अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के क़ब्ज़े के बाद रोटी के लिए बेटियों को बेच रहे वहाँ के बहुत-से लोग
विश्व खाद्य कार्यक्रम की नवीनतम रिपोर्ट में यह ख़ुलासा हुआ है कि वर्तमान में दुनिया के क़रीब साढ़े चार करोड़ लोग भुखमरी के द्वार पर खड़े हैं। कुल 43 देश इस तरह की स्थिति झेल रहे हैं, जिनमें हाल में तालिबान के क़ब्ज़े में आया अफ़ग़ानिस्तान भी है। उधर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल में कहा है कि तालिबान के क़ब्ज़े में आये युद्धग्रस्त अफ़ग़ानिस्तान में लाखों की संख्या में बच्चे इस साल के अन्त तक भूख से जान गँवा सकते हैं।
अपनी रिपोर्ट में विश्व खाद्य कार्यक्रम ने साथ ही आगाह किया है कि दुनिया के 43 देश इस संकट को झेल रहे हैं। रिपोर्ट कहती है कि दुनिया भर में करोड़ों लोगों की हालत इतनी ख़राब है कि उन्हें भरपेट दो वक़्त का भोजन तक हासिल नहीं है। चिन्ता की बात यह है कि यह स्थिति लगातार ख़राब होती जा रही है। संगठन के मुताबिक, भुखमरी की स्थिति झेल रहे लोगों की संख्या साल 2019 के 2.70 करोड़ के मुक़ाबले दोगुनी हो गयी है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल के शुरू में यह 4.20 करोड़ हो गयी है। भुखमरी का सामना कर रहे लोगों की सबसे ज़्यादा संख्या बुरुंडी, कन्या, अंगोला, सोमालिया, हेती, इथियोपिया और अफ़ग़ानिस्तान में है। तालिबान का शासन आने के बाद अफ़ग़ानिस्तान में हालात काफ़ी ख़राब हुए हैं और हाल की रिपोट्र्स बताती हैं कि भुखमरी का सामना करते हुए लोग पैसे के लिए अपनी बेटियों तक को बेचने तक को मजबूर हुए हैं। दुनिया में भुखमरी की बात करें, तो विश्व खाद्य कार्यक्रम संगठन के कार्यकारी निदेशक डेविड बीजली का कहना है कि दुनिया में करोड़ों लोग भुखमरी की यह गम्भीर समस्या झेल रहे हैं। बीजली के मुताबिक, हमारे सामने कोरोना महामारी के अलावा, क्लाइमेट चेंज, संघर्ष, हिंसा और युद्ध जैसे संकट मुँह फाड़े खड़े हैं। भुखमरी की स्थिति का सामना करने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है। ताज़ा आँकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि विश्व के क़रीब साढ़े चार करोड़ से भी ज़्यादा लोग इस स्थिति की तरफ़ तेज़ी से बढ़ रहे हैं। अफ़ग़ानिस्तान की मौज़ूदा परिस्थितियों का जायज़ा लेने भी बीजली वहाँ जा चुके हैं। उन्होंने तालिबानी शासन वाले इस देश को लेकर कहा है कि यूएन खाद्य एजेंसी, अफ़ग़ानिस्तान में लगभग क़रीब ढाई करोड़ लोगों तक मदद पहुँचाने का काम कर रही है। वे अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में बढ़ती ईंधन और खाद्य पदार्थों क़ीमतों से भी चिन्तित हैं। उनके मुताबिक, इसका सबसे ज़्यादा असर ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वाले ही झेल रहे हैं। उन्होंने कहा कि उर्वरक भी पहले से काफ़ी महँगे हो गये हैं और इन सभी की वजह से दुनिया के सामने एक नयी तरह का संकट खड़ा हो गया है। खाद्य एजेंसी का अनुमान है कि दुनिया भर में भुखमरी की इस स्थिति से निपटने के लिए क़रीब सात अरब डॉलर की ज़रूरत रहेगी। मौज़ूदा वर्ष में यह राशि 6 अरब 60 करोड़ डॉलर थी। उनके मुताबिक, ‘हमें दुनिया भर में ज़रूरतमंद परिवारों तक सहायता पहुँचाने के लिए अधिक धन चाहिए।’
अफ़ग़ानिस्तान में बढ़ी भुखमरी
तालिबान का राज आने के बाद अफ़ग़ानिस्तान की हालत बेहद ख़राब है। देश की बड़ी आबादी भुखमरी का सामना कर रही है। आर्थिक संकट इतना बढ़ गया है कि लोगों को दो-जून की रोटी नसीब नहीं। इसके सबसे दु:खद और गम्भीर परिणाम यह है कि वहाँ लोग पैसे के बदले अपनी छोटी बच्चियों को शादी के लिए बेच रहे हैं। पिछले तीन-चार महीने में विस्थापित हुए अफ़ग़ानी नागरिक ग़रीबी और भुखमरी के गम्भीर संकट से दो-चार हैं। रिपोट्र्स के मुताबिक, परिवार के अन्य सदस्यों का पेट भरने के लिए लोग अपनी नाबालिग़ बच्चियों तक को बेच रहे हैं। ऐसे कुछ लोगों या बच्चियों की दास्ताँ सामने आयी है। हाल में एक पिता ने अपनी नौ साल की छोटी बच्ची को 55 साल के आदमी को बेच दिया, तो एक अन्य बच्ची को 70 साल के एक व्यक्ति के हाथों बेचा गया। जानकारी के मुताबिक, यह लोग अपनी बच्चियों को बेचने वाले माता-पिता को धन देते हैं और बच्चियों से निकाह कर लेते हैं। तालिबान के आने के बाद कई परिवारों को रोटी नहीं मिल पा रही। अफ़ग़ानिस्तान को विदेशी मदद भी बन्द हो चुकी है। इससे वहाँ आम लोगों की ज़िन्दगी और कठिन हो गयी है। बहुत-से लोग बच्चों को बेचकर बाक़ी सदस्यों पर पेट भर रहे हैं।
हाल ही में अफ़ग़ानिस्तान के बाग़लान प्रान्त के एक शिविर की घटना सामने आयी थी। बाग़लान की एक लडक़ी के पिता ने एक साक्षात्कार में अपनी बच्ची को बेचने की मजबूरी की दास्ताँ बतायी। पिता ने बताया कि वह अपनी एक 12 साल और दूसरी नौ साल की बेटी को पैसे के लिए बेच चुके हैं। उन्होंने ऐसा इसलिए किया, ताकि परिवार के अन्य सदस्यों को ज़िन्दा रखा जा सके। पिता ने मजबूरी में किये अपने इस फ़ैसले पर दु:खी होकर कहा कि इस फ़ैसले के कारण वह टूट गये हैं; क्योंकि बेटियों को बेचना एक शर्म भरा काम है। घोर प्रान्त से भी 10 साल की एक नाबालिग़ बच्ची को बेचने की रिपोर्ट आयी है। इस बच्ची के परिवार ने पैसे के लिए 70 साल के आदमी से इसकी शादी करवा दी। लडक़ी ने परिवार से दूर जाने का विरोध भी किया और कहा कि उसके साथ जबरदस्ती की गयी, तो वह जान दे देगी। इस देश के कई प्रान्तों में ऐसी घटनाएँ हुई हैं। महिलाओं के काम करने पर तो तालिबान ने वैसे ही पाबंदी लगा रखी है, जबकि लड़कियों की पढ़ाई पर भी रोक है।
भारत अफ़ग़ानिस्तान के इस हालत को देख उसकी मदद करना चाहता है। हालाँकि पाकिस्तान सरकार भारत के मदद वाले गेहूँ को पाकिस्तान से होकर ले जाने में अड़ंगे लगाती रही है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान कहते हैं कि उनकी सरकार भारतीय गेहूँ को पाकिस्तान से होकर ले जाने के अफ़ग़ान भाइयों के अनुरोध पर मानवीय आधार पर नरम रूख़ रखे हुए हैं। भारत पिछले दशक से लेकर अब तक अफ़ग़ानिस्तान को 10 लाख मीट्रिक टन से अधिक गेहूँ दे चुका है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अफ़ग़ानिस्तान में 18.8 मिलियन के आसपास लोग गम्भीर खाद्य असुरक्षा से पीडि़त हैं। उनके पास ख़ुद के लिए दैनिक ज़रूरतें पूरी करने के लिए कोई साधन नहीं। यह संख्या 2021 के अन्त तक चिन्ताजनक 22.8 मिलियन का आँकड़ा छू सकती है। संगठन ने कृषि उत्पादन जारी रखने और युद्ध से पीडि़त देश के कई हिस्सों में आजीविका के ज़रिये ख़त्म होने से बचाने की कोशिश के रूप में किसानों और चरवाहों को बीज, उर्वरक, नक़दी और अन्य आजीविका सहायता प्रदान की है।
रिपोर्ट के मुताबिक, अभी कृषि और पशु उत्पादन में तत्काल निवेश की सख़्त ज़रूरत है। ऐसा होने पर देश की खाद्य सुरक्षा बहाल करके किसानों के पास अधिक समय तक धन की उपलब्धता रहेगी। वैसे भी कृषि अफ़ग़ान आजीविका और अर्थ-व्यवस्था की रीढ़ है। एफएओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में लगभग 70 फ़ीसदी लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। यह लोग कृषि के सकल घरेलू उत्पाद का कम-से-कम 25 फ़ीसदी हिस्सा हैं और यह प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से हर तरह की आजीविका का क़रीब-क़रीब 80 फ़ीसदी है।
कोरोना का असर
कई रिपोट्र्स से ज़ाहिर होता है कि कोरोना महामारी ने भी दुनिया भर में भुखमरी पैदा की है। संयुक्त राष्ट्र महासभा की मानवाधिकार समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए उठाये गये क़दमों और बिगड़ते वैश्विक सम्बन्धों के कारण उत्तर कोरिया भी गम्भीर भुखमरी के कगार पर है। वहाँ भुखमरी के चलते लोग आत्महत्या करने को मजबूर हो चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट में दावा है कि उत्तर कोरिया वैश्विक समुदाय से जितना अलग-थलग नज़र आ रहा है, उतना पहले कभी नहीं था। इसके मुताबिक, उत्तर कोरिया में भोजन का गम्भीर संकट है। लोगों की आजीविका मुश्किल दौर में है। बच्चे और बुज़ुर्ग भुखमरी का सामना कर रहे हैं। राजनीतिक क़ैदियों के शिविरों तक में खाद्यान्न की कमी बेहद चिन्ताजनक स्तर पर है। याद रहे डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया (डीपीआरके) ने महामारी रोकने के इरादे से देश की सीमाएँ सील कर दी थीं। इसका असर यह हुआ कि उत्तर कोरिया के लोगों के स्वास्थ्य पर गम्भीर असर पड़ा। इससे देश के बुनियादी स्वास्थ्य ढाँचे में निवेश की गम्भीर कमी हो गयी। सरकार के सीमाएँ सील करने के क़दम को विशेषज्ञों ने आत्मघाती बताया है। इसका नतीजा लोगों के आत्महत्या करने के रूप में सामने आया है। यही नहीं, लोग देश से पलायन कर रहे हैं। देश में मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष जाँचकर्ता की आख़िरी रिपोर्ट में कहा गया है कि आवाजाही पर पाबंदी और राष्ट्रीय सीमाओं को सील करने से बाज़ार शिथिल पड़ गये हैं। लोगों के लिए भोजन सहित बुनियादी ज़रूरतें पहुँचाने में बाधा से कई संकट पैदा हुए हैं।
15 करोड़ बच्चे स्कूली आहार से वंचित
संयुक्त राष्ट्र की जानकारी कहती है कि एक अनुमान के मुताबिक, दुनिया भर में 15 करोड़ बच्चे अब भी स्कूलों में मिलने वाले आहार और बुनियादी स्वास्थ्य और पोषण सेवाओं से वंचित हैं। कोई 60 से ज़्यादा देशों ने स्कूलों में हर बच्चे के लिए साल 2030 तक पोषक आहार सुनिश्चित करने के उद्देश्य से स्कूली आहार गठबन्धन की स्थापना की है। यूएन एजेंसियों ने स्कूली बच्चों के पोषण, स्वास्थ्य व उनकी शिक्षा में बेहतरी लाने पर केंद्रित एक अंतरराष्ट्रीय गठबन्धन को समर्थन देने की प्रतिबद्धता जतायी है। साल 2020-21 में कोविड-19 महामारी के कारण विश्व भर में शिक्षण कार्य में उत्पन्न हुए व्यवधान और व्यापक पैमाने पर तालाबन्दी लागू होने से स्कूलों में मिलने वाले आहार सहित अन्य कार्यक्रम प्रभावित हुए। कोरोना-काल के दौरान बड़ी संख्या में विद्यार्थियों के लिए स्कूलों में सेहतमंद आहार या स्कूल-आधारित स्वास्थ्य और पोषण सेवाओं में रुकावटें खड़ी हुई हैं। खाद्य और कृषि संगठन, संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष, विश्व खाद्य कार्यक्रम और विश्व स्वास्थ्य संगठन का एक साझा वक्तव्य कहता है कि उनकी पहल में शामिल हर यूएन एजेंसी इस गठबन्धन के लिए आवश्यक विशेषज्ञताएँ मुहैया कराएगी। इसमें ग़ैर-सरकारी, नागरिक समाज संगठनों और संस्थाओं से 50 से ज़्यादा साझीदार शामिल हैं।
“भुखमरी के मुहाने पर बैठे करोड़ों लोग अपना सब कुछ लुटा चुके हैं। अब उनके पास कोई दूसरा संसाधन या विकल्प भी नहीं बचा है। 43 देशों में हालात की समीक्षा के दौरान ये जानकारी सामने आयी है कि कुछ लोगों को हर रोज़ खाना तक नहीं मिल पा रहा है।”
डेविड बीजली
कार्यकारी निदेशक, डब्ल्यूएफपी