दिल्ली सहित कई राज्यों में हाल के चुनावी नुकसान के बाद, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य उत्तर प्रदेश में अपना िकला बचाना है। दिल्ली की सत्ता का मार्ग उत्तर भारत के इसी सबसे महत्त्वपूर्ण राज्य से गुज़रता है, जहाँ 2022 का विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए सबसे बड़ी राजनीतिक परीक्षा होगा।
दिल्ली के चुनावों में रणनीतिक विफलता का ही नतीजा है कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को अपने बजट में युवा, बुनियादी ढाँचा, शिक्षा जैसा लोकलुभावन मुखौटा ओढऩा पड़ा; वो भी उन हालत में, जब राज्य वहाँ आर्थिक स्थिति बुरी हालत में है और कर्ज़ पर सारा दारोमदार चल रहा है। हालत यही है कि सरकार के कर्ज़ के कारण उत्तर प्रदेश के प्रत्येक व्यक्ति के सिर पर 22,442 रुपये के कर्ज़ का बोझ है। भाजपा का उद्देश्य सामाजिक, शैक्षणिक और अधोसंरचना क्षेत्रों में लोकलुभावन योजनाओं के ज़रिये अपने लिए सुखद राजनीतिक नतीजे लेना है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि उनकी सरकार का पहला बजट कृषि क्षेत्र पर केंद्रित था, दूसरा औद्योगिक विकास के लिए बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देने के लिए, तीसरा महिला सशक्तीकरण के लिए और उत्तर प्रदेश की विशाल क्षमता को देखते हुए चौथे बजट का फोकस युवाओं के लिए स्वरोज़गार के अवसरों के सृजन पर है। बजट में महत्त्वाकांक्षी वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट के तहत राज्य सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को बढ़ावा देने के लिए 250 करोड़ और इतने ही गरीब परिवारों की लड़कियों की शादी के लिए रखे गये हैं। उन्होंने लखनऊ में अटल मेडिकल विश्वविद्यालय की स्थापना और यूपी पुलिस के लिए सरकार की महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं की भी घोषणा की। सरकार सहारनपुर, आज़मगढ़ और अलीगढ़ में नये विश्वविद्यालय स्थापित कर रही है। हवाई अड्डे, मेट्रो और एक्सप्रेसवे परियोजनाओं के बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए राज्य ने 5,400 करोड़ रुपये से अधिक का आवंटन किया गया है। इसमें सबसे प्रतिष्ठित जेवर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (2,000 करोड़ रुपये) शामिल है, जो पूर्वी और पश्चिमी समर्पित गलियारों, अयोध्या हवाई अड्डे (500 करोड़ रुपये) को जोडऩे वाले अपनी रणनीतिक लोकेशन के कारण आर्थिक विकास में क्रान्ति ला सकता है। इसके अलावा क्षेत्रीय सम्पर्क योजना के तहत अन्य हवाई अड्डों के लिए भी 92.50 करोड़ रुपये की राशि प्रदान की गयी है।
कानपुर, आगरा और गोरखपुर की मेट्रो रेल परियोजनाओं को 844 करोड़ रुपये और गंगा एक्सप्रेसवे को 2000 करोड़ रुपये। पूर्वांचल एक्सप्रेसवे, बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे, गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे, मेरठ को प्रयागराज (इलाहाबाद) से गंगा एक्सप्रेसवे के माध्यम से जोडऩे के लिए मेगा बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए सरकार को कठिन समय का सामना है। राज्य लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के तहत ग्रामीण सडक़ और राजमार्ग परियोजनाओं को विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक (एडीबी) से वित्तपोषित सडक़ परियोजनाओं के अलावा 7,400 करोड़ रुपये प्रदान किये गये। बजट में पूर्वांचल (पूर्वी यूपी) और बुंदेलखंड के पिछड़े क्षेत्रों के लिए क्रमश: 300 करोड़ और 210 करोड़ रुपये आवंटित किये गये हैं।
राज्य ने विभिन्न जल परियोजनाओं के लिए लगभग 9,000 करोड़ रुपये आवंटित किये हैं, जिनमें नहरें, पीने योग्य पानी, जल संरक्षण, सिंचाई आदि शामिल हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संकल्प को पूरा करने के लिए 2024 तक एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थ-व्यवस्था प्राप्त करने के लिए खुद को प्रतिबद्ध किया है, ताकि भारत को पाँच ट्रिलियन डॉलर की अर्थ-व्यवस्था का लक्ष्य हासिल किया जा सके। लेकिन कमज़ोर ज़मीनी वास्तविकताएँ और कमज़ोर राजस्व प्राप्ति आर्थिक वास्तविकता के लिए एक बड़ी चुनौती हैं।
कर्ज़ का बोझ बढ़ रहा है और विभिन्न स्रोतों से अगले वित्त वर्ष 2020-21 के अन्त तक यह कर्ज़ 5.16 ट्रिलियन रुपये से अधिक हो जाने की आशंका है। साल 2020-21 के बजट का आकार 5.12 ट्रिलियन रुपये है और यह प्रदेश पर चढ़ चुके कर्ज़ से भी कम है, जिससे सहज ही प्रमुख विकास सम्बन्धी कार्यों को शुरू करने के लिए राजकोषीय हालत का अंदाज़ा लग जाता है। इस वर्ष का बजट वर्तमान 2019-20 के वार्षिक बजट से लगभग 7 फीसदी अधिक है जो कि लगभग 4.79 ट्रिलियन रुपये था। राज्य का कुल ऋण। हालाँकि, 2017-18 में राज्य सकल घरेलू उत्पाद (एसजीडीपी) के 29.6 फीसदी से नीचे आ गया और 2020-21 में इसके 28.8 फीसदी होने का अनुमान है। करीब 5.16 ट्रिलियन से अधिक के कर्ज़ के बोझ के साथ, यूपी के प्रत्येक निवासी के सिर पर 22,442 रुपये का कर्ज़ है। करीब 230 मिलियन हो रही आबादी के साथ राज्य का ऋण बोझ राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 28 फीसदी से 30 फीसदी के आसपास है। वित्त मंत्री सुरेश कुमार खन्ना ने 18 फरवरी, 2020 को विधानसभा में 2020-21 के लिए बजट को पेश करते हुए उल्लेख किया, वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान राज्य में प्रति व्यक्ति ऋण 20,702 रुपये होने का अनुमान है; क्योंकि कुल ऋण बोझ 4.76 ट्रिलियन रुपये से थोड़ा अधिक रहेगा। कुल कर्ज़ के बोझ में यूपी पॉवर कॉरपोरेशन, यूपी आवास और विकास बोर्ड और शहरी विकास प्राधिकरण जैसे सार्वजनिक उपक्रमों के बैंकों और वित्तीय संस्थानों से शामिल नहीं हैं। राज्य सरकार ही सार्वजनिक उपक्रमों के कर्ज़ लेने के िखलाफ गारंटर भी है। राज्य सरकार के 2020-21 के दौरान कुल वर्तमान कर्ज़ में से अधिकतम 32,346 करोड़ रुपये का बाज़ार ऋण होगा, जो कुल ऋण का 18.1 फीसदी है। राज्य को केंद्र से 11,815 करोड़ रुपये, वित्तीय संस्थानों से 19,368 करोड़ रुपये और बिजली बांड से 42,277 करोड़ रुपये के ऋण की उम्मीद है।
बजट में राज्य की कुल अनुमानित प्राप्तियों को पाँच ट्रिलियन रुपये से अधिक दर्शाया गया है, जिनमें से 33 फीसदी राज्य करों से, 30.4 फीसदी केंद्रीय करों के राज्य हिस्से से और 14.4 फीसदी केंद्रीय सहायता से आएगा। यह सार्वजनिक ऋणों से भी राजस्व का 13.1 फीसदी एकत्र करेगा। कुल 5.12 ट्रिलियन रुपये के खर्च में से सबसे अधिक 37.1 फीसदी सरकारी कर्मचारियों के वेतन, पेंशन, सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों और सरकारी कर्मचारियों के भत्तों पर खर्च होगा। राज्य, कर्ज़ चुकाने के लिए 16 फीसदी से थोड़ा अधिक खर्च करेगा, जबकि 16.1 फीसदी पूँजीगत व्यय पर खर्च होगा। सरकार अपने खर्च का 3.3 फीसदी सब्सिडी पर भी देगी। आर्थिक मंदी ने राज्य के औद्योगिक विकास पर बुरा असर डाला है और इसके परिणामस्वरूप करों की उगाही में कमी सूबे की वित्तीय सेहत पर दबाव डाल रही है। यूपी ने 2019-20 के पहले आठ महीनों (अप्रैल-नवंबर) के दौरान करों में लगभग 80,000 करोड़ रुपये एकत्र किये, जो चालू वित्त वर्ष के दौरान 1.40 ट्रिलियन रुपये से अधिक के लक्ष्य का लगभग 58 फीसदी है। चालू वित्त वर्ष के पहले छ: महीनों में राज्य ने महज़ 56,000 करोड़ रुपये इकट्ठे किये, जो लक्षित 1.50 ट्रिलियन राजस्व का सिर्फ 36 फीसदी था। अब राज्य सरकार ने व्यापारियों के जीएसटी आधार को 14 लाख से बढ़ाकर 50 लाख करने का लक्ष्य रखा है। अपने स्वयं के कर राजस्व के संग्रह में आ रही कमी ने स्थिति को और खराब कर दिया है; क्योंकि इससे केंद्रीय करों में इसके अपने हिस्से में बड़ी कमी हो सकती है। राजस्व के राजस्व में निरंतर कमी और सरकार पर कर्ज़ के बढ़ते बोझ ने बाज़ार के उधार के विकल्प को बहुत सीमित कर दिया है, जो कि एक बहुत ही कठिन स्थिति है। अगले मार्च के अन्त तक यूपी सरकार पर कुल कर्ज़ का बोझ 5 खरब रुपये को पार कर जाएगा, जो कि लगभग 2020-21 के बजट आकार के समान होने की सम्भावना है। यूपी सरकार पर ऋण सेवा का वार्षिक बोझ भी 2020-21 के अंत तक 1.5 ट्रिलियन रुपये से अधिक होने की सम्भावना है। योगी सरकार के सामने बिजली क्षेत्र सबसे बड़ी चुनौती रहा है। उदय (उज्ज्वला डिस्कॉम एश्योरेंस योजना) के बेलआउट पैकेज के बावजूद यूपी पॉवर कॉरपोरेशन के घाटे में बढ़ोतरी जारी है। राज्य सरकार स्वयं सबसे बड़ी डिफॉल्टर है, क्योंकि इसके विभिन्न विभागों को मार्च, 2019 के अन्त तक बिजली के बिलों का ही 15,000 करोड़ रुपये का बकाया है। यूपी में बिजली उत्पादन 800 किलोमीटर दूर दिल्ली में प्रेषित होता है, जो इसे उत्तर प्रदेश से कम टैरिफ पर बेचता है; क्योंकि दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने चोरी और िफज़ूल खर्ची पर रोक लगा दी है। राज्य में स्थिति खराब है, जहाँ 30 नवंबर, 2017 से 1 सितंबर, 2019 तक बिजली दरों में लगभग 27 फीसदी की वृद्धि हुई है। लेकिन बिजली निगमों के घाटे और राजस्व संग्रह में कोई सुधार नहीं हुआ है।
सामाजिक-आर्थिक विकास, महिलाओं को बिजली, पानी और शहर की बस सेवा की मुफ्त-सस्ती सुविधा और सामाजिक कल्याण के साथ मुफ्त सुविधाओं के आधार पर दिल्ली में आम आदमी पार्टी की ऐतिहासिक जीत ने शासन के नये रुझानों में क्रान्ति ला दी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी टीम के लिए इससे सबक लेना ज़रूरी हो गया है, क्योंकि परिवर्तन की नयी हवा विकास चाहती है और साम्प्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण का एजेंडा हमेशा एक सफल मंत्र नहीं हो सकता। इसलिए, विकास के मोर्चे पर प्रदर्शन और युवाओं के लिए रोज़गार का दबाव योगी आदित्यनाथ के लिए खराब वित्तीय संसाधनों के बीच चुनौती का प्रमुख क्षेत्र होगा।