साल 2019 को अलविदा 2020 का स्वागत के तौर पर हर जाते साल की घटनाओं का ज़िक्र किया जाता है। उनका विश्लेषण होता है और उनके आधार पर भविष्य की योजनाएँ बनती हैं, ऐसा माना जाता है। व्यवहारिक रूप से इस पर कितना अमल होता है यह भी सर्वविदित है। यदि खेलों की बात करें, तो भारत के लिए बीता साल काफी अच्छा माना जाएगा। हमारे पास अपनी पीठ थपथपाने के कई कारण हैं। भारतीय क्रिकेट टीम ने टी-20, एक दिवसीय मैच या फिर टेस्ट मैचों में जीत के झंडे गाड़े। भारत और बांग्लादेश के बीच दिन-रात का टेस्ट मैच खेला गया। इस खेल में एक बड़ा खेल ‘टैलेंट’ सामने आया। अब स्थिति यह है कि यदि कोई खिलाड़ी किसी वजह से टीम से बाहर हो जाए, तो उसे अपना स्थान वापस पाने के लिए कड़ी परीक्षा से गुज़रना पड़ता है। मतलब यह है कि क्रिकेट के खेल ने काफी तरक्की कर ली है। इस साल होने वाली सभी प्रतियोगिताओं के लिए भारत तैयार है। 1964-65 से लेकर 70 के दशक तक जब तक कपिल देव क्रिकेट में नहीं आये थे, तब तक देश में एक भी सही, तेज़ गेंदबाज़ नहीं था। तब उत्तर भारत में क्रिकेट का प्रचलन नहीं था। विशेषज्ञ कहते थे कि जब यह खेल उत्तर भारत में नहीं खेला जाता, तब तक तेज़ गेंदबाज़ नहीं मिल सकते। फिर साल-दर-साल यह खेल लोकप्रिय हुआ और बिशन सिंह बेदी के बाद लगातार उत्तर भारत के खिलाड़ी भारतीय टीम में आते रहे। आज 2020 के आते-आते भारत विश्व क्रिकेट में एक बड़ी ताकत बन चुका है। क्रिकेट के साथ उस समय के पुराने खेल हॉकी, कुश्ती, फुटबॉल, एथलेटिक्स, भारोत्तोलन, निशानेबाज़ी और मुक्केबाज़ी जैसे खेल उतना आगे नहीं बढ़ पाये। लेकिन बैडमिंटन में सितारे निकलते रहे, नंदू नाटेकर, प्रकाश पादुकोण, पुल्लेला गोपीचंद, सैयद मोदी जैसे खिलाडिय़ों ने देश को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दी। महिलाओं में सायना नेहवाल और पीवी सिंधु ने ओलंपिक खेलों में पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया। पिछले साल की यदि बात करें, तो पीवी सिंधु ने एक विश्व िखताब जीतकर बड़ा काम किया। लेकिन उसके बाद वह और कुछ नहीं कर पायी। अपनी अंतिम प्रतियोगिता तो चार खिलाडिय़ों के मूल में केवल एक ही मैच जीत सकी। नेहवाल के लिए भी यह साल कुछ खास अच्छा नहीं रहा। इन बातों पर ध्यान देने के साथ यह देखना महत्त्वपूर्ण होगा कि बैडमिंटन के पुरुष युगल में भारत को एक पहचान मिली है। यह पहचान दिलायी सात्विक सैराज रैंकी रेड्डी और चिराग शेट्टी ने। अब माना जा रहा है कि क्रिकेट के बाद यदि कोई खेल भारत में सबसे ज़्यादा लोकप्रिय है, तो वह है- बैडमिंटन। इस खेल में भारत को ओलंपिक पदक की उम्मीद है। एथलेटिक्स के लिए यह साल भी कुछ खास नहीं रहा। कोई चमत्कारिक घटना नहीं घटी। इस साल टोक्यो में ओलंपिक खेल होने है, एथलेटिक्स के पहले पदक की इंतज़ार में है। यदि इतिहास पर नज़र डालें, तो 1964 के टोक्यो ओलंपिक में मिल्खा सिंह 400 मीटर दौड़ में चौथे और रंधाना 110 मीटर बाधा दौड़ में पाँचवें स्थान पर रहे। फिर 12 साल बाद यानी 1976 के मॉन्ट्रियल ओलंपिक में श्रीराम सिंह 800 मीटर दौड़ में सातवाँ स्थान पा सके। 1984 में पीटी उषा भी चौथे स्थान पर रहीं। इसी प्रकार शिवनाथ सिंह मैराथन में 11वाँ स्थान पा सके। इस स्पर्धा में भारत का यह सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। यानी पिछली 300 ओलंपिक खेलों में भारत को एथलेटिक्स में निराशा ही हाथ लगी। इस बार भी अब तक केवल छ: एथलीट ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर सके हैं। इनमें 20 किलोमीटर पैदल चाल के कोलोथुम थोडी इरफान, 4&400 मीटर मिश्रित रिले के मोहम्मद अनास, विस्मया, कृष्णा मैथ्यू और नोह निर्मल और 3000 मीटर स्टीपल चेज के अविनाश साबले शामिल हैं। यदि इनके अब तक के प्रदर्शन पर नज़र डालें, तो इरफान ने 1:20:57 घंटे का समय निकालकर क्वालीफाई किया। क्वालीफाइंग समय 1:21:00 घंटे था। इसका अर्थ यह है कि वह मात्र तीन सेकेंड से यह योग्यता-स्तर पा सका। रिले की टीम का समय 3:16:14 मिनट था। यह समय पिछले ओलंंपिक में छठे स्थान पर रही टीम के लगभग बराबर है। यही स्थिति 3000 मीटर स्टीपलचेज में है। अविनाश ने 8:21:37 मिनट के साथ क्वालीफाई किया, जबकि योग्यता स्तर 8:22:00 मिनट था। यदि ये लोग अपने इस प्रदर्शन में काफी सुधार नहीं करते, तब तक देश को पदक की सम्भावना दिखाई नहीं देेती। इतिहास गवाह है कि हमारे एथलीट, कुछ को छोडक़र, ओलंपिक में वह प्रदर्शन भी नहीं दोहरा पाते, जो उन्होंने योग्यता स्तर प्राप्त करने में दिखाया होता है। ऐसा क्यों होता है, इसका उत्तर आज तक नहीं मिला है।
रियो ओलंपिक 2016 में भारत के 30 खिलाडिय़ों ने हिस्सा लिया था; लेकिन सभी शुरुआती दौर में बाहर हो गये। केवल विकास गोदारा डिस्कस में चौथा स्थान पा सके बाकी केवल भाग लेकर लौट आये। इन एथलीटों के साथ 12 निशानेबाज़ भी गये थे, पर वे भी खाली हाथ लौटे। अभिनव बिंद्रा ने अन्त तक संघर्ष किया; लेकिन उनका निशाना भी पदक पर नहीं लगा। इस बार 15 निशानेबाज़ अब तक ओलंपिक के लिए योग्यता स्तर पा चुके हैं। इनमें अधिकतर नये व युवा हैं। इनसे ओलंपिक पदक की आस की जा सकती है। तीरंदाज़ी में पिछले साल (2019) भारत के खिलाडिय़ों ने शानदार प्रदर्शन किया। विश्व चैंपियनशिप में भी उन्होंने ने नार्वे को 5-1 से और कनाडा को 5-3 से हराकर फाइनल में प्रवेश किया। वहाँ वे चीन के साथ बराबरी की टक्कर में 4-5 से हार गये और रजत पदक लेकर लौटे। यदि अतानुदास, तरुणदीप राय और प्रवीण जाधव की तिकड़ी ने तनाव मुक्त रहकर तीर चलाये, तो कोई बड़ी बात नहीं कि ओलंपिक का स्वर्ण पदक भारत की झोली में गिर जाए। रियो में जो दो पदक भारत ने जीते थे, उनमें साक्षी मलिक का कांस्य पदक भी था। इस बार भी कुश्ती में भारत को पदक की उम्मीद करनी चाहिए। अब तक विनेश फोगाट, बजरंग पूनिया, रविकुमार दहिया और दीपक पूनिया ने ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर लिया है। हॉकी एक ऐसा खेल है, जिसमें अब तक भारत ने सबसे अधिक पदक जीते हैं। इनमें आठ स्वर्ण, एक रजत और दो कांस्य पदक शामिल हैं। आज भी भारतीय टीम को पाँचवीं वरीयता प्राप्त है। 2008 को छोडक़र भारत की टीम हर ओलंपिक में खेली है। आज की स्थिति को देखते हुए माना जा सकता है कि भारत ओलंपिक पदक की दौड़ में शामिल है। उसके लिए क्वाटरफाइनल में पहुँचना अधिक कठिन नहीं होना चाहिए, पर उससे आगे बढऩे में शक्ति लगानी होगी। हॉकी एक मात्र ऐसा टीम खेल है, जिसमें भारत हिस्सा ले रहा है। बाकी खेलों में अभी बहुत कुछ करना बाकी हैं। कुल मिलाकर देखें, तो तीरंदाज़ी, मुक्केबाज़ी, निशानेबाज़ी, बैडमिंटन, कुश्ती, हॉकी, भारोत्तलन में पदकों की उम्मीद करनी चाहिए। ओलंपिक में भारत का सबसे अच्छा 2012 लंदन ओलंपिक खेलों का रहा है। यहाँ हमने छ: पदक जीते थे। पर 2016 रियो में यह संख्या घटकर दो रह गयी और भारत 67वें स्थान पर खिसक गया। इस बार भारत सरकार और भारतीय ओलंपिक एसोसिशन का प्रयास है कि भारत का प्रदर्शन सुधरे और देश को ज़्यादा से ज़्यादा पदक जीतने का मौका मिले।