मोटर वाहन हादसे में मारे गए शख्स के बच्चों को केवल इस आधार पर मुआवजे से इनकार नहीं किया जा सकता कि वह बालिग हैं और अभिभावकों पर आश्रित नहीं हैं। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल करनाल के फैसले को खारिज करते हुए की है। 1 मई, 2004 को सुमित्रा देवी करनाल के हाईवे पर बच्चों के साथ खड़ी थीं। तभी एक तेज रफ्तार गाड़ी ने उन्हें टक्कर मार दी थी, जिससे घायल होने के बाद अस्पताल में उन्होंने दम तोड़ तोड़ दिया था।
सुमित्रा देवी की मौत के बाद उनके बच्चों ने मुआवजे के लिए याचिका दाखिल की थी जिसके चलते मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल करनाल ने केवल 50 हजार रुपये मुआवजा मंजूर किया था। इसको चुनौती देते हुए सुमित्रा के बेटे हाईकोर्ट पहुंचे थे। याचिका का विरोध करते हुए बीमा कंपनी ने कहा कि ट्रिब्यूनल ने जो मुआवजा तय किया है वह पर्याप्त है और इससे अधिक कुछ और नहीं दिया जाना चाहिए।
इसके अलावा तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता बालिग हैं और ऐसे में उन्हें अपनी मां पर आश्रित नहीं कहा जा सकता है और वे मुआवजे के हकदार नहीं हैं। हाईकोर्ट ने इस दलील को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि बालिग होना मुआवजे से इनकार का आधार नहीं हो सकता है।
हाईकोर्ट ने कहा कि गृहिणी का घर में योगदान अमूल्य होता है। घर में दी गई सेवाओं का मूल्य 3500 रुपये प्रतिमाह लगाते हुए अन्य सभी पक्षों को देखकर हाईकोर्ट ने मुआवजे की राशि 8,32,500 रुपये तय की है। इस राशि को बीमा कंपनी को 7.5 प्रतिशत ब्याज के साथ याचिकाकर्ताओं को अदान करनी होगी।