केंद्रीय मंत्री अरूण जेटली ने पिछले सप्ताह ट्वीट किया। हमारे यहां अपराधों पर सजा देने के मामले कि दरें इतनी कम इसलिए हैं क्योंकि हमारे जांच अधिकारी इतनी महत्वकांक्षाओं और बेमतलब की जांच में जुटे रहते हैं कि पेशेवर तरीके से छानबीन नहीं हो पाती। इससे जाहिर है कि आईसीआईसीआई बैंक के कजऱ् के मामले में उसके पूर्व अध्यक्ष और प्रबंधक निदेशक की ओर से हो रही तहकीकात में कहीं ज़्याद गड़बडी है। कजऱ् के मामले में चंदा कोछर और उनके पति दीपक कोछर पर अभियोग हैं। जांच करने वाली एजेंसी यह छानबीन कर रही थी कि क्या कोचर ने वाकई विडियोकोन को लाभ पहुंचाया जिसने चंदा कोछर के पति दीपक की फर्म में बदले में निवेश किया। इन आरोपों से शुरू में चंदा ने इंकार किया। बैंक के बोर्ड ने पहले उसे समर्थन दिया लेकिन बाद में चंदा कोछर को अक्तूबर 2018 में आईसीआईसीआई बैंक छोडऩा पड़ा। जब उस पर यह दबाब पडऩे लगे कि वह पद छोड़े और जांच की काईवाई होने दे।
जेटली ने जांच एजेंसी को सलाह दी है कि वे बेमतलब की खोज से बचें और कहे गए काम पर ही ध्यान दें इसके विशद अर्थ हैं। यह बात साफ है कि वे बीमार हैं और स्वास्थ्यलाभ कर रहे हैं ऐसे में उनका ऐसा कहना काफी गंभीर है।
चंदा कोछर और उनके पति दीपक कोछर की विडियोकोन समूह के मालिक वेणूगोपाल धूत के साथ मेल-मिलाप को लेकर तहलका ने कई खबरें छापी थीं।
हालांकि विचित्र यह था कि देश की प्रमुख जांच एजेंसी ने यह लगभग तय कर लिया था कि इस कांड में फंसे तीनों महानुभावों और अन्य के मामलों की छानबीन रोक ही देंगे। सीबीआई के पूर्व प्रमुख और उनके सहायक भी काफी दिन से संदेह के घेरे में रहे ही हैं। सूत्रों के अनुसार डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल जसबीर सिंह और पुलिस सुपरिटेंडेंट सुधांशु धर मिश्र जो इस मामले की छानबीन कर रहे थे वे पिछले साल दिसंबर में जांच अधिकारी डीजे वाजपेयी की सिफारिशों से लगभग सहमत हो गए थे कि कोछर दंपति के खिलाफ साक्ष्य बेहद कम हंै। उधर सीबीआई पुलिस सुपरीटेंडेंट सुधांशु धर मिश्र की कथित भूमिका की भी आंतरिक तौर पर छानबीन कर रही है कि इस महत्वपूर्ण मामले की जांच पड़ताल में क्यों कथित तौर पर देर की गई। सूत्रों का कहना है कि यह संदेह है कि ये अधिकारी छापों के बारे में सूचनाएं भी इधर-उधर करते रहे हैं।
सीबीआई के कार्यकारी निदेशक एम नागेश्वर राव ने इस जांच-पड़ताल की शुरूआती सिफारिशों में बदलाव कर दिया है और विडियोकोन कजऱ् के मामले में एफआईआर दर्ज करने का आदेश दे दिया है। सीबीआई ने आईसीआईसीआई बैंक के दूसरे वरिष्ठ अधिकारियों की कथित भूमिका की जांच के आदेश भी दिए हैं। इन अधिकारियों में संदीप बख्शी, के रामकुमार, संजय चटर्जी, जरीन दारूवाला, राजीव सभ्भरवाल, केवी कामथ और खुसरो खान हैं। इन नामों में बैंक के कुछ निदेशकों (जिनमें नॉन-एक्जक्यूटिव भी) हंै के नाम भी हैं। कुछ ऐसे लोगों के भी नाम हैं जो बैंक की क्रेडिट कमेटी में रहे हैं। जिन्होंने विडियोंकोन को 2012 में 3,250 करोड़ का कजऱ् देने में भूमिका निभाई।
जब चंदा कोछर ने इस्तीफा दिया तो दारूवाला ने बैंक छोड़ दिया और अब वे स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक के भारत में तमाम कामकाज को बतौर सीईओ देखते हैं। कामथा अब आरआईसीएस बैंक के सर्वेसर्वा हैं। चटर्जी ने भी बैंक छोड़ दिया है और वे गोल्ड मैन साक्स भारत में सीईओ हैं। खुसरो खान बैंक के बोर्ड में निर्दलीय निदेशक हैं। सब्बरवाल ने बैंक छोड़ दिया है और अब टाटा कैपिटल के सीईओ हैं।
सीबीआई ने चंदा कोछर उनके पति दीपक कोछर और वीडियोकोन समूह के अध्यक्ष वेणुगोपाल धूत के खिलाफ आपराधिक गतिविधियों और धोखाधड़ी का मामला 22 जनवरी को दर्ज किया है। यह एफआईआर 2009 से 2012 की अवधि में विडियोकोन समूह की कंपनियों को मंजूर कजऱ् में कथित अनियमिता पर दर्ज की गई है। आरोप है कि इस अनियमितता के चलते बैंक को 1,730 करोड़ का नुकसान हुआ है। जो कुल कजऱ् मंजूर हुआ था वह रुपए 3250 करोड़ मात्र का है। यह एफआईआर भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत दर्ज की गई जिसकी प्रारंभिक जांच-पड़ताल सीबीआई ने 2017 के दिसंबर में की थी।
इस प्रारंभिक जांच पड़ताल में जानकारी मिली कि बड़ी कीमत के छह कर्ज़ विडियोकोन समूह की विभिन्न कंपनियों के लिए जून 2009 से अक्तूबर 2011 के दौरान मंजूर हुए थे। इसका तरीका यही था कि ये वीडियोकोन कंपनियों को दिए गए जिससे वर्तमान कजऱ् को चल रहे वित्तीय सहयोग की एवज मे था।
कर्ज़ की सीमा जिस पर सवालिया निशान लगा है उसकी मंजूरी तब हुई जब आईसीआईसीआई बैंक की प्रबंध निदेशक और सीईओ के तौर पर चंदा कोछर ने मई 2009 में कार्यभार संभाला। लेकिन 26 अप्रैल 2012 को कजऱ् के छह खातों को दुबारा रुपए 1,730 करोड़ मात्र के आधार पर घरेलू कजऱ् बतौर दुरूस्त कर दिया गया। चूंकि योजना ही धोखाधड़ी की थी। इसलिए विडियोकोन और इस समूह की कंपनियों को जून 2017 में नान-परफार्मिंग एसेट् भी घोषित कर दिया गया।
सीबीआई ने मुंबई और औरंगाबाद में विडियोकोन समूह, न्यूपॉवर रिन्युएबलस लिमिटेड (एनआरएल) के सुप्रीम एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड (एसईपीएल) के दफ्तरों की छानबीन की। सीबीआई ने जब अपनी प्रारंभिक छानबीन में पर्याप्त प्रमाण जुटा लिए तो एफआईआर दर्ज कर दी गई। एफआईआर के अनुसार वीएनधूत ने न्यूपॉवर रिन्यूवेबेल्स लिमिटेड (एनआरएल) के जरिए रुपए 64 करोड़ मात्र का निवेश किया जो सुप्रीम एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड (एसईपीएल) के जरिए हुआ और एसईपीएल ने उसे पिनैकिल एनर्जी ट्रस्ट को भेज दिया जिसका प्रबंधन दीपक कोछर ने 2010 और 2012 में संभाल रहे थे।
एफआईआर के अनुसार दीपक कोछर की कंपनी एनआरएल विडियोकोन इंटरनेशनल इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड (वीआईईएल), वीडियोकोन इंट्रस्टिज लिमिटेड (वीआईएल) और एसईपीएल। सूत्रों के अनुसार केवी कामथ जो फिलहाल बैंक के नॉन-एक्जक्यूटिव चेयरमैन हैं और चंदा कोछर की जगह नियुक्त संदीप बख्शी की भूमिका की भी छानबीन होगी।
एफआईआर के अनुसार एनआरएल को दिसंबर 2008 को भी शामिल किया गया था और दीपक कोछर, वेणुगोपाल धूत और सौरभ धूत तब इसके निदेशक थे। धूत ने जनवरी 2009 में इस्तीफा दिया। इससे संदेह बढ़ता है कि यह रकम कोछर की कंपनी को ट्रांस्फर कर दी गई। जो उनके लिए ही थी। धूत ने 2009 में इस्तीफा दिया और कंपनी का नियंत्रण दीपक कोछर की कंपनी निमेकिल एनर्जी ट्रस्ट को ट्रांस्फर कर दिया।
एफआईआर के अनुसार धूत ने ही कोछर को लेनदेन की एवज में सुखद संतोष पहुंचाया। 1,997,500 वारंट का दस रुपए प्रति वारंट की दर से दीपक कोछर के नाम ट्रांस्फर हुआ जिसके लिए वेणुगोपाल धूत ने कोछर को प्रति वारंट एक रुपए की दर से दिया। पांच जून 2009 को बराबर रकम के एमआरएल शेयर जो वीएन धूत और दीपक कोछर के थे वे एसईपीएल को ट्रांस्फर हुए। जो एनआरएल के 95 फीसद शेयर होल्डर बने। ये सारी बातें कोछर दंपत्ति के विरोध में ही जाती हैं।