भारत रत्न से नवाजे गए प्रणब दा!
भाजपा के नेतृत्व में केंद्र की एनडीए सरकार ने कांग्रेस के कर्मठ कार्यकर्ता और देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न से नवाजा है। कांग्रेस ने प्रणब मुखर्जी को इस सम्मान से पुरस्कृत करने को देश का सम्मान माना है।
प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति पद छोडऩे के बाद पिछले साल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक कार्यक्रम में नागपुर भी गए थे। जब वे देश के राष्ट्रपति थे तभी नरेंद्र मोदी भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री बने थे। उस समय राष्ट्रपति की हैसियत से उन्होंने एनडीए सरकार की ओर से आए विभिन्न आर्डिनेंस को भी मंजूरी दी थी। राष्ट्रपति रहते हुए उन्होने देश को हमेशा आगे रखा।
कांग्रेस में रहते हुए वे केंद्र सरकारों में वित्त, रक्षा और विदेश मंत्रालय में मंत्री पद पर भी रहे हैं।
वे इंदिरा गांधी की अगुवाई में 1969 में 34 साल की उम्र में पहली बार संसद में पहुंचे थे। जब कांग्रेस में विभाजन हुआ तो भी वे इंदिरा गांधी के ही साथ थे। जब देश में आपातकाल लगा तो उन्होंने उसका पुरजोर समर्थन किया । वे 2012 में राष्ट्रपति बने। जब भाजपा नेता नरेद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो इन्हें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से जो सहयोग मिला उसकी तारीफ उन्होंने राष्ट्रपति पद से प्रणब दा की विदाई पर कही।
प्रणब मुखर्जी की देश की धर्मनिरपेक्ष, बहुल संस्कृति में हमेशा आस्था रही है। उनका कहना रहा है कि यदि धर्म, क्षेत्र, संस्कृति, घृणा और असहिष्णुता के आधार पर विभाजन की बात होगी तो उससे हमारी राष्ट्रीय पहचान को ही नुकसान पहुंचेगा।
भूपेन हजारिका को भारत रत्न: असम में खुशी
लोकसंगीत के साथ शास्त्रीयता के पुट से गायन को असम और पूरे देश में लोकप्रिय बनाने वाले भूपेन हजारिका को भारत रत्न दिए जाने से खासी खुशी है। भूपेन की शिक्षा-दीक्षा गुवाहाटी, वाराणसी और अमेरिका में हुई। वे गायक, संगीतज्ञ, फिल्म निर्माता और सांस्कृतिक कार्यकर्ता के रूप में पूरे देश में जाने जाते हैं। उन्होंने हिंदी, बांग्ला, असमिया में अनेक गीत गाए।
भूपेन हजारिका अंतरराष्ट्रीय सहयोग, समानता, शांति, एकता, आर्थिक और भाषाई समुदायों में एका की बातें करते थे और उसके लिए संघर्ष करते थे। उन्होंने अपने मुद्दों पर अलग-अलग मंच पर गायन किया है।
राजनीतिक पद न लेने वाले नानाजी देशमुख को भी भारत रत्न
नानाजी का पूरा नाम था चंडिकादास अमृतराव। उन्हें भारत रत्न देना पद का ही सम्मान है। उन्हें पूरे देश में ऐसे राजनेता के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने कभी कोई राजनीतिक पद नहीं लिया। वे लंबे समय तक जनसंघ में खजांची थे बाद में यह भाजपा बनी। उनका देश के उद्योगपतियों और किसानों -मज़दूरों के बीच विशाल परिचय क्षेत्र था। उन्होंने देश में हिंदू राष्ट्रवाद के विकास के लिए खासा काम किया। उन्होंने हमेशा ‘गांधीवादी समाजवादÓ पर जोर दिया। कई मुद्दों पर उनके और भाजपा के नेताओं में मतभेद थे। आखिर में वे चित्रकूट और गोंडा चले गए और पार्टी से ही कट गए। उन्होंने विनोवा भावे के भूदान आंदोलन में काम किया था। जय प्रकाश नारायण के ग्रामीण कार्यों में भी उनकी दिलचस्पी थी।