आज कल काला धुआँ और धुन्ध ने समाज को आपातकालीन हालत में ला दिया है एक ओर राष्ट्रीय हरित न्याधिकरण और सुप्रीमकोर्ट कोर्ट इसके लिए बार-बार चिंता जाहिर करते हुए निर्देशन जारी कर रही है दूसरी तरफ दिल्ली और केंद्र की सरकारें हमेशा की तरह राजनैतिक नफा- नुकसान के हिसाब लगाने में ही व्यस्त है।
देश और दुनिया के तमाम अध्ययन द्दद्म4द्मह्म् स्रद्मह्य बद से बदतर बया कर रही है कि काला धुआँ कैसे लोगों को तबाह कर रही है परन्तु सरकार यह तथ्य साबित करने में पूरी ताकत लगा रही है कि इस हालत के लिए उसकी सरकार दोषी नहीं है बल्कि पड़ोसी पंजाब के किसानों ने शाजिसन यह हालत पैदा किया है और वे ही कृषि उपज को जलाकर धुआँ दिल्ली की ओर भेज रही है जिससे हमारे राज्य के लोगों की जान जोखिम में आ गया है। इस लिए पूरा दोष उनका है हमारा नहीं। लेकिन प्रदुषण का तांडव फैलाने और इस हालत को खतरनाक स्थिति तक ले जाने वाले लाखों मोटर वाहनों को निर्वाध्य चलने के लिए न सिर्फ छोड़ दिया गया है जो जिन्दा समाज को मौत की सायें में जीने को मजबूर कर रहा है। बात इतनी भर नहीं है विगत तीन दशको के दौरान तमाम पार्टियों की सरकारें इन्हें फलने, फूलने और चलने के लिए शहरवासियों के पैसे को उन्ही सार्वजनिक ढांचा द्गह्यड्ड निवेश करती रही है जो उनके उपभोग के लिए के लिए है।
भारत का राजनैतिक नेतृत्व शायद इस मायने में अकेला उदाहरण है जो ऐसे मौकों को भी जनता के हितकारी अवसर में बदलने में दृष्टिहीन साबित होती है बल्कि लोकतंत्र की डीगें हांकते हुए अपना भोददापन उजाकर करता है और दुनिया के कई मुल्क ऐसे संकट के काल को अपने समाज के लिए अवसर में बदलते हुए।
वर्ष 2015 में पेरिस का एफिल टावर दिखाई देना मुश्किल हो गया था। क्योंकि शहर में वायु-प्रदूषण की बढ़ती गहनता ने वायु की पारदर्शिता को खत्म कर दिया था, इससे थोड़ी दूरी पर देखना और दिखाना आसान नहीं रह गया था। पेरिस-वासियों के लिए यह एक डरावना दृश्य था। उन्होंने बीजिंग, दिल्ली तथा दूसरे शहरों के बारे में ऐसी खबरें सुन रखी थीं, लेकिन खुद उनके शहर में उनके साथ ऐसा हादसा होगा, कभी सोचा नहीं था। इसका प्रभाव पेरिस के आसपास के शहरों तक फैल गया। फ्रांस के पर्यावरण और स्वास्थ्य मंत्री ने बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं, सांस की बीमारी से पीडि़त व्यक्तियों और छोटे बच्चों को इस प्रदूषित वायु से बचने के लिए सतर्क किया। सरकार ने साइकिल शेयरिंग, इलेक्ट्रिक कार और सार्वजानिक परिवहन के इस्तेमाल का आग्रह किया तथा शहर में सम-विषम योजना लागू कर दी गयी7यह तीसरी बार है जब पेरिस में ऐसी आपातकालीन स्थिति का सामना करना पड़ा है। इसके पूर्व 1997 और 2014 में ऐसी ही हालत पैदा हुई थी। तब से नगर निकाय के द्वारा आपातकालीन उपाय के तौर पर सम-बिषम, कार-फ्री दिवस और सार्वजनिक परिवहन के इस्तेमाल की अपील की जाती रही है।इसके बावजूद शहर में वायुप्रदूषण, सडक़-जाम और सडक़-दुर्घटनाओं में कोई दीर्घकालिक सुधार होता हुआ नहीं दिख रहा था। इस बार जब पुन: ऐसी हालत हुई और पेरिस के मेयर ऐनी हिडैल्गो ने आपातकालीन उपाय के रूप में वही पुराना तौर-तरीका लागू किया, तब फ्रांस के इकोलॉजी मिनिस्टर सेगोलेने रॉयल ने इसका सार्वजनिक विरोध किया और कहा कि एक लम्बी योजना के वगैर शहर के परिवहन, वायु-प्रदूषण, सडक़-जाम और दूसरी समस्याओं से निजात पाना संभव नहीं है। ऐनी हिडैल्गो वास्तव में ‘रियल ट्रांसपोर्ट पालिसी’ लागू करने में विफल रही हैं, इसीलिए पुराने कार्यक्रम को बार-बार दुहरा रही हैं। ज्ञातव्य है कि पेरिस की मेयर सुश्री ऐनी हिडैल्गो और फ्रांस की इकोलॉजी मंत्री सुश्री सेगोलेने रॉयल दोनों ही वहां की सोशलिस्ट पार्टी की सदस्या हैं,लेकिन इस मुद्दे पर दोनों एक-दूसरे के खिलाफ खड़ी हैं। पेरिस की मेयर ने कहा कि इकोलॉजी मंत्री इसे राजनीतिक रंग दे रही हैं, जब कि इकोलॉजी मंत्री का कहना था कि मेयर अपनी असफलता को ढंकने की कोशिश में लगी हैं।
इन दोनों के बीच बहसों के बावजूद पेरिस के लोगों का दवाब इतना बढ़ गया कि दोनों को एक साथ आना पड़ा। पेरिस आजकल जहां इस तात्कालिक समस्या से निजात पाने के लिए सक्रिय है, वहीँ दूरगामी प्रभाव वाली योजनाओं पर भी वहां तीव्रता से काम शुरू कर दिया गया है।
पेरिस को लोग ‘रोशनी का शहर’ भी कहते हैं।शहर की वास्तुकला में इसकी झलक मिलती है, खासकर शहर के मुख्य हृदय स्थल में। शहर में प्राकृतिक रोशनी अबाधरूप से आती रहे, इसके लिए बहुमंजिली इमारतेंबनाने पर रोक है।लेकिन ‘एफिल टावर’ इसका अपवाद है। शहर में ‘खुली सार्वजनिक जगह’ इस शहर के खुलेपन का हरदम एहसास कराती है जिसे ‘ पेरिस स्क्वायर्स’ के रूप में याद किया जाता रहा है। वहां हरी घास, खुली हवा और रोशनी हर नगर-वासी के लिए सुलभ रही हैं। कालान्तर में मोटर-वाहन इन ‘सार्वजनिक स्थानों’ को अपने कब्जे में लेते गए और ‘खुले सार्वजनिक स्थान’ लुप्तप्राय होते गए।
इस राजनैतिक संघर्ष और जन-दबाव ने पेरिस के मेयर को नई और स्थाई विकास की योजनाएं लागू करने को मजबूर किया और अवसर भी दिया।उन्होंने तत्काल विलुप्त हो चुके ‘पेरिस स्क्वायर्स’ में से सात को ‘रिक्लेम पब्लिक स्पेस’ और सडक़ों पर लोकतांत्रिक हक के लिए पद-पथिक-पेरिस योजना की शुरुआत की। उन्होंने पेरिस स्क्वायर्स के पुन: जनोन्मुख विकास के लिए चौंतीस मिलियन डॉलर का प्रावधान किया और तत्काल प्रभाव से इस काम की शुरुआत भी करवा दी।सातों स्क्वायर्स पद-पथिकों और साइकिल चालकों की सुविधानुकूल विकसित होंगे, जहां आराम से संवाद के लिए फर्नीचर और मूलभूत जरूरतें उपलब्ध होंगी। इस इलाके की डिजायन ऐसी होगी कि मोटर-गाड़ी का प्रवेश वर्जित होगा। पद-पथिक-पेरिस के सन्दर्भ में कहा गया है कि यह समय शहर में कारों के प्रवेश और इस्तेमाल पर पुन: विचार करने का है और शहर के विकास में नागरिकों के गुणवत्तापूर्ण जीवन का समावेश तथा पेरिस के सार्वजनिक स्थानों पर उनके हक की बहाली का है। हमारे नये राजनैतिक कार्यक्रम का मुख्य आधार शहरी गतिशीलता और सामुदायिक स्थान हैं। इससे पेरिस में 180 डिग्री का बदलाव आएगा और शहरी जीवन जीवन्त होगा।
दी डिपार्टमेंट ऑफ रोड एंड मोबिलिटी ने पेरिस की सार्वजनिक जगहों में नये बदलाव के लिए लगातार अभियान चला रखा है। शहर के अन्दर 185 एकड़ में बनी सडक़को साइकिल चालकों, पद-पथिकों के लिए छोड़ दिया है, जहां गाडिय़ों की पार्किंग पर रोक होगी। नए विचार के अनुसार शहर के सार्वजनिक स्थानों की री-डिजायन का काम जोरों से चल रहा है। इसके कारण ऑटोमोबाइल ट्रैफिक में 25 प्रतिशत की गिरावट और कारों के मालकियाना में 37 प्रतिशत की कमी आयी है। अभी शहर के अन्दर कारों की गति 50 किलोमीटर प्रति घंटा है। इसके कारण दूसरे वाहनों के लिए पब्लिक स्पेस शेयर करने के लिए सडकें सामान्यतया सुरक्षित नहीं हैं। इसलिए स्थानीय निकाय ने पूरे शहर में कारों की गति 20 किलोमीटर प्रति घंटा कर दी है। यह योजना स्थानीय निकाय के नए दृष्टिकोण का अंग है, जिसके तहत आधुनिक सडक़ों पर मोटर-वाहनों के एकाधिकार और दबदबा को समाप्त कर दिया गया है और इसके स्थान पर सडक़ों पर सबको समान अधिकार की परिपाटी लागू की गई है। इन सडक़ों पर चलते हुए विशेष अनुभूति का एहसास होता है। प्रशासन सर्वे के माध्यम से लगातार तथ्य और आंकड़े जमा कर रहा है ताकि इसमें निरन्तर सुधार और बदलाव लाया जा सके तथा इस योजना के विस्तार में इससे मदद ली जा सके। इन ढांचागत सुधारों के कारण सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने वालों की संख्या में इजाफा हो गया है। आरंभ और अंतिम यात्रा की दूरी और परेशानी समाप्त होने से सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करना सुगम हो गया है। यही वजह है कि आजपेरिस एक अग्रगामी चिन्तक के रूप में रास्ता दिखाने वाला शहर बनता जा रहा है।
दिल्ली सरकार ने तीसरी बार सम-विषम योजना लागू की। इसका कारण यह है कि किसी भी क्षेत्र में आपातकालीन हथियार बार-बार इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, नहीं तो इसके महत्व और अनुशासन की धार खत्म हो जाती है। वर्तमान सरकार ने अभी तक समाज और देश के सामने जो संदेश दिया है, उससे इस बात की कतई पुष्टि नहीं होती है कि कार और मोटर-वाहन शहर के लिए समस्या हैं और वे शहर के निवासियों को उससे मुक्ति दिलाना चाहते हैं। इस सरकार के मुखिया और इनका पूरा नेतृत्व बराबर कार और मोटर-वाहनों के हितों के साथ खड़े दिखते हैं। इन्होंने अपने पूरे चुनाव-प्रचार में बीआरटी के खिलाफ मुहिम चलाई और सरकार में आने के बाद उसे तोडऩे का निर्णय लिया और उत्सव मनाया। सम और विषम योजना में कारों की विभिन्न श्रेणियों के अन्दर छूट मिली हुई है, जिसकी अच्छी-खासी संख्या है। सरकार का कोई भी राजनैतिक नेतृत्व खुद को मिसाल के तौर पर एक रॉल मॉडल के रूप में पेश नहीं करता, बल्कि इससे बचने के हर उपक्रम को जायज और दूसरों की तुलना में सही साबित करने की होड़ में लिप्त दिखता है। सरकार के द्वारा अभी तक लिए गए निर्णय और पहल से कम से कम परिवहन के क्षेत्र में कोई ऐसा उदाहरण नहीं मिल रहा जिससे भविष्य के लिए भी भरोसा मिल सके। इसके विपरीत इन्होंने सार्वजनिक परिवहन और साइकिल के ढांचागत विकास के लिए जो घोषणाएं की हैं, उनमें से कुछ वास्तविक रूप से होता हुआ नहीं दिख रहा है और सीधे-सीधे कार और मोटर-वाहनों के हितों को साधने वाले हैं। एक ताजा मिसाल, विकासपुरी से वजीराबाद तक पद-पथिकों, साइकिल और रिक्शा चालकों के लिए अलग लेन बनाने की योजना थी। इस मार्ग पर मुख्यमंत्री कई बार कई फ्लाईओवर मार्ग का उद्घाटन कर चुके हैं, लेकिन आज तक योजना के तहत मंजूर और शर्त के रूप में रखा गया पद-पथिकों, साइकिल और रिक्शा चालकों की सहूलियत के लिए बनने वाले ढांचा का कहीं भी नामोनिशान नहीं दिखता है, न ही इसकी कोई खोज-खबर लेता हुआ दिखता है। दूसरा किस्सा दिल्ली में बनाए जाने वाले दो नए बीआरटी कॉरिडोरों का है। सरकार ने घोषणा की है कि दो-मंजिले फ्लाईओवर का निर्माण होगा, जिसकी एक मंजिल कारों के लिए होगी और दूसरी मंजिल पर बाकी गाडिय़ांचलेंगी और इसी के एक लेन में बीआरटी बसें भी चलेंगी। जाहिर है, अभी सतह पर बसों के स्टॉप तक पहुंचने के लिए सुविधा का अभाव झेल रहे लोग यह कैसे भरोसा करें कि दूसरी मंजिल के फ्लाईओवर पर बने बस स्टॉप पर पहुंचने का सपना साकार होगा। क्या यह वास्तव में दिल्ली के लोगों के लिए बनाई जा रही योजना है या कुछ खास जनों की सुविधा के लिए बनाई जा रही योजना ? बसों की खरीद, बसों में सीसीटीवी कैमरा, किराये की साइकिल, शेयरिंग साइकिल,नये बस डिपो का निर्माण- यह सब जरूरी कार्य हो सकते हैं। लेकिन इससे जरूरी काम जिसे पहले करना है, जिसकी अनुपस्थिति में इस सब का चलना नामुमकिन है- वह है इनके अनुकूल ढांचा बनाना और वाहनों के बढ़ते ग्राफ पर अंकुश लगाना ताकि पद-पथिकों, साइकिल और रिक्शा चालकों के लिए रास्ता बनाया जा सके और उनका हक पुन: बहाल किया जा सके। सडक़ की डिजायन समाज की जरूरत को परिलक्षित करे, न कि कुछ लोगों की। अभी तो दूर-दूर तक रोशनी नहीं दिखती है।