ही-साथ आॢथक गतिविधियों पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा।