दो बड़े दलों में अध्यक्ष पद की दौड़

कांग्रेस में काफ़ी उठापटक के बाद दो चेहरे मुक़ाबले में, भाजपा में बिना शोर-शराबे के सब तय

कांग्रेस में अध्यक्ष पद का चुनाव 17 अक्टूबर को होना है, जबकि भाजपा के अध्यक्ष जे.पी. नड्डा का कार्यकाल जनवरी में पूरा हो रहा है। कांग्रेस में गाँधी परिवार के प्रतिनिधि माने जा रहे वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खडग़े और गाँधी परिवार का विरोध न करके भी उसके प्रतिनिधि के ख़िलाफ़ लड़ रहे वरिष्ठ नेता शशि थरूर के बीच टक्कर है। उधर भाजपा में पिछले तीन साल में अपनी मेहनत से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का भरोसा जीतने वाले जे.पी. नड्डा का कार्यकाल 2024 के चुनाव तक बढ़ाये जाने की प्रबल सम्भावना है। हालाँकि यदि नड्डा का कार्यकाल नहीं बढ़ता है, तो पार्टी में भूपेंद्र यादव अध्यक्ष पद के सबसे सशक्त दावेदार होंगे। दोनों पार्टियों के इस चुनावी हालात पर बता रहे हैं विशेष संवाददाता राकेश रॉकी :-

यह संयोग ही है कि लम्बे समय से अटका पड़ा कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव उस समय हो रहा है, जब भाजपा के अध्यक्ष पद के चुनाव को भी महज़ तीन ही महीने बचे हैं। कांग्रेस के चुनाव में दो वरिष्ठ नेता आमने-सामने हैं, जबकि भाजपा में वर्तमान अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का कार्यकाल बढ़ाये जाने की मज़बूत सम्भावना दिख रही है।

पहले बात करते हैं कांग्रेस की, जिसमें दो बड़े नेताओं में मुक़ाबला है और जिन्होंने गाँधी परिवार की सत्ता में भरोसा जताते हुए एक-दूसरे को चुनौती दी है। इनमें मल्लिकार्जुन खडग़े तो गाँधी परिवार के कमोवेश घोषित उम्मीदवार ही हैं, जबकि शशि थरूर गाँधी परिवार की सत्ता को चुनौती दिये बग़ैर खडग़े के ख़िलाफ़ एक अलग सोच के साथ मैदान में हैं, क्योंकि उनका मानना है कि एक लोकतांत्रिक पार्टी में चुनाव होना ही चाहिए। कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव का महत्त्व इसलिए भी अधिक है, क्योंकि यह उस समय हो रहा है। जब पार्टी की बहुत उम्मीद और एक रणनीति के तहत शुरू की गयी, भारत जोड़ो यात्रा चल रही है और दक्षिण राज्यों में लोग उससे जुड़ रहे हैं। पिछले आठ साल में कांग्रेस नेताओं ने एसी कमरों से राजनीति की तो जनता उससे दूर चली गयी। अब जब पार्टी के सबसे बड़े देशव्यापी चेहरा राहुल गाँधी ख़ुद मैदान में उतरे हैं और एक महीने से भी ज़्यादा से लगातार पदयात्रा कर रहे हैं, तो जनता का भी ध्यान उनकी तरफ़ जा रहा है।

अभी तक दक्षिण में ही चर्चा में रही यात्रा को लेकर उत्तर भारत में भी लोग चर्चा करने लगे हैं। ख़ासकर राहुल गाँधी की, जिनको लेकर यात्रा से पहले भाजपा ने यह प्रचार किया था कि कुछ दिन पदयात्रा करके राहुल गाँधी विदेश यात्रा पर निकल जाएँगे। भाजपा का यह प्रचार झूठा निकला है और राहुल गाँधी इस बात के प्रति दृढ़ दिख रहे हैं कि वह यात्रा के बीच दिल्ली भी नहीं जाएँगे। अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गाँधी भी दो दिन तक यात्रा में जुड़ चुकी हैं, जिससे निश्चित ही कांग्रेस $खेमे में ख़ासा उत्साह दिख रहा है। विभिन्न तटस्थ रिपोट्र्स बताती हैं कि केरल और कर्नाटक दोनों में कांग्रेस और राहुल गाँधी को पार्टी की उम्मीद से कहीं अधिक समर्थन मिला है और बड़ी संख्या में लोग यात्रा से जुड़ रहे हैं।

अध्यक्ष पद के लिए शशि थरूर कई राज्यों का दौरा करके समर्थन माँग चुके हैं। वह ख़ुद यह बात साफ़ कर चुके हैं कि वह मुक़ाबले से बाहर नहीं होंगे। अपने चुनावी घोषणा-पत्र में थरूर युवाओं, महिलाओं और पार्टी कार्यकर्ताओं को सशक्त बनाने पर ज़ोर देते हैं। यह वही बातें हैं, जो राहुल गाँधी भी कहते रहे हैं। घोषणा-पत्र में उन्होंने अपना उद्देश्य पार्टी को फिर से खड़ा, सक्रिय करना, कार्यकर्ताओं को सशक्त बनाना, सत्ता का विकेंद्रीकरण करके जनता के सम्पर्क में रहना बताया है। खडग़े से मुक़ाबले को लेकर वह कहते हैं कि यह भाजपा का सामना करने के लिए है।

थरूर कहते हैं कि कांग्रेस को 2024 के चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा से लडऩे के लिए राजनीतिक रूप से सशक्त किया जाना चाहिए। थरूर पार्टी के काम करने के तरीक़े में सुधार की ज़रूरत बता रहे हैं। उनका कहना है कि युवाओं को पार्टी में लाने और उन्हें वास्तविक अधिकार देने के अलावा मेहनती और लम्बे समय तक सेवा करने वाले कार्यकर्ताओं को अधिक सम्मान देने की बात कह रहे हैं। वह ऐसे अध्यक्ष पर ज़ोर दे रहे हैं, जो नियमित रूप से पार्टी मुख्यालय में बैठे और कार्यकर्ताओं को सुने। उनका कांग्रेस के धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांत पर बने रहने पर भी ज़ोर है।

उधर मल्लिकार्जुन खडग़े का कहना है कि चुनाव जीतने के बाद वह उदयपुर घोषणा-पत्र को लागू करेंगे। इस घोषणा-पत्र में कई प्रस्ताव शामिल हैं। पार्टी ने मई में उदयपुर में हुए चिन्तन शिविर में इन प्रस्तावों को मंज़ूरी दी थी। खडग़े का कहना है कि वह सामूहिक नेतृत्व और विचार विमर्श में विश्वास करते हैं। खडग़े के मुताबिक, यदि वह कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाते हैं, तो उदयपुर घोषणा-पत्र को लागू करते हुए युवाओं, किसानों, महिलाओं और छोटे कारोबारियों की समस्याओं का समाधान करने की कोशिश करेंगे। यह कमोवेश वही बातें हैं, जो राहुल गाँधी कहते हैं और थरूर अपने घोषणा-पत्र में कह रहे हैं। उदयपुर के घोषणा-पत्र में ही संगठनात्मक सुधार के तहत एक व्यक्ति-एक पद की नीति की बात कही गयी थी और खडग़े ने इसका पालन करते हुए अक्टूबर के शुरू राज्य सभा में पार्टी के अपने नेता पद से इस्ती$फा दे दिया था। शिविर में पास किये गये अन्य प्रस्ताव चुनाव के लिए टिकट बँटवारे और पदाधिकारियों के कार्यकाल से सम्बन्धित थे।

खडग़े आरएसएस और भाजपा पर देश के स्वायत्त निकायों को नष्ट करने का आरोप लगाते हुए कहते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद इस अहम पद पर होने के नाते वह भारत की विविधता और बहुलतावाद के सम्मान की रक्षा की लड़ाई लड़ेंगे। इसके अलावा पार्टी पदों के लिए कार्यकाल की सीमा के साथ 50 से कम उम्र के लोगों के लिए टिकट और पार्टी पदों पर महिलाओं, युवाओं, एससी / एसटी / ओबीसी के साथ अल्पसंख्यकों को नियुक्त करने की बात वह कह रहे हैं। साथ ही उम्मीदवार चयन के लिए पेशेवर तकनीक अपनाने पर उनका ज़ोर है।

उनका यह भी कहना है कि उम्मीदवारों को एक ही सीट पर दो चुनाव हारने के बाद दोहराया नहीं जाएगा और चुनाव प्रबंधन बेहतर करने के लिए डेटा तकनीक का उपयोग किया जाएगा। राहुल गाँधी की सोच की तरह खडग़े कांग्रेस को फिर जिताने के लिए बेरोज़गार युवाओं, कार्यरत युवाओं ख़ासकर आईटी क्षेत्र, इसी के साथ प्रवासी युवाओं के मुद्दों को उठाने की बात कर रहे हैं। राष्ट्र निर्माण के लिए कांग्रेस को जॉब फेयर (नौकरी मेला), स्किलिंग के साथ नये उद्योग में सहयोग को लेकर भी बड़ी भूमिका निभाने पर उनका ज़ोर है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने ‘लडक़ी हूँ, लड़ सकती हूँ’ का नारा दिया था। इसे लेकर वह कहते हैं कि पार्टी महिलाओं के नेतृत्व का समर्थन करेगी साथ ही चुनाव में महिलाओं के लिए पद और सीटें आरक्षित की जाएँगी, जिसके लिए पार्टी महिला आरक्षण विधेयक को पारित करने पर काम करेगी।

यह बहुत दिलचस्प बात है कि उत्तर भारत, जो कभी कांग्रेस के लिए मज़बूत क़िला रहा है; वहाँ से पार्टी का अध्यक्ष पद का एक भी उम्मीदवार नहीं। पार्टी के भीतर कुछ नेता यह भी कहते हैं कि गाँधी परिवार ने जानबूझकर दक्षिण के दो नेताओं को मैदान में रखा है, ताकि दक्षिण में बेहतर सन्देश जा सके।

ऐसा नहीं है कि उत्तर भारत में कांग्रेस को सीटें नहीं मिल सकती हैं। यदि राज्यों पर नज़र दौड़ाएँ, तो लोकसभा के चुनाव में भाजपा ने उत्तर भारत में राज्यवार कुल सीटों में से अधिकतम सीटें जीती हैं। लिहाज़ा उसके सामने 2024 के आम चुनाव में इस प्रदर्शन को दोहराने की बड़ी चुनौती होगी। खडग़े कह चुके हैं कि अध्यक्ष बनने पर वह गाँधी परिवार और वरिष्ठ नेताओं से राय-मशविरा करेंगे। गाँधी परिवार का विरोध शशि थरूर भी नहीं कर रहे। सच तो यह है कि चुनाव लडऩे का फ़ैसला करने से पहले से सोनिया गाँधी से मिलकर आये थे और उन्हें अपने फ़ैसले की जानकारी दी थी। शशि थरूर ने अक्टूबर के शुरू में खडग़े के सामने मुद्दों पर सार्वजनिक बहस का प्रस्ताव रखा था। थरूर का कहना था कि सार्वजनिक बहस को लोग देखना पसन्द करेंगे और इससे उनमें पार्टी के प्रति दिलचस्पी बढ़ेगी। सम्भवत: थरूर ब्रिटेन में हाल में हुए कंजर्वेटिव पार्टी के नेतृत्व पद के चुनाव की तर्ज पर ऐसा करना चाहते थे। हालाँकि वहाँ यह मुक़ाबला प्रधानमंत्री पद के लिए था, जबकि यहाँ पार्र्टी अध्यक्ष पद के लिए है।

 

नड्डा रहेंगे भाजपा अध्यक्ष?

भाजपा के अध्यक्ष जे.पी. नड्डा अपना तीन साल का कार्यकाल 20 जनवरी, 2023 को पूरा कर रहे हैं। इस लिहाज़ से उनकी जगह नया अध्यक्ष बनेगा। हालाँकि इस बात के मज़बूत संकेत हैं कि पार्टी उनके काम को देखते हुए उन्हें 2024 तक अध्यक्ष बनाये रख सकती है। या हो सकता है कि उन्हें एक और पूर्ण कार्यकाल दे दिया जाए। पार्टी संविधान में एक अध्यक्ष को तीन-तीन साल के लगातार दो कार्यकाल दिये जा सकते हैं। पहले भी कई अध्यक्ष दो कार्यकाल तक रहे हैं। पूर्व अध्यक्ष अमित शाह को भी इसी तरह सन् 2019 में लोकसभा चुनाव तक विस्तार (एक्सटेंशन) दिया गया था।

दरअसल यह पार्टी के बीच बड़े नेताओं की राय है कि चूँकि 2024 का लोकसभा चुनाव पार्टी के लिए बहुत अहम है, नड्डा की जगह नया अध्यक्ष बनाने से दिक़्क़तें आ सकती हैं। नड्डा पार्टी संगठन के साथ-साथ पार्टी की चुनावी रणनीति से भी बख़ूबी वाक़िफ़ हैं और उनके नेतृत्व में पार्टी ने चुनावों में बेहतर नतीजे दिखा चुकी है। ऊपर से नड्डा को प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह दोनों का भरोसेमंद माना जाता है।

वैसे नड्डा के अलावा जिस नेता की चर्चा सन् 2019 से ही संगठन के बीच होती रही है, वह भूपेंद्र यादव हैं। उन्हें एक महीना पहले पुनर्गठित पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति में शामिल किया गया है। जहाँ तक नड्डा की बात है, उनका नाम तो सन् 2014 में ही अध्यक्ष पद के लिए सामने आ गया था।

हालाँकि तब प्रधानमंत्री मोदी ने सरकार और संगठन में बेहतर तालमेल के लिए गुजरात सरकार में अपने गृह मंत्री रहे अमित शाह पर भरोसा जताया था। इसके बाद अमित शाह ने जब सन् 2019 में गृह मंत्री बनने के साथ ही अध्यक्ष पद छोड़ा, तो नड्डा ही सन् 2020 में पूर्णकालिक अध्यक्ष बनने तक कार्यकारी अध्यक्ष रहे।

भाजपा में नड्डा को ऐसा नेता माना जाता है, जो आरएसएस की सामाजिक समरसता की विचारधारा और भाजपा की चुनावी सोशल इंजीनयरिंग दोनों में फिट बैठते हैं। यह कहा जाता है कि अमित शाह के अध्यक्ष रहते नड्‌डा ही ऐसे महासचिव थे, जो संगठन के पदों पर सीढ़ी दर सीढ़ी ऊपर चढ़े हैं।

नड्डा का कार्यकाल बढ़ाया जाता है, तो निश्चित ही उनके सामने ढेरों चुनौतियाँ होंगी, जिनमें एकाध महीने में दो राज्यों के विधानसभा चुनाव भी शामिल हैं। इस साल दो राज्यों प्रधानमंत्री मोदी के गृह राज्य गुजरात और नड्डा के गृह राज्य हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के भाजपा की दृष्टि से चुनौतीपूर्ण चुनाव हैं। यही नहीं, अगले साल कर्नाटक, त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के विधानसभा चुनाव हैं। इस तरह से एक के बाद एक विधानसभा के चुनाव नड्डा की रणनीतिक क्षमताओं की परीक्षा लेंगे।

नड्डा ख़ुद को लगातार हिमाचल के चुनाव पर नज़र रखे ही हैं और प्रधानमंत्री मोदी के दो दौरे भी करवा चुके हैं। यही नहीं, हाल के महीनों में नड्डा ने दक्षिण भारत के भी काफ़ी दौरे किये हैं। क्योंकि पार्टी वहाँ अपनी ज़मीन मज़बूत करना चाहती है। जे.पी. नड्डा को स्वभाव से सौम्य माना जाता है। अमित शाह से चार साल बड़े नड्डा को संगठन में माहिर माना जाता है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (एबीवीपी) में 13 साल तक रहे नड्डा का पार्टी के संगठन में व्यापक नेटवर्क है। उस दौर के युवा नेता आज पार्टी के वरिष्ठ पदों पर हैं और सभी नड्डा को जानते हैं।

नड्डा की संगठन क्षमता तब सामने आयी, जब सन् 2019 में उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में पार्टी प्रभारी के नाते उन्होंने चुनाव रणनीति बुनी और भाजपा को जीत दिलायी। नड्डा के बारे में कहा जाता है कि बड़े निर्णय वे कभी जल्दी में नहीं लेते और सभी पक्षों से बात करने को प्राथमिकता देते हैं। हाल में जब महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस को उप मुख्यमंत्री बनाने की बात आयी, तो नड्डा ने इसमें बड़ी भूमिका अदा की।

जे.पी. नड्डा पर भाजपा के मिशन दक्षिण की बड़ी चुनौती है। नड्डा लगातार दक्षिण के राज्यों का दौरा करते रहे हैं। तेलंगाना और तमिलनाडु के बाद हाल में वह दो दिन केरल में रहे हैं, जहाँ उन्होंने पार्टी की ज़मीन मज़बूत करने के लिए रणनीति तैयार की है। नड्डा इन राज्यों में पार्टी के बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं से मिल रहे हैं। वह राज्यों के बुद्धिजीवियों और जानी मानी हस्तियों से भी मुलाक़ात कर रहे हैं। तमिलनाडु, तेलंगाना और केरल में नड्डा प्रोफेशनल से लेकर ख़ासतौर पर महिला कार्यकर्ताओं से मुलाक़ात के अलावा बूथ अध्यक्षों के घर गये हैं। वह उन्हें यह सन्देश देना चाहते हैं कि पार्टी के लिए इन राज्यों में खड़ा होना कितना ज़रूरी है। हालाँकि इसमें कोई दो-राय नहीं कि भाजपा के सामने दक्षिण में संगठन को खड़ा करना बड़ी चुनौती है।

भाजपा के लिए 2024 के लोकसभा चुनाव के लिहाज़ से दक्षिण बहुत अहम है। यह बहुत $गौर करने लायक बात है कि सन् 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उत्तर भारत के ज़्यादातर राज्यों में शिखर पर रही थी। अर्थात् उसने कई जगह तो सभी की सभी सीटें जीती थीं। पार्टी के नेता भी मानते हैं कि 2024 में उस प्रदर्शन को दोहराना कठिन होगा। लिहाज़ा पार्टी को इसकी भरपाई दक्षिण से करनी होगी। उत्तर पूर्व में वैसे ही ज़्यादा सीटें नहीं हैं। लिहाज़ा दक्षिण पर ही पार्टी को भरोसा है, जहाँ कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा के ज़रिये अपनी ज़मीन मज़बूत करने में जुटी है, जिसका असली म$कसद वहाँ भाजपा को न उठने देना ही है।

तेलंगना में सन् 2019 में भाजपा ने 17 में से चार सीटें जीती थीं। तमिलनाडु में लोकसभा की 38 सीटें हैं। लेकिन भाजपा वहाँ शून्य है। ऐसे ही केरल की 20 में से एक भी सीट भाजपा के पास नहीं, जबकि कांग्रेस नेता राहुल गाँधी इसी राज्य से सांसद हैं। उनकी पदयात्रा को केरल में काफ़ी समर्थन मिलता दिखा है। भाजपा का यही हाल आंध्र प्रदेश में है, जहाँ 25 में से एक भी सीट उसके पास नहीं। नड्डा दोबारा अध्यक्ष बने, तो उनके लिए इन शून्य वाले राज्यों में पार्टी को खड़ा करना बड़ी चुनौती रहेगी।