राजधानी दिल्ली में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी अपने चरम पर है। आम आदमी पार्टी, भाजपा और कांग्रेस के बीच यहाँ त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा है। पाँच वर्षों से दिल्ली की सत्ता पर काबिज़ आम आदमी पार्टी का दावा है कि दिल्ली की जनता मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के जनहित से जुड़े कार्यों से काफी खुश है, इसलिए दिल्ली की लगभग सभी सीटों पर पार्टी की जीत तय है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद बिजली और पानी के बिलों को माफ कर दिया गया। इसके अलावा डीटीसी बसों में महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा का अधिकार दिया गया।
निश्चित रूप से इससे मौज़ूदा सरकार को फायदा मिलने की उम्मीद है। लेकिन आम लोगों की राजनीति करने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से यह पूछा जाना ज़रूरी है कि दिल्ली में नया किराया नियंत्रण कानून आिखर क्यों नहीं है? दिल्ली में लाखों की संख्या में मौज़ूद अनरजिस्टर्ड प्रॉपर्टी डीलरों पर सरकार लगाम क्यों नहीं लगा रही है? आम आदमी पार्टी हो या भाजपा या फिर कांग्रेस उनके चुनावी घोषणा-पत्र में दिल्ली में रहने वाले करोड़ों किरायेदारों से जुड़ी समस्याओं का ज़िक्र नहीं है।
सिर्फ इसी चुनाव में नहीं, बल्कि इससे पहले भी हुए चुनावों में किरायेदारों की समस्याओं पर कहीं कोई चर्चा नहीं सुनी। दरअसल, दिल्ली में प्रॉपर्टी डीलरों पर नकेल और नया किराया नियंत्रण कानून लागू करना राजनीतिक दलों के लिए मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालने जैसा है। यही वजह है कि दिल्ली में रहने वाले करोड़ों किरायेदार प्रॉपर्टी डीलरों और मकान मालिकों के शोषण से तंग-तबाह हो रहे हैं। लेकिन उनकी चिन्ता किसी सियासी दलों की प्राथमिकता में नहीं है।
किरायेदारों में प्रॉपर्टी डीलरों का खौफ
ज़िन्दगी जीने और सिर छिपाने के लिए एक अदद छत की ज़रूरत होती है, लेकिन अमूमन छोटे शहरों की तरह आसानी से मिलने वाली किराये की छत को दिल्ली में प्रॉपर्टी डीलरों की नज़र लग गयी है। तकरीबन दो दशक पहले तक राजधानी दिल्ली में भी निजी पहचान के ज़रिये अथवा खुद सीधे मकान मालिक से सम्पर्क करके लोग किराये के घर में रहते थे, लेकिन अब यह मुमकिन नहीं है। दिल्ली में किरायेदार और गृहस्वामी के बीच प्रॉपर्टी डीलर नामक एक ऐसा तत्त्व आ गया है, जिसने दोनों के बीच का सम्बन्ध खत्म कर दिया है। प्रॉपर्टी डीलरों का यह जाल राजधानी दिल्ली समेत पूरे एनसीआर में फैल चुका है। अब किसी ज़रूरतमंद को बगैर किसी प्रॉपर्टी डीलर की मनुहार किये मकान नहीं मिल सकता। दिल्ली में कुल नौ जिले हैं। जाहिर है, यहां लाखों लोग किराये के मकान में रहते हैं। पूरी दिल्ली में कई इलाके ऐसे हैं, जहाँ हर वर्ग के लोग रहते हैं। मसलन, दक्षिणी दिल्ली के मुनिरका, बेर सराय, कटवारिया सराय, हौजखास और मालवीय नगर जैसी कॉलोनियों में विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले हज़ारों छात्र-छात्राएँ रहते हैं। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, भारतीय जनसंचार संस्थान और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जैसे शिक्षण संस्थान यहीं स्थित हैं। इसी तरह प्रशासनिक एवं न्यायिक सेवा परीक्षाओं की तैयारी करने वाले युवा उत्तरी दिल्ली स्थित मुखर्जी नगर, गाँधी विहार, नेहरू विहार, आउट्रम लाइन, हडसन लेन, मॉल रोड, किंग्सवे कैम्प, विजय नगर और हकीकत नगर जैसे इलाकों में रहते हैं। ये इलाके दिल्ली विश्वविद्यालय के नज़दीक हैं, लिहाज़ा बेहतर पढ़ाई की उम्मीद लिए देश के अलग-अलग राज्यों से हर साल हज़ारों छात्र यहाँ आते हैं।
महानगरों का मिजाज़ भी अजीब होता है। यहाँ हर चीज़ किराये की है। कोख, सम्बन्ध और मकान भी। छोटे शहरों से आये किसी आदमी से पूछिए कि दिल्ली में एक अदद मकान ढूँढ पाने का दर्द क्या होता है? मकान मालिक सीधा आपको मकान नहीं देगा; क्योंकि उसे भरोसा नहीं है। मज़बूरन प्रॉपर्टी डीलरों की शरण में जाना पड़ता है। प्रॉपर्टी डीलरों का रवैया कुछ ऐसा है, मानो आप किसी लुटेरे से बात कर रहे हों। तुर्रा यह कि ज़्यादातर प्रॉपर्टी डीलर रजिस्टर्ड नहीं हैं। लूट के इस खेल में सब शामिल हैं। सिवाय उस आम आदमी के, जिसे महानगर में रहने की कीमत चुकानी पड़ती है।
चार्टर्ड एकांउटेंसी एवं बैंकिंग सेवा परीक्षाओं की तैयारी करने वाले युवा और नौकरीपेशा लोग पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मी नगर, शकरपुर, पांडव नगर, पटपडग़ंज, विनोद नगर और गणेश नगर में रहते हैं। इसी तरह पश्चिमी दिल्ली के उत्तम नगर, जनकपुरी, नवादा और विकासपुरी जैसे इलाकों में बड़ी संख्या में प्रवासी मज़दूर रहते हैं। यहाँ हर गली-मोहल्ले में चंद कदमों की दूरी पर ढेरों प्रॉपर्टी डीलरों के साइन बोर्ड दिखेंगे, जिसमें फ्लैट ही फ्लैट और कमरे ही कमरे जैसे स्लोगन लिखे होते हैं। इन इलाकों में प्रॉपर्टी डीलर को कमीशन की मोटी रकम दिये बिना किराये का कमरा खोजना भूसे में सुई ढूँढने जैसा है। मुखर्जी नगर, मुनिरका, बेरसराय, पांडव नगर, लक्ष्मी नगर जैसे इलाकों में, जहाँ छात्रों की बहुतायत है; एक रूम सेट का किराया 8 हज़ार से लेकर 10 हज़ार रुपये के बीच है। इसके अलावा किरायेदार को एक महीने का पूरा कमीशन प्रॉपर्टी डीलर को देना अनिवार्य है। अगर आपको इन इलाकों में किराये का मकान चाहिए तो पहले महीने का पूरा खर्च 12-15 हज़ार रुपये के बीच आयेगा। मुखर्जी नगर में रहकर सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे रंजीत का कहना है कि पहले इस इलाके में कपड़े पर प्रेस करने वाले और चाय बेचने वाले दुकानदार भी खाली मकानों का ठिकाना बता देते थे; लेकिन पिछले कुछ वर्षों से यहाँ प्रॉपर्टी डीलरों का खौफ इतना बढ़ चुका है कि ये गरीब लोग चाहते हुए भी छात्रों की मदद नहीं कर पाते। मॉल रोड में रहने वाले छात्र आकाश का कहना है कि यहाँ काफी छोटे कमरे का भी किराया हज़ारों रुपये है। इसी तरह साउथ दिल्ली के मुनिरका में रहने वाले हिमांशु ने बताया कि पाँच साल पहले मुनिरका में प्रॉपर्टी डीलरों का कोई खास दखल नहीं था; लेकिन अब यहाँ भी दर्ज़नों प्रॉपर्टी डीलरों ने अपनी दुकानें सजा रखी हैं। छात्र अमित ने बताया कि यहाँ मकान मालिकों का व्यवहार इस कदर खराब है कि अगर कमरे पर किसी का दोस्त रात में आ जाए, तो उन्हें बेहद नागवार गुज़रता है। कभी-कभी तो मकान मालिक किरायेदार के साथ अभद्र व्यवहार भी करते हैं। दरअसल, यह आपबीती दिल्ली में रहने वाले हज़ारों किरायेदारों की है, जो अपमान सहकर भी कुछ नहीं कह पाते। ज़रा सोचिए उस परिवार के बारे में, जिसकी आमदनी 10 से 15 हज़ार रुपये के बीच है; क्या वह मोटी रकम किराये में देने के बाद कभी अपना घर बना सकता है। यही वजह है कि दिल्ली आने के बाद कई युवा काफी उम्र के बाद शादी करते हैं। कई लोग ऊँची मंज़िल की चाहत में अविवाहित जीवन व्यतीत करने लगते हैं, जबकि कई लोग शादी के बाद अपनी पत्नी को गाँव में रखते हैं। जो ऐसा नहीं कर पाते, वह अपने ख्वाबों को कुचलकर दिल्ली को अलविदा कह देते हैं।
दरअसल, वर्ष 1990 के बाद राजधानी दिल्ली में शिक्षा और रोज़गार के लिए देश के दूसरे शहरों से काफी तादाद में लोगों का आगमन हुआ। यह सिलसिला आज भी जारी है। सवाल यह है कि दिल्ली के हर गली-कूचे में मौज़ूद प्रॉपर्टी डीलरों पर क्या सरकार की कोई नज़र है अथवा नहीं। किरायेदारों को स्थानीय पुलिस थाने में अपना सत्यापन (वेरीफिकेशन) कराना पड़ता है। क्या दिल्ली सरकार और पुलिस ने कभी किराये का मकान दिलाने के नाम पर चाँदी काट रहे किसी प्रॉपर्टी डीलर की कोई जाँच की कि उसने जो दुकान खोल रखी है, क्या वह पंजीकृत है। समूचे दिल्ली में किसी प्रॉपर्टी डीलर के साइन बोर्ड पर अपना कोई रजिस्ट्रेशन नम्बर नहीं दिखेगा। राजधानी के अलग-अलग क्षेत्रों में आज हज़ारों की संख्या में प्रॉपर्टी डीलर अपनी दुकानें चला रहे हैं, जो पंजीकृत नहीं हैं। उन्होंने कहा कि अगर दिल्ली सरकार इनके लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दे तो उसके राजस्व में भी वृद्धि होगी। दिल्ली सरकार किराया कानून में संशोधन करके उसे जनसुलभ बनाये। आज राजधानी दिल्ली में मकान का किराया सेंसेक्स की तरह छलाँग मार रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि इसमें कभी गिरावट नहीं आती, क्योंकि मकान मालिकों और प्रॉपर्टी डीलरों का लालच ज़रूरत से ज़्यादा बढ़ गया है। वे हर वर्ष किराये में 10 फीसदी की बढ़ोतरी कर रहे हैं। मकान मालिक और किरायेदार के बीच 11 महीने का रेंट एग्रीमेंट होता है। यह अवधि बीतने के बाद मकान मालिक कोई-न-कोई तरकीब लगाकर मकान खाली करा लेते हैं और उसे ज़्यादा किराये पर चढ़ा देते हैं। प्रवासी किरायेदार कितनी मेहनत से पैसा कमाता है, इससे मकान मालिकों को कोई मतलब नहीं। अपने घर से दूर रहने वाले किरायेदार से मकान मालिक और प्रॉपर्टी डीलर का कोई मानवीय रिश्ता नहीं है, उसे तो केवल हर महीने की सात तारीख तक एकमुश्त किराया चाहिए। अगर किसी किरायेदार की तबीयत खराब हो जाए या किसी महीने उसका हाथ तंग हो तो भी गृहस्वामी उस पर कोई रहम नहीं करते। किसी कारणवश किरायेदार को 2-3 महीने के लिए घर जाना पड़े और इस बीच अगर वह किराया नहीं देता है, तो कई मकान मालिक प्रॉपर्टी डीलर से मिलकर उसका सामान बेचकर किराये की राशि वसूल लेते हैं। ऐसे कई मामले सामने आये हैं। अगर नोएडा एवं आनंद विहार की बात करें, तो यहाँ हालत और भी ज़्यादा खराब हैं।
प्रॉपर्टी डीलरों को राजनीतिक संरक्षण
दिल्ली में प्रॉपर्टी डीलरों की संख्या हज़ारों में है। इसकी सम्भावना बहुत कम है कि दिल्ली सरकार को इनकी वास्तविक संख्या पता हो। साल-दर-साल इनकी संख्या बढ़ रही है, उसी तरह दिल्ली में रहने वाले किरायेदारों की मुसीबतें भी बढ़ रही हैं। गली-मोहल्लों में एक छोटे से कमरे में प्रॉपर्टी डीलिंग का धन्धा करने वाले ज़्यादातर वे लोग हैं, जो दादागीरी के लिए जाने जाते हैं। धीरे-धीरे इनका सम्पर्क राजनीतिक दलों के स्थानीय नेताओं से हो जाता है। नेताओं का संरक्षण मिलने के बाद ये पूरी तरह निरंकुश होकर किरायेदारों के साथ मनमानी करते हैं। इनका खौफ इस कदर है कि कई इलाकों में मकान मालिक बगैर इनसे पूछे किसी को मकान नहीं देते। ये प्रॉपर्टी डीलर लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय के चुनावों में नेताओं के लिए बहुत कारगर साबित होते हैं। राजनीतिक पार्टियों के लिए इन प्रॉपर्टी डीलरों की कितनी अहमियत है, इसका अंदाज़ा आप चुनाव के समय लगा सकते हैं, जब इनकी दुकान-घर पर नेताओं का ताँता लगा रहता है।