अगर आज देश में मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों की पर्याप्त संख्या होती तो हमारे देश की युवा पीढ़ि उच्च शिक्षा के लिये रूस और यूक्रेन सहित अन्य देशों में डिग्री लेने नहीं जाती । देश को आजाद हुये 75 साल से ज्यादा हो गये है। तब से सरकारी मेडिकल कॉलेज और इंजीनियरिंग कॉलेजों की संख्या बहुत ही कम बढ़ाई गयी है। जबकि प्राइवेट कॉलेजो की संख्या में जमकर इजाफा हुआ है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व संयुक्त सचिव डॉ अनिल बंसल का कहना है कि जब वे 1978 में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे थे। तब देश में मेडिकल कॉलेजों की संख्या लगभग एक सौ के करीब थी। तब से अब तक देश में बहुत ही कम मेडिकल कॉलेजों को खोला गया है। लेकिन प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की संख्या भी आज काफी बढ़ोत्तरी हुई है। उनका कहना है कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेज वालों की फीस काफी अधिक होने से मध्यम और गरीब वर्ग का छात्र अपने ही देश में फीस देने में अक्षम होता है।
ऐसे में मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्र मजबूरी में विदेशों में जाकर पढ़ाई करते है।सरकार को चाहिये की समय रहते अपने ही देश में मेडिकल काँलेजों की संख्या बढ़ाये ताकि, अपने देश के छात्र अपने ही देश में पढ़ सकें और अपने देश की इकाँनामि अपने देश में रहे । डॉ बंसल का कहना है कि सरकार कहती है कि सरकार मेडिकल खोलने के लिये पर्याप्त बजट नहीं है। जबकि सरकार के पास बजट की कोई कमी नहीं है। डॉ बंसल का कहना है कि भारत जैसे बढ़ी संख्या वाले देश में डाँक्टरों की बढ़ी कमी है। उन्होंने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एक हजार की संख्या पर एक डॉक्टर होना चाहिये। लेकिन यहां पर नहीं है। यहां पर 15 हजार से अधिक संख्या पर एक डॉक्टर है।
डॉ बंसल ने बताया कि देश में जिस अनुपात में जनसंख्या बढ़ रही है उस अनुपात में डाक्टरों की जनसंख्या न के बराबर बढ़ रही है। वजह साफ है कि मेडिकल काँलेजों की कमी का होना। उनका कहना है कि अगर प्राइवेट मेडिकल कॉलेज को खोलना है तो फीस कम से कम ऐसी होनी चाहिये ताकि मध्यम और गरीब वर्ग का पढने वाला छात्र आसानी से एडमिशन लें सकें।