सुप्रीम कोर्ट के सेना में महिलाओं के स्थायी कमीशन बनाये जाने के आदेश के बाद आर्मी में महिलाओं के हौसले अब दिन-ब-दिन बुलंद होने हैं। वे इतिहास रचने में पीछे नहीं हैं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च) से महज़ एक हफ्ते पहले 29 फरवरी को देश में पहली बार किसी महिला बाल रोग चिकित्सक ने लेफ्टिनेंट जनरल का पद सँभाला है। इससे पहले सशस्त्र बल में महज़ दो महिलाएँ ही लेफ्टिनेंट जनरल के पद तक पहुँची हैं। यह ऐतिहासिक मुकाम माधुरी कानिटकर ने हासिल किया है।
इससे पहले, इस मुकाम को हासिल करने वाली देश की पहली महिला डॉ. पुनीता अरोड़ा हैं, जो एक सर्जन वाइस-एडमिरल और भारतीय नौसेना की थ्री स्टार अधिकारी रहीं। दूसरी महिला भारतीय वायु सेना की पहली महिला एयर मार्शल बनने वाली पद्मा बंधोपाध्याय हैं, जिनको कानिटकर के बराबर की रैंक मिल चुकी है। 37 साल से सेना में अलग-अलग पदों पर अपनी क्षमता साबित कर रहीं माधुरी कानिटकर को प्रमोशन के बाद आर्मी मुख्यालय में इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ (डीसीआईडीएस) में तैनाती दी गयी है, जो चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के तहत आता है। यह भी अपने आपमें एक रिकॉर्ड है कि माधुरी के पति राजीव कानिटकर भी लेफ्टिनेंट जनरल के पद से हाल ही में रिटायर हुए हैं। सेना के इतिहास में पहले ऐसे पति-पत्नी बन गये हैं, जिन्होंने लेफ्टिनेंट जनरल का पद सँभाला है। माधुरी पुणे में सशस्त्र बल मेडिकल कॉलेज की पहली महिला डीन रह चुकी हैं और उन्हें आर्मी मेडिकल कोर में पहला बाल चिकित्सा नेफ्रोलॉजी यूनिट स्थापित करने के लिए भी जाना जाता है।
कानिटकर को पसन्द हैं चुनौतियाँ
माधुरी राजीव कानिटकर को चुनौतियाँ पसन्द हैं। उनका जन्म 15 अक्टूबर, 1960 को कर्नाटक के धारवाड़ में हुआ था। इनके पिता का नाम चंद्रकांत गोपाल राव और माँ का नाम हेमलता चंद्रकांत खोट था। इनके पिता रेलवे में थे। कानिटकर ने फज्र्यूसन कॉलेज, पुणे से 12वीं तक की पढ़ाई पूरी की। यहीं से उन्होंने मेडिकल के क्षेत्र में जाने का फैसला किया। उनका पहले डॉक्टर बनने का इरादा था, क्योंकि दादी भी डॉक्टर थीं; जो एक बाल विधवा थीं और 1900 में ही डॉक्टर बनी थीं। कानिटकर ने 1980 के दशक में पुरुषों के वर्चस्व वाले आम्र्ड फोर्सेज मेडिकल कॉलेज (एएफएमसी) से एमबीबीएस की डिग्री पूरी करके गोल्ड मेडल हासिल किया। एम्स, नई दिल्ली में पोस्ट ग्रेजुएशन पीडियाट्रिक और पीडियाट्रिक नेफ्रोलॉजी की पढ़ाई पूरी की। सिंगापुर और लंदन में फेलोशिप भी मिलीं।
जब काम में नयापन आता है, तो काम करने का हौसला बढ़ता है। पहले डॉक्टर बनीं, उसके बाद पीडियाट्रिशियन। 2017 में पुणे के सशस्त्र बल मेडिकल कॉलेज में डीन के रूप में दो साल से अधिक समय तक सेवा दी है। मई 2019 में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के उत्तरी कमान क्षेत्र के युद्ध चिकित्सा देखभाल के रूप में प्रभारी मेजर जनरल मेडिकल, उधमपुर में कार्यभार सँभाला।
उन्होंने प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक और तकनीकी सलाहकार बोर्ड की भी सदस्य हैं। हमेशा चुनौतियों को स्वीकार किया। थ्री-इन-वन की भूमिका अदा की है-एक सोल्जर, एक डॉक्टर और और एक टीचर। स्पोट्र्स में काफी सक्रिय थीं, इसलिए सेना में तमाम कठिनाइयों के बावजूद बहुत सारे मौके भी हैं। माधुरी कहती हैं कि लड़कियाँ ज़्यादा टफ होती हैं, लेबर पेन भी झेल लेती हैं। युवतियों से हमेशा कहती हैं कि अगर सुरक्षित माहौल में काम करना है, तो सेना में आयें। वह जोधपुर, गुवाहाटी, बुमला, सेला, टेंगा यानी पूरे देश भर में तैनात रह चुकी हैं। छुट्टियों में परिवार के साथ समय बिताना पसन्द करती हैं। माधुरी के दो बच्चे निखिल और विभूति हैं। बच्चे भी समझदार हैं और माता-पिता की व्यस्तता को समझते हैं।
माधुरी कहती हैं कि कई बार महसूस हुआ कि नौकरी छोड़कर घर सँभालूँ, पर बच्चे बोले- नहीं; ऐसा मत कीजिए- फुल टाइम मॉम नहीं चाहिए।
37 साल की शादीशुदा ज़िन्दगी में महज़ 12 साल एक ही जगह पर तैनाती के दौरान पति के साथ रहीं। एक साक्षात्कार में रिटायरमेंट के बाद ज़्यादातर समय परिवार के साथ बिताने की बात कह चुकी हैं।