देश की राजधानी दिल्ली में राज्य सरकार ने गरीब-अमीर सबके लिए घरेलू उपयोग के लिए 200 यूनिट बिजली हर महीने मुफ्त कर रखी है, जिसका कुछ लोग, खासकर मकान मालिक बेजा फायदा उठा रहे हैं। मयूर विहार फेस-3 में ऐसे मकान मालिकों की कमी नहीं है, जिन्होंने एक ही मकान में फ्लोर के हिसाब से सरकारी मीटर लगवा रखे हैं, ताकि हर फ्लोर पर 200 यूनिट बिजली से ज़्यादा खर्च न हो और उन्हें बिजली का बिल न देना पड़े। लेकिन यही मकान मालिक अपने किरायेदारों से 8 रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से वसूली करते हैं। मकान मालिक इसके लिए सब-मीटरों का इस्तेमाल करते हैं। यानी मकान मालिक मुफ्त की बिजली पर जमकर कमायी कर रहे हैं। मयूर विहार फेस-3 के पूरे इलाके कोंडली से लेकर, घरौली गाँव और जीडी कालोनी के सभी ब्लॉकों में ऐसे मकान मालिकों की भरमार है, जो अपने मकानों में बिजली बिल भरने से बचने के लिए फ्लोरवाइज सरकारी मीटर लगवा चुके हैं। सबने बिजली कनेक्शन अपने ही परिवार के अलग-अलग लोगों के नाम से ले रखे हैं।
हैरत की बात यह है कि किराये के नाम पर अनाप-शनाप वसूली करने वाले मकान मालिकों में से अधिकतर किरायेदारों का पुलिस बेरिफिकेशन तक नहीं कराते और न ही किरायानामा लिखवाते हैं, ताकि इनकी किराये से होने वाली मोटी आमदनी का खुलासा न हो सके, उस पर मुफ्त की बिजली का 8 रुपये यूनिट और वसूलते हैं। इतना ही नहीं, किरायेदारों को लेकर मकान मालिक तामाम स्तर पर पड़ताल करता है और अपनी शर्तों पर समझौता करता है। हालाँकि कुछ मकान मालिक किरायेदारों की जानकारी स्थानीय थाने में जमा कराते हैं, लेकिन अधिकतर इससे और किरायानामा बनवाने से बचते हैं। ये मकान मानिलक किरायेदार से उसके पहचान के कागज़ तो ले लेते हैं, लेकिन उन्हें किसी काम के लिए कुछ भी नहीं देते। अनेक किरायेदारों का यहाँ तक कहना है कि कुछ मकान मालिक तो अपने मकानों में फास्ट सब मीटर लगवाकर किरायेदारों से मोटा पैसा वसूल करते हैं। महानगरों में रहने वाले किरायेदारों से तहलका संवाददाता ने बात की तो उन्होंने बताया कि मकान मालिक किरायेदार से हर हाल में समय पर किराये की वसूली करते हैं, चाहे उसे कोई भी दिक्कत हो, उससे मकान मालिक को इससे कोई लेना-देना नहीं है। पिछले साल कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन में बहुत लोगों की नौकरी चली गयी थी, तब भी मुश्किल से 20 फीसदी मकान मालिकों ने ही अपने किरायेदारों को राहत दी। मयूर विहार फेस-3 की एक महिला किरायेदार ने अपने मकान मालिक को उसका नाम न बताने की शर्त पर बताया कि उसके मकान मालिक ने लॉकडाउन में न तो किराये का एक भी पैसा छोड़ा और न ही बिजली बिल माफ किया, जबकि लॉकडाउन में उनकी नौकरी चली गयी थी। दिल्ली के गणेश नगर निवासी राजकुमार का कहना है कि दिल्ली सरकार दिल्ली में रहने वालों और किरायेदारों को भी 200 यूनिट बिजली मुफ्त में दे रही है, लेकिन अधिकतर मकान मालिक किरायेदारों के लिए लगने वाले सरकारी मीटर नहीं लगने देते और अपनी ओर से लगवाये सब मीटर्स के ज़रिये किरायेदारों से 8 से 10 रुयये प्रति यूनिट की दर से पैसा वसूलते हैं।
बुराड़ी में गत तीन साल से किराये पर रहने वाले सुनील कुमार ने बताया कि शासन-प्रशासन मकान मालिकों द्वारा किरायेदारों से बिजली बिल वसूली से वािकफ है, लेकिन वह इसलिए कुच नहीं कर पाता, क्योंकि किरायेनामे में बिजली और पानी के बिल की अवैध वसूली का ज़िक्र ही नहीं होता। किरायेदार अगर मकान मालिकों की शर्त मंजूर न करे, तो उसे कोई मकान न दे। दिल्ली में कुछ फ्लैट ऐसे हैं, जहाँ बिजली और पानी का बिल किरायेदारों को ही सीधे देखना होता है, लेकिन वे बहुत महँगे होते हैं और हर कोई उनमें नहीं रह सकता।
दिल्ली में बिजली विभाग में कार्यरत कर्मचारी आलोक कुमार ने कहा कि दिल्ली सरकार मकान मालिकों और किरायेदारों के बीच किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं कर रही है। सरकार ने दोनों को ही 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त दे रखी है। 200 यूनिट से अधिक बिजली खर्च होने पर ही बिल भरवाया जाता है। किरायेदारों को अपना सरकारी मीटर लगवाना चाहिए। अगर कोई मकान मालिक इसमें आनाकानी करता है, तो किरायेदार इसकी शिकायत बिजली विभाग अथवा पुलिस से कर सकत हैं। लेकिन गुपचुप तरीके से मकान मालिकों की वसूली पर सरकार क्या कर सकती है? लिखित में बिजली का पैसा लेने पर ही कार्रवाई हो सकती है। आलोक कुमार का कहना है कि इस मामले में शिकायतें आती भी हैं, लेकिन कोई भी किरायेदार सामने नहीं आता है। अगर कोई किरायेदार सामने आता है, तो मकान मालिक मुकर जाता है। पांडव नगर और शाहदरा दिल्ली के आरडब्ल्यूए के पदाधिकारी राजेश मित्तल और सुरेश कपूर का कहना है कि मकान मालिक अगर मुफ्त की बिजली का पैसा किरायेदारों से वसूलता है, तो यह पूरी तरह से गलत है। लेकिन इस मामले में इसलिए भी कार्रवाई नहीं होती, क्योंकि सियासी लोगों को अच्छी तरह से पता है कि चुनावों में मतदान में किरायेदारों की भूमिका कम और मकान मालिकों की भूमिका अधिक होती है। इसलिए सियासतदाँ मकान मालिकों से इस मामले में कोई पंगा नहीं लेना चाहता है।
पेशे से वकील और सामाजिक कार्यकर्ता पीयूष जैन का कहना है कि दिल्ली सरकार और आरडब्ल्यूए के पदाधिकारियों को नैतिकता के आधार पर ही आगे आना होगा, तब जाकर इस मामले में समाधान निकलना सम्भव है। अन्यथा मकान मालिक तो बिजली का बिल आसानी से लेता रहेगा। सरकार भी दखल नहीं दे पाएगी। इस मामले में दिल्ली के एक मकान मालिक अशोक कुमार का कहना है कि वह अपने किरायेदारों से बिजली का बिल नहीं लेते हैं। उनका कहना है कि जब दिल्ली सरकार ने 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त कर दी है, तो किसी की मेहनत की कमायी को दिल दुखाकर क्यों लेना? लेकिन ज़्यादातर मकान मालिक मोटे किराये के अलावा बिजली के भरपूर दाम लेते हैं, जो कि पूरी तरह से गैर-ज़िम्मेदाराना और अव्यवहारिक है।
बताते चलें कि देश के महानगरों में एक तबका तो किराये के पैसे पर ही निर्भर है। जो अपनी शर्तों पर किराये पर मकान, गोदाम और दुकानों को देता है। इस काम में दिखावे के तौर पर रेंट एग्रीमेंट में किराया भी कम दिखाया जाता है और वसूला ज़्यादा जाता है। सही मायने में यह एक प्रकार से काली कमायी का ज़रिया भी है, क्योंकि मकान मालिक किराये से हज़ारों-लाखों रुपये महीने की कमायी के बावजूद कर (टैक्स) नहीं भरते, ऊपर से सरकार की ओर से सभी मुफ्त सुविधाओं का जमकर फायदा उठाते हैं, जिससे राजस्व को भी चूना लगता है।
सामाजिक कार्यकर्ता नवीन गिरि का कहना है कि किरायेदारों और मकान मालिकों के बीच किराये और तामाम दिक्कतों को दूर करने के लिए आयोग को बनाये जाने की ज़रूरत है, ताकि इस मामले में पारदशर््िाता स्थापित की जा सके।