भारत के वित्तमंत्री अरुण जेटली ने दो साल पहले भाजपा नेतृत्व की सरकार द्वारा देश में हुए विमुद्रीकरण (नोटबंदी) की बड़ी तारीफ की। आठ नवंबर 2016 की रात से पिछली सरकार के बड़े नोट रद्दी के टुकड़े करार दिए गए थे। इसका खमियाजा देश की जनता को भुगतना पड़ा। हालांकि काले धन और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के नाम पर हुई इस कार्रवाई को वित्तमंत्री अरुण जेटली ने खूब सराहा। उन्होंने कहा, इससे 2017-18 में आय कर टैक्स की रिटर्न फाइल में 80 फीसद बढ़ोतरी हुई। टैक्स की राशि में भी 13 फीसद की वृद्धि हो गई। डिजिटल लेनदेन में बढ़ोतरी हुई।
उन्होंने फेसबुक पर ‘नोटबंदी के प्रभाव’ ब्लाग में लिखा कि इसके पीछे पुराने नोटों की जब्ती मकसद नहीं थी बल्कि इन्हें औपचारिक अर्थव्यवस्था में लाकर करदाताओं की संख्या बढ़ाना था। इस पर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा,’विमुद्रीकरण (नोटबंदी) सावधानी से किया गया ‘आपराधिक वित्तीय घोटाला ‘था। उन्होंने बृहस्पतिवार (8 नवंबर) को कहा, इसके चलते लाखों जिंदगियां बर्बाद हो र्गइं।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा,’भाजपा नेतृत्व की एनडीए सरकार ने विमुद्रीकरण का जो फैसला लिया उसका असर हर खास और आम पर पड़ा। उन्होंने कहा कई बार कहा जाता है कि समय के साथ घाव भर जाते हंै लेकिन दुर्भाग्य से नोटबंदी के घाव और निशान समय बीतने के साथ दिखाई दे रहे हैं। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा, नोटबंदी से अर्थव्यवस्था की नींव कहे जाने वाले छोटे और मध्यम उद्योग अब तक नहीं उबर पाए हैं। रोजग़ार पर भी इनका खासा प्रभाव पड़ा है। भारतीय अर्थव्यवस्था युवाओं के लिए रोजग़ार के पर्याप्त मौके भी पैदा करने के मोर्च पर संघर्ष कर रही है।
विमुद्रीकरण (नोटबंदी) पर सेंटर फार मॉनीटरिंग इंडियन इकॉनॉमी (सीएमआईई) ने रोजग़ार के आंकडे अभी हाल जारी किए हैं। उसके अनुसार दो साल में बेरोजगारी की दर अक्तूबर के महीने में 6.9 फीसद थी। यह दो साल में सबसे ज़्यादा थी। इस डाटा में सबसे ज़्यादा चिंता की बात तब होती है जब यह जानकारी मिलती है कि रोजगार में सिर्फ 42.3 फीसद लोग हैं जो जनवरी 2016 से बहुत ही निचले स्तर पर है।
इस नोटबंदी का खासा असर कृषि और अनौपचारिक क्षेत्रों पर पड़ा। अर्थव्यवस्था के दोनों हिस्से नगद पर आधारित हैं। भारत और दूसरेे देशों में हुए शोध से यह जाहिर हुआ है कि यह गरीबी का ही नतीजा है। इन क्षेत्रों में काम करने वालों में ज़्यादातर अकुशल मजदूर हैं। इनमें काम करने वालों में ज़्यादातर महिलाएं होती हंै जिन पर असर पड़ा। नोटबंदी के बाद उनकी छटनी कर दी गई। इसका भी असर रोजग़ार बाजार पर पड़ा।
ऐसी हालत में अर्थव्यवस्था में विकास के लिए ज़रूरी थी नीति। चूंकि अनौपचारिक क्षेत्र सबसे ज़्यादा रोजग़ार देता है इसलिए ज़रूरी था कि नियमन का एक ढांचा बने। जो मूलभूत संसाधनों के लिहाज से खर्च के लक्ष्य की, हिसाब-किताब नीति आधारित रखे। इससे कुछ बदलाव होता।
केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली का कहना है कि विमुद्रीकरण (नोटबंदी) का मकसद पुराने नोटों को जब्त करना नहीं था बल्कि देश के गरीबों के लिए ज़्यादा से ज़्यादा संसाधन जुटाना था। साथ ही इन्हें औपचारिक अर्थव्यवस्था में शामिल करके करदाताओं की संख्या बढ़ाना था। उधर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कहना है कि इससे भारत के युवाओं के लिए नई नौकरियों के अवसर खत्म हो गए। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि इससे गरीब वंचित जनता और किसानों को लाभ पहुंचा है।