एबीएनएचपीएम दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य देख रेख योजना चलाने को है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके बारे में घोषणा करतेहुए कहा कि 25 सितंबर से इस योजना पर शुरूआती काम होगा। इसके तहत पांच लाख रुपए सालाना की रकम सीमित होगी। आईटी की ओर से मुफ्त और बिना नकद भुगतान के यह स्वास्थ्य सेवा उन लोगों को ही मिलेगी जिनका पंजीकरण इस योजना में होगा।
आयुष्मान भारत योजना में दावा किया गया है कि देश की अभावग्रस्त जनसंख्या को ज़रूरी चिकित्सा मिल सकेगी। इसके लिए निजी बीमा कंपनियों को न्यौता गया है। क्या यह योजना वाकई में कामयाब होगी?
एबीएनएचपीएम दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य देखरेख योजना चलाने को है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके बारे में घोषणा करते हुए कहा कि 25 सितंबर से इस योजना पर शुरूआती काम होगा। इसके तहत पांच लाख रुपए सालाना की रकम सीमित होगी। आईटी की ओर से मुफ्त और बिना नकद भुगतान के यह स्वास्थ्य सेवा उन लोगों को ही मिलेगी जिनका पंजीकरण इस योजना में होगा।
फिलहाल देश में स्वास्थ्य बीमा कवर के तहत 34 फीसद (43.7 करोड़) लोग हंै। इस योजना से उम्मीद है कि जब देश के दो टियर और तीन टियर शहरों में और ज़्यादा अस्पताल खुल जाएंगे तो दो लाख से ज़्यादा नौकरियां भी बनेंगी। बीमा का पैसा आएगा और स्वास्थ्य की देख रेख भी होगी।
नेशनल हेल्थ एजेंसी (एनएचए) के जिम्मे है कि वह एबीएनएचपीएम को अमली जामा पहनाए। इसके लिए परिवारों को पंजीकृत होने के लिए किसी प्रीमियम को भरने की ज़रूरत नहीं है। पहले से ही ऐसे परिवार छांट लिए गए हैं जिन्हें यह सुविधा मिलनी है। यह चयन सामाजिक, आर्थिक, जाति सेंसज (सोशियो- इकॉनॉमिक कॉस्ट सेन्सस) से किया गया तो 2011 में इस सेवा का आधार बना था। यह योजना राज्य की उन योजनाओं में जुड़ जाएगी जिसमें साठ फीसद केंद्र और 40 फीसद राज्य पैसा लगाते हैं। देश के 28 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश एबीएनएचपीएम के हिस्से में हैं। इस साल आज़ादी के दिन से 11 राज्यों के 80 जि़लों में एबीएनएचपीएम की ओर से पहला चरण शुरू हो गया है। तकरीबन एक सौै अस्पतालों ने एबीएनएचपीएम की सेवाएं लेनी शुरू कर दी हैं जो सरकारी हंै।
हालांकि एनएचए ने पूरी सावधानी से यह योजना शुरू की है लेकिन इसमें ऐसे भी मुद्दे उभर आए हैं जिनकी आलोचना हो रही है। इसमें एक बड़ी समस्या इसके बजट को लेकर है। शुरूआत में 10 हजार करोड़ रुपए एबीएनएचपीएम को संभवत मिल रहे हैं। यह राशि बाद में शायद 30 हजार करोड़ से भी ज़्यादा हो सकती है।
स्वास्थ्य विशषज्ञों का यह भी मानना है कि वास्तव में इस योजना के लिए ढाई-तीन लाख करोड़ रुपए की ज़रूरत होगी। दूसरा मुद्दा है कि दूसरे तौर तरीके क्या होंगे। एबीएनएचपीएम के पैकेज की दरें भी काफी कम होंगी। ये पैकेज दरें राष्ट्रीय स्तर के डाटा पर निर्धारित होंगी, जो जल्दबाजी में बटोरी गई होंगी। लेकिन एनएचए की सोच है कि चूंकि यह कार्यक्रम स्वत: विकसित होता कार्यक्रम है इसलिए इसमें सरकार को निजी क्षेत्र के अस्पतालों के साथ मिल कर इस योजना पर अमल करना होगा। यहां यह याद रखना चाहिए कि देश में ओपीडी में ज़्यादा मरीज और दवाओं की ज़रूरत होती है। यानी एबीएनएचपीएम एक व्यक्ति की स्वास्थ्य देखरेख का जो खर्च तय करेगी उसमें ओपीडी सर्विस और दवा का खर्च ही होगा या जब से बतौर इन पेशेंट अस्पताल में दाखिल होना होगा तो उसे पास एबीएनएचपीएम का कोई सुरक्षा चक्र नहीं होगा।
फिर एबीएनएचपीएम की इसलिए भी आलोचना हो रही है कि बिना समुचित तैयारी के इसे अमल में लाने की घोषणा हो गई इससेे समस्या और ज़्यादा बढ़ गई है। सरकार को इस योजना पर अमल की जल्दबाजी इसलिए है क्योंकि चुनाव जल्दी ही होने को हैं और पूरी तैयारी नहीं की जा सकी।
ऐसे में सरकार को तेजी से छोटी-छोटी कमियों को दूर करके इसे अमल में लाना ही है। ऐसे में सबसे बड़ी समस्या सरकारी अस्पतालों में स्वच्छता से लेकर दवाओं की उपलब्धता तक पर सवालिया निशान लगे हुए हैं। इतना ही नहीं, यह पूछा जा रहा है कि डाक्टर कहां है, अस्पतालों में बिस्तर कहां है? इन तमाम ज़रूरी बुनियादी सवालों पर सोचते हुए मन में यह शंका होती ही है कि एबीएनएचपीएम उपयोगी और टिकाऊ होगा या नहीं। कहीं एकदम तमाशा तो नहीं बन जाएगा। यह पूरी तौर पर सरकार और एबीएनएचपीएम पर निर्भर है, जिसे उन भारतीयों से पैसा लेना है जो हेल्थकेअर में वित्तीय सुरक्षा चाहते हैं।
तमाम मुद्दों और चिंताओं के बावजूद देश की जनता के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र में उम्मीद की किरण तो हैं ही जिससे कम पैसों में उनका बेहतर इलाज हो। यदि इस योजना पर ईमानदारी, सहयोग और परोपकार के नज़रिए से अमल होता है तो भारत की स्वास्थ्य परिदृश्य बहुत ही बेहतर होगा, क्योंकि इतनी आबादी के बड़े क्षेत्रों में आज भी डाक्टर नहीं हैं और अच्छी दवाएं नहीं है।
भारत में जब से एबीएनएचपीएम की बात छिड़ी है एक मुद्दा तो यह सामने आ रहा है कि सरकार शायद निजी स्वास्थ्य क्षेत्र के नियमन के प्रयास में है। देश की 70 फीसद स्वास्थ्य देखरेख योजनाएं भारत में निजी क्षेत्र में ही हैं। यदि सरकार निजी क्षेत्र के अस्पतालों को भी कानूनी तौर पर साथ ले तो काफी सुचारू तौर पर स्वास्थ्य सेवा घर-घर पहुंच सकेंगी। अब एबीएनएचपीएम पर है कि वह अपनी इस योजना को धरातल पर उभारने के लिए निजी क्षेत्र को आईटी, सीमा सेवा उपलब्ध कराने और स्वास्थ्य देखरेख में कैसे कहां जोड़ते हैं।
नीति आयोग की इस बात के लिए तारीफ की जानी चाहिए कि इसने पब्लिक प्राइवेट -पार्टनरशिप के जरिए स्वास्थ्य सेवाओं को स्तरीय बनाने में पहल की। विकास के लक्ष्य को हासिल करने की जिम्मेदारी अकेले सरकार की ही क्यों होनी चाहिए। निजी उद्योग और क्षेत्र को जल्दी से जल्दी धरातल पर लाना चाहिए और सड़क पर सरकार के साथ काम करते हुए लक्ष्य को हासिल करना चाहिए।