मंज़िलें उनको मिलती हैं, जो सपनों को पंख लगाकर मेहनत में जुट जाते हैं। ऐसे ही लोगों को कामयाबी मिलती भी है। वैसे हमारे देश के युवाओं में प्रतिभा की कमी नहीं है। बस उनको सही समय पर उचित मौका मिलना चाहिए। पिछले दिनों राजस्थान न्यायिक सेवा परीक्षा 2018 का परिणाम सामने आया। इसमें सबसे ज़्यादा चर्चा बटोरी महज़ पहले प्रयास में ही 21 साल की उम्र में टॉप करके सबसे युवा जज बनने वाले मयंक प्रताप सिंह ने। मयंक राजस्थान की राजधानी जयपुर के रहने वाले हैं। लोगों के मन में जजों के प्रति सम्मान देखने के बाद मयंक ने ठान लिया था कि उन्हें भी एक दिन जज ही बनना है। आरजेएस में सबसे मुश्किल साक्षात्कार होता है। इसके साक्षात्कार में हाई कोर्ट के दो न्यायाधीशों के साथ-साथ कानून के विशेषज्ञ भी बैठते हैं। इस मुश्किल परीक्षा को महज़ 21 की उम्र में पास करना इसलिए भी मायने रखता है, क्योंकि इस उम्र के अनेक युवा तो करियर बनाने का निर्णय तक नहीं ले पाते।
मगर कहते हैं कि अगर किसी चीज़ को दिल से चाहो तो उसे मिलाने के लिए पूरी कायनात लग जाती है। बात अगर प्रतियोगिता की हो मेहनत के साथ ही माहौल और उचित मार्गदर्शन भी मायने रखता है। इस पर मयंक को परिवार, शिक्षकों के साथ ही सहपाठियों का भी भरपूर सहयोग मिला। इसी साल राजस्थान यूनिवर्सिटी से पाँच साल का एलएलबी कोर्स पूरा करने वाले मयंक युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनेंगे। क्योंकि मयंक स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के महज दो महीने बाद सफलता हासिल करके अलग पहचान बनाने में कामयाब रहे।
खास बात यह है कि इससे पहले 2018 तक न्यायिक सेवा परीक्षाओं में आवेदन करने के लिए न्यूनतम उम्र ही 23 साल हुआ करती थी। इत्तेफाक से इसी साल राजस्थान हाई कोर्ट ने यह उम्र घटाकर 21 साल की थी। इस आदेश के बाद ही मयंक कम उम्र में ही परीक्षा में बैठ सके और जज बनकर नाम रौशन किया।
सफलता के राज़ और मयंक
खदु फेसबुक जैसी सोशल साइट से दूर रहने वाले मयंक प्रताप सिंह को माइक्रो ब्लॉगिंग साइट्स पर बधाइयों का सिलसिला चल पड़ा।
परीक्षा के लिए किसी भी कोचिंग का सहारा नहीं लिया, पर पढ़ाई के दौरान कानून की बारीकी को पढ़ा और समझा।
जयपुर के मयंक ने महज 21 साल 10 महीने 9 दिन की उम्र में पहले प्रयास में ही न्यायिक परीक्षा में टॉप करके मुकाम हासिल किया।
पढऩे के लिए वक्त देने की बात करें, तो मयंक ने रोज़ाना औसतन 6 घंटे तक का समय पढ़ाई में बिताया। उपन्यास पढऩे का शौक है।
मयंक के पिता राजकुमार सिंह और माँ डॉ. मंजू सिंह उदयपुर में सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं। बड़ी बहन इंजीनियर हैं।
इंटरव्यू में एक दिन पहले सबरीमाला पर आये फैसले के सवालों का उचित जवाब देने के बाद सफलता की उम्मीद तो थी, पर टॉप करने की नहीं थी।
अच्छा जज बनने के लिए ईमानदारी सबसे ज़रूरी है। यह कहावत भी चरितार्थ हुई कि आप मेहनत और ईमानदारी से काम करें, तो सफलता आपके कदम चूमेगी।
मयंक अपने परिवार में न्याय के क्षेत्र में जाने वाले पहले शख्स हैं। जजों की कमी के चलते उनका रुझान इस ओर रहा।
समाज सेवा में भी रुचि रही है साथ ही महिला और बच्चों के कल्याण के लिए भी वह एनजीओ के साथ भी जुड़े रहे हैं।
कानून का क्षेत्र चिकित्सक की तरह होता है, जिसमें इससे जुडऩे वाले को हर वक्त अपडेट रहना होता है।