राजनीतिक कलह की आग में जब भी शोले भड़कते हैं, तो शिकवा-शिकायतों की चिंगारियाँ उड़े बिना नहीं रहतीं। पिता राजेश पायलट की पुण्यतिथि पर भारी भीड़ जुटाकर चुपके से अपना दर्द साझा करते हुए सचिन पायलट ने अपना दावा फिर दोहरा दिया कि पार्टी के लिए अपना सब कुछ झोंकने के बावजूद मुझे क्या मिला? जब उन्होंने उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, तभी अंदेशों के बादल उठने लगे थे कि मुख्यमंत्री न बन पाने की ख़लिश उन्हें बेचैन किये रहेगी। कुछ हफ़्तों बाद ही उनके और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच तनाव की ख़बरें रिसने लगीं।
इन अफ़वाहों को बल तब मिला, जब पायलट ने गहलोत के कामकाज को लेकर बेसिर-पैर की बातें शुरू कर दीं। असली सत्ता अपने पास नहीं होने का सन्ताप पायलट को भीतर-ही-भीतर कचोटता रहा। नतीजतन पायलट अपनी कुर्सी के ही क़ैदी बनकर रहे गये। पायलट लाख चाहें भी, तो इस बात से इन्कार नहीं कर सकते कि बिना कोई संघर्ष किये छोटी-सी उम्र में ही उन्होंने सांसदी और केंद्रीय मंत्री की पाग पहनने के बाद प्रदेश अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री तक का ताज भी पहन लिया। गहलोत तो इस बात पर तंज कसने से भी नहीं चूके कि बिना संघर्ष के ही जब पायलट को इतना कुछ मिला, तो उन्हें इसकी क़द्र नहीं हुई। लेकिन उनकी सियासी जन्म कुण्डली का इससे ज़्यादा दु:खद वृतांत क्या हो सकता है कि पार्टी के मुखिया पद को ही उन्होंने लांछित कर दिया। विश्लेषकों का कहना है कि जब पार्टी का मुखिया ही लक्ष्मण रेखा लाँघ जाए, तो बाक़ी क्या रह जाता है? ताक़त दिखाने की बाज़ीगरी में पासे उलटे पडऩे के बाद सचिन एक बार फिर अपने समर्थकों को साथ लेकर पिछला रुतबा और ओहदा पाने के लिए घमासान में उलझे हैं। सचिन पायलट समर्थक पंजाब का उदाहरण देते हुए जोश से बोलते हैं कि जब वहाँ (पंजाब में) कार्यवाही हो गयी, तो राजस्थान में टालमटोल क्यों? लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समर्थकों ने पायलट ख़ेमे पर हमलावर होते हुए दो-टूक कह दिया कि जिन लोगों ने पार्टी के साथ ग़द्दारी की और सरकार गिराने की कोशिश की, वे किस हक़ से हाईकमान पर दबाव बना रहे हैं?
विश्लेषकों का कहना है कि पायलट ने जिस तरह की मनमानी की, उससे पनपा तनाव अब शायद ही कम हो सके। वजह साफ़ है कि हर रोज़ कोई-न-कोई नेता आग में घी डालने वाली बयानबाज़ी करने से बाज़ नहीं आ रहा। तेवर जितेन्द्र सिंह ने भी दिखाये कि पार्टी हाईकमान ने पायलट से जो वादे किये हैं, उन्हें निभाया जाना चाहिए। प्रश्न है कि पायलट अपने पाँच से छ: विधायकों को मंत्री बनवाना चाहते हैं, जो कि सम्भव नहीं। इस घमासान के चलते जितिन प्रसाद की भाजपा में उड़ान से भी शोले भड़के। लेकिन यह शोले जल्द ही राख में तब्दील हो गये।
असल में मोदी सरकार ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को तो मंत्री पद से नवाज़ दिया; लेकिन जितिन प्रसाद देखते ही रह गये। सूत्रों का संकेत है कि पायलट को मनचाहा पद मिल पाना क़तई सम्भव नहीं है। जबकि समझा जाता है कि उन्हें पार्टी का महासचिव बनाकर किसी प्रदेश का प्रभारी बनाया जा सकता है। हालात जो भी हों, पायलट की इच्छा शान्त नहीं हो रही है और भौहें तनी हुई हैं। राजनीतिक सूत्रों की मानें, तो पायलट के आँगन में बड़े दावों वाला एक खेल खेला जा रहा है। ऐसे में अगर आने वाले वक़्त में पायलट फिसलकर भाजपा के आँगन में जा गिरें, तो ताज़्ज़ुब नहीं होना चाहिए। क्योंकि सियासी खेल में रिश्तों के नियम तय नहीं होते।