कोरोना संकट के बीच बढ़ते प्रदूषण का कहर शहरों में ही नहीं बल्कि, गांवों तक में देखा जा रहा है। दिल्ली–एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण का असर आगरा से लेकर बुन्देलखण्ड के कई जिलों में साफ देखा जा रहा है। प्रदूषण की भयावह स्थिति के चलते निवासियों को सांस लेने में कर्इ दिक्कतो का सामना करना पड़ रहा है।
बुन्देलखण्ड वासियों का कहना है कि, गत दो-तीन सालों से बढ़ते प्रदूषण के कारण लोगों में रोष है। उनका कहना है कि पराली के अलावा, कई दशकों पुराने वाहनों की बढ़ती संख्या भी है जो कि ट्रैफिक नियमों की धज्जियां उड़ा रहे है।
सबसे गंभीर बात तो ये है। कि, पराली जलाये जाने का एक कारण तो हो सकता है। लेकिन जो दशकों पुराने वाहन बुन्देलखण्ड के कई जिलों में धुआं छोड़ते बिना रोक- टोक के चल रहे है। उन पर पाबंदी ना लगाये जाने से आम जनमानस को प्रदूषित माहौल में जीने को मजबूर होना पड़ रहा है।
बताते चले, बढ़ते प्रदूषण की वजह सियासी लोगों का वोट बैंक है। अगर प्रशासन पुराने वाहनों को चैकिंग के दौरान रोकता है। तो सियासी दल अपनी राजनीति कर अधिकारियों पर कार्रवाई करने की बात करते है। जिसके कारण लोगों में ट्रैफिक पुलिस का डर नहीं रहता है। वे धडल्लें से अपने पुराने से पुराने वाहन चलाते है। और जहरीली हवा से पूरे शहर को प्रदूषित करते है।