इन दिनों एक ऐसे बाबा का ज़िक्र पूरे देश में हो रहा है, जिसके इशारों पर देश का सबसे बड़ा स्टॉक मार्केट नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) चल रहा था। यह बाबा कौन है? कहाँ रहता है? इस बात का किसी को कुछ पता नहीं है। यह बाबा वेदों के नाम से बनी ईमेल्स के ज़रिये एनएसई चलाता था और उसके आदेशों के आधार पर ही वहाँ सब कुछ होता था। लम्बे समय तक नेशनल स्टॉक एक्सचेंज पर क़ब्ज़ा करके रखने वाला यह बाबा जो-जो हुक्म ईमेल के ज़रिये उस समय की एनएसई की सीईओ चित्रा रामकृष्ण को देता था, मैडम उस हुक्म का तत्काल पालन करती थीं। यह बाबा नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के सीईओ और अन्य बड़े पदों पर नियुक्तियाँ भी एक ईमेल के ज़रिये करता था। ग़ज़ब बात यह है कि इन बड़े पदों पर नौकरी करने वालों की तनख़्वाह भी करोड़ों में रही।
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की पूर्व सीईओ चित्रा रामकृष्ण की पदोन्नति किस बाबा के इशारे पर हो जाती है? वो कैसे एक अदृश्य बाबा के सम्पर्क में आ जाती हैं? और इसी अज्ञात बाबा के इशारे पर काम क्यों करती हैं? यह सवाल सेबी भी नहीं खोज सका है। इससे भी बड़ी बात यह है कि सरकार इस पर ख़ामोशी साधे हुए है। सात साल में अब जब सेबी की जाँच पूरी हुई, तो भी वह यह बताने में नाकाम है कि चित्रा रामकृष्ण को कौन-सा बाबा अपने इशारे पर चला रहा था? 70 फ़ीसदी का लाभ कमाकर देने वाले नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में इतनी बड़ी साज़िश चल रही थी, इसकी ख़बर सरकार को न होना हैरान कर देने वाली बात है। सन् 1963 में जन्मीं चित्रा रामकृष्ण सन् 1992 में बने नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) की स्थापना करने वाली टीम में शामिल थीं। बाद में वह एनएसई के उच्च पद सीईओ तक पहुँचीं। यह पद और प्रबन्ध निदेशक का पद उन्होंने अप्रैल, 2013 में सँभाला था। उनका कार्यकाल मार्च, 2018 को समाप्त होना था; लेकिन ग़लत गतिविधियों के कारण उन्हें 2016 में इस्तीफ़ा देना पड़ा। अब जाकर उनके मामले में सेबी की जाँच सामने आयी है, जिसमें बाबा की कहानी किसी को हज़म नहीं हो रही। पूरी दुनिया में इतने बड़े स्टॉक एक्सचेंज को बाबा द्वारा चलाने वाली बात का मज़ाक़ बन रहा है। सेबी ने चित्रा रामकृष्ण पर महज़ तीन करोड़ रुपये, रवि नारायण तथा आनंद सुब्रमण्यम पर दो-दो करोड़ रुपये और वी.आर. नरसिम्हन पर छ: लाख रुपये का ज़ुर्माना लगाया है। इसके अलावा सेबी ने एनएसई को चित्रा के अलावा अवकाश के बदले भुगतान किये गये 1.54 करोड़ रुपये और 2.83 करोड़ रुपये के बोनस (डेफर्ड बोनस) को ज़ब्त करने का भी निर्देश दिया है। अब एनएसई की पूर्व प्रबन्ध निदेशक चित्रा रामकृष्ण के घर आयकर विभाग ने भी छापा मारा है और बाक़ी आरोपियों से भी पूछताछ की है। हालाँकि सुब्रमण्यम की गिरफ़्तारी हो चुकी है और बाक़ी पर कार्रवाई का इंतज़ार है।
बाबा के इशारे पर नियुक्तियों और पदोन्नति का होता था खेल
हैरानी की बात यह है कि चित्रा बाबा के एक ईमेल के इशारे पर ही नयी नियुक्तियाँ कर देती थीं, लोगों को पद्दोन्नति देती थीं, उनकी तनख़्वाह बढ़ा देती थीं। आनंद सुब्रमण्यम को चित्रा रामकृष्ण बाबा के कहने पर नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में एक बड़ा पद देती हैं। वह भी नया पद बनाकर एक 15 लाख की तनख़्वाह सालाना पाने वाले को पाँच करोड़ रुपये की तनख़्वाह देती हैं और प्रथम श्रेणी की हवाई यात्रा के साथ-साथ उन्हें मनमर्ज़ी के ख़र्चे करने की छूट भी मिलती है। यहाँ तक बाबा ईमेल से कहता है कि आनंद को हफ़्ते में पाँच दिन नहीं, बल्कि तीन दिन ही काम करना चाहिए। इस प्रकार आनंद सुब्रमण्यम हफ़्ते में केवल तीन दिन काम करने की छूट भी मिल जाती है। सवाल यह है कि सरकार एक तरफ़ देश भर में काम करने वालों के काम के घंटे बढ़ाती है, तो वहीं दूसरी ओर एक बाबा जो कि आज भी अज्ञात है, एक ज़िम्मेदार पद पर बैठे व्यक्ति को महज़ तीन दिन अपनी मर्ज़ी से काम करने की छूट दिलवा देता है। इसी तरह अन्य कई नियुक्तियाँ बाबा के ईमेल के इशारे पर होती हैं और कोई आवाज़ तक नहीं उठती है।
कौन है अज्ञात बाबा?
कहा जा रहा है कि बाबा हिमालय में रहता है, और ईमेल उस जगह से चलाता है, जहाँ नेटवर्क ही नहीं है। कुछ लोग कह रहे हैं कि यही बाबा सरकार भी चला रहा है। हालाँकि मैं इस बात से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखता; लेकिन लोगों के सवालों का जवाब भी मेरे पास नहीं है। लेकिन चित्रा रामकृष्ण की बाबा से बातचीत वाली ईमेलों से पता चला है कि बाबा बालों की सज्जा (हेयर स्टाइल) के बारे में भी अच्छी जानकारी रखता है और बताता है कि किस प्रकार का हेयर स्टाइल होना चाहिए। बाबा अज्ञात है और चित्रा व कुछ लड़कियों के साथ देश-विदेश घूमने का शौक़ीन भी है। सेबी ने जब चित्रा रामकृष्ण से पूछा कि वो बाबा कौन हैं? आपकी उनसे मुलाक़ात कैसे हुई? तो चित्रा कहती हैं कि बाबा योगी हैं और परमहंस हैं। वह उन्हें गंगा के एक तट पर 20 साल पहले मिले थे। कैसा मज़ाक़ है?
सवाल यह है कि अगर चित्रा रामकृष्ण बाबा के प्रभाव में आकर 20 साल से काम कर रही थीं, तो सेबी इतने लम्बे समय तक क्यों सोता रहा? देश के इतने बड़े स्टॉक मार्केट के केंद्र में कई साल धाँधली होती रही और किसी को कुछ पता तक नहीं चला? क्या सेबी को इसकी जानकारी नहीं थी? क्या उस बाबा का सेबी और चित्रा के साथ-साथ नेशनल स्टॉक एक्सचेंज और यहाँ तक सरकार में इतना ख़ौफ़ है कि कोई कुछ बोलता तक नहीं है? क्या सरकार भी इस अज्ञात बाबा के दबाव में ही काम करती है? पिछले अगर चित्रा रामकृष्ण का इतिहास खंगालें, तो पता चलता है कि कई साल तक चित्रा देश की प्रभावी महिलाओं में लगातार छायी रहीं और अब जब यह बड़ा घोटाला सामने आने को है, तो सेबी के हाथ ख़ाली हैं। बाबा के साथ चित्रा के वित्तीय लेन-देन के भी आरोप लग रहे हैं। सवाल यह भी है कि ऋषि अग्रवाल, जो कि 28 बैंकों को 22,842 करोड़ रुपये का चूना लगाकर ग़ायब है, उसके नाम सीबीआई ने लुकआउट नोटिस जारी किया है। तो फिर सीबीआई इस अज्ञात बाबा के नाम कोई नोटिस जारी क्यों नहीं करती? जो कि लम्बे समय तक पूरे देश के सबसे बड़े स्टॉक एक्सचेंज को प्रभावित करता रहा।
सरकार बजट पेश करते समय कहती है कि हम 25 साल में अमृत काल में होंगे और देश ख़ुशहाल होगा। लेकिन वहीं दूसरी ओर देश में अरबों-ख़रबों की रक़म के निवेश वाले बाज़ार के केंद्र और उसमें अहम पदों पर नियुक्ति के फ़ैसले पिछले कई साल से एक ऐसे बाबा के द्वारा किये जा रहे थे, जिसका कोई अता-पता ही नहीं है। कहीं ऐसा तो नहीं कि 25 साल बाद हिन्दुस्तान अमृत काल की जगह विष काल मना रहा हो और आज की कमायी वाली कुर्सियों पर बैठे मठाधीश तब तक दुनिया को ही अलविदा कह चुके हों, और देश की जाँच एजेंसियों के पास पूछताछ के लिए कोई मुजरिम ही न हो।
फ़र्ज़ी कम्पनियों का खेल
यह कोई नयी बात नहीं है कि हिन्दुस्तान में फ़र्ज़ी नामों से फ़र्ज़ी कम्पनियाँ चलती हैं। कई बार जाँच एजेंसियों ने ऐसी फ़र्ज़ी कम्पनियों का समय-समय पर पर्दाफ़ाश किया है। हैरानी की बात यह है कि इन फ़र्ज़ी कम्पनियों से हर साल फ़र्ज़ी लोग अरबों-ख़रबों रुपये का घोटाला करके ग़ायब हो जाते हैं और बाद में इसी तर्ज पर नयी फ़र्ज़ी कम्पनियाँ ऐसे घोटालों के लिए खड़ी हो जाती हैं। कई ऐसी कम्पनियों के ज़रिये ये फ़र्ज़ी लोग मोटा ऋण बैंकों से लेकर चंपत हो जाते हैं। पिछले सात साल में ऐसे चंपत होने वाले लोगों की फ़ैहरिस्त में बहुत बड़ा इज़ाफ़ा हुआ है। अब इन लोगों पर कौन-से बाबा का हाथ है? यह तो नहीं पता; लेकिन इतना ज़रूर कहा जा रहा है कि बैंकों का पैसा लेकर भागने वाले इन लोगों में गुज़रात के भगोड़े सबसे ज़्यादा हैं।
ख़ैर, फ़र्ज़ी नाम पर चलने वाली फ़र्ज़ी कम्पनियों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की केंद्र की सरकार ने 2014 में सत्ता हासिल करने के बाद काला धन पर रोक लगाने का दावा करते हुए देश में चलने वाली हज़ारों फ़र्ज़ी कम्पनियों पर नकेल कसने की बात कही। लेकिन साल 2017 में जब 13 बैंकों से लोन लेकर चंपत हुए लोगों का ख़ुलासा हुआ, तब पता चला कि देश में हज़ारों फ़र्ज़ी कम्पनियाँ चल रही हैं और इनमें से कई कम्पनियों के तो 100-100 बैंक खाते भी थे। इस दौरान बैंकों की ओर से 5,800 फ़र्ज़ी कम्पनियों की लिस्ट जारी की गयी और सरकार ने तब दावा किया कि उसने क़रीब दो लाख से ज़्यादा फ़र्ज़ी कम्पनियों पर रोक लगा दी है। इस दौरान हैरानी की बात यह सामने आयी कि एक कम्पनी के तो क़रीब 2,134 बैंक खाते थे। और नोटबंदी के दौरान इन फ़र्ज़ी कम्पनियों ने क़रीब 4,573.87 करोड़ रुपये का लेन-देन भी किया। इसके बाद इन कम्पनियों को बन्द करने की बात सरकार ने कही। अभी कुछ महीने पहले उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के सौतेले भाई प्रतीक यादव पर फ़र्ज़ी कम्पनियाँ चलाने का आरोप लगा; लेकिन वह पत्नी अपर्णा यादव सहित भाजपा में शामिल हो गये और मामला दब गया। लेकिन इन कम्पनियों पर क्या कार्रवाई की गयी? इसका न तो कोई ब्योरा सरकार ने दिया और न ही आज तक किसी कम्पनी चलाने वाले का कोई चेहरा सामने आया है। ख़ास बात यह है कि इन फ़र्ज़ी कम्पनियों द्वारा कर (टैक्स) भी चोरी किया जाता है।
देश की जनता की मेहनत की कमायी को चूना लगाने वाली ऐसी कम्पनियों की कमी आज भी देश में नहीं है; लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती। क्योंकि इन फ़र्ज़ी कम्पनियों को चलाने वालों के ताल्लुक़ात राजनीतिक रसूख़दारों से होते हैं, यह बात पहले भी कई बार उजागर हो चुकी है। मुझे उम्मीद है कि न खाऊँगा और न खाने दूँगा की की बात कहने वाले हमारे प्रधानमंत्री, जो कि 18-18 घंटे काम करते हैं; न केवल ऐसी फ़र्ज़ी कम्पनियों की जानकारी हासिल करवाकर इन फ़र्ज़ी कम्पनियों को चलाने वाले फ़र्ज़ी लोगों को जेल में डालेंगे, बल्कि उस अज्ञात बाबा का पता भी लगवाकर उसे जेल भेजेंगे, जो देश के सबसे बड़े स्टॉक एक्सचेंज नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में बिना किसी महत्त्वपूर्ण पद पर नियुक्त हुए घुसकर उसकी गोपनीय जानकारी हासिल करता रहा है और बड़े-बड़े पदों पर ईमेल के ज़रिये निर्देश देकर नियुक्तियाँ करवाता रहा। मेरे ख़याल से कपड़ों से लोगों को पहचान लेने वाले प्रधानमंत्री के लिए यह काम कोई मुश्किल नहीं, जिसे सेबी नहीं कर सकी।
(लेखक दैनिक भास्कर के राजनीतिक संपादक हैं।)