देश की राजधानी दिल्ली जहां प्रदूषण बहुत ज्य़ादा है दीपावली पर बजे पटाखों से प्रदूषण की मात्रा में दस गुणा बढ़ोतरी और हुई। प्रदूषण रोकने में सुप्रीम कोर्ट के आदेश विभिन्न मौसम और पर्यावरण वैज्ञानिकों व डाक्टरों के सुझाव पूरी तरह नाकाम रहे।
राजधानी दिल्ली और आसपास के प्रदेशों की राजधानियों और बड़े शहरों में पटाखों को रोकने में पुलिस-प्रशासन और सरकारों ने कहीं कोई सक्रियता नहीं दिखाई। बड़ी तादाद में दिल्ली, गाजियाबाद, गुडग़ांव, चंडीगढ़, जयपुर, कानपुर, लखनऊ में अधेड़ों और बच्चों सांस लेने में हो रही परेशानी के कारण नर्सिग होम और अस्पतालों में शरण ली। इस प्रदूषण का असर दिल्ली में अगले तीन चार दिन और ज्य़ादा व्यापक रहा।
दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रों में दीवाली में हुए प्रदूषण का स्तर वायु गुणवत्ता इंडेक्स आपात स्थिति 642 पर पहुंच गया। इस प्रदूषण में दबाते हुए पटाखें का रासायनिक मिश्रण पंजाब और दूसरे राज्य के खेतों मेें जलती हुई पराली और धुंए का खासा मिश्रण था। सुप्रीम कोर्ट का निर्देश था कि दीवाली की रात दो घंटे ही यानी दस से बारह बजे तक ही पटाखे जलाए जाएं। लेकिन उसकी अनसुनी हुई। भोर तक पटाखे बजाए जाते रहे। देश के अन्य नगरों में दिल्ली के अलावा मुंबई और कोलकाता में भी दीवाली काफी शोर भरी रही।
दीवाली की परंपरा दीप जलाने और प्यार बांटने की रही है। लेकिन इस परंपरा में बाद में जुड़ी आतिशबाजी के चलते विविध प्रकार के पटाखों को बनाने और उनमें रंगीन प्रकाश और धमाकों को भी जोड़ दिया गया। अब तो विविध राकेट के जरिए आकाश में विविध रंगों के प्रकाश और धमाकों का अंबार लगाने की कला दीवाली पर दिखती है। लेकिन ये सारी अद्भुत कलाएं वायुमंडल में घातक प्रदूषण भी फैलाती हैं जो महीनों वायुमंडल में रहता है। इसका प्रभाव मानव शरीर पर दमा, खांसी-जुकाम, सांस लेने में परेशानी में दिखता है और फेफड़ों तक बर्बाद कर देता है। लेकिन मानव शरीर पर इस प्रतिकूल असर के बारे में राज्य सरकारें न तो चिंतित हैं और न जन प्रतिनिधि। बल्कि वे प्रदूषण रोकने की बजाए जनता में इसे परंपरा और आस्था से जोड़ कर जनमानस को भरमाते हैं। इसी कारण न तो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश माने गए और न जनता ने वायु प्रदूषण को गंभीरता से ही लिया।
शोर भरी एक रात पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने दिल्ली की औसत वायु गुणवत्ता (एवरेज एअर क्वालिटी इंडेक्स) जारी की है। यह 329 था जो काफी घातक स्तर का है। इसी तरह सिस्टम आफ एअर क्वालिटी एंड वेदर फार कास्टिग एंड रिसर्च यानी ‘सफर’ के अनुसार दिल्ली-एनसीआर के हालात तो निर्धारित मापदंडों से कहीं ज्य़ादा खराब हैं।