दूरसंचार विभाग के मुताबिक, टेलिकॉम कम्पनियों पर उसके 1.47 लाख करोड़ रुपये बकाया हैं, लेकिन वे ‘स्व-मूल्यांकन’ कर आंशिक भुगतान कर रही हैं। फिलवक्त, मामला अदालत में है. मामले में सर्वोच्च न्यायलय ने साफ तौर पर कहा है कि कम्पनियों को बकाया, ब्याज और दंड शुल्क 24 अक्टूबर के फैसले के मुताबिक 1.47 लाख करोड़ रुपये चुकानी होगी। दूरसंचार कम्पनियाँ भारती एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया, जो सरकार के सबसे बड़ी बकायादार हैं; की संयुक्त बकाया राशि लगभग 89,000 करोड़ रुपये है।
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का असर
देनदारी की एक बड़ी राशि दूरसंचार कम्पनियों जैसे, रिलायंस कम्युनिकेशंस, टाटा टेलीसर्विसेज, एस्सार, एस्कोटेल, बीपीएल, एयरसेल आदि को चुकाना था, जो बन्द हो चुकी हैं। इसलिए सर्वोच्च न्यायलय के फैसले का सबसे ज़्यादा प्रभाव भारती एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया पर पड़ेगा। इन कम्पनियों की वित्तीय स्थिति पहले से ही खस्ताहाल है। चालू वित्त वर्ष की दिसंबर तिमाही में वोडाफ़ोन-आइडिया को 6,439 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था, वहीं सितंबर तिमाही में इसे 50,992 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था, जबकि भारती एयरटेल को चालू वित्त वर्ष की दिसंबर तिमाही में कर का भुगतान करने के बाद 3,388 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है, जबकि कम्पनी को पिछले साल की समान अवधि में 86 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ था।
एजीआर क्या है?
बीते 14 साल से सर्वोच्च न्यायालय में समायोजित सकल आय (एजीआर) में शामिल राजस्व के घटकों को लेकर विवाद चल रहा है। दूरसंचार कम्पनियों का कहना है कि इसमें केवल लाइसेंस और स्पेक्ट्रम शुल्क को शामिल किया जाए, लेकिन सरकार इसमें उपभोक्ता शुल्क, किराया, लाभांश, पूँजी बिक्री पर मिलने वाले लाभांश आदि को भी शामिल कर रही है, जिसके कारण दूरसंचार कम्पनियों की देनदारियाँ बढ़ गयी हैं।
बकाया के भुगतान में देरी
16 मार्च तक वोडाफोन ने 3500 रुपये का भुगतान किया है, वहीं एयरटेल 18,004 करोड़ रुपये का भुगतान कर चुकी है। इसी तरह टाटा टेली सर्विसेज ने 2,197 करोड़ रुपये का भुगतान किया है। दूरसंचार विभाग द्वारा टाटा टेली सर्विसेज पर 13,823 करोड़ रुपये की देनदारी है। भारती एयरटेल पर लाइसेंस शुल्क और स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क समेत कुल 35,586 करोड़ रुपये का सांविधिक बकाया है। अन्य प्रमुख बकायेदारों में बीएसएनएल, एमटीएनएल आदि हैं, जिनकी वित्तीय स्थिति पहले से ही बहुत ज़्यादा खराब है।
दिवालिया होने के कगार पर वीआईएल
वोडाफोन आइडिया लिमिटेड (वीआईएल) पर 53,038 करोड़ रुपये का वैधानिक बकाया है, जिसमें 24,729 करोड़ रुपये का स्पेक्ट्रम बकाया और 28,309 करोड़ रुपये का लाइसेंस शुल्क शामिल हैं; जिसका भुगतान करने में कम्पनी असमर्थ है। इसके आलावा कम्पनी को लगातार घाटा हो रहा है।
ग्राहक आधार और समायोजन की समस्या
वीआईएल में वोडाफोन की 45.39 फीसदी हिस्सेदारी है। दुनिया भर में वोडाफोन समूह का ग्राहक आधार 30 सितंबर 2019 तक 62.5 करोड़ था, जिसमें उसके संयुक्त उद्यम एवं सहायक इकाइयाँ भी शामिल थीं। यह ग्राहकों की संख्या के हिसाब से दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी दूरसंचार कम्पनी है। वोडाफोन लंदन की कम्पनी है, जिसका नेटवर्क विश्व के 24 देशों में है। वोडाफोन का लगभग 50 फीसदी ग्राहक आधार भारत में है, जहाँ इसका गठबन्धन आदित्य बिड़ला समूह के साथ है और यह वोडाफोन-आइडिया के नाम से जाना जाता है। भारत में इसका ग्राहक आधार लगभग 33.6 करोड़ है। इस प्रकार दिवालिया होने की स्थिति में वोडाफोन समूह का आकार भारती एयरटेल, जिसका ग्राहक आधार 41 करोड़ है और रिलायंस जियो, जिसका ग्राहक आधार 36.9 करोड़ है से कम हो जाएगा। समस्या वोडोफोन-आइडिया के ग्राहकों का समायोजन भारती एयरटेल, रिलायंस जियो, बीएसएनएल और एमटीएनएल के द्वारा किये जाने में भी है। क्योंकि इसके लिए इन कम्पनियों को अपनी तकनीकी क्षमता बढ़ानी होगी और इसके लिए उन्हें भारी-भरकम पूँजी की ज़रूरत होगी। लेकिन मौज़ूदा समय में वे गम्भीर वित्तीय संकट के दौर से गुज़र रहे हैं।
वित्तीय संकट का कारण प्रतिस्पर्धा भी
वोडाफोन आइडिया के वित्त वर्ष 2018-19 के रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्तीय संकट के कारण कम्पनी के लिए परिचालन एक बड़ी चुनौती बन गयी है, जिसका कारण प्रतिस्पर्धा बताया जा रहा है। आज भारत में दूरसंचार सेवा दुनिया में सबसे सस्ती है। टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राई) के मुताबिक, जून 2016 से दिसंबर, 2017 के बीच देश में मोबाइल डाटा की दरों में 95 फीसदी की विकट गिरावट दर्ज की गयी। अब मोबाइल डाटा 11.78 रुपये प्रति गीगाबाइट (जीबी) के औसत कीमत में उपलब्ध है। मोबाइल कॉल की दरें भी 60 फीसदी गिरकर करीब 19 पैसे प्रति मिनट हो गयी हैं।
टैरिफ होगा और महँगा
माना जा रहा है कि एजीआर पर सर्वोच्च न्यायलय के ताज़ा फैसले के बाद दूरसंचार कम्पनियाँ विविध सेवाओं की टैरिफ में आने वाले दिनों में और भी ज़्यादा बढ़ोतरी करेंगी। टैरिफ में वृद्धि का सिलसिला शुरू भी हो गया है। वोडाफोन-आइडिया, एयरटेल और रिलायंस जियो ने हाल ही में अपने टैरिफ में बढ़ोतरी की है। एक अनुमान के मुताबिक, दूरसंचार कम्पनियाँ टैरिफ में यदि 10 फीसदी की बढ़ोतरी करती हैं, तो उन्हें अगले तीन साल में 35 हज़ार करोड़ रुपये का राजस्व मिल सकेगा। इसलिए माना जा रहा है कि दूरसंचार कम्पनियाँ आने वाले दिनों में 15 से 20 फीसदी टैरिफ में बढ़ोतरी सकती हैं, ताकि वे अपने घाटे को कम कर सकें। दूरसंचार नियामक ट्राई ने भी दूरसंचार कम्पनियों द्वारा की जाने वाली टैरिफ बढ़ोतरी में किसी भी तरह के हस्तक्षेप से मना कर दिया है। ऐसे में दूरसंचार सेवाओं का महँगा होना तय माना जा रहा है।
ऊँची टैरिफ दर बनाम 5जी सेवा
दिलचस्प है कि एक तरफ दूरसंचार कम्पनियाँ दूरसंचार सेवाओं को महँगा करने की बात कह रही हैं, तो दूसरी तरफ सरकार 2020 के अन्त तक भारत में 5जी सेवा लाना चाहती है। भारत को डिजिटल देश बनाने की बात भी कही जा रही है। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि भारत 5जी स्पेक्ट्रम के ज़रिये वैश्विक बाज़ार में अपनी धाक जमा सकता है। आर्थिक समीक्षा में यह भी कहा गया है कि 5जी के ज़रिये उपभोक्ताओं को बेहतर दूरसंचार सेवाएँ मिल सकेंगी। 5जी का फायदा चिकित्सा, शिक्षा, मनोरंजन आदि क्षेत्रों में भी देखने को मिलेगा, यह बात भी आर्थिक समीक्षा में कही गयी है।
रिलायंस जियो को फायदा
सम्भावना है कि मौज़ूदा परिवेश में सर्वोच्च न्यायलय के फैसले से सबसे ज़्यादा फायदा रिलायंस जियो को मिलेगा। क्योंकि यह वित्तीय रूप से बेहद ही मज़बूत कम्पनी है। अभी तक सिर्फ इसी ने एजीआर का पूरा बकाया, जो 60 हज़ार करोड़ रुपये था; का भुगतान किया है। आज न तो भारती एयरटेल और न ही एमटीएनएल व बीएसएनएल आदि कम्पनियाँ इसका मुकाबला कर सकती हैं। क्योंकि इनकी वित्तीय स्थिति बहुत ही ज़्यादा खराब है।
एनपीए में होगी बढ़ोतरी
दूरसंचार कम्पनियों पर भारतीय स्टेट बैंक का सबसे ज़्यादा कर्ज़ है। स्टेट बैंक ने दूरसंचार कम्पनियों को 29000 करोड़ रुपये का फंड बेस्ड और 14000 करोड़ रुपये का नॉन-फंड बेस्ड कर्ज़ दिया है। अगर दूरसंचार कम्पनियाँ अपने बकाया का भुगतान नहीं कर पाती हैं, तो 14000 करोड़ रुपये की गारंटी भी फंड बेस्ड कर्ज़ में तब्दील हो जाएगी, जिससे दूरसंचार क्षेत्र को स्टेट बैंक द्वारा दिया गया कुल कर्ज़ 43 हज़ार करोड़ रुपये का हो जाएगा। साफ है कि दूरसंचार क्षेत्र का मौज़ूदा संकट बैंकों के लिए भी बड़ा संकट साबित हो सकता है।
राजकोषीय घाटे में कमी की सम्भावना नहीं
यह भी कहा जा रहा है कि अगर एजीआर का भुगतान दूरसंचार कम्पनियाँ कर देती हैं, तो राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3.5 फीसदी रह सकता है। गौरतलब है कि संशोधित अनुमान में इसके जीडीपी के 3.8 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया था। हालाँकि यह सम्भव प्रतीत नहीं होता, क्योंकि वोडाफोन-आइडिया के दिवालिया के होने के बाद बैंकों का यह खाता एनसीएलटी में चला जाएगा। आईबीबीआई पोर्टल के अनुसार, चालू वित्त वर्ष की दिसंबर तिमाही में आईबीसी के तहत वसूली फीसदी की दर बहुत ही कम रही है। अत: यह कहना एक गलत संकल्पना ही है कि एजीआर की पूरी वसूली हो जाएगी।
बेरोज़गारी में इज़ाफा
मौज़ूदा संकट के कारण वोडाफोन-आइडिया के बहुत सारे ग्राहक एयरटेल या जियो का दामन थाम रहे हैं। वोडाफोन-आइडिया से बड़ी संख्या में कर्मचारी निकाले भी गये हैं। कर्मचारियों की छँटनी का दौर अभी भी चल रहा है। बीएसएनएल और एमटीएनएल के 50 फीसदी से अधिक कर्मचारियों ने स्वैच्छिक रूप से नौकरी छोड़ दी है। इसके बाद से इन दोनों कम्पनियों की हालात इतनी ज़्यादा खराब हो गयी है कि वे अपने ग्राहकों को सामान्य सेवाएँ भी नहीं दे पा रही हैं। लोगों के इंटरनेट कनेक्शन कई महीनों से खराब हैं। फिर भी इसे ठीक नहीं किया जा रहा है।
बजट में दूरसंचार क्षेत्र की उपेक्षा
किसी भी देश के आॢथक विकास में दूरसंचार क्षेत्र की अहम् भूमिका होती है। बावजूद इसके बजट में दूरसंचार क्षेत्र की उपेक्षा की गयी है। दूरसंचार क्षेत्र पहले से संकट के दौर से गुज़र रहा है। वर्तमान सरकार को चाहिए था कि वह कोई बीच का रास्ता निकालकर लोगों को बेरोज़गार होने से बचाती। लेकिन ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सरकार का ध्यान इस ओर नहीं है। मौज़ूदा संकट की वजह से टैरिफ भी महँगे हो रहे हैं, जिसकी मार आम लोगों पर पडऩे लगी है। आज बहुत सारी महत्त्वपूर्ण सेवाओं के सुचारू संचालन में डेटा का इस्तेमाल किया जा रहा है। कोरोना महामारी के कारण फिलहाल सभी स्कूल बन्द हैं। ऐसे में जूम एप की मदद से शिक्षक बच्चों को पढ़ा रहे हैं। मीटिंग एवं इंटरव्यू वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये आयोजित की जा रही है। लोग स्काई एप और व्हाट्स एप के ज़रिये अपने मित्रों और परिवार से जुड़े हुए हैं। हालाँकि टैरिफ के महँगे होने से लोगों को ज़रूरी सेवाओं के मिलने में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। मोबाइल उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए बजट में कुछ प्रावधान किये गये हैं, लेकिन इन्हें पर्याप्त नहीं माना जा सकता है। दूरसंचार कम्पनियों को राहत देने के लिए विवाद से विश्वास योजना का भी आगाज़ किया गया है। लेकिन अभी तक इस संदर्भ में अपेक्षित परिणाम नहीं निकले हैं।
इधर, कोरोना वायरस के कारण सरकार को 3 मई तक देशव्यापी लॉकडाउन करना पड़ा है। लाखों लोगों को अपने रोज़गार या स्व-रोजगार से हाथ धोना पड़ा है। पैसे नहीं होने के कारण लोग एक-दूसरे से जुड़े रहने के लिए मोबाइल का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। प्रतिकूल स्थिति में सरकार को दूरसंचार कम्पनियों को वैलिडिटी बढ़ाने के लिए और कहना पड़ा है, जबकि उसे दूरसंचार कम्पनियों को टैरिफ दर कम करने के लिए निर्देश देना चाहिए था। साथ ही उनकी समस्याओं का समाधान करने के लिए पहल करनी चाहिए थी। अगर सरकार बजट में दूरसंचार कम्पनियों और दूरसंचार क्षेत्र के लिए राहत का प्रावधान करती, तो कोरोना संकट के दौर में आम लोगों के लिए मुश्किलें नहीं पैदा होतीं।
निष्कर्ष
दूरसंचार क्षेत्र की मौज़ूदा स्थिति को देखने से लगता है कि आगामी वर्षों में देश में तीन दूरसंचार कम्पनियाँ रह जाएँगी। निजी कम्पनियों में रिलायंस जियो एवं भारती एयरटेल और सरकारी कम्पनियों में बीएसएनएल। बहरहाल, प्रतिस्पर्धा के नहीं रहने से दूरसंचार कम्पनियों की मनमानियाँ बढ़ जाएँगी। सस्ती सेवाओं का दौर भारत में खत्म होना शुरू भी हो गया है। इससे आम लोगों की खरीद क्षमता में भी कमी आने की आशंका है, जिससे माँग और खपत में कमी आ सकती है। इससे अर्थ-व्यवस्था की वृद्धि दर भी धीमी हो सकती है। ताजा घटनाक्रम से विदेशी निवेश एवं भारत की साख पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। वोडाफोन-आइडिया के दिवालिया होने की स्थिति में बड़ी संख्या में लोगों के बेरोज़गार होने की सम्भावना है।
बैंकों के एनपीए में बढ़ोतरी होना भी तय है। साथ ही बदले परिवेश में भारत को डिजिटल देश बनाने की संकल्पना को साकार करने में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।