आखिर भारत के निर्वाचन आयोग ने आम चुनाव-2019 की घोषणा कर दी। उन्होंने पहले की ही तरह ईवीएम (इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन) की तकनीकी क्षमता की तारीफ की। लेकिन यह कहा कि हर बूथ परवीवीआईपीटी की वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट दल मशीनें भी होगी। यह भी कहा गया कि सोशल मीडिया की चुनावी हिस्सेदारी पर नजर रखी जाएगी। एक कमेटी को पूरी जिम्मेदारी सौंपी भी गई है। जम्मू-कश्मीर में लोकसभा चुनाव होंगे चुनाव को ध्यान देने के लिए तब लोगों की कमेटी भी होगी। लेकिन विधानसभा चुनाव नहीं होंगे। तकरीबन सात राज्यों में सात और नए चरणों में चुनाव कराए जाएंगे। जम्मू-कश्मीर में पांच चरण में देश को 17वीं लोक सभा के लिए मतदान का पहला चरण 11 अप्रैल को शुरू होगा और आखिरी चरण 19 मई को समाप्त होगा। कुल सात चरणों के चलते इस आम चुनाव के नतीजे 23 मई से आने शुरू हो जाएंगे। इस बार मतदाताओं में नए युवा डेढ़ करोड़ मतदाताओं की खासी बड़ी संख्या है। यह ध्यान रखा गया है कि हर चुनाव के बाद दूसरे चुनाव हर चुनाव में सात दिन बाद से हों। जिससेसुरक्षा दस्तों की तैनातगी में असुविधा नहीं होगी। इसके साथ ही सुरक्षा दस्तों की यह जिम्मेदारी भी बढ़ जाएगी कि लंबी अवधि तक मतदान के उपयोग में लाई गई मशीनें समुचित पहरे में रखी जाएं।
सबसे रोचक बात यह है कि इस बार देश में सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों की ऐसी व्यवस्था की गई है कि राज्य में पूरा निर्वाचन सात चरण में पूरी हो जाए। देश के सबसे ज्य़ादा प्रधानमंत्रीइसी प्रदेश से आए हैं। मतदान का विस्तृत सिलसिला उन राज्यों के साथ भी है जो छोटे हैं लेकिन महत्वपूर्ण हैं। मसलन महाराष्ट्र, यहां है तो 48 सीटें लेकिन यहां चार चरण में चुनाव होंगे। परिश्चम बंगाल में 42 सीटेंहैं लेकिन सातों चरणों में चुनाव होंगे। हो सकता है आबादी के घनत्व के कारण चुनाव आयोग ने ऐसा सोचा हो। उत्तरप्रदेश मे 80 सीटें है। यही स्थिति बिहार के साथ है जहां कुल सीटें 40 हैं। झारखंड में 14 सीटें हैंलेकिन चार चरणों में चुनाव होंगे। ऐसा ही है मध्यप्रदेश में जहां 29 सीटें है और ओडिशा में 21 सीट हैं। वहीं, तमिलनाडु में 32 सीट है – आंध्रप्रदेश में 25 सीट हैं और तेलंगाना, पंजाब, उत्तरप्रदेश, राजस्थान में एकही चरण में चुनाव हो जाएंगे।
बंगाल, केरल और बिहार में कानून और व्यवस्था की हालत बहुत खराब है। यहां कब और कहां राजनीतिक हिंसा छिड़ जाएगी कि हालत अनुमान लगा पाना कठिन है। भाजपा का बंगाल में आरोप है कि पंचायतचुनावों में यहां बहुत हिंसा हुई। भाजपा के कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ हिंसा का दौर-दौरा रहता है। भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं को चुनावी प्रचार में बहुत बाधा होती है। इन सब बातों का देश के चुनाव आयोगने इस बार केरल में भी पूरा ख्याल रखा है। चुनाव की तारीखें के पहले से हर कहीं सुरक्षा दस्ते तैनात हो जाएं इसकी पूरी व्यवस्था इस बार खास तौर पर की गई है।
इसी तरह झारखंड, ओडिशा और मध्यप्रदेश में माओवादी सक्रियता की खबरें आती रही हैं। इनकी सक्रियता को किस तरह समाज कल्याण और बातचीत के आधार पर थामा जाए इस पर किसी राज्य सरकारया केंद्र सरकार ने कभी न सोचा और न अमल किया। इसके चलते इन इलाकों से हिंसा की खबरें आती हैं और बड़े पैमाने पर तबाही होती है। चुनाव आयोग सुरक्षा दस्तों के जरिए यहां मतदान की प्रक्रिया कीमहज खानापूर्ति ही करता रहा है।
जम्मू-कश्मीर ऐसा ही राज्य है जहां खासी अशांति और तनाव का माहौल है। केंद्र सरकार की नीतियां भी यहां अब तक नाकाम ही रही हैं। इस समय राज्य में राष्ट्रपति शासन है। निर्वाचन आयोग वहां फिलहाललोकसभा चुनाव कराना चाहता है। यहां पांच चरणों में चुनाव होंगे। पहले चरण की शुरूआत छह अप्रैल से है और अंतिम चरण छह मई को है। यहां राजनीति दलों की मांग थी कि विधानसभाओं के भी चुनावलोकसभा के ही साथ करा दिए जाएं क्योंकि पंचायत और निकाय चुनाव भी हो चुके हैं। तब तो राज्य की हालत भी खासी खराब थी।
विधानसभा चुनाव आंध्र प्रदेश, अरूणंचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम में साथ-साथ कराए जाएंगे। सुरक्षा वजहों से जम्मू-कश्मीर मेें फिलहाल चुनाव नहीं होंगे। इसके बारे में फैसला जल्दी ही होगा। सेवानिवृतआईएएस अधिकारी नूर मोहम्मद और विनोद जुत्शी के अलावा सेवानिवृत आईपीएस एएस गिल की टीम को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है कि ये जम्मू-कश्मीर मेें जाएं और वहां के हालात का जाया लें और उन सभीसे राय-मश्विरा करें जिनकी सलाह राज्य में चुनावों के लिहाज से ज़रूरी है। फिर उनकी रपट के आधार पर चुनाव आयोग अगली कार्रवाई करेगा।
देश के मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने के लिए बड़ी तादाद में सुरक्षा दस्ते चाहिए। हम जब वहां गए थे और वहां सबसे आम बात की थी तो इस बड़ी ज़रूरत काएहसास बढ़ा था। पूरी घाटी में सुरक्षा बलों की तैनातगी ही जब मुद्दा बनने लगा तो विधानसभा चुनाव टालने पड़े।
मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि चुनाव में तटस्थता हो इसलिए सोशल मीडिया मसलन ट्विटर, फेसबुक, गूगल आदि कंपनियों के प्रतिनिधियों से आयोग की एक कमेटी बातचीत करेगी। प्रतिनिधियों ने यह भरोसादिया है कि वे ही राजनीतिक विज्ञापन प्रसारित हों जिन्हें आयोग ने मॉडेल कोड के तहत मंजूरी दी है।
इसी तरह आयोग ने यह भी व्यवस्था की है कि विभिन्न राजनीति पोस्टरों पर सैनिकों या सर्जिकल स्ट्राइक संबंधी घटनाओं का चुनावी इस्तेमाल न पिछले दिनों एक सांसद को सैनिक वर्दी में मोटर साइकिल चलातेचुनावी रैली करते देखा गया। राजस्थान में एक पार्टी के दो पोस्टरों पर वायुसेना के अधिकारी अभिनंदन की तस्वीर के साथ सांसदों-विधायकों की तस्वीरें थीं। ऐसे पोस्टरों को चुनाव आयोग मान्य नहीं कर रहा है।क्योंकि देश का सैनिक अपनी ड्यूटी निभाता है और पूरे देश की सेवा में जगा रहता है। किसी पार्टी का सैनिकों को अपने पोस्टर में रखना चुनाव आयोग की चुनाव संहिता के विरोध में जाता है।